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“जीएसटी पर केंद्र का फैसला संघीय ढांचे पर चोट”

जीएसटी विवाद/ इंटरव्यू/टी.एस.सिंहदेव
टी.एस. सिंहदेव

जीएसटी कंपेनसेशन सेस में कमी की भरपाई के लिए केंद्र सरकार ने 23 अक्टूबर को 6,000 करोड़ रुपये कर्ज लेकर 16 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों को दिए। केंद्र ने 15 अक्टूबर को कहा था कि वह 1.1 लाख करोड़ रुपये कर्ज लेकर राज्यों को देगा, यह उसी का हिस्सा है। वित्त मंत्रालय के अनुसार, हर हफ्ते 6,000 करोड़ रुपये राज्यों को दिए जाएंगे। इसी के साथ दो महीने से चला आ रहा जीएसटी कंपेनसेशन विवाद सुलझता नजर आ रहा है। लेकिन इस विवाद ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इस पर निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था जीएसटी काउंसिल में पहली बार बिना किसी चर्चा के केंद्र ने अपना फैसला थोपा, तो काउंसिल पहली बार पक्ष-विपक्ष में बंटती नजर आई। पहली बार काउंसिल में किसी मुद्दे पर आम राय बनाने की कोशिश नहीं हुई। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने तो यहां तक कह दिया कि जीएसटी की समीक्षा का वक्त आ गया है क्योंकि राज्यों को इससे कोई लाभ नहीं। उन्होंने कहा, यह काम नहीं कर रहा तो प्रधानमंत्री को ईमानदारी से यह बात स्वीकार कर पुरानी व्यवस्था लागू करनी चाहिए।

ऐसा नहीं कि सेस की कमी कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के कारण ही आई हो। यह समस्या पिछले साल से है। जीएसटी कानून में राज्यों का कर संग्रह हर साल 14 फीसदी बढ़ने का प्रावधान है। अगर किसी राज्य के संग्रह में कमी आती है तो केंद्र सरकार जीएसटी सेस फंड से उसे बाकी रकम कंपेनसेशन के रूप में देगी। राज्यों की मांग तो 14 फीसदी की दर से बढ़ रही है, लेकिन अर्थव्यवस्था में सुस्ती के कारण कर संग्रह उस अनुपात में नहीं बढ़ रहा। राज्यों की तरफ से कंपेनसेशन की मांग बढ़ी तो केंद्र ने कहा कि कोविड-19 ‘एक्ट ऑफ गॉड’ यानी दैवीय आपदा है, और वह इसकी वजह से कर संग्रह में कमी की भरपाई के लिए बाध्य नहीं। नई टैक्स व्यवस्था को पहली बार दो हिस्से में बांटते हुए उसने कहा कि जीएसटी लागू करने की दिक्कतों के कारण जो कमी आएगी, सिर्फ उसी की भरपाई होगी। करीब दो महीने तक केंद्र अपनी बात पर अड़ा रहा, तब केरल ने कोर्ट जाने की बात कही। केंद्र ने कहा कि वह 1.1 लाख करोड़ रुपये कर्ज लेकर राज्यों को देगा।

केंद्र के इस प्रस्ताव का छत्तीसगढ़, पंजाब, राजस्थान, पुदुच्‍चेरी, तेलंगाना, केरल और पश्चिम बंगाल अब भी विरोध कर रहे हैं। ये चाहते हैं कि कर संग्रह में जो और 73 हजार करोड़ रुपये की कमी का अनुमान है, केंद्र वह रकम भी उधार लेकर राज्यों को दे। छत्तीसगढ़ के वाणिज्य कर मंत्री टी.एस. सिंहदेव  का कहना है कि पांच साल तक जीएसटी में कमी की भरपाई की गारंटी है, इसलिए केंद्र को पूरे 1.83 लाख करोड़ रुपये कर्ज लेकर राज्यों को देने चाहिए। केंद्र ने जिस तरह राज्यों पर निर्णय थोपा है, उसे वे जीएसटी के संघीय ढांचे पर चोट मानते हैं। उनके साथ बात की एस.के. सिंह ने। मुख्य अंश:

जीएसटी कंपेनसेशन सेस में कमी की भरपाई के लिए केंद्र ने दो विकल्प दिए हैं। पहले विकल्प पर सहमति बनती लग रही है। इसके लिए क्या व्यवस्था तय हुई है?

