“न तो राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, 1980 के तहत डॉ. कफील खान को हिरासत में रखना और न ही हिरासत की अवधि बढ़ाना कानून की नजर में सही है...उनके भाषण से अलीगढ़ की शांति को खतरा नहीं लगता, बल्कि उन्होंने तो राष्ट्रीय अखंडता और एकता की बात कही थी...उन्हें तत्काल रिहा किया जाए।” इलाहाबाद हाइकोर्ट के इस फैसले के बाद डॉ. कफील खान मौजूदा दौर में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) और राजद्रोह जैसे कड़े कानूनों के भारी दुरुपयोग के प्रतीक बनकर उभरे। आखिरकार सात महीने बाद 2 सितंबर को मथुरा जेल से रिहा किए गए 38 वर्षीय डॉ. कफील को उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने 29 जनवरी को मुंबई हवाई अड्डे से पकड़ा तो बताया गया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में 13 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ छात्रों की सभा में उन्होंने भड़काऊ और राजद्रोही भाषण दिया था, जिसकी शिकायत अलीगढ़ के डीएम ने की थी। लेकिन हाइकोर्ट ने न सिर्फ इसे बेमानी पाया, बल्कि पुलिस प्रशासन को ऐसा करने से बचने की हिदायत भी दी। बकौल कफील, मामला दरअसल उस भाषण का नहीं, बल्कि उनके गृह शहर गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में अगस्त-सितंबर 2017 में ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद होने से 70 से ज्यादा बच्चों की मौत का है। उनके मुताबिक, मुंबई से एसटीएफ वाले दो दिनों तक अज्ञात जगहों पर घुमाते रहे और तरह-तरह की यातना देते रहे और यही कहते रहे कि अब मुंह बंद रखो। तीसरे दिन उन्हें मथुरा जेल में लाया गया और उन पर एनएसए लगा दिया गया। जेल में भी उन्हें बुरी तरह प्रताड़ित किया गया। दरअसल, उनके मुताबिक, सत्ता-तंत्र में बैठे लोग नहीं चाहते कि बच्चों की मौत के असली अपराधियों का पर्दाफाश हो, इसलिए उन्हें परेशान किया जा रहा है। वे बीआरडी मेडिकल कॉलेज में उस वारदात के वक्त बाल रोग विभाग के नोडल अफसर थे। उन्हें और आठ अन्य को लापरवाही के आरोप में निलंबित किया गया। लेकिन बाद में उन्हें जांच समितियों ने न केवल क्लीन चिट दी, बल्कि बच्चों को बचाने के लिए उनके प्रयासों की प्रशंसा भी की। उनका कहना है कि हाइकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और सरकार की 13 जांच समितियों से क्लीन चिट मिलने के बावजूद उन्हें बहाल नहीं किया जा रहा है। दो साल पहले उन पर कॉलेज की पढ़ाई के दौरान 2009 में फर्जी दस्तावेजों के जरिए बैंकिंग लेन-देन का आरोप भी लगाया गया। इन हालात में उन पर और उनके परिवार पर खौफ ऐसे तारी है कि कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी की सलाह पर राजस्थान में निवास बनाने का फैसला किया। पिछले तीन साल में उन्हें किन अनुभवों से गुजरना पड़ा, क्या वे राजनीति में उतरेंगे, ऐसे ही तमाम सवालों पर आउटलुक के प्रशांत श्रीवास्तव ने उनसे विस्तार से बात की। प्रमुख अंश:
तीन साल से आप लगातार मुकदमे झेल रहे हैं। कभी अस्पताल में लापरवही, कभी फर्जी दस्तावेज तो कभी एनएसए के तहत आरोप। आखिर इसकी वजह क्या है?
