कश्मीर में सुरक्षा बलों को उम्मीद है कि छह मई को हिजबुल मुजाहिदीन के ऑपरेशन कमांडर रियाज नायकू के मुठभेड़ में मारे जाने से दक्षिण कश्मीर क्षेत्र में आतंकियों की भर्ती थमेगी। दक्षिण कश्मीर के इलाके में हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी के सुरक्षा बलों के हाथों मारे जाने के बाद से आतंकियों की भर्ती और वारदातों में तेजी देखी गई है। उत्तरी कश्मीर में सुरक्षा बलों को भारी नुकसान के दो दिनों के बाद नायकू मारा गया। इससे बलों को बढ़त मिलने की उम्मीद लगाई जा रही है। 3 मई को आतंकियों के साथ सबसे भयंकर मुठभेड़ों में एक मुठभेड़ में सेना का एक कर्नल और एक मेजर सहित पांच जवान शहीद हो गए। उत्तरी कश्मीर के हंदवाड़ा के एक गांव में हुई इस मुठभेड़ में दो आतंकी भी मारे गए। मरने वालों में सेना के कर्नल आशुतोष शर्मा, मेजर अनुज, जम्मू-कश्मीर पुलिस के सब-इंस्पेक्टर शकील काजी शामिल थे। इस वारदात के बाद 5 मई को आतंकियों ने हंदवाड़ा के वंगम गांव में सीआरपीएफ पर घात लगाकर हमला किया। इसमें तीन जवान शहीद हो गए। इसमें दोनों ओर की फायरिंग में फंसे एक दिव्यांग लड़के की भी मौत हो गई। आतंकियों को न्यूनतम नुकसान वाले इन दोनों हमलों के बाद भारी उथल-पुथल की आशंका थी। इससे यह साफ हो गया कि दक्षिणी कश्मीर के विपरीत उत्तरी कश्मीर में आतंकी ज्यादा प्रशिक्षित और असले से लैश हैं। बकौल पुलिस, दक्षिण कश्मीर के आतंकी इस मामले में कमजोर और कच्चे हैं।
गणित का शिक्षक रहा रियाज नायकू ए ट्रिपल प्लस ग्रेड का आतंकी माना जाता था। उस पर 12 लाख रुपये का इनाम था। वह 2012 से सक्रिय था और इस तरह सबसे लंबे समय तक सक्रिय आतंकियों में शुमार था। नायकू अगस्त 2017 में शोपियां में सुरक्षा बलों की मुठभेड़ में यासीन इटलू के मारे जाने के बाद हिजबुल कमांडर बना था। हालांकि उसके उभार से आतंकी गतिविधियों पर नजर रखने वालों को हैरानी हुई क्योंकि 2012 से वह लो-प्रोफाइल ही रहा था। दरअसल नायकू को हिजबुल की कमान तब मिली, जब कमांडर जाकिर मूसा अंसार-उल-गजवात-उल-हिंद में शामिल हो गया।
मूसा 8 जून, 2016 को 22 वर्षीय बुरहान वानी के मारे जाने के बाद हिजबुल मुजाहिदीन का चेहरा बन गया था। वानी के मारे जाने और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के बाद आतंकियों की भर्ती तेज हो गई थी। जानकारों का मानना है कि नायकू अंसार-उल-गजवात में मूसा के साथ औरों को जाने से रोकने में कामयाब रहा, जो अल कायदा से जुड़ा है।
सितंबर, 2018 में नायकू की अगुआई में हिजबुल आतंकियों ने पुलिसवालों के 11 परिजनों का अपहरण कर लिया और पुलिस को रियाज नायकू के पिता असदुल्लाह नायकू को रिहा करने पर मजबूर कर दिया। दरअसल, श्रीनगर से 60 किलोमीटर दूर शोपियां में आतंकियों ने चार पुलिसवालों की हत्या कर दी थी, तो अगले दिन पुलिस ने असदुल्लाह को अवंतीपुरा के घर से गिरफ्तार कर लिया था। इसके जवाब में आतंकियों ने दक्षिण कश्मीर के पुलवामा, अनंतनाग और शोपियां जिलों के गांवों से पुलिसवालों के 11 परिजनों को अगवा कर लिया। इसके कुछ घंटों के बाद ही पुलिस ने नायकू के पिता को रिहा कर दिया। हालांकि पुलिस ने कहा कि असदुल्लाह को पूछताछ के लिए बुलाया गया था और बाद में रिहा कर दिया गया। नायकू ने ऑडियो संदेश देकर पुलिस को चेतावनी दी थी कि नहीं छोड़ा गया तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
उससे पहले ऐसा 1999 में हुआ था, जब इंडियन एयरलाइन की फ्लाइट आइसी 814 के अपहरण के बाद मौलाना मसूद अजहर और मुस्ताक अहमद जरगर सहित तीन आतंकियों को छोड़ा गया था।
जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह कहते हैं, “हर बार हम उसके करीब पहुंचते थे, लेकिन उसे घेर नहीं पाते थे। उसके छिपने के कई ठिकाने थे, खासकर वह अपने इलाके में एक गांव से दूसरे गांव में छिप जाता था।”
पुलिस के अनुसार, वह पिछले 15 दिनों से नायकू के पीछे लगी थी। कश्मीर के पुलिस आइजी विजय कुमार के मुताबिक, नायकू का मारा जाना कश्मीर में आतंकियों के लिए बड़ा झटका है। उनके मुताबिक, नायकू लगभग हर महीने युवाओं को लुभाने के लिए वीडियो जारी करता था और आतंकियों को लोगों और पुलिसवालों की हत्या के लिए निर्देश जारी करता था।