पहले विकल्प के तहत केंद्र 1.1 लाख करोड़ रुपये कर्ज लेकर राज्यों को देने पर राजी हुआ है। इस कर्ज की वापसी राज्यों के सेस फंड से होगी। राज्यों से यह अंडरटेकिंग देने को कहा गया है कि केंद्र सरकार उनका हिस्सा सेस फंड से काटकर कर्ज लौटाएगी। दूसरे विकल्प के तहत राज्यों को 2.35 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेना था, जिसे उन्हें ही लौटाना था। कोई भी राज्य इसके लिए तैयार नहीं है।

राज्यों की आपत्ति किस बात पर है?

केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 293 के आधार पर पहला विकल्प दिया है। इसके तहत केंद्र की अनुमति से राज्य कंसोलिडेटेड फंड को कोलैटरल रख कर रूटीन कर्ज लेते हैं। राज्यों की आपत्ति इस बात पर है कि जब कर संग्रह कम हो रहा है तो नए कर्ज के लिए कोलैटरल कहां से आएगा। अनुच्छेद 293(2) में प्रावधान है कि केंद्र सरकार कर्ज लेकर राज्यों को दे सकती है। केंद्र ऐसा करे और कर्ज का भुगतान जीएसटी सेस खाते से हो तो राज्यों को कोई आपत्ति नहीं। हमारा यह भी कहना है कि जब केंद्र 1.1 लाख करोड़ रुपये देने पर राजी है, तो बाकी रकम वह क्यों छोड़ रहा है। कुछ राज्यों ने केंद्रीय वित्त मंत्री को इस बारे में लिखा भी है। केंद्र सरकार ने कह दिया कि कर संग्रह में कमी कोरोना की वजह से आई। पिछले साल कमी आई तब तो कोरोना नहीं था। सच तो यह है कि कमी अर्थव्यवस्था में सुस्ती के कारण है, कोरोना के कारण इसमें बढ़ोतरी हुई है।

केंद्र ने पहले कहा था कि जीएसटी संग्रह में कमी 2.35 लाख करोड़ रुपये की होगी। संशोधित अनुमान 1.83 लाख करोड़ का है। इसका आधार क्या है?

यह अनुमान कोविड और लॉकडाउन के कारण पहली छमाही में कर संग्रह में आई कमी के आधार पर है। पिछले साल जीएसटी सेस से 98 हजार करोड़ और उसके पिछले साल करीब 95 हजार करोड़ रुपये आए थे। इस साल पहली छमाही का आंकड़ा 35,000 करोड़ का है। यानी पूरे साल में करीब 70,000 करोड़ रुपये आएंगे। इसके अलावा आइजीएसटी मद में 11 हजार करोड़ रुपये आने की उम्मीद है। यानी पिछले साल की तुलना में कमी 10 हजार करोड़ रुपये के आसपास रहेगी। अब पिछले साल की तुलना में रेवेन्यू 14 फीसदी बढ़ने के आधार पर कमी 60 से 70 हजार करोड़ रुपये रहेगी। इस तरह कुल 1.83 लाख करोड़ रुपये (जीएसटी लागू करने की दिक्कतों के कारण 1.1 लाख करोड़ समेत) की कमी का आकलन किया जा रहा है।

रेवेन्यू में कमी की भरपाई कैसे की जाए, इस पर काउंसिल में क्या निर्णय हुआ था?

