कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को यह श्रेय बदस्तूर जाता है कि उनके नेतृत्व में देश की सबसे पुरानी पार्टी में नया जोश-जज्बा उभरा और चुनावी प्रदर्शन दोगुना हो गया। उन्होंने विपक्ष को एकजुट करने और ‘इंडिया’ ब्लॉक को धार देने में भी अहम भूमिका निभाई। राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता के नाते उन्होंने सभी दलों की संसदीय पार्टियों को हर मुद्दे पर जोड़ा और हर पार्टी में उनका रसूख है। लगभग पांच-छह दशक लंबे राजनैतिक करियर में वे आज भी 81 वर्ष की उम्र में सबसे सक्रिय नेताओं में हैं। उन्होंने मौजूदा लोकसभा चुनाव में 100 से ज्यादा रैलियां कीं और देश के हर कोने में गए। उन्होंने हरिमोहन मिश्र से मौजूदा जनादेश, एनडीए सरकार, जनता के मुद्दों और पार्टी के प्रदर्शन पर विस्तृत और बेबाक बातचीत की। प्रमुख अंश:
2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और ‘इंडिया’ ब्लॉक के बेहतर प्रदर्शन के लिए बधाई, मगर मोदी सरकार एनडीए के सहारे बन गई है तो अब संसद में और बाहर आपकी रणनीति क्या होगी?
यह माइनॉरिटी (अल्पमत) सरकार है। जनादेश इसके खिलाफ है। इसलिए यह जनता के मुद्दों से विमुख है। आपने कहा, हमारा और ‘इंडिया’ ब्लॉक का प्रदर्शन यशस्वी रहा। ठीक है, मगर यह चुनाव हमने नहीं जनता ने लड़ा है। देश की जनता ने अपने मुद्दे तय किए हैं। हमने सिर्फ जनता की आवाज को मुखर किया। राहुल गांधी ने अपनी दो यात्राओं- पहली भारत जोड़ो और दूसरी भारत जोड़ो न्याय यात्रा- में जनता की पीड़ा सुनी और हमने उसी आधार पर अपना न्याय-पत्र भी तैयार किया। हमें मुद्दों से भटकाने के लिए बहुत कोशिशें की गईं, कम्यूनल (सांप्रदायिक) ध्रुवीकरण के लिए न जाने कैसे-कैसे बोल बोले गए। ठीक है न, लेकिन जनता ने न उनकी सुनी, न हम भटके। खुद प्रधानमंत्री के नतीजे देख सकते हैं। बनारस में उनके लिए जीत का फासला इतना कम हो जाना हार से कम नहीं है। लोगों ने उनके सभी सपने खारिज कर दिए। अयोध्या में वे हार गए। वे ‘400 पार’ से शुरू हुए थे, बीच चुनाव में 300 भी भूल गए और आखिर में 240 पर आ टिके। यह मोदी की नैतिक और राजनैतिक हार है। जहां तक हमारी बात है तो हम जनता के मुद्दों के लिए लड़ते रहेंगे।
संसद में आपकी रणनीति क्या होने जा रही है?
संसद में अब हमारी एकजुट ताकत लगभग आधे की है, इसलिए वे पहले की तरह मनमानी नहीं कर पाएंगे। अब यह संभव नहीं होगा कि कोई विधेयक या सरकारी फैसला बिना बहस के पारित हो जाए। अब यह भी मुश्किल है कि 143 सांसदों को सस्पेंड करने का इतिहास फिर बना पाएंगे। हम हर मामले में अपना पक्ष मजबूती से रखेंगे और बेरोजगारी, महंगाई जैसे तमाम मुद्दों पर सरकार को घेरेंगे। दूसर ओर यह सरकार टीडीपी (तेलुगुदेसम पार्टी) और जेडीयू (जनता दल-यूनाइटेड) जैसे कई दलों के सहारे खड़ी है। इनमें ज्यादातर दल भाजपा और मोदी के विभाजनकारी एजेंडे के खिलाफ हैं। जैसे, नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार में कोई मुसलमान मंत्री नहीं रखा लेकिन टीडीपी ने मुसलमानों के लिए आरक्षण और तमाम कार्यक्रमों का वादा किया है। इसी तरह जेडीयू का स्टैंड भी कम्यूनल एजेंडे के खिलाफ है। इसलिए संसद को उसी तरह चलाना आसान नहीं होगा।
बेशक, समान नागरिक संहिता या एक राष्ट्र एक चुनाव जैसे एजेंडे पर आगे बढ़ने या संवैधानिक बदलावों के लिए एक-तिहाई बहुमत की दरकार होगी, लेकिन अग्निवीर जैसे बहुत से कार्यक्रम हैं जिन्हें खत्म करने का आप लोगों ने वादा किया है, उसके लिए क्या रणनीति होगी?
