संजना सांघी उन चुनिंदा कलाकारों में से हैं, जिन्होंने सीमित अवसरों में अपनी अलग पहचान बनाई है। संजना ने फिल्म रॉकस्टार से शुरुआत की और आने वाले कुछ वर्षों में दिल बेचारा, हिंदी मीडियम, जैसी फिल्मों से दर्शकों के बीच लोकप्रिय हो गईं। संजना, जी 5 ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कड़क सिंह में संवेदनशील और रोचक किरदार में दिखी हैं। इसके लिए उन्हें समीक्षकों से जबर्दस्त सराहना मिल रही है। संजना से उनकी फिल्म और अभिनय यात्रा पर आउटलुक के मनीष पाण्डेय ने बातचीत की।
कड़क सिंह में साक्षी का किरदार निभाते हुए क्या चुनौतियां आईं ?
कड़क सिंह जैसी फिल्में कम बनती हैं। इसलिए ऐसी फिल्में कलाकार से ज्यादा परिश्रम, अनुशासन की मांग करती हैं। इसके लिए किसी भी कलाकार को अपनी क्षमता का विस्तार करना होता है। जीवन अनुभव का इस्तेमाल करना होता है। स्क्रिप्ट में साक्षी का किरदार जटिल और कई परतों में ढका हुआ है। इस तरह का किरदार मैंने कभी नहीं निभाया था। सच कहूं, तो शुरुआत में मुझे लग रहा था कि पता नहीं कैसे मैं इस किरदार को निभा सकूंगी। किस तरह हो पाएगा। मगर जब मैंने निर्देशक के विश्वास को देखा तो मैं इसके प्रति आश्वस्त हुई। मैंने धीरे-धीरे किरदार को महसूस करना शुरु किया, इसके बारे में सोचना शुरू किया और देखते ही देखते मुझे इस किरदार में मजा आने लगा। जो सुकून, जो आनंद मैंने साक्षी के किरदार को निभाते हुए महसूस किया, पहले कभी नहीं किया। मैंने महसूस किया कि कलाकार का असली प्रतिभा इसी तरह के किरदारों से निखरता है।
पंकज त्रिपाठी जैसे सशक्त अभिनेता आपके सामने थे। क्या सीखने को मिला?
इस फिल्म के दौरान मैंने कई बातें सीखी। क्योंकि सीखना मेरे स्वभाव में है। मैं अपने पास हमेशा एक डायरी रखती हूं। उसमें जो सीखती हूं, उसे लिखती रहती हूं। ताकि जीवन में मुझे जब-जब महत्वपूर्ण निर्णय लेने हों, इन अनुभवों को दोहरा सकूं और फिर कोई फैसला लूं। पंकज त्रिपाठी सर की कही हर पंक्ति में गहरा संदेश होता है, जिसके बारे में आप कई दिनों तक सोचते रहते हैं। इस फिल्म का मेरा किरदार यदि कोई प्रभाव छोड़ पाया है, तो इसका श्रेय पंकज जी को जाता है। किरदार की तैयारी के लिए मैं 15 दिन उनके घर गई। एक्टिंग गुरु प्रसन्ना ने हमारी वर्कशॉप ली। साथी कलाकार को किस तरह सहज किया जाता है, कैसे उसका आत्मविश्वास बढ़ाया जाता है, यह पंकज जी को बखूबी आता है। उपलब्धियों के साथ कैसे सरल रहा जाता है, यह बात पंकज जी से सीखी जा सकती है।
कड़क सिंह पिता-पुत्री संबंध को रेखांकित करती है। इस बारे में बताइए?
पिता और पुत्री का रिश्ता मेरे लिए बहुत खास है। असल जिंदगी में मैं अपने पिता के बहुत करीब हूं। उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया है। आज मैं, जो कुछ भी हासिल कर पाई हूं, उसमें सबसे बड़ा योगदान मेरे पिता का है। जब मुझे पता चला कि साक्षी के किरदार में मैं पिता-पुत्री संबंध की गहराई को महसूस कर सकूंगी, तो मुझे खुशी हुई कि मैंने यह फिल्म चुनी है। पिता-पुत्री के चुनौतीपूर्ण संबंध को निभाने में बहुत आनंद आया। मैंने इस फिल्म में पूरी शिद्दत से काम किया है।
किसी भी फिल्म या किरदार को चुनते हुए आपके जहन में क्या रहता है?
