बिहार में कोविड-19 का टीका मुफ्त देने की भाजपा की घोषणा को राजद प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने राजनीतिक अवसरवाद करार दिया है। प्रीता नायर से बातचीत में झा ने राजद की अगुआई वाले महागठबंधन और चिराग पासवान की लोजपा के बीच समझौते से इनकार किया। बातचीत के मुख्य अंश:
भाजपा ने मुफ्त वैक्सीन का वादा किया है। क्या इसका असर चुनाव के नतीजों पर होगा?
क्या वैक्सीन तैयार है? क्या यह दूसरे राज्यों को मुफ्त नहीं मिलेगा? एनडीए हारा तो क्या बिहार के लोगों को इसके पैसे देने पड़ेंगे? आश्चर्य है कि इतने गंभीर मुद्दे का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है। लोगों में डर फैलाने के लिए यह राजनीतिक अवसरवाद है।
भाजपा का वादा राजद की रैलियों में भीड़ के कारण है? क्या यह भीड़ वोट में तब्दील होगी?
क्या उनके पास अपने कामकाज के बारे में कहने को कुछ नहीं है? कोविड-19 महामारी और खराब तरीके से लागू किए गए लॉकडाउन के चलते गंभीर मानवीय संकट खड़ा हुआ है। ऐसे समय में लोगों के डर का फायदा उठाने की कोशिश करना बेहद गैर-जिम्मेदाराना है। वैक्सीन जब भी तैयार हो, हर भारतीय को मुफ्त में मिलनी चाहिए। एनडीए इससे असहमत है तो वह खुलकर यह बात कहे।
प्रधानमंत्री ने चुनावी रैली में राजद कार्यकाल को जंगलराज बताया। आपकी टिप्पणी?
मुझे लगता है कि या तो प्रधानमंत्री ने खबरें देखना बंद कर दिया या उनके सलाहकार देश के हाल की जानकारी उन्हें नहीं दे रहे। हमें याद नहीं कि उत्तर प्रदेश के हालात पर उन्होंने एक शब्द भी कहा हो। बिहार में भी क्या वे मुजफ्फरपुर की घटना भूल गए? उस वारदात में कथित रूप से शामिल कई लोगों को एनडीए ने टिकट दिया है, यह बड़े शर्म की बात है।
प्रधानमंत्री ने कोविड-19 से निपटने में नीतीश कुमार के प्रयासों की सराहना की है, जबकि राजद उसे विफल बता रहा है।
महामारी और लॉकडाउन के मुश्किल दिनों में नीतीश कहीं नजर ही नहीं आए। राज्य सरकार ने लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया था। सरकारी स्वास्थ्य ढांचे, टेस्टिंग और राहत का मुद्दा हो या प्रवासी मजदूरों और छात्रों का, उन्होंने कुछ नहीं किया।
प्रधानमंत्री ने अनुच्छेद 370 का मुद्दा भी उठाया है। आप क्या कहना चाहेंगे?
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक राज्य को केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया। समूची सिविल सोसायटी और राजनीतिक नेतृत्व को हाल तक हिरासत में रखा गया। वहां लोगों को हाइ स्पीड इंटरनेट नहीं मिल रहा। बिहार के लोग तो इससे सचेत होंगे कि एनडीए क्या कर सकता है।
बिहार में बहुकोणीय मुकाबला है। जटिल जातिगत समीकरण को देखते हुए क्या भाजपा को फायदा होगा?
आज के बिहार को सिर्फ जाति के नजरिए से नहीं देखा जा सकता। हमने लोगों के सामने विकास का एजेंडा रखा है और पूरे राज्य में इसे काफी समर्थन मिल रहा है।
तेजस्वी यादव ने कहा है कि वे चिराग पासवान की लोजपा से गठबंधन के लिए खुले हुए हैं। क्या दोनों दलों के बीच कोई समझौता हुआ है, जैसा जदयू आरोप लगा रही है?
कोई समझौता नहीं है। हमारी प्राथमिकता गवर्नेंस को लेकर अपने विजन से बिहार के लोगों को अवगत कराना और उनकी चिंताएं दूर करना है। नीतीश कुमार की तरह हम कुर्सी के पीछे नहीं पड़े हैं। विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद हमने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी दी, क्योंकि हमें लगा कि यह बिहारवासियों के लिए अच्छा होगा, लेकिन नीतीश की योजना कुछ और थी। उनके लिए सत्ता ही सब कुछ है। हम गठबंधन और गणित के बारे में ज्यादा नहीं सोच रहे।
लोजपा का दावा है कि चुनाव के बाद नीतीश फिर राजद की ओर लौट सकते हैं। क्या आपने जदयू का विकल्प खुला रखा है?
जैसा मैंने पहले कहा, हमारी प्राथमिकता विकास का एजेंडा तय करना और जल्द से जल्द उसे लागू करना है। बिहारवासियों ने लंबे समय तक पिछड़ापन भोगा है, अब उन्हें तत्काल राहत की दरकार है।
जनमत सर्वेक्षणों में एनडीए को बढ़त दिखाई गई है। आप कितने आश्वस्त हैं?
हाल के वर्षों में हमने एक बात सीखी है- मुख्यधारा के मीडिया को नजरअंदाज करना। आज मीडिया की विश्वसनीयता सबसे निचले स्तर पर है। हम लोगों की आवाज सुन रहे हैं। हमें लगता है कि बिहार के युवा महागठबंधन को लेकर सकारात्मक हैं।
आपके 10 लाख नौकरियों के वादे की भाजपा और जदयू ने काफी आलोचना की। क्या आप वादा पूरा कर सकेंगे?
हमारा वादा वास्तविक है। संसाधन न हों तो विकास न होने की बात समझ में आती है, लेकिन एनडीए शासनकाल में तो संसाधन के बावजूद विकास नहीं हो रहा है। बजट तय होने के बाद भी स्वीकृत पदों पर नियुक्तियां नहीं हो रही हैं। सरकार खर्च के अपने ही लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रही है।