अग्निवीर के खिलाफ लोगों, खासकर युवाओं में काफी गुस्सा है। इससे देश की सेना पर भी असर पड़ता है। जेडीयू ने भी अभी इसकी समीक्षा की आवाज उठाई है। भाजपा में बहुत-से लोगों से पूछिएगा तो निजी बातचीत में इसके खिलाफ बोलेंगे क्योंकि पूरे देश में लोगों ने इसके खिलाफ जनादेश दिया है। इस मायने में इसके पक्ष में सरकार में भी अल्पमत की राय हो सकती है। दरअसल पिछले दो कार्यकाल में कैबिनेट बैठकों तक में कुछ खुली चर्चा नहीं होती थी, ऐसी बातें उभर कर आई हैं। इसलिए हम अग्निवीर ही नहीं, जनता के तमाम मुद्दों पर संसद से सड़क तक संघर्ष करेंगे।
क्या संसद के पहले सत्र में ही ये या ऐसे और मुद्दे उठाए जाएंगे? नतीजों के बाद राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक्जिट पोल और शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव के कथित घोटाले पर जेपीसी की मांग उठाई थी। क्या यह मुद्दा भी इसी सत्र में उठाया जाएगा?
यकीनन, ये सब मुद्दे उठेंगे। शेयरों की खरीद के लिए तो शाह और कई नेताओं के बयान हैं। उसमें हजारों करोड़ के वारे-न्यारे हो गए। यह तो बड़ा घोटाला लगता है। इसकी और अदाणी प्रकरण पर जेपीसी जांच बैठाने की मांग तो उठाई ही जाएगी। वह तो हमारी पुरानी मांग है। इस बार विपक्ष को अनदेखा करना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि हमारी संख्या लगभग आधे की है।
लोकसभा स्पीकर के चुनाव के लिए आपकी रणनीति क्या है?
जो कुछ भी होगा, ‘इंडिया’ ब्लॉक के सभी दलों की राय-विचार से होगा। खासकर पिछले पांच साल में सदन को जिस तरीके से चलाया गया, उसके मद्देनजर स्पीकर का पद बेहद अहम है। आपने, सबने देखा कि विपक्ष के किसी नोटिस पर संज्ञान लेने की घड़ी बमुश्किल ही आई। नेताओं के भाषणों से ढेर सारा एक्सपंज कर दिया गया। हद तो तब हो गई जब एक साथ 143 सांसदों को दोनों सदनों से, लोकसभा से 78 सांसदों को सस्पेंड करके कई विधेयक पारित कर दिए गए। फिर, अभी भाजपा अल्पमत में है, तो छोटे दलों को तोड़ने के खतरे से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इन तमाम बातों से स्पीकर पद का महत्व बढ़ जाता है। हां, पिछली बार डिप्टी स्पीकर का पद भी खाली रखा गया था जिसके बारे में संसदीय परंपरा रही है कि वह विपक्ष का होता रहा है। हमारी कोशिश होगी कि संसद का कामकाज पिछले बार की तरह न चले, कुल मिलाकर यह कि संसद को बेमानी बनाने की कोशिश अब न हो।
अगर टीडीपी या जदयू स्पीकर पद पर दावा करती है तो क्या विपक्ष उसका समर्थन करेगा?