पिछले 5 अप्रैल को उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में नियंत्रण रेखा के निकट केरन सेक्टर में घुसपैठियों के साथ मुठभेड़ में पांच जवानों की मौत हो गई थी। पांचों जवान प्रतिष्ठित 4 पैरा यूनिट के थे, जिसने 2016 में एलओसी पार पाक अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था। इस कार्रवाई में पांच आतंकी भी मारे गए थे। इस मुठभेड़ को इस साल एलओसी के पास घुसपैठियों के खिलाफ बड़े अभियान के तौर पर देखा गया था। दक्षिण कश्मीर के दो परिवारों ने कुपवाड़ा में पुलिस के पास पहुंचकर दावा किया कि केरन मुठभेड़ में मारे गए आतंकी उनके परिवार के सदस्य हैं। उन्होंने उनकी पहचान शोपियां के आदिल वानी और मुश्ताक अहमद हुर्रा के तौर पर की। इस मुठभेड़ को हाल के वर्षों में एलओसी और अंदरूनी इलाकों में ऐसी प्रमुख वारदातों के रूप में देखा गया जिसमें सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा। केरन की इस मुठभेड़ के बाद से एलओसी पर दोनों ओर से भारी गोलाबारी जारी है।
इस मुठभेड़ के बाद एक अनजान संगठन द रजिस्टेंस फोर्स (टीआरएफ) ने केरन सेक्टर में मारे गए आतंकियों को अपने संगठन से जुड़ा बताया। सोशल मीडिया के जरिए प्रचारित एक ऑडियो संदेश में टीआरएफ ने कहा कि भारत ने पांच अगस्त 2019 के बाद से ऐसी स्थिति पैदा कर दी, जिसके कारण कश्मीरियों को भारी प्रताड़ना और दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं। उसने आरोप लगाया कि भारत सरकार ने किसी को भी नहीं छोड़ा, यहां तक कि अपने वफादार (मुख्यधारा के) नेताओं को भी नहीं। टीआरएफ ने डोमिसाइल कानून सहित 5 अगस्त के बाद की स्थितियों पर अपनी बात रखी। टीआरएफ ने हंदवाड़ा हमलों की भी जिम्मेदारी ली है।
टीआरएफ पहली बार 23 मार्च को तब चर्चाओं में आया, जब पुलिस ने कहा कि उसने टीआरएफ का पहला मॉड्यूल तोड़ दिया है। पुलिस ने उनसे हथियारों की बड़ी खेप बरामद की जिसे कुपवाड़ा जिले के केरन सेक्टर से इस ग्रुप के लिए भेजा गया था। पुलिस ने इसे लश्कर-ए-तैयबा का लोकल फ्रंट बताया है, जिसे पाकिस्तान ने पिछले साल 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने के तुरंत बाद लांच किया। पुलिस के मुताबिक, “इस ग्रुप का मुख्य उद्देश्य हथियार और गोला-बारूद जुटाना और नेताओं और पुलिसवालों को निशाना बनाना है।”
बीते 5 अगस्त, 2019 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 ए को समाप्त किए जाने के बाद संचार माध्यमों और लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंधों के कारण घाटी में लंबे समय तक आतंकी घटनाएं और उनके खिलाफ अभियान काफी कम हो गए थे। अगस्त में सिर्फ एक आतंकी और एक पुलिसवाले की मौत हुई थी। लेकिन उसके बाद से जम्मू-कश्मीर में 22 मुठभेड़ें हुईं, जिसमें 44 आतंकी मारे गए। पिछले साल जनवरी से जुलाई तक 154 से ज्यादा आतंकी मारे गए। 2018 में सुरक्षा बलों ने 260 आतंकियों काे मार गिराने का दावा किया था।
जानकारों के मुताबिक, अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से उत्तरी कशमीर में मुठभेड़े हो रही हैं और नए संगठन बनाए जा रहे हैं। इससे संकेत मिलते हैं कि आतंकी रणनीति में बदलाव कर रहे हैं। एक अधिकारी ने अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर कहा, “केरन मुठभेड़ से पता चलता है कि आतंकी ज्यादा तैयारी से हमले की योजना बना रहे हैं क्योंकि पिछले मुठभेडों के मुकाबले उनका नुकसान काफी कम हुआ है।” उन अधिकारी के मुताबिक, अनुच्छेद 370 के समाप्त होने से जुड़ा नया ग्रुप आतंकवाद को स्थानीय जुड़ाव दे रहा है, जो इस क्षेत्र में आबादी का स्वरूप बदलने के भय जैसी स्थानीय चिंताओं से पैदा हुआ है। लंबे अरसे तक कश्मीर के आतंकवादी परिदृश्य में मुख्य तौर पर हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा छाए रहे हैं।
पुलिस सूत्र कहते हैं कि पहले भी घाटी में कई तरह के आतंकी संगठन बनाए गए लेकिन वे जल्दी ही खत्म हो गए। उन्हें सीमा पार से हथियार और अन्य सहायता नहीं मिल पाई। सुरक्षा एजेंसियां नजर रखे हुए हैं कि टीआरएफ का उदय घाटी में क्या असर डालता है। जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह कहते हैं कि टीआरएफ लश्कर का छद्म संगठन है। उनके अनुसार पिछले साल 5 अगस्त के बाद पाकिस्तान भारी दबाव में था और टीआरएफ उसके बाद ही बनाया गया।
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दक्षिण कश्मीर में हिजबुल कमांडर रियाज नायकू के मारे जाने से उत्तर कश्मीर में भी तेज होती आतंकी वारदातों में कमी की उम्मीद