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गोवा फिल्म महोत्सव : विवाद का गहरा साया

समारोह के समापन पर जूरी अध्यक्ष की द कश्मीर फाइल्स पर बेबाक टिप्पणी से उठे सवाल
फिल्मी जुटानः गोवा में हुए आइएफएफआई का रंगारंग शुभारंभ

द कश्मीर फाइल्स को प्रदर्शित हुए नौ महीने बीत चुके हैं लेकिन उस पर विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। हाल में गोवा में संपन्न हुए 53वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह (आइएफएफआइ) में विवेक अग्निहोत्री-निर्देशित फिल्म पर ऐसा बखेड़ा खड़ा हुआ, जिससे न सिर्फ आयोजकों की मेहनत पर पानी फिर गया, बल्कि समारोह में दिखाए जाने वाली उत्कृष्ट फिल्मों के गुलदस्ते की खुशबू भी फीकी हो गई। महोत्सव के समापन के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता जूरी के अध्यक्ष नेदाव  लैपिड ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि द कश्मीर फाइल्स एक अश्लील और प्रोपगंडा फिल्म है, जो इस स्तर के फिल्म फेस्टिवल में शामिल होने लायक ही नहीं थी। 47 वर्षीय इजरायली फिल्मकार की टिप्पणी ने वहां मौजूद लोगों को सकते में डाल दिया।

विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 1990 में आतंक के साए में कश्मीर घाटी से बड़ी संख्या में पंडितों के पलायन की त्रासदी पर आधारित थी। 20-25 करोड़ रुपये की बजट से बनी फिल्म ने टिकट खिड़की पर 340 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार किया। अधिकतर समीक्षकों ने फिल्म को नहीं सराहा लेकिन दर्शकों ने उसे हिंदी सिनेमा की सबसे हिट फिल्मों में शुमार करवा दिया। लैपीड के बयान पर सवाल उठने पर उनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठे। उनकी टिप्पणी के कारण आरोप लगने लगे कि वे किसी बड़ी साजिश का हिस्सा हैं और उन्होंने द कश्मीर फाइल्स का जिक्र किसी खास मकसद से जानबूझकर किया। जूरी प्रमुख के रूप में उनके चयन को लेकर भी सवाल उठे और कहा गया कि जिन लोगों ने उन्हें इस भूमिका के लिए चुना उनके खिलाफ आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए। 

वैसे, देखा जाए तो जूरी अध्यक्ष के रूप में लैपिड का चयन बुरा नहीं था। वे अपनी पहली फीचर फिल्म पुलिसमैन से चर्चा में आए, जिसने 2011 में लोकार्नो में जूरी पुरस्कार जीता। उनकी अगली फिल्म द किंडरगार्टन टीचर ने भी 20 से अधिक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते और एक प्रतिभाशाली फिल्मकार में रूप में उनकी साख को स्थापित किया। लैपिड 2016 के कान फिल्म फेस्टिवल के इंटरनेशनल क्रिटिक्स वीक सेक्शन के जूरी सदस्य भी रहे हैं और उन्हें फ्रांस का प्रतिष्ठित शेवलिए डे आर्ट्स एट डे लेट्रेस अवॉर्ड भी मिला है, जिसे कला, संस्कृति और साहित्य की नामवर हस्तियों को प्रदान किया जाता है।

उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, जूरी अध्यक्ष के नाते उनका चयन अच्छा था। यह बात और है कि सूचना-प्रसारण मंत्रालय से संबद्घ कोई पदाधिकारी यकीनन यह नहीं सोच सकता था कि आइएफएफआइ और राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम के तत्वावधान में आयोजित फिल्मोत्सव का समापन उनके कारण एक ऐसे अप्रिय विवाद से होगा, जो इसकी चमक को फीकी कर देगा।  

गौरतलब है कि इस बार कोरोनावायरस महामारी के बाद पहली बार फिल्म महोत्सव का आयोजन बेहतर ढंग से किया गया। दुनिया भर के फिल्म प्रेमियों का ध्यान इस बात पर था कि इस बार गोल्डन पीकॉक का सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार किसे मिलेगा। अंततः यह गौरव स्पेन की फिल्म आइ हैव इलेक्ट्रिक ड्रीम्स के नाम दर्ज हुआ। वाहिद मोबाशेरी और डेनिएला मारिन नवारो ने क्रमशः सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और अभिनेत्री का पुरस्कार जीता। इस अवसर पर नादेर सेइवर (नो एंड के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार), लव डियाज (व्हेन द वेव्स आर गॉन के लिए विशेष जूरी पुरस्कार) या असिमिना प्रोएड्रू को बिहाइंड द हेस्टैक्स के लिए सर्वश्रेष्ठ डेब्यू फीचर फिल्म का पुरस्कार मिला। नौ-दिवसीय उत्सव में स्पेन के प्रसिद्ध फिल्मकार कार्लोस सौरा को सत्यजित रे लाइफटाइम अचीवमेंट सम्मान से नवाजा गया। सौरा की फिल्म मामा कम्पल 100 एनोस को 1979 में सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म का ऑस्कर अवार्ड मिला था। समापन समारोह में बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार विजेता आशा पारेख को भी सम्मानित किया गया। अफसोस, समापन समारोह में विवाद के कारण न तो किसी प्रशंसित फिल्मों की चर्चा हुई और न ही दुनिया भर से आए उन फिल्मकारों की जो इस अवसर पर इकट्ठा हुए। लैपिड की टिप्पणी का साया समारोह पर ऐसा पड़ा कि बाकी सब कुछ गौण हो गया। जहां एक तरफ विवेक अग्निहोत्री की ब्लॉकबस्टर फिल्म के चयन पर निर्भीकता से सवाल उठाने के लिए लैपीड की पीठ थपथपाई गई, वहीं दूसरी ओर उन पर कश्मीरी पंडितों की पीड़ा के प्रति असंवेदनशील होने के लिए निशाना साधा गया।

विवाद ने एक और बहस छेड़ दी कि क्या जूरी अध्यक्ष के रूप में लैपिड का आधिकारिक समारोह में किसी फिल्म विशेष के चयन पर खुले तौर पर आलोचना करना वाजिब था। उन पर आरोप लगाने वालों का कहना है कि फिल्म महोत्सव के किसी भी जूरी पर द कश्मीर फाइल्स या किसी अन्य फिल्म को पुरस्कृत करने का दबाव नहीं था। उन्होंने अपनी पसंद की फिल्मों को चुना। फिर द कश्मीर फाइल्स के चयन को लेकर सार्वजनिक मंच से आपत्ति दर्ज करने का क्या औचित्य? इस विवाद ने द कश्मीर फाइल्स को फिर से चर्चा में ला दिया है, जिसे लोग लगभग भूल चुके थे। विवेक अग्निहोत्री ने फिर दोहराया कि उन्होंने इस फिल्म में वही दिखाया जो सच में घटित हुआ था। वे फिल्में बनाना छोड़ देंगे अगर एक भी घटना गलत साबित होगी। जो भी हो, इस विवाद का असर भारत में होने वाले फिल्म महोत्सवों पर लंबे समय तक रहेगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

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