“हरियाणा जागता मुश्किल से है मगर जाग गया तो सोता उससे भी मुश्किल से है।”
-गुरनाम सिंह चढ़ूनी, भारतीय किसान यूनियन
हरियाणा के सबसे अहम और किसान आंदोलन के एक अहम चेहरे चढ़ूनी की इस उक्ति के दर्शन समूचे राज्य में होने लगे हैं। 26 जनवरी के बाद हुई घटनाओं के बाद पूरे प्रदेश में किसानों की ऐसी लामबंदी दिखने लगी है, जो लंबे समय से नहीं दिखी। मोर्चा खाप पंचायतों, सर्वजाति पंचायतों ने संभाला तो राज्य के हर कोने से मानो सभी सड़कें दिल्ली की ओर मुड़ गई हैं। सरकार ने इंटरनेट बंद किया तो मंदिरों, गुरुद्वारों से ऐलान किए जाने लगे। अभी तक परहेज कर रहे विपक्षी दलों के शीर्ष नेता भी खुलकर किसानों के मोर्चे पर पहुंचने लगे। अभी तक जो कृषि कानून भाजपा की केंद्र सरकार के लिए मूंछ की लड़ाई बनी हुई थी, वह अब हरियाणा में जाट सियासत के लिए मूंछ की लड़ाई में तब्दील हो गई है।
जाट किसानों का दिल्ली कूच तेजी से बढ़ गया है। सिंघु और टिकरी बॉर्डरों पर गणतंत्र दिवस की घटना के अगले ही दिन तथाकथित स्थानीय निवासी हमलावर बनकर टूटे थे, उन्हें सबक सिखाने हजारों किसानों ने फिर से दिल्ली की सीमा की ओर रुख किया है। 3 फरवरी को जींद के कंडेला में प्रदेश स्तरीय किसान महापंचायत में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रामफल कंडेला, खाप प्रधान टेकराम कंडेला सहित दर्जनों खाप पंचायतों के प्रधानों ने कृषि कानूनों के विरोध में केंद्र और राज्य की भाजपा-जजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। राज्य में चारों तरफ लगातार सभाएं हो रही हैं।
सोनीपत में दहिया खाप, आंतिल चौबीसी की पंचायत में फैसला हुआ कि भाजपा-जजपा नेताओं के बहिष्कार के साथ राशन-पानी के साथ दिल्ली जाएंगे। दादरी में फोगाट खाप और रोहतक में हुड्डा खाप प्रधान ओमप्रकाश हुड्डा की अध्यक्षता में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि जब तक सरकार मांग नहीं मानेगी, तब तक किसी मंत्री और सत्ताधारी विधायकों को हुड्डा और फोगाट खाप के गांव में नहीं घुसने दिया जाएगा। दादरी से निर्दलीय विधायक, सांगवान खाप के प्रधान सोमवीर सांगवान किसानों के समर्थन में टिकरी बॉर्डर पर डटे हुए हैं। जींद की नैन सर्वपंचायत खाप ने भी भाजपा और जजपा नेताओं का गांवों में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया है। 70 से अधिक खाप पंचायतों ने किसान आंदोलन के समर्थन में भाजपा-जजपा नेताओं का सामाजिक बहिष्कार कर दिया है। ऐसे में जजपा विधायकों और कार्यकर्ताओं का पार्टी के शीर्ष नेता और उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला पर गठबंधन तोड़ने का दबाव बढ़ा है। दुष्यंत चौटाला के छोटे भाई दिग्विजय ने राकेश टिकैत का समर्थन करते हुए उन्हें सच्चा देशभक्त बताया।
राज्य के विपक्षी दलों और किसानों की ओर से दुष्यंत पर दबाव है कि पंजाब के शिरोमणि अकाली दल की तर्ज पर वह भाजपा से गठबंधन तोड़ दे। इस बीच कृषि कानूनों के विरोध में दुष्यंत के चाचा और इनेलो के एकमात्र विधायक अभय चौटाला के विधानसभा से इस्तीफे ने भी दुष्यंत की जाटों के बीच दुश्वारी बढ़ा दी है। दो साल पहले इनेलो से टूटकर जजपा के पाले में गए जाटों में खोया आधार पाने के लिए इनेलों ने कोशिशें तेज कर दी हैं। कभी इनेलो का साथ छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले वरिष्ठ नेता रामपाल माजरा ने भी भाजपा की प्राथमिक सदस्यता छोड़ दी है।
हरियाणा भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार उन्हें डर है कि किसान आंदोलन से राज्य की गठबंधन सरकार मुश्किल में आ सकती है। भाजपा के ही एक अन्य पदाधिकारी ने कहा कि हम सब कुछ देख रहे हैं। अभी यह कहना भी जल्दी होगी कि हमें जाटों से समस्या होगी। हम सतर्क हैं। हमारी पार्टी के नेता खापों के बुजुर्गों के संपर्क में हैं। हालांकि भाजपा अब तक हरियाणा में असंतोष की आवाज दबाने में कामयाब रही है। पार्टी के नेताओं ने कहा कि यह 2016 जैसी हिंसा को फिर से देखना नहीं चाहती है जिसमें जाटों ने आरक्षण के लिए हिंसक प्रदर्शन किया था। एक भाजपा नेता का कहना है, “2016 के जाट आंदोलन के बावजूद, पार्टी ने हरियाणा में अपना वोट शेयर बढ़ाने में कामयाबी हासिल की, लेकिन हाल की घटनाएं समस्याएं पैदा कर सकती हैं।”
