सड़क जैसे-जैसे संकरी होती जाती है, जंगल करीब आने लगता है। तिकोनिया-बनवीरपुर रोड की दोनों तरफ साल और सागौन के पेड़ों से छन कर आती सूरज की किरणें अठखेलियां करती जान पड़ती हैं। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी की यह सड़क नेपाल सीमा तक जाती है। निघासन इलाके में आबादी है और वहां जंगल का प्रभाव कम है। वहां खेत हैं जिनमें गन्ने और धान की खेती ज्यादा होती है। तराई के इस उपजाऊ इलाके में ज्यादातर सिख किसान ही खेती करते हैं। गन्ने के ऐसे ही एक खेत में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्र का बेटा आशीष मिश्र जाकर छिप गया था। आरोप है कि उसके काफिले की जीप और दो एसयूवी ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसानों को कुचल डाला। 3 अक्टूबर की इस घटना में चार किसानों की मौत हो गई। प्रदर्शन की कवरेज करने गया एक स्थानीय पत्रकार भी इन गाड़ियों की चपेट में आ गया। उसके बाद नाराज प्रदर्शनकारियों ने वाहनों में सवार तीन लोगों को इतना पीटा कि उनकी जान चली गई।
आशीष इलाके में मोनू भैया नाम से चर्चित है। उसे 9 अक्टूबर को हत्या, दंगा और षड्यंत्र रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उसका दावा था कि वह घटनास्थल से चार किमी. दूर बनवीरपुर में सालाना दंगल के कार्यक्रम में था। हालांकि वह घटनास्थल पर अपनी गैरमौजूदगी साबित करने में नाकाम रहा। बनवीरपुर में मिश्र परिवार का पैतृक निवास है।
आशीष के लिए 3 अक्टूबर महत्वपूर्ण दिन था। उस दिन उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य महाराजा अग्रसेन इंटर कॉलेज में होने वाले दंगल में मुख्य अतिथि बनकर आने वाले थे। आशीष के पिता हर साल गांधी जयंती के मौके पर इसका आयोजन कराते रहे हैं। उप-मुख्यमंत्री के पास 2 अक्टूबर को समय नहीं था, इसलिए इस बार दंगल एक दिन बाद हो रहा था। इसका एक मकसद आशीष की लोकप्रियता दिखाना भी था ताकि अगले विधानसभा चुनाव में निघासन विधानसभा क्षेत्र से उसे टिकट दिलवाया जा सके।
स्थानीय लोग इस पसोपेश में कि आगे क्या होगा
इलाके में प्रवेश करते ही आशीष के नाम की होर्डिंग और दीवारों पर लिखी पंक्तियां उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को बताती हैं। एक जगह लिखा था ‘युवाओं की पुकार मोनू भैया अबकी बार’। ब्राह्मण बहुल इस इलाके में माना जा रहा था कि आशीष अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाएगा। आशीष के पिता इस इलाके से दो बार सांसद चुने गए हैं। पिछले दिनों केंद्रीय कैबिनेट के विस्तार में उत्तर प्रदेश से एकमात्र ब्राह्मण चेहरे के रूप में उन्हें शामिल किया गया था। प्रदेश की 12 फीसदी ब्राह्मणों की है। पिता के केंद्र में जाने के बाद माना जा रहा था कि आशीष यहां उनकी जगह लेगा।
किसानों को कुचलने वाली गाड़ियों का वह काफिला उपमुख्यमंत्री मौर्य को लाने गया था। पहले उनके हेलीकॉप्टर से आने की बात थी, जिसे स्थानीय खेल के मैदान में उतरना था। लेकिन सैकड़ों किसान अजय मिश्र के बयानों के विरोध में उपमुख्यमंत्री को काला झंडा दिखाने वहां पहुंच गए थे। अजय मिश्र इलाके में टेनी महाराज नाम से मशहूर हैं। उन्होंने कहा था, “ऐसे लोगों से कहना चाहता हूं, सुधर जाओ नहीं तो सामना करो आके... हम आपको सुधार देंगे। दो मिनट भी नहीं लगेंगे।”
किसानों की भीड़ को देखते हुए मौर्य ने सड़क मार्ग से आने का फैसला किया। लेकिन हिंसा के बाद उन्होंने अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया। उस दिन तिकोनिया में जिन लोगों की जान गई उनके परिजन दुखी हैं, तो दूसरी तरफ इस घटना ने कुछ राजनीतिक दलों को मौका दे दिया। उनमें शोक संतप्त परिवारों को सांत्वना देने की होड़ लग गई। इस जघन्य घटना ने तमाम सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने को भी उधेड़ दिया। इसने बता दिया कि आसन्न चुनाव वाले इस राज्य में जाति का क्या महत्व है, ऊंची जाति के लोग अपने आप को किस तरह दूसरों से ऊपर समझते हैं। इस घटना ने लोगों के उस गुस्से को भी उजागर किया जो फटने का इंतजार कर रहा था।
मृतक किसानों के अंतिम अरदास में किसान नेता राकेश टिकैत और अन्य
कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन ने इलाके में राजनैतिक नेताओं के प्रवेश पर रोक लगा दी। भड़काऊ वीडियो न फैले, इसलिए इंटरनेट पर भी पाबंदी लगा दी गई। घटना के बाद 48 घंटे तक कोई पुलिस जांच नहीं हुई। तीसरे दिन क्राइम ब्रांच की फॉरेंसिक टीम मौके पर पहुंची और बारिश का बहाना बनाया। बारिश के कारण घटनास्थल से खून के दाग मिट गए थे। नाराज लोगों ने दो गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया था, सो उंगलियों के निशान भी नहीं मिले।
घटनास्थल पर जाने वाले क्राइम ब्रांच के अधिकारी विद्याराम दिवाकर ने आउटलुक को बताया, “हमें जली हुई थार जीप से दो कारतूस मिले। हम हथियारों के साथ इनका मिलान करके अभियुक्तों को पकड़ेंगे। हमारे पास तकनीकी जांच मशीनें भी हैं। मोबाइल फोन टावर की मदद से यह भी पता चल चलेगा कि घटना के समय आरोपी कहां थे।”
कांग्रेस नेता राहुल गांधी को 6 अक्टूबर को पांच सदस्यों की टीम के साथ मृतकों