यूपीए और एनडीए, दोनों के कार्यकाल में जीएसटी लागू करने में एक बात शुरू से आड़े आ रही थी कि रेवन्यू में कमी आने पर उसकी भरपाई कैसे होगी। जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी तब भाजपा शासित राज्य, जिनमें नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाला गुजरात भी शामिल था, कहते थे कि हमें भरोसा नहीं कि केंद्र सरकार पैसे देगी। इसलिए तब जीएसटी लागू नहीं हो सका था। जब अरुण जेटली वित्त मंत्री बने तो उन्होंने पांच साल तक भरपाई की बात कही। इसके बाद ही राज्य 70 फीसदी से अधिक टैक्स लगाने का अपना अधिकार जीएसटी में समाहित करने पर राजी हुए। 18 फरवरी 2017 को जीएसटी काउंसिल की बैठक में निर्णय हुआ था कि रेवेन्यू में कमी की भरपाई केंद्र सरकार करेगी। भरपाई का तरीका जीएसटी काउंसिल में तय किया जाएगा। इसके बाद भी अगर केंद्र एकपक्षीय फैसले से संघीय ढांचे को खत्म करेगा, तो इसका मतलब हुआ कि आप जीएसटी संस्थान को ही चुनौती दे रहे हैं। आपने पहले एक बात कही और आज उससे इनकार करेंगे, तो राज्यों का केंद्र पर भरोसा कैसे रहेगा। केंद्र लगातार शर्तें लगा रहा है, इस पर भी ऐतराज है। संवैधानिक प्रावधान पूरे करने के लिए केंद्र शर्तें कैसे लगा सकता है? इस तरह के फैसले बहुमत के आधार पर नहीं होने चाहिए, क्योंकि कल किसी और पार्टी की बहुमत होगी तो वह इस सरकार के फैसले बदल देगी। इस तरह तो हर बार संविधान को तिलांजलि दे दी जाएगी।

राज्यों को खुद कर्ज लेने पर क्या आपत्ति है?

केंद्र सरकार राज्यों के साथ हुए समझौते को तोड़ना चाहती है। जीएसटी संग्रह में कमी आई तो उसने कहा कि राज्य कर्ज लेंगे। कोलैटरल है कहां जिसके आधार पर राज्य कर्ज लेंगे। इसलिए काउंसिल की 42वीं बैठक के पहले सत्र में राज्यों ने कहा कि केंद्र सरकार रिजर्व बैंक से कर्ज लेकर राज्यों को दे। जब तक इस पर ब्याज और मूलधन का भुगतान नहीं हो जाता, तब तक जीएसटी सेस बना रहे। लेकिन केंद्र इस बात पर अड़ा रहा कि कर्ज राज्य सरकारें लेंगी। तब भाजपा और एनडीए शासित राज्य पहले विकल्प पर तैयार हो गए।

21 राज्य और दो केंद्र शासित प्रदेश पहले विकल्प पर राजी हैं, यानी बहुमत तो पहले विकल्प के पक्ष में है।

जीएसटी कानून में प्रावधान है कि अगर एक भी राज्य को आपत्ति हुई तो उस पर चर्चा होगी। जीएसटी का संघीय ढांचा अलग है। संसद या विधानसभा के विपरीत यहां आपत्ति उठाने के लिए किसी कोरम की जरूरत नहीं। यहां हर राज्य का वोट शेयर एक समान है। बहुमत के आधार पर फैसला, एकमत से निर्णय लेने की जीएसटी की प्रकृति के विपरीत होगा। एकमत से निर्णय लेने पर ही जीएसटी काउंसिल का औचित्य है। वर्ना केंद्र पूरे देश में एक टैक्स रेट लगा दे, उसके लिए जीएसटी काउंसिल की क्या जरूरत है?

काउंसिल में कोई निर्णय क्यों नहीं हो सका?