उत्तर प्रदेश सरकार के इस रवैये के पीछे मुझे तीन कारण नजर आते हैं। पहला, 2017 में जब बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में 70 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई तो नौ लोगों को निलंबित कर दिया गया था। उसमें मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य पर गाज गिरी थी। बाद में मेरे सहित सभी लोगों को क्लीन चिट मिल गई। तो सवाल उठता है कि उन मासूम बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन है? इसके लिए मैं लगातार आवाज उठा रहा हूं। शायद यह कुछ लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रहा है। दूसरी वजह यह है कि जब मुझे इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले के बाद रिहा कर दिया गया, तो मुझे अपने पद पर दोबारा नियुक्ति नहीं दी गई। ऐसे में मैंने देश के पिछड़े राज्यों में बच्चों के लिए ‘हेल्थ फॉर ऑल’ अभियान शुरू किया। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और असम सहित कई राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर रिपोर्ट तैयार की। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में 72 फीसदी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थिति काफी खराब नजर आई। तीसरा कारण यह है कि पिछले साल नवंबर-दिसंबर में जब एनआरसी और सीएए के खिलाफ पूरे देश में आवाज उठी, तो कानून की बारीकियों को समझने के बाद मैं भी देश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों के साथ जुड़ा। मुझे लगता है, इन्हीं वजहों से मैं उत्तर प्रदेश सरकार को पसंद नहीं आ रहा हूं।
आप बच्चों की मौत का दोषी किसे मानते हैं?
जब नौ आरोपियों को क्लीन चिट मिल गई तो मतलब है कि गलती किसी और की होगी। मैं इसी बात को उठा रहा हूं। शायद कुछ लोगों को बचाने की कोशिश हो रही है। मेडिकल कॉलेज को ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स ने भी कमीशन के लेन-देन की बात कही थी। जाहिर है, जिन लोगों पर उंगलियां उठ रही हैं, उन्हें ही परेशानी हो रही है। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कह सकता।
आठ आरोपी तो दोबारा बीआरडी कॉलेज के पदों पर बहाल हो गए लेकिन आपको नहीं?
यही तो मैं जानना चाहता हूं। 13 जांच समितियों ने मुझे क्लीन चिट दी है। इसके अलावा इलाहाबाद हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को भी मेरे खिलाफ कुछ नहीं मिला। फिर भी मुझे उत्तर प्रदेश सरकार बहाल नहीं कर रही है। मैंने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को पत्र भी लिखा है। जब सरकार बाकी आठ लोगों को बहाल कर सकती है तो मुझे क्यों नहीं?
दूसरा आरोप एनआरसी और सीएए के खिलाफ आंदोलन का रहा है?
जब गोरखपुर के जिलाधिकारी की जांच में मुझे पहली बार क्लीन चिट मिली थी, उस वक्त से मैं योगी सरकार से कह रहा हूं कि मुझे बहाल किया जाए। जब मुझे बहाल नहीं किया जा रहा है, तो कुछ तो करूंगा। मैं पेशे से डॉक्टर हूं, तो मैंने हेल्थ फॉर ऑल मिशन के तहत काम करना शुरू किया, अब ऐसा करने में क्या गुनाह है? जहां तक सीएए की बात है तो मैं उसके खिलाफ नहीं हूं, लेकिन जब गृह मंत्री अमित शाह कहते हैं कि पूरे देश में एनआरसी लागू होगा, तो मन में शंका उठती है। लेकिन आप मेरा कोई भाषण सुन लीजिए, मैंने कभी देश के खिलाफ या ऐसा कुछ नहीं बोला कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन जाए।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भाषण में क्या कुछ ऐसी बात थी, जो आपको अब लगता हो कि ऐसा नहीं कहना चाहिए था?
ऐसा बिल्कुल नहीं है। मैंने देश के विभिन्न राज्यों में एनआरसी और सीएए को लेकर करीब 300 भाषण दिए हैं। सिर्फ उत्तर प्रदेश सरकार को लगा कि मैंने देश की सुरक्षा के खिलाफ भाषण दिया है। क्या दूसरी राज्य सरकारें मामले को नहीं समझती हैं? गिरफ्तारी का तरीका भी समझ से परे हैं। मैं जब 29 जनवरी को एनआरसी-सीएए के एक कार्यक्रम में मुंबई पहुंचा तो मुझे एयरपोर्ट पर उतरते ही गिरफ्तार कर लिया गया, जैसे मैं कोई भगोड़ा हूं। तीन दिन तक मुझे एसटीएफ ने शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना दी। फिर एनएसए लगाकर जेल में डाल दिया गया।
आपको किस तरह की प्रताड़ना दी गई?
