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17 फरवरी 2025 · FEB 17 , 2025

शख्सियत/जगजीत सिंह दल्लेवाल : किसानों के लिए जान की बाजी

दल्लेवाल ने अनशन पर बैठने से पहले अपना सब कुछ परिजनों के नाम कर दिया, उनकी जिंदगी में अब सिर्फ किसान आंदोलन
किसानों के खातिरः खनौरी बॉर्डर पर भूख हड़ताल पर बैठे जगजीत सिंह दल्लेवाल

हरियाणा-पंजाब के खनौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन (28 जनवरी तक 64 दिन) पर बैठे 68 वर्षीय किसान नेता जगजीत सिंह दल्‍लेवाल का दुर्बल शरीर फुलकारी प्रिंट वाले एक नीले कंबल से ढंका था। उनकी सेहत को लेकर चिंताएं बढ़ीं, तो सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने पंजाब सरकार से मेडिकल रिपोर्टों का पूरा सेट पेश करने को कहा ताकि अदालत को “दिल्‍ली में एम्स के निदेशक द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड से दल्‍लेवाल की सेहत की स्थिति के बारे में राय ली जा सके।” दल्लेवाल के अनशन का 54 दिन पूरा होने पर केंद्रीय कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव प्रियरंजन बातचीत का न्योता लेकर खनौरी बार्डर पर पहुंचे। किसान नेताओं से लम्बी बैठक में कई बिन्दुओं में सहमति बनाने के बाद सरकार और किसानों के बीच अगली बैठक 14 फरवरी को चंडीगढ़ में किया जाना निर्धारित हुआ। इसके बाद जगजीत सिंह दल्लेवाल मेडिकल सहायता लेने को राजी हुए। विरोध-स्थल पर कैंसर के मरीज दल्‍लेवाल की नस में ड्रिप के जरिये अब पोषक तत्व पंप किए जा रहे हैं। वे बार-बार आती मिचली के बीच अपने साथियों को निर्देश देते रहते हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम गैर-राजनैतिक) के संयोजक दल्‍लेवाल ने किसानों की आवाज "सरकार के कान तक पहुंचाने के लिए" 26 नवंबर, 2024 को भूख हड़ताल का ऐलान किया था। किसानों की मांग में उपज की खरीद के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी शामिल है। तरनतारन साहिब के 75 वर्षीय किसान सुच्चा सिंह 250 किलोमीटर की यात्रा करके खनौरी पहुंचे हैं। वे कहते हैं, "वे किसानों के लिए लड़ रहे हैं। वे हमारे लिए मोदी सरकार के सामने खड़े हैं।" सुच्‍चा सिंह उन 111 किसानों में एक हैं जो 15 जनवरी, 2025 को दल्‍लेवाल के समर्थन में भूख हड़ताल पर बैठ गए। हरियाणा के हिसार, सोनीपत, पानीपत और जींद जिलों के दस किसानों ने भी दल्‍लेवाल के समर्थन में 17 जनवरी को आमरण अनशन शुरू किया। इसके बाद शम्भू बार्डर से किसान मजदूर मोर्चा के नेता स्वर्ण सिंह पंधेर ने नए कार्यक्रम के तहत फिर से दिल्ली कूच का एलान कर दिया।

दूसरे विरोध-स्‍थल शंभू बॉर्डर की कमान स्वर्ण सिंह पंधेर के किसान मजदूर मोर्चा के हाथ है। खनौरी में एसकेएम (गैर-राजनीतिक) और भारतीय किसान यूनियन एकता (सिद्धूपुर) का मोर्चा है। एसकेएम (गैर-राजनैतिक) किसानों के देशव्‍यापी छतरी संगठन एसकेएम से अलग हुआ गुट है, जिसने 2020-21 के किसान विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया था। जैसे-जैसे दल्‍लेवाल की तबीयत बिगड़ती जा रही है, खनौरी, शंभू और रतनपुरा में लगभग साल भर से विरोध प्रदर्शन कर रहे सैकड़ों किसानों में बेचैनी बढ़ रही है। एसकेएम (गैर-राजनैतिक) के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "हम सभी दल्लेवाल की सेहत के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। अगर उन्हें कुछ हो जाता है, तो हालात बेकाबू हो सकते हैं।"

फरीदकोट जिले के दल्‍लेवाला गांव में 4 अक्टूबर, 1958 को किसान परिवार में जन्मे जगजीत सिंह दल्‍लेवाल के पास राजनीति विज्ञान में मास्टर्स डिग्री है। उनकी 66 साल की बहन जसवीर कौर कहती हैं, “उन्हें हमेशा से खेती और किसानों की समस्याओं को सुलझाने में दिलचस्पी रही है।” जबसे उनके भाई भूख हड़ताल पर बैठे हैं, तभी से वे मंच के पास उनके कांच के घेरे के बाहर डेरा डाले हुए हैं। वे आंसू भरी आंखों से कहती हैं, “मैं अपने भाई को यहां अकेला कैसे छोड़ सकती हूं?” पंजाब पुलिस में एसआइ की नौकरी मिलने के बावजूद दल्‍लेवाल ने किसानों के लिए काम को चुना। पिछले 44 वर्षों से वे किसानों और मजदूरों के लिए भारतीय किसान यूनियन एकता (सिद्धूपुर) के सदस्य के रूप में काम कर रहे हैं।