वे क्या करते हैं वे जानें, हालांकि उन्हें भी संसदीय पॉलिटिक्स का ध्यान रखना चाहिए। हमारा स्टैंड ‘इंडिया’ ब्लॉक के सभी नेताओं की एक राय से तय होगा।
क्या राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता बनेंगे?
सीडब्लूसी (कांग्रेस कार्यसमिति) में जो कहा गया है, हमारा स्टैंड वही है। हमने उनसे आग्रह किया है, फैसला उन पर छोड़ दिया है। देखें वे क्या करते हैं।
वे नहीं बने तो कौन हो सकता है?
यह सवाल तो बाद का है। हमारा संसदीय दल तय करेगा। संसदीय दल की चेयरमैन सोनिया गांधी चुन ली गई हैं।
राहुल गांधी वायनाड या रायबरेली, किस सीट को छोड़ेंगे? सीएसडीएस के चुनाव बाद सर्वेक्षण के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में उनकी लोकप्रियता नरेंद्र मोदी के मुकाबले ज्यादा है।
इसका फैसला तो राहुल गांधी को करना है, लेकिन पार्टी भी तमाम पहलुओं पर विचार करेगी, उसी के अनुसार तय होगा। मोदी की लोकप्रियता तो पूरे देश में घटी है। कई राज्यों में जहां-जहां उन्होंने रैलियां कीं, वहां उनकी पार्टी हार गई।
मोदी की अगुआई में भले कहने को एनडीए सरकार बनी है, मगर सरकार में प्रमुख विभाग भाजपा के पास ही हैं और मंत्री भी वही हैं। क्या इससे यह संकेत नहीं दिया गया है कि सरकार पुराने तरीके से ही चलेगी?
उनकी कोशिश तो यही दिखती है, मगर पुराने तरीके से चलाना संभव नहीं होगा। जनादेश पुरानी सरकार की नीतियों, उनके तौर-तरीकों के खिलाफ है। अगर पहले की तरह ही चलते रहे तो उनकी लोकप्रियता में और गिरावट आएगी। उनके तरीके काम नहीं कर रहे हैं। युवाओं में बेचैनी है। अभी नीट की परीक्षा का घोटाला सामने आ रहा है। पेपर लीक की समस्या है। अर्थव्यवस्था के मसले हैं। लोग अब जागरूक हो गए हैं। अब उन्हें झूठे आंकड़ों से भुलवाया नहीं जा सकता। ऐसे ही बहुत सारे मसले हैं। विपक्ष को भी डराना अब संभव नहीं है।
ईडी, सीबीआइ, आइटी जैसी केंद्रीय एजेंसियों के कथित दुरुपयोग, खासकर विपक्ष के नेताओं पर निशानों में क्या फर्क आएगा?
फर्क आएगा कि नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हम लड़ेंगे। इस बार चुनाव के दौरान भी दो-दो मुख्यमंत्रियों को गिरफ्तार कर लिया गया। हमारे एकाउंट फ्रीज कर दिए गए। इलेक्टोरल बॉन्ड से हजारों करोड़ रुपये जुटा लिए गए, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया। सारी कोशिशें की गईं ताकि विपक्ष चुनाव लड़ने के काबिल ही न रह पाए, लेकिन आखिर में हुआ क्या? इसलिए केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल पहले की तरह करना आसान नहीं होगा। होता भी है तो हम लड़ेंगे। फिर, इन एजेंसियों का दंश तो टीडीपी और जेडीयू भी भुगत चुकी है।
कई हलकों में यह आशंका जताई जा रही है कि भाजपा ‘ऑपरेशन लोटस’ के जरिये विपक्ष के सांसदों को तोड़कर अपनी संख्या बहुमत के आंकड़ों तक पहुंचाने की कोशिश कर सकती है। अगर ऐसा होता है तो उसे रोकने के लिए आपकी क्या तैयारी या रणनीति है?