केंद्र ने वोटिंग की बात भी नहीं मानी। कह दिया कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मीटिंग तो हो सकती है, लेकिन वोटिंग नहीं। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि किसी विषय पर एक राय है तो ठीक, वरना वर्चुअल मीटिंग में कोई निर्णय लिया ही नहीं जा सकेगा। केंद्र का वोट शेयर एक तिहाई (33.33 फीसदी) है और प्रस्ताव पारित करने के लिए कम से कम 75 फीसदी मत जरूरी है। यानी केंद्र के समर्थन के बिना कोई फैसला हो ही नहीं सकता। 2017 में भी यह मुद्दा आया था कि जब हर फैसला केंद्र पर निर्भर करेगा, तो राजस्व में कमी की भरपाई कौन करेगा।

केंद्र ने आपकी मांग नहीं मानी तो क्या करेंगे?

कानूनी विकल्प भी देख रहे हैं। केंद्र हमारे हाथ तो मरोड़ ही रहा है। जीएसटी काउंसिल की बैठक में यह निर्णय भी हुआ था कि कर संग्रह में कमी की भरपाई हर दो महीने में होगी। इस साल छह महीने में यह रकम 1.1 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है और उसके भुगतान में भी केंद्र सरकार डिफॉल्ट कर रही है। पहले दो साल तो सेस का पैसा सरप्लस में था, जिससे तीसरे साल में आई कमी की भरपाई हो गई। जब केंद्र को पता था कि कर संग्रह में गिरावट आ रही है तो उसे पहले ही निर्णय लेना चाहिए था, लेकिन वह इंतजार करता रहा और दुर्भाग्यवश कोविड-19 महामारी आ गई। इससे कर संग्रह में और तेजी से गिरावट आई। इस वित्त वर्ष के करीब सात महीने हो गए हैं और सरकार ने आंशिक भुगतान ही किया है। छत्तीसगढ़ के कर संग्रह में 4,000 करोड़ रुपये से अधिक की कमी है और केंद्र से हमें सिर्फ 350 करोड़ मिले हैं।

केंद्र का कर संग्रह भी तो कम हो रहा है?

केंद्र के पास सेस मद में लगभग 35,000 करोड़ रुपये हैं। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि इसमें से 20,000 करोड़ रुपये राज्यों को दिए जा रहे हैं। केंद्र के पास जितनी रकम है, पूरी क्यों नहीं दे रहा है। केंद्र के खाते में पैसे हैं लेकिन वह उसे राज्यों को नहीं दे रहा है। इस रकम का और कोई इस्तेमाल तो है नहीं। इस तरह उसने अर्थव्यवस्था में सुस्ती बढ़ाने में भी योगदान किया है।

क्या इस विवाद का मूल कारण आप जीएसटी ढांचे को मानते हैं?

मेरी व्यक्तिगत राय है कि भले ही जीएसटी में ज्यादातर अप्रत्यक्ष करों को मिला दिया गया, उसके संग्रह का अधिकार राज्यों के पास ही होना चाहिए था। वरना छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र जैसे राज्यों को नुकसान हो रहा है। ये उत्पादन करने वाले राज्य हैं जबकि जीएसटी खपत पर लगता है। हमारे यहां कोयला निकलेगा तो उसकी सप्लाई दूसरे राज्यों होगी और कर संग्रह वहां होगा। पहले हम वैट लगाते थे, अब वैट का आधा ही मिलता है। कोयले पर प्रदूषण सेस लगता था जिससे साल भर में करीब 5,400 करोड़ रुपये मिलते थे। अब 2,200 करोड़ मिलते हैं। केंद्र ने जिस भरपाई का वादा किया था, अगर वह भी बंद हो गया तब तो हमारी आमदनी ही खत्म हो जाएगी। छत्तीसगढ़ के लिए भरपाई की यह रकम करीब 36,000 करोड़ रुपये होगी, जो एक राज्य के लिए काफी बड़ी राशि है।

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