बीकेयू एकता (सिद्धूपुर) का गठन सरदार पिशोरा सिंह सिद्धूपुर ने किया था, जो 1994 में उसके पहले अध्यक्ष थे। उनसे दल्‍लेवाल अपनी युवावस्था में ही प्रभावित हुए। 2017 में उनकी मृत्यु के बाद दल्‍लेवाल को अध्यक्ष चुना गया। उसके पहले वे समूह के फरीदकोट जिले के 18 साल तक अध्यक्ष थे। जब उन्होंने अध्‍यक्ष कार्यभार संभाला, तब आठ-दस जिलों तक सीमित रहने वाला बीकेयू एकता (सिद्धूपुर) अब पंजाब के हर जिले में मौजूद है और यह राज्य का दूसरा सबसे बड़ा किसान संघ बन चुका है।

पिछले साल से दल्‍लेवाल के खनौरी बॉर्डर के मोर्चे पर डटने के बाद घर की देखभाल कर रहे उनके बेटे गुरपिंदर सिंह कहते हैं कि उनके लिए किसानों का मुद्दा परिवार से पहले है। फरवरी 2018 में उन्होंने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग को लेकर दिल्ली तक ट्रैक्टर मार्च का नेतृत्व किया था। मार्च में वे दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना हजारे की भूख हड़ताल में शामिल हुए। उससे पहले दल्‍लेवाल ने पंजाब में 35 दिनों तक प्रदर्शन किया था। जनवरी 2019 में उन्होंने चंडीगढ़ में पांच दिवसीय भूख हड़ताल की और जनवरी 2021 में एक और भूख हड़ताल की, जब वे केंद्र सरकार के लाए तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ बड़े किसान विरोध के हिस्से के रूप में दिल्ली सीमा पर सिलसिलेवार भूख हड़ताल का हिस्सा बने।

नवंबर 2022 में दल्‍लेवाल ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की किसान यूनियनों के खिलाफ टिप्पणियों के बाद एक और भूख हड़ताल की। जून 2023 में दल्‍लेवाल ने किसानों के लिए पानी और बिजली के मुद्दों सहित 21 मांगों को लेकर पटियाला में पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड के मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन के दौरान एक और भूख हड़ताल की। एक हफ्ते बाद पंजाब पुलिस ने उन्हें जबरन अस्पताल में भर्ती करा दिया था। मौजूदा भूख हड़ताल उनकी छठी और सबसे लंबी है। दल्‍लेवाल ने 26 नवंबर, 2024 को किसानों के विरोध प्रदर्शन की सालगिरह के मौके पर भूख हड़ताल शुरू की।

2020-21 के किसान आंदोलन के दौरान ही दल्‍लेवाल को प्रोस्टेट कैंसर का पता चला था। वे चार साल से कीमोथेरेपी करवा रहे हैं। इसके बावजूद वे पहले कृषि कानूनों के खिलाफ और फिर एमएसपी की कानूनी गारंटी और किसानों-मजदूरों के लिए ऋण माफी सहित अन्य मांगों के लिए सक्रिय रहे हैं। कुछ लोग दावा करते हैं कि दल्‍लेवाल ने बीकेयू एकता (सिद्धूपुर) को पिशोरा सिद्धूपुर के वामपंथी रुझान से दूर कर दिया है। अन्ना आंदोलन में उनकी भागीदारी इस तरह की आलोचनाओं को बढ़ाती है, लेकिन एसकेएम (गैर-राजनैतिक) के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि दल्‍लेवाल धार्मिक कट्टरपंथ के खिलाफ हैं और सिख कट्टरपंथ और खालिस्तान पर टिप्पणी करने से बचते रहे हैं। दल्‍लेवाल का कहना है कि उन्हें चुनावी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है। उनका और उनके साथियों का कहना है कि भूख हड़ताल "कोई राजनैतिक स्टंट नहीं है" और दल्‍लेवाल "शहादत" के रास्ते पर हैं।

पिछले नवंबर में हड़ताल की घोषणा करने के बाद दल्‍लेवाल वसीयत तैयार करने के लिए फरीदकोट अपने घर गए थे। प्रदर्शन शुरू करने की प्रस्तावित तिथि से कुछ दिन पहले ही 27 जनवरी, 2024 को उन्होंने अपनी पत्नी को खो दिया था, लेकिन इससे विचलित हुए बिना उन्होंने 3 फरवरी को हरियाणा में एक महापंचायत में किसानों को संबोधित किया, जहां उन्होंने कहा था, "जो हो गया सो हो गया, यह ऊपर वाले की इच्छा है, लेकिन किसान बिरादरी भी मेरा परिवार है और मैं अपनी सारी ताकत उसके लिए लगाना चाहता हूं।" ऐसा लगता है कि बेटे-बहु के नाम वसीयत लिखकर अनशन पर बैठे दल्लेवाल ने किसानों के सवाल को वाकई अपने जीवन-मरण का सवाल बना लिया है।

 

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