विपक्ष में अब टूट-फूट नहीं कराया जा सकता। ‘इंडिया’ गठबंधन मजबूत है। इसमें कहीं कोई जाने वाला नहीं है। सबको लोकतंत्र पर खतरे का गहरा एहसास है। उससे भी बड़ी बात यह है कि जनता इस सरकार की असलियत जान गई है। जो उस पाले के जाल में फंसने की सोचेगा, उसे जनता की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। महाराष्ट्र के चुनावी नतीजे आप देख सकते हैं। वैसे, हमारे सभी सांसद और नेता पक्के इरादों वाले हैं। हम लगातार सभी से संपर्क में हैं।
क्या जदयू या टीडीपी से कोई बातचीत चल रही है?
मेरी जानकारी में ऐसा कुछ नहीं है, लेकिन यह सोचना उनका काम है। क्या नीतीश और नायडू से नरेंद्र मोदी की भाजपा की रीति-नीति कुछ छुपी हुई है? नायडू के तीन राज्यसभा सदस्य क्या भाजपा ने नहीं तोड़ लिए थे और विडंबना यह कि तब भाजपा का आंध्र में एक भी विधायक नहीं था। उन्हें सब पता है। नीतीश ने भी तो जाति जनगणना, आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ऊपर उठाने, पिछड़ों-दलितों-आदिवासियों के हक की बात उठाई थी, क्या उन्हें इन मुद्दों की फिक्र नहीं होगी? देखते जाइए, अभी क्या होता है।
आपको क्या लगता है, यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी?
यह अल्पमत की सरकार है। इसकी मियाद ज्यादा से ज्यादा एक या दो साल की है। इतने में ढेरों विरोधाभास उभरने शुरू हो जाएंगे। पिछले कारनामों की पोल भी खुलने लगी है।
अब एक सवाल कांग्रेस पर- राजनैतिक हलकों में चर्चा है कि अगर कांग्रेस उन राज्यों में कुछ बेहतर करती जहां उसका सीधा मुकाबला भाजपा से है तो नतीजे आज कुछ अलग होते। क्या आप तेलंगाना और कर्नाटक में भी पार्टी के प्रदर्शन से संतुष्ट हैं? अगर नहीं, तो क्या कार्रवाई या सुधार किया जा रहा है?
कई राज्यों में विधानसभा और लोकसभा में लोगों का रुझान अलग तरह का होता है, हालांकि लगभग सभी राज्यों में हमारा वोट प्रतिशत बढ़ा है, यहां तक कि मध्य प्रदेश और हिमाचल में भी, जहां एक भी सीट नहीं मिली। हमने सभी राज्यों के चुनाव नतीजों की समीक्षा के लिए सब-कमेटियां बनाई है। उसकी रिपोर्ट पर जो कुछ करना होगा, किया जाएगा।
यह सवाल इसलिए बड़ा है क्योंकि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में जहां क्षेत्रीय दलों के नैरेटिव का साथ था, वहां तो कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन कर पाई, लेकिन हरियाणा में तमाम अनुकूल स्थिति के बावजूद आधी सीटें ही जीत पाई, तो क्या यह संगठन की कमजोरी का मामला नहीं है?
मैं मानता हूं कि संगठन ढंग से खड़ा करना है और बहुत कुछ करना है, लेकिन हम किन परिस्थितियों में संसाधनों के अभाव में चुनाव लड़े, यह भी गौरतलब है। कई जगह तो थोड़े अंतर से हार गए या हराए गए। हमारा वोट प्रतिशत बढ़ा। इन सब बातों पर विस्तृत समीक्षा हो रही है। आप देखेंगे कि आगे आने वाले वर्षों और विधानसभा चुनावों में बेहतर नतीजे दिखेंगे। अभी हम पिछले चुनाव के मुकाबले दोगुने पर आ गए हैं। हमारी संख्या 100 के पार पहुंच गई है। आगे जरूर बेहतर दिखेगा।