मैं सार्थक काम करना चाहती हूं। चाहती हूं कि जब कोई मुझे स्क्रीन पर देखे, तो उसे मेरी अहमियत समझ आए। सिर्फ जगह भरने के लिए, मैं कोई भी रोल नहीं करना चाहती। यही कारण है कि मैं ग्लैमरस अवतार से ज्यादा यथार्थवादी सिनेमा में नजर आती हूं। इन फिल्मों में स्कोप होता है। आपकी कला विकसित होती है। आप बेहतर कलाकार और इंसान बनते हैं। स्क्रिप्ट पढ़ते हुए, मुझे महसूस होने लगता है कि इस किरदार को निभाकर मुझे खुशी होगी या नहीं। इस आधार पर ही मैं फिल्मों का चुनाव करती हूं।
रॉकस्टार से शुरु होकर आपकी फिल्म यात्रा कड़क सिंह तक पहुंच चुकी है। इस सफर को लेकर कैसा महसूस करती हैं?
मैं दर्शकों के प्यार और आशीर्वाद के लिए आभारी हूं। जिस पृष्ठभूमि से आती हूं, वहां सिनेमा को लेकर कोई माहौल नहीं था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अभिनेत्री बनूंगी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन मेरी फिल्म रिलीज होगी या देश के दिग्गज कलाकारों के साथ स्क्रीन साझा करूंगी। आज जब मेरी फिल्में रिलीज होती हैं, जब आलोचकों और दर्शकों का प्यार मिलता है, तो सब स्वप्न जैसा लगता है। यह मुझे और मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है।
हिंदी सिनेमा से जुड़े वे कौन से तौर तरीके हैं, जिनमें बदलाव होना चाहिए ?
मुझे हमेशा से महसूस होता है कि सिनेमा या किसी भी क्षेत्र में समानता का व्यवहार होना चाहिए। दिल बेचारा फिल्म से पहले मुझसे अलग तरह का व्यवहार किया जाता था। ऐसा लगता था जैसे, मैं और साथ का सह अभिनेता, जो स्टार या दो-तीन फिल्म पुराना होता था, अलग अलग दुनिया से आते हैं। फिर जैसे ही दिल बेचारा रिलीज हुई मुझे भी अहमियत मिलने लगी। वही लोग अलग तरीके से पेश आने लगे। ऐसे व्यवहार से महसूस हुआ कि प्रतिभा को तभी सम्मान मिलता है, जब कोई कलाकार स्टार बन जाता है या उस श्रेणी में आ जाते हैं। जब तक किसी कलाकार को बड़ी फिल्म नहीं मिलती, तब तक चाहे किसी कलाकार में कितनी भी प्रतिभा क्यों न हो, उसे कोई नहीं पूछता। मैं चाहती हूं कि फिल्म के सेट पर ऐसा माहौल, जहां कोई कलाकार खुद को छोटा महसूस न करे। इसके अतिरिक्त हिंदी सिनेमा में मेंटल हेल्थ को लेकर चर्चा होना बहुत ही जरूरी है। इस तरफ ध्यान देने की बहुत जरूरत है। ग्लैमर इंडस्ट्री में जितना स्ट्रेस है, वह कलाकारों को भीतर से खोखला कर रहा होता है। इसलिए एक ऐसी व्यवस्था की बहुत जरूरत है, जहां कलाकारों के मेंटल हेल्थ की चर्चा हो। उन्हें मदद मिल सके। तभी सही मायने में हिंदी सिनेमा, विश्व सिनेमा की बराबरी कर सकेगा।
जीवन में असफलताओं से कैसे निपटती हैं ?
मेरा ऐसा मानना है कि जब भी प्रयास किया जाएगा, कुछ न कुछ उससे जरूर सीख मिलेगी। इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है, प्रयास करना। परिणाम क्या होगा, यह सोचे बिना प्रयास करते रहना चाहिए। क्योंकि परिणाम, तो आते ही रहते हैं। परिणाम से विचलित होने की जरूरत नहीं है। मैं निराश नहीं होती। जानती हूं कि कोई भी बड़ा काम एक दिन में नहीं होता। सफलता रातों रात नहीं मिलती है। उसमें समय लगता है। यही वजह है कि मैं असफलताओं से प्रभावित नहीं होती। मेरा मनोबल हमेशा ऊंचा रहता है।