मार्च में आई तीसरी नियोजन नीति पर भी विवाद शुरू हो गया है। युवाओं के रोजगार और नियोजन नीति को लेकर पक्ष-विपक्ष में तलवारें खिंच गई हैं। अब छात्र संगठनों ने भी मोर्चा संभाल लिया है। झारखंड का दुर्भाग्य है कि 22 साल में स्थायी नियोजन नीति का चेहरा सामने नहीं आ सका है। नतीजा है कि सरकारी विभागों के 62 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। नीति परिवर्तन और अदालती आदेश के कारण नौकरियों के लिए विज्ञापन निकलते हैं और रद्द होते हैं। खमियाजा पढ़े-लिखे युवा भुगत रहे हैं। ताजा नियुक्ति नियमावली पर संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम कहते हैं कि 1932 आधारित स्थानीयता और नियोजन नीति को सर्वसम्मति से विधानसभा से पास कराकर राज्यपाल के माध्यम से केंद्र को भेजा गया है, मगर केंद्र के फैसले का इंतजार नहीं कर सकते। नियुक्तियां प्रभावित होंगी और समय निकल जाएगा। इसी को ध्यान में रखकर कैबिनेट से नई नियुक्ति नियमावली को मंजूरी दी गई है।
इस पर झारखंड विधानसभा में विपक्ष के लगातार हंगामे के बाद बजट सत्र के अंतिम दिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सदन में कहा, “1932 का मुद्दा हमारा था, है और रहेगा। भाजपा के लोग 1932 के आधार पर नियोजन नीति की बात कह रहे हैं मगर वे ही इसके खिलाफ हाइकोर्ट में गए हैं।” उन्होंने नई नियोजन नियमावली की ओर इशारा करते हुए कहा, “इसे मेरी मजबूरी न समझें, शेर का बच्चा हूं, लंबी छलांग के लिए दो कदम पीछे आया हूं। भाजपा वाले स्पष्ट करें कि वे 1932 के समर्थक हैं या 1985 के।”
बजट सत्र के दौरान ही नई नियोजन नीति या कहें नियुक्ति नियमावली संबंधी कैबिनेट के फैसले के बाद विधानसभा की कार्यवाही हंगामे की वजह से कई दिन ठप रही। सदन के भीतर और बाहर विपक्षी सदस्यों के नारे गूंजते रहे “1932 की भेलो”, “60-40 नाय चलतो” (यानी 1932 खतियान मामले का क्या हुआ, 60-40 के आरक्षण का फार्मूला नहीं चलेगा)। ट्विटर पर ‘60-40 नाय चलतो’ हैशटैग के साथ सरकार के खिलाफ कैंपेन भी चल रहा है। सदन में भाजपा विधायक भी इसका नारा लिखी टीशर्ट पहन कर सदन आ रहे थे। दलील यह कि 40 फीसदी नौकरियां बाहरी को मिल जाएंगी। झामुमो के वरिष्ठ विधायक लोबिन हेम्ब्रम भी आक्रामक दिखे। उन्होंने कहा खतियान ही नियोजन का आधार होना चाहिए।
मार्च के मध्य में कैबिनेट ने जिलास्तरीय नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को दस प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया है। इस तरह जिलास्तरीय नौकरियों में 60 प्रतिशत आरक्षण हो गया है। प्राथमिक से हाइ स्कूल तक शिक्षकों का कैडर जिला स्तरीय है। इनके करीब 50 हजार पदों पर नियुक्ति होनी है। सत्र के अंतिम दिन नियोजन नीति के मसले पर झारखंड स्टेट स्टूडेंट यूनियन के बैनर तले राज्य भर से आए युवाओं ने विधानसभा के घेराव के क्रम में उग्र प्रदर्शन किया। पुलिस को लाठियां चलानी पड़ी, आंसू गैस के गोले चलाने पड़े। 1 अप्रैल को झामुमो के गढ़ संताल परगना में 60:40 आरक्षण वाली नई नियोजन नीति के खिलाफ छात्र संगठनों ने बंद का कॉल दिया। छह जिलों में बंद प्रभावशाली रहा। इसकी आंच कोल्हान भी पहुंच रही है। मूलवासी सदान मोर्चा का भी इसे समर्थन मिल रहा है। संताल और कोल्हान झामुमो के गढ़ हैं जहां पिछले विधानसभा चुनाव में झामुमो ने भाजपा का सूपड़ा साफ कर दिया था।
राज्य को बने 22 साल से अधिक हो गए हैं मगर स्थानीयता नीति और नियोजन नीति का मामला उलझा है
दूसरी तरफ जिला स्तरीय नियुक्तियों के रोस्टर में सात जिलों में ओबीसी का कोटा शून्य कर दिए जाने से ओबीसी के छात्र नाराज हैं। ओबीसी मोर्चा भी इसे लेकर झारखंड बंद की तैयारी में है। प्रदेश में ओबीसी की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है।
