झारखंड के लिए पच्चीस वर्ष केवल समय-चक्र नहीं, बल्कि राज्य के इतिहास, संघर्ष, अस्मिता, पहचान और विकास की यात्रा का अहम पड़ाव है। इस दौरान राज्य ने कई उतार-चढ़ावों के साथ विकास की मुकम्मल जमीन तैयार की है। यह सफर कई परेशानियों का भी साक्षी रहा है। वह साल 2000 था, जब राज्य अस्तित्व में आया था। तब उसका सपना था, “अपनों के लिए, अपने संसाधनों पर, अपनी सरकार।” आज, जब यह राज्य अपनी रजत जयंती मना रहा है, तो यहकहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि झारखंड ने अपने सपनों को दिशा दी है और अपनी आकांक्षाओं को जमीन पर उतारने की प्रक्रिया में निरंतर आगे बढ़ रहा है।

2019 के दिसंबर के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड ने विकास की जो गति पकड़ी, वह इन पच्चीस वर्षों में अभूतपूर्व है। हेमंत सरकार की अगुआई मे एक ओर महिलाओं का सम्मान और आर्थिक स्वावलंबन बढ़ाने की योजनाएं हैं, तो दूसरी ओर बिजली, शिक्षा, उद्योग, और रोजगार के मोर्चे पर भी ठोस कदम उठाए गए हैं।
महिला सम्मान, स्वावलंबन की ऐतिहासिक पहल
झारखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार राज्य की महिलाएं हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसी को केंद्र में रखकर ‘मईया सम्मान योजना’ शुरू की। 6 जून 2024 को शुरू हुई इस योजना के जरिए 55 लाख से अधिक महिलाओं के बैंक खातों में सीधे 2500 रुपये की सम्मान राशि भेजकर एक नई शुरुआत हुई। आज 51 लाख से अधिक महिलाएं इससे जुड़ चुकी हैं। 18 से 50 वर्ष की महिलाओं को सालाना 30 हजार रुपये की सम्मान राशि मिल रही है। यह सीधे तौर पर महिला स्वाभिमान से जुड़ी पहल है।

इसके साथ ही स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के जरिए ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। 2019 से अब तक 53,000 से अधिक नए समूह बने हैं और क्रेडिट लिंकेज 545 करोड़ रुपये से बढ़कर 14,204 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इन समूहों के जरिए गांवों में महिला उद्यमिता और रोजगार के अवसर तेजी से बढ़े हैं।

वर्ष 2020 में लॉन्च हुआ ‘पलाश ब्रांड’ अब झारखंड की ग्रामीण महिलाओं की पहचान बन चुका है। पलाश के उत्पाद- चूड़ा, मसाले, हस्तशिल्प और हैंडमेड वस्तुएं राज्य के बाजारों से निकलकर अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तक पहुंच चुकी हैं। इस ब्रांड के माध्यम से अब तक 40 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार हो चुका है। इस पहल से कई महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार हुआ है। इसी दिशा में ‘फूलो-झानो आशीर्वाद अभियान’ ने भी सामाजिक बदलाव की नई कहानी लिखी है। हड़िया-दारू बनाने में लगी हुई लगभग 40 हजार महिलाओं को इस अभियान के तहत 50 हजार रुपये तक का ऋण देकर सरकार ने उन्हें सम्मानजनक आजीविका से जोड़ा है। महिला सशक्तीकरण का ही एक और स्तंभ है, ‘सावित्रीबाई फुले किशोरी समृद्धि योजना’, जिसके तहत राज्य की 9 लाख किशोरियों को 40 हजार रुपये की राशि उच्च शिक्षा के लिए दी जा रही है। इससे ग्रामीण और पिछड़े इलाकों की बच्चियों के लिए शिक्षा की राह खुली है। ये योजनाएं राज्य में महिलाओं के हक भविष्य का नया एजेंडा तय कर रही हैं?
ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता
बिजली के क्षेत्र में भी झारखंड ने सफलता की नई इबारत लिखी है। अपने 25वें वर्ष में प्रवेश करते हुए राज्य आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम बढ़ा रहा है। राज्य की वर्तमान खपत 2000–2400 मेगावाट के बीच है। पहले झारखंड को 1300 मेगावाट बिजली सेंट्रल सेक्टर से लेनी पड़ती थी, वहीं अब पतरातू विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (पीवीयूएनएल) से 660 मेगावाट अतिरिक्त बिजली मिलने लगी है। राज्य सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक पतरातू में 4000 मेगावाट बिजली उत्पादन शुरू हो जाए। इससे 85 प्रतिशत बिजली झारखंड को मिलेगी। इस उत्पादन से राज्य को बाहर से बिजली लेने की आवश्यकता नहीं रहेगी। टीवीएनएल विस्तार परियोजना, सोलर पावर प्रोजेक्ट और फ्लोटिंग सोलर प्लांट जैसे प्रोजेक्ट झारखंड को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की राह पर ले जा रहे हैं। 2034-35 तक 33 नए ग्रिड सब-स्टेशन और 37 मौजूदा ग्रिडों के विस्तार का काम चल रहा है। इससे बिजली ट्रांसमिशन क्षमता 8770 एमवीए तक बढ़ेगी। आज राज्य के 57 ग्रिड सक्रिय हैं, जिनसे उद्योगों और ग्रामीण इलाकों को निर्बाध बिजली मिल रही है।
नई आर्थिक कहानी