मुझ पर हर मुमकिन तरीका अपनाया गया। मुझे नंगा करके पीटा गया, इतना मारा गया कि मैं बैठ नहीं सकता था। मुझे दो-तीन दिन पीने का पानी तक नहीं दिया गया। एसटीएफ ने तो कई दिनों तक गिरफ्तारी को छिपाए रखा। मथुरा जेल में भी बहुत बुरा हाल था। एक बैरक में 135-140 लोगों के बीच पांच-छह शौचालय होते थे। कई बार लाइन में लगे-लगे ही पैंट खराब हो जाती थी। शौचालय इतने बदबूदार होते थे कि उल्टी हो जाती थी। खाना ऐसा था कि पेट भरने के लिए सूखी रोटियों को पानी के साथ निगलना पड़ता था। इन हालात में इनसान शारीरिक और मानसिक रूप से टूट जाता है। सरकार ने एनएसए को बार-बार बढ़ाया, जबकि कोई ठोस वजह नहीं बताई गई।
क्या आपके परिवार ने कभी मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगाई?
मेरी मां और पत्नी ने उनसे मुलाकात की थी। उन्होंने भरोसा दिया था कि न्याय मिलेगा, लेकिन हकीकत सबके सामने है। मैं अभी तक बहाल होने का इंतजार कर रहा हूं। मैंने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इंसाफ की गुहार लगाई थी।
क्या आपको लगता है कि मुस्लिम होने के नाते आपको निशाने पर लिया जा रहा है?
मैं ऐसा बिल्कुल नहीं मानता हूं। अगर मेरा नाम कफील मिश्रा या कफील कुमार होता, तब भी मेरे साथ ऐसा ही होता। वजह यह है कि 2017 में 70 से ज्यादा मासूम बच्चों की मौत पर मैं सवाल उठा रहा हूं। आपको यह समझना होगा कि उन मासूम बच्चों की मौत का जो भी जिम्मेदार है, उसे सजा मिलनी चाहिए। यह सवाल कफील खान की जगह कफील मिश्रा या कुमार उठाता तो वह भी प्रताड़ना झेलता।
आपकी रिहाई पर कांग्रेस के नेता मौजूद थे तो क्या आप राजनीति में उतरने की सोच रहे हैं?
एक बात मैं साफ कर दूं कि मैं डॉक्टर हूं और वहीं रहूंगा। मैं राजनीति में नहीं जाने वाला हूं। जहां तक कांग्रेस नेता के जेल पहुंचने की बात है, तो उसे मानवीय मदद के रूप में देखा जाना चाहिए। प्रियंका गांधी ने इसी आधार पर राजस्थान जाने की सलाह दी।
यूपी से राजस्थान आने का फैसला क्यों ?
मेरे और मेरे परिवार के साथ जैसा बर्ताव हुआ है, उससे चिंता तो होती है। इसीलिए मुझे लगा कि कुछ समय के लिए परिवार को लेकर राजस्थान चला जाऊं। मैं जल्दी ही गोरखपुर भी जाऊंगा।
आपके परिवार को किन दिक्कतों का सामना करना पड़ा?
मेरे भाई को गोरखपुर में ही गोली मारी गई। निशाने पर मैं था पर गलती से भाई को गोली लग गई। खुदा का शुक्र है कि वह बच गया। दो साल हो गए, आज तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई। इसी तरह जब मुझ पर एनएसए लगाया गया, तो लोगों ने हमारे परिवार को अछूत बना दिया। मेरे भाइयों का बिजनेस बर्बाद हो गया। कोई हमसे संबंध नहीं रखना चाहता है। मेरे दो बच्चे हैं, पांच साल का बेटा और डेढ़ साल की बेटी। उन पर क्या बीत रही होगी। मेरी पत्नी और बूढ़ी मां को कोरोना के दौर में अदालतों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। सब कुछ बिखर गया है।