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रंगभेद: गहरे पैठा भेदभाव

केरल की मुख्य सचिव सारदा मुरलीधरन के फेसबुक पोस्ट ने काली-गोरी चमड़ी पर नई बहस देश में जाति-व्यावस्था के पूर्वाग्रहों की गांठें खोलीं
भेदभाव का सामनाः डॉ. सारदा मुरलीधरन और पति वी. वेणु

सारदा मुरलीधरन ने 25 मार्च को एक फेसबुक पोस्‍ट में यह लिखकर कि "मुझे अपने सांवलेपन पर गर्व करना होगा," भारतीय समाज में गहरे पैठी रंगभेद की बुराई पर नए सिरे से बहस छेड़ दी। केरल की मुख्य सचिव ने यह पोस्‍ट एक शख्‍स के बेहद गैर-जिम्‍मेदाराना बोल से 'आहत' होकर लिखा। उन्होंने लिखा, "मैंने बतौर मुख्य सचिव मेरे कामकाज पर एक दिलचस्प टिप्पणी सुनी कि यह उतना ही काला है, जितना कि मेरे पति का रंग गोरा।"  डॉ. सारदा मुरलीधरन को 31 अगस्त, 2024 को अपने पति वी. वेणु की सेवानिवृत्ति के बाद मुख्य सचिव नियुक्त किया गया था। केरल के इतिहास में पहली बार और शायद देश में एक दुर्लभ उदाहरण है कि पति और पत्नी ने लगातार मुख्य सचिव का पद संभाला है।

सारदा ने फेसबुक पर यह पोस्ट करने के बाद उसे डिलीट कर दिया क्योंकि उन्हें बहुत सारे जवाब मिले थे। बाद में उन्होंने इसे फिर से पोस्ट किया क्योंकि उनके दोस्तों और शुभचिंतकों ने कहा कि इस पर व्‍यापक चर्चा की जानी चाहिए। उन्‍होंने इस पोस्ट में लिखा, "मैं इस शख्‍स को क्यों बुलाना चाहती थी? मुझे दुख हुआ, हां। पिछले सात महीनों में मेरे पूर्ववर्ती के साथ तुलनाओं का एक निरंतर सिलसिला रहा है, और मैं काफी हद तक इससे ऊब चुकी हूं। लेकिन इस टिप्‍पणी में काले रंग का जिक्र (स्‍त्री-द्वेष के अंडरटोन के साथ) की गई, जो बेहद शर्मनाक है। कहा कि काला वही है जो काला करता है, न केवल रंग काला है, बल्कि अशुभ, अभागा, किसी काम का नहीं, अस्‍वास्‍थ्‍यकर, निर्दय, निरंकुश, अंधेरे का पर्याय है।"

वे लिखती हैं "लेकिन काले रंग को क्यों बदनाम किया जाना चाहिए? काला रंग ब्रह्मांड का सर्वव्यापी सत्य है। काला रंग सब कुछ सोख लेता है, मानव जाति के लिए ज्ञात ऊर्जा का सबसे शक्तिशाली स्पंदन है। यह रंग हर किसी पर फबता है, यह ऑफिस की पोशाक, शाम का आरामदायक पहनावा, काजल का रंग, बारिश का वादा है।"

उनके शब्द उस पीड़ा को दर्शाते हैं जो उन्होंने बचपन में अपने गहरे रंग के कारण झेली थी। वे लिखती हैं, "जब मैं चार साल की थी, तो मैंने मां से पूछा कि क्या मुझे वापस अपने गर्भ में डाल सकती हैं और मुझे फिर से गोरा और सुंदर बना सकती हैं। मैं 50 से ज्‍यादा वर्ष से इस दलदल में धंसी हुई हूं कि मेरा रंग अच्छा नहीं है।" वे कहती हैं कि उन्होंने काले रंग में सुंदरता के सबक अपने बच्चों से सीखे, जिन्होंने अपनी काली विरासत का महिमामंडन किया और जो ऐसी जगहें सुंदरता खोजते रहे जहां किसी ने कभी नहीं देखी।

सारदा मुरलीधरन की फेसबुक पोस्ट पर जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली। लोग उनके समर्थन में उतरे। राज्‍य में विपक्ष के नेता वी.डी. सतीशन ने लिखा कि उनकी पोस्ट का हर शब्द दिल दहला देने वाला था। उन्होंने पोस्ट में कहा, ''सारदा को सलाम, मेरी मां का रंग काला था।’’ माकपा सांसद के. राधाकृष्णन ने कहा, ''हमारे देश की सच्चाई है कि जाति और त्वचा के रंग के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है। यह व्यापक मुद्दा है। जातिगत भेदभाव तो भारत की खास बुराई है, लेकिन नस्लवाद वैश्विक स्तर पर मौजूद है।" उन्होंने आगे कहा कि लोग अमूमन इस भेदभाव से तभी समझ पाते हैं जब यह उनके साथ होता है, लेकिन यह व्यक्तिगत मामला नहीं, बल्कि सामाजिक बुराई है।