झारखंड का रेशम उद्योग सदियों पुरानी परंपरा और आज की तकनीक का संगम है। वर्तमान में करीब 1.5 लाख रेशम किसान इससे जुड़े हुए हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 में राज्य ने 1121.77 मीट्रिक टन तसर रेशम का उत्पादन किया था, जो 2024-25 में बढ़कर 1356 मीट्रिक टन हो गया। राज्य की एजेंसी झारक्राफ्ट अब रेशम और हस्तशिल्प उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचा रही है। देशभर में झारक्राफ्ट के 14 एंपोरियम संचालित हैं। इनसे न केवल कारीगरों को पहचान मिली है, बल्कि उनकी आमदनी में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
शिक्षा में मिसाल

शिक्षा के मोर्चे पर झारखंड की उपलब्धि उल्लेखनीय हैं। यूडायस प्लस 2024-25 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में माध्यमिक स्तर (कक्षा 8 से 10) पर स्कूल छोड़ने की दर सबसे कम, सिर्फ 3.5 प्रतिशत झारखंड में है। प्राथमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर घटकर शून्य के करीब पहुंच गई है। यह उपलब्धि उन योजनाओं का परिणाम है, जो ग्रामीण इलाकों में स्कूल अधोसंरचना, छात्रवृत्ति और छात्राओं के लिए परिवहन एवं सुरक्षा से जुड़ी है। राज्य सरकार ने न केवल शिक्षण संस्थानों को आधुनिक बनाने पर बल दिया, बल्कि ‘मरांग गोमके पारदेशी छात्रवृत्ति योजना’ के जरिए युवाओं को विदेशों में उच्च शिक्षा का अवसर भी दिया है। पहले
इस योजना के तहत 25 छात्रों को 100 प्रतिशत स्कॉलरशिप दी जाती थी। 2025 से छात्रों की संख्या बढ़ाकर 50 कर दी गई है।
आर्थिक विकास के नए आयाम
राज्य ने आर्थिक स्तर पर भी अच्छी रफ्तार पकड़ी है। राज्य की अर्थव्यवस्था ने इन साल में उल्लेखनीय प्रगति की है। 2011-12 में जहां झारखंड का जीएसडीपी 1,50,918 करोड़ रुपये था, वहीं 2024-25 में यह बढ़कर 5,16,255 करोड़ रुपये हो गया है। जीएसडीपी वृद्धि दर 10.87 प्रतिशत रही है। प्रति व्यक्ति आय भी 2010-11 के 41,254 रुपये से बढ़कर अब 1,16,663 रुपये तक पहुंच गई है यानी लगभग तीन गुना वृद्धि। झारखंड आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में राज्य की स्थिति कई अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर बताई गई है।
बुजुर्गों का सम्मान

झारखंड की सर्वजन पेंशन योजना ने सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में उदाहरण पेश किया है। राज्य के 60 साल से अधिक आयु के सभी नागरिकों को प्रतिमाह 1000 रुपये पेंशन दी जा रही है। एसटी, एससी, ओबीसी वर्ग के 50 वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों और सभी वर्गों की महिलाओं को भी इसका लाभ मिल रहा है। यह योजना झारखंड की सामाजिक नीति को मानवीय दृष्टिकोण देती है। बुजुर्गों की गरिमा को आर्थिक सहायता के माध्यम से उन्हें सम्मानित किया जा रहा है।
उम्मीद और आत्मगौरव
यह महज झारखंड के 25 साल पूरी होने की यात्रा के सिर्फ आंकड़े नहीं हैं। यह उन आदिवासी गांवों की कहानी है, जहां पहली बार बिजली पहुंची है, उन महिलाओं की कहानी है, जो आज अपनी कमाई से परिवार चला रही हैं उन युवाओं की कहानी है जो गांव से निकलकर विदेशों में उच्च शिक्षा ले रहे हैं। हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड ने यह साबित किया है कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनसंवेदना एक साथ काम करें, तो कोई भी राज्य अपने संसाधनों से आत्मनिर्भर बन सकता है।
25 वर्ष का झारखंड अब केवल संघर्षशील राज्य नहीं, बल्कि सशक्त और आत्मनिर्भर राज्य के रूप में उभर रहा है। आने वाले साल में यह राज्य न केवल अपने संसाधनों से आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि देश के विकास मानचित्र पर एक चमकदार पहचान दर्ज करेगा। एक ऐसा झारखंड, जो अपनी जड़ों से जुड़ा और भविष्य से संवाद करता हुआ राज्य है।