आंदोलन में जाटों की बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी हरियाणा के अलावा आसपास के राज्यों में भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकती है। हरियाणा में जाटों की आबादी 27 फीसदी है। यहां विधानसभा की 90 में से 50 सीटें जाट बहुल हैं। 2019 में विधानसभा चुनाव में 90 में से 40 सीटें जीतकर भाजपा पूर्ण बहुमत तो नहीं पा सकी, लेकिन उसने दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जजपा) के 10 विधायकों के समर्थन से सरकार बना ली। जजपा को ग्रामीण इलाकों में वोट मिला था।
इसका दूसरा पहलू यह भी है कि भाजपा ने हरियाणा में जाट-गैर जाट की राजनीति करके दूसरी बार राज्य में सरकार बनाई थी, जिसका खामियाजा आज मनोहरलाल खट्टर सरकार भुगत रही है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को अपने करनाल विधानसभा क्षेत्र में ही विरोध का सामना करना पड़ा था। वहां रखी गई किसान महापंचायत रैली में उनका हेलिकॉप्टर नहीं उतर सका था। यही हाल सरकार में नंबर दो की भूमिका निभा रहे दुष्यंत चौटाला का भी हुआ, जिन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र उचाना में भारी विरोध का सामना करना पड़ा। हेलीपैड खोद दिया गया तो दुष्यंत को अपना कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। यही नहीं, गणतंत्र दिवस समारोहों में भी कई बार फेरबदल करने पड़े। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने पानीपत की बजाय किसान आंदोलन से कम प्रभावित पंचकूला में ध्वाजारोहण किया।
यही देखकर पूर्व मुख्यमंत्री तथा विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने विधानसभा अध्यक्ष से सदन बुलाने और अविश्वास प्रस्ताव रखने की अनुमति मांगी है। आउटलुक से बातचीत में हुड्डा ने कहा, किसानों के समर्थन से 10 सीटें जीतने वाली जजपा आज संकट के समय भी किसानों से दूर भाजपा के साथ खड़ी है। हालात ऐसे हैं कि विधानसभा में भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार बहुमत साबित नहीं कर सकती।
हालांकि सदन का गणित इधर बदलने से सरकार को थोड़ी राहत मिली है। किसान आंदोलन के बीच विधानसभा की ऐलनाबाद और कालका सीटें खाली होने से सदन में 88 विधायक रह गए हैं। ऐलनाबाद इनेलो विधायक अभय चौटाला के इस्तीफा देने से खाली हुई। कालका सीट को स्पीकर ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते प्रदीप चौधरी को तीन साल की सजा मिलने के कारण खाली घोषित किया है। अब 88 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को बहुमत के लिए 46 की बजाय 45 विधायकों की जरूरत है। स्पीकर के वोट के अलावा सिर्फ 44 विधायकों का समर्थन बहुमत के लिए पर्याप्त होगा। भाजपा के अपने 40 विधायक हैं और 5 निर्दलीयों का भी समर्थन है। ऐसे में जजपा के 10 विधायकों का समर्थन हट जाता है तब भी सरकार फिलहाल सुरक्षित है। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री भुपेंद्र सिंह हुड्डा की मांग पर विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है तो शायद निर्दलीय विधायकों के लिए भी मुश्किल हो सकती है। बहरहाल, हरियाणा में फिजां बदल गई है। अभी तो यही लग रहा है कि किसान आंदोलन जितना लंबा खिंचेगा, भाजपा की मुश्किलें उतनी बढ़ती जाएंगी। केंद्र और खट्टर सरकार की सख्ती भी आंदोलन को हवा दे रही है। इंटरनेट बंद होने से छात्र-छात्राओं की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है, जिससे लोगों में नाराजगी को हवा मिल रही है।