कन्नूर विश्वविद्यालय में इतिहास की सहायक प्रोफेसर डॉ. मालविका बिन्नी का मानना है कि भारत में जिस तरह का भेदभाव रहा है, वह बहुत ही अलग किस्‍म का है। उन्‍होंने कहा, "सारदा मुरलीधरन की पोस्ट के समर्थन में प्रतिक्रियाओं की झड़ी में  हम देखते हैं कि बहुत से लोग इसे नस्लवाद बता रहे हैं और यह दुनिया भर में है, लेकिन ऐसा नहीं है। भारत में कालेपन के प्रति जिस तरह की घृणा है वह जाति में निहित है। औपनिवेशिक युग के बहुत पहले से भारत में त्वचा के रंग के आधार पर यह भेदभाव बड़े पैमाने पर रहा है, जो साफ-साफ जाति से जुड़ा है।" युवा दलित विद्वान और हाशिये के लोगों को मुफ्त कानूनी मदद मुहैया कराने वाले दिशा फाउंडेशन के संस्थापक दीनू वेइल कहते हैं कि कालेपन के प्रति भेदभाव भारतीय संस्कृति और परंपरा में लंबे समय से मौजूद है। "हमारे पुराणों में काले रंग को शैतानी बताया गया है। असुर काले हैं और देवता गोरे हैं। हम अपनी पौराणिक कहानियों और संस्कृति में इस भेदभाव को देख सकते हैं।"

यहां तक कि मशहूर हस्तियों को भी त्वचा के रंग के लिए अपमान और भेदभाव झेलना पड़ा है। पिछले साल मशहूर दलित डांसर, मोहिनीअट्टम में पीएचडी आरएलवी रामकृष्णन को एक अन्य डांसर सत्यभामा से अपमान झेलना पड़ा। सत्‍यभामा ने कहा था, "मोहिनीअट्टम के लिए सुंदरता आवश्यक है।" उन्होंने रामकृष्णन का नाम नहीं लिया था, लेकिन यह स्पष्ट था कि सत्यभामा किसकी बात कर रही थीं। इस पर सोशल मीडिया में तूफान मच गया और सत्यभामा से माफी मांगने की मांग की गई, यहां तक कि उन्हें धमकाया भी गया। डॉ. आरएलवी रामकृष्णन को बाद में केरल कलामंडलम में सहायक प्रोफेसर नियुक्त किया गया, जो मंचीय कला और संगीत विश्वविद्यालय है। डॉ. मालविका बिन्नी का मानना है कि सारदा मुरलीधरन के साथ एकजुटता दिखाने वाले कई लोग पाखंडी भी हो सकते हैं जो केवल गोरी चमड़ी वाली महिलाओं को ही पत्नी के रूप में देखते हैं। मालविका कहती हैं, "हर कोई चाहता है कि केवल गोरी चमड़ी की लड़कियों से ही शादी करें। वे इसे अपनी पसंद का मामला मानते हैं।"

कोच्चि स्थित कलाकारों के समूह 'कलाकाक्षी' की एक कलाकार जया ने गहरे बैठे रंग पूर्वाग्रह और जातिवाद के विरोध में 2016 में अपने शरीर पर काला रंग पोतकर 100 दिनों तक मंचीय प्रदर्शन किया था। जया ने विरोध प्रदर्शन का यह अनूठा ढंग हैदराबाद में एक युवा दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या से क्रोधित होकर अपनाया था। कोच्चि के एक नृत्य विद्यालय में शिक्षिका जया के मुताबिक, वे नर्तकियों के लिए गोरेपन की अनिवार्यता की धारणा पर सवाल उठाना चाहती थीं। जया के प्रदर्शन पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं मिलीं। उनके प्रदर्शन पर आश्चर्य जताने वालों ने कहा कि

गोरी जया को "अश्वेत महिला की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए" और उन्हें उनका मुद्दा नहीं उठाना चाहिए था। हालांकि, जया को व्यापक समर्थन भी मिला।

सारदा मुरलीधरन ने कहा कि वे उन्हें मिले अपार समर्थन से खुश हैं। उन्होंने कहा कि उनकी फेसबुक पोस्ट पर हो रही गहन चर्चा केरल के बारे में कुछ अनोखी बात है। हालांकि काले रंग के प्रति घृणा समाज में गहरी जड़ें जमाए हुए है, लेकिन चर्चाओं से यह भी पता चलता है कि इस तरह के पूर्वाग्रहों के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरोध भी है।

 

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