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किसान आंदोलन: इंटरव्यू/राकेश टिकैत

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत का कहना है कि उनकी बाकी मांगों पर सरकार अपना रवैया स्पष्ट करे
राकेश टिकैत

तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बावजूद संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत का कहना है कि उनकी बाकी मांगों पर सरकार अपना रवैया स्पष्ट करे। टिकैत के अनुसार मोर्चा आगे आम जन के मुद्दे भी उठाएगा। उनसे बात की आउटलुक के एस.के. सिंह ने। मुख्य अंशः

सरकार को किसानों की बात समझने में इतना वक्त क्यों लगा?

शायद हम किसान 11 दौर की बातचीत में सरकार को अपनी बात समझा नहीं पाए। हम जिस भाषा में बोल रहे थे, वह भाषा सरकार के लोगों को समझ में न आई हो। यह भी हो सकता है कि मंत्री दस महीने में अपनी बात प्रधानमंत्री को बताने में नाकाम रहे हों। अगर सरकार तभी कानून वापस ले लेती तो जो शहादत किसानों की हुई है, वह न होती। उन किसानों की मौत की जिम्मेदार सरकार ही है।

अब तो सरकार मान गई है...

देर से सही, वे समझे तो। अब एमएसपी पर भी हमारी बात समझ जाएं। बाजार में फसलों की बोली एमएसपी से कम पर न लगे।

छह फीसदी ही उपज एमएसपी पर खरीदी जाती है। पूरी उपज की खरीद संभव है?

2011 में एक फाइनेंशियल कमेटी बनी थी। उसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई मुख्यमंत्री थे। कमेटी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जो रिपोर्ट पेश की, उसमें कहा गया था कि एमएसपी गारंटी कानून बने तो किसानों को लाभ होगा। आज मोदी प्रधानमंत्री हैं। वे दस साल पुरानी अपनी रिपोर्ट लागू कर दें, तो फायदा पूरे देश के किसानों को होगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं माफी मांगता हूं। इस पर आप क्या कहेंगे?

माफी मांगने की जरूरत नहीं है। हम तो बस मसलों का समाधान चाहते हैं। माफी मांगने से किसानों की फसलें एमएसपी पर नहीं बिकेंगी। एमएसपी पर फसलें बिकेंगी कानून बनाने से। माफी मांगने के बजाय प्रधानमंत्री कानून बनाने पर ध्यान दें। भावनाओं से देश चलाने की कोशिश न करें। देश कानून बनाने से चलता है।

आंदोलन कब तक चलेगा?

आंदोलन संघर्ष से समाधान तक जाएगा। समाधान सरकार ही करेगी। बिना समाधान के घर वापसी नहीं। आगे किसानों के जो भी मामले हैं उस पर कमेटी बने। बाकी मसले भी टेबल पर आने चाहिए। मंडी के बाहर फसल बिकवाने और मंडी की जमीनें बेचने की बड़ी योजना सरकार की है। सरकार का रवैया तानाशाही का है, लोकतांत्रिक देश में ऐसी व्यवस्था नहीं चलती।

भूमि अधिग्रहण कानून पर सरकार पीछे तो हटी, लेकिन राज्यों के जरिए उसे लागू करने की कोशिश की जा रही है। क्या आपको लगता है कि कृषि कानूनों के साथ भी ऐसा हो सकता है?

सरकार है, पता नहीं क्या-क्या कर सकती है। लेकिन अभी तो ऐसा नहीं करेंगे। बाद में हुआ तो तब देखेंगे।

भूमि अधिग्रहण पर विरोध रहेगा?

बिल्कुल रहेगा। हमारा विरोध हर उस बात पर होगा, जिससे किसानों को नुकसान होगा।

कानून वापसी का राजनीतिक असर क्या देखते हैं?

भाजपा को कुछ फायदा मिल सकता है।

आपकी अभी जो मांगें हैं, उनके पूरी होने के बाद संयुक्त मोर्चा क्या करेगा?

संयुक्त मोर्चा देशभर में एक संगठित मोर्चा बना है। आगे जो मसले आएंगे, उनमें संयुक्त मोर्चा की भूमिका रहेगी।

सिर्फ किसानों के मुद्दे पर मोर्चा लड़ेगा या दूसरे मुद्दों पर भी?

दूसरे मुद्दे भी शामिल रहने चाहिए। महंगाई जैसे आम लोगों के मुद्दे भी।

आंदोलन के दौरान करीब 700 किसानों की जान गई, उनके लिए क्या चाहते हैं?

सरकार उनके परिवारों को मुआवजा दे, उनके नाम दिल्ली में एक शहीद स्मारक बने।

लखीमपुर खीरी घटना पर क्या मांग है?

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी की गिरफ्तारी और बर्खास्तगी। वे धारा 120बी का मुलजिम हैं, उनकी गिरफ्तारी होनी चाहिए। समझौते में सरकार ने घायलों (लखीमपुर खीरी कांड के) को भी मुआवजा देने की बात मानी थी लेकिन अभी तक नहीं दिया, उन्हें मुआवजा मिले।

आंदोलन की उपलब्धियां क्या मानते हैं?

इस आंदोलन से भाईचारा बना, एक-दूसरे की भाषाएं सीखीं, एक-दूसरे का रहन-सहन सीखा, पूरे देश का किसान इस आंदोलन से जुड़ा। युवाओं ने भी संघर्ष देखा, आंदोलन में शरीक होने वाले युवा अब जमीन नहीं बेचेंगे।

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