डिजिटल फ्रॉड में ऐप नए हथियार बन गए हैं। हालात इस कदर बिगड़े कि लोग आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। बढ़ते मामले को देखते हुए अब आरबीआई कार्यदल बनाकर इस तरह के फ्रॉड को रोकने की तैयारी कर रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि इस मामले में कहां चूक हुई और क्या इस तरह के लोन देने वाले ऐप को प्रतिबंधित कर देना चाहिए ? या फिर सख्त रेग्युलेशन की जरूरत है। इस मसले पर भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व चीफ जनरल मैनेजर (सीजीएम) सुनील पंत से आउटलुक के प्रशांत श्रीवास्तव ने बातचीत की है। प्रमुख अंश:
इस तरह के फ्रॉड पर क्यों नहीं लग रही है लगाम?
अभी कर्ज देने वाले ऐप के लिए कोई रेग्युलेशन नहीं है। आरबीआइ खुद कह रहा है ऐसे 72 ऐप है, जिनसे बचना चाहिए। इसके तहत एक मूल कमी यह है, कि लोगों ने उसे कर्ज लेने से पहले चेक नहीं किया कि यह ऐप वैध है या नहीं। इस तरह के कर्ज देने वाले न के बराबर दस्तावेज लेते हैं, ऐसे में जरूरतमंदो को यह लुभाता है। लेकिन इसके पीछे ब्याज का खेल बहुत खतरनाक है। एक उदाहरण से समझिए कि अगर 30 हजार रुपये पर एक हफ्ते का 24 हजार रुपये ब्याज आता है। तो आप समझ सकते हैं कितना बड़ा फ्रॉड हो रहा है। इसके अलावा कर्ज देने के लिए ये कंपनियां पैनकार्ड, आधार से लेकर जरूरी दस्तावेज और लोगों के कान्टैक्ट मांग लेती हैं। लोग जरूरत और लालच में यह सब बेहद आसानी से दे भी देते हैं। जिसका इस तरह की कंपनियां ब्लैकमेल करने में फायदा उठा रहे हैं। इस बीच अगर कर्जदार ने गलती से किस्त नहीं चुकाई तो ब्लैकमेलिंग शुरू हो जाती है। दलदल में फंसने के बाद कई लोगों ने आत्मत्या भी कर ली। जैसा कि मैंने कहा कि अभी तक कोई रेग्युलेशन नहीं है। इसलिए यह धड़ल्ले से चल रहा है। अब आरबीआई से लेकर संबंधित लोग सक्रिय हुए हैं। ऐसे में रेग्युलेशन आने की उम्मीद है, जिससे स्थितियां जरूर नियंत्रण में आएंगी।
क्या पेमेंट गेट-वे और ऐप स्टोर की जिम्मेदारी भी तय होनी चाहिए?
देखिए पेमेंट गेट-वे और ऐप स्टोर कर्ज देने की प्रक्रिया के माध्यम हैं। इसी तरह ई-कॉमर्स के रेग्युलेशन पर भी काफी बहस हुई थी। लेकिन सबसे ज्यादा जिम्मेदारी तो ऐप के जरिए कर्ज देने वाली कंपनियों की बनती है। जहां तक पेमेंट गेट-वे और ऐप स्टोर की बात है तो उन्हें केवल एक सेवा देने वाले माध्यम के रूप मे देखना चाहिए। जिसके आधार पर उनकी जिम्मेदारी रेग्युलेशन में तय होनी चाहिए।
क्या ऐप के जरिए कर्ज देने के सिस्टम की जरूरत है?
देखिए जो काम नोटबंदी ने नहीं किया, वह कोविड-19 ने कर दिया है। एक तरह से डिजिटल क्रांति आ गई है। बहुत से काम जिनके बारे में हम सोच भी नहीं सकते थे वह डिजिटल तरीके से हो रहे हैं। ऐसे में एप के जरिए कर्ज देने के फायदे हैं। सोचिए अगर एक किसान और निम्न वर्ग के आदमी को 50 हजार रुपये की जरूरत है। तो वह अगर बैंक के पारंपरिक तरीके को अपनाता है तो उसे एक तो आसानी से लोन नहीं मिलेगा, दूसरे उसे पाने में 20-25 दिन कम से कम चले जाएंगे। ऐप के जरिए इसे कुछ मिनटों में लिया जा सकता है। जरूरत प्रतिबंध लगाने की नहीं बल्कि उसे रेग्युलेट करने की है। तभी तकनीकी का सही इस्तेमाल हो सकेगा।
क्या फिनटेक इंडस्ट्री, माइक्रोफाइनेंस सेक्टर के संकट जैसे हालात पैदा हो गए हैं?
माइक्रोफाइनेंस से इसकी तुलना नहीं कर सकते हैं। इसके तहत जो कंपनियां थी, वह कहीं न कहीं पंजीकृत थी। वह आरबीआई, कोऑपरेटिव, राज्य की एजेंसियों के जरिए पंजीकृत थी। लेकिन उसमें कर्ज वसूली में काफी उत्पीड़न के मामले सामने आए थे। बाद में उसमें रेग्युलेशन किया गया। जिससे स्थिति सुधरी। जहां तक ऐप के जरिए लोन से होने वाला फ्रॉड है तो यहां तो पूरी तरह अवैध है। केवल टेक्नोलॉजी का फायदा उठाकर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। इसीलिए आरबीआई ने एक कार्यदल बनाया है। स्थिति ऐसी बन गई है कि अब ऐप आधारित कर्ज देने वालों को रेग्युलेशन के दायरे में आना चाहिए। क्योंकि हमें यह समझना होगा कि दो तरह के ग्राहक होते हैं। एक ग्राहक वर्ग जो काफी जागरूक होता है, ऐसे में उसे धोखा नहीं दिया जा सकता है। लेकिन एक ग्राहक वर्ग ऐसा होता है, जो जागरूक भी कम होता है, दूसरा वह जरूरतमंद होता है। ऐसी स्थिति में उसके साथ धोखाधड़ी के मामले ज्यादा होने का खतरा होता है। कोविड-19 की वजह से ऐसे लोग ज्यादा खतरे में आ गए हैं। ऐसे में रेग्युलेशन की बेहद जरूरत है।