राज्य के गठन को 22 साल से अधिक हो गए हैं मगर स्थानीयता नीति और नियोजन नीति का मामला उलझा रहा है। नतीजतन यहां नई नियुक्ति का काम प्रभावित रहा। रघुवर सरकार की 2016 की नीति हाइकोर्ट ने रद्द की तो जिलों में शिक्षकों के करीब 18 हजार पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया रद्द हो गई। फिर, हेमंत सरकार की नीति आई तो रघुवर काल की अनेक सेवाओं में नियुक्ति प्रक्रिया पर विराम लग गया। फिलहाल राज्य में नियमित करीब 4.66 लाख स्वीकृत पदों के विरुद्ध मात्र 1.79 लाख कर्मी ही कार्यरत हैं। यानी लगभग 62 प्रतिशत पद रिक्त हैं। स्वास्थ्य विभाग में करीब 42 हजार स्वीकृत पदों के विरुद्ध 73 प्रतिशत पद खाली हैं। यही हालत कृषि विभाग की है। यहां के आदिवासी और मूलवासी को सरकारी नौकरियों में आरक्षण की खातिर 1932 के खतियानी विधेयक को विधानसभा के पिछले सत्र में सर्वसम्मति से पास किया गया। यानी जिनके पुरखों के नाम 1932 के खतियान में दर्ज हैं उन्हें ही आदिवासी, मूलवासी यानी स्थानीय का दर्जा मिलेगा। पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण के लिए भी विधेयक पास हुआ। दोनों को नौवीं अनुसूची की अनुशंसा की सिफारिश के साथ भेजा गया।
भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी कहते हैं कि मुख्यमंत्री बताएं कि उन्होंने कौन सी नियोजन नीति बनाई है। वह पूछते हैं कि पहले मुख्यमंत्री राज्य की जनता से 1932 का खतियान लागू करने की बात कह रहे थे, वह सब कहां गया।
दरअसल 2016 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने एक नियोजन नीति पेश की थी जिसमें अन्य शर्तों के साथ वर्ष 1985 को स्थानीयता के लिए कट ऑफ वर्ष निर्धारित किया था। इस नीति के तहत राज्य के 24 जिलों में 13 जिलों को अनुसूचित और 11 जिलों को गैर-अनुसूचित घोषित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस नियोजन नीति को रद्द कर दिया। हेमंत सरकार ने 2021 के प्रारंभ में नई नियोजन नीति बनाई जिसमें कुछ भाषाओं को हटाने और सामान्य वर्ग के लिए झारखंड से मैट्रिक-इंटर करने वालों की अनिवार्यता का प्रावधान किया गया। झारखंड हाइकोर्ट ने हेमंत सरकार की नियोजन नीति को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया।
हेमंत सरकार का मानना है कि 1932 के खतियान आधारित नियोजन नीति पर विधेयक विधानसभा से पास कर राज्यपाल के पास भेजा गया था। सरकार की समझ थी कि 1932 के खतियान आधारित नियोजन नीति एवं पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के विषय को संविधान की नौवीं अनुसूची का संरक्षण मिल जाने के बाद ही बहाल किया जाए, मगर राज्यपाल ने खतियानी विधेयक वापस कर दिया गया। फरवरी के अंतिम दिन सरकार ने यह रिपोर्ट सार्वजनिक की और 2 फरवरी को कैबिनेट ने नई नियोजन नीति को मंजूरी दे दी। विधानसभा में विपक्ष को हमलावर देख मुख्यमंत्री ने बजट सत्र के अंत में ही निजी कंपनियों में 40 हजार रुपये मासिक तक 75 प्रतिशत स्थानीय को नौकरी के लिए ‘झारखंड नियोजन पोर्टल’ लांच किया। इस पोर्टल में मार्च के अंत तक ढाई हजार से अधिक कंपनियों ने अपना निबंधन भी करा लिया।
नई नीति के आधार पर नियुक्ति के लिए प्रक्रियाओं को तेजी से निपटाना होगा, तब कहीं चुनावी साल में बेरोजगारों के आक्रोश को ठंडा किया जा सकेगा। हालांकि हेमंत सरकार के खिलाफ 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति और 60-40 के आरक्षण को भाजपा कितना भुना पाती है, यह समय बताएगा।
ये कौन सी नियोजन नीति बनाई है, 1932 का खतियान कहां गया?
बाबूलाल मरांडी, पूर्व मुख्यमंत्री, झारखंड
भाजपा के लोग ही 1932 के आधार पर नियोजन नीति के खिलाफ हाइकोर्ट में गए हैं
हेमंत सोरेन, मुख्यमंत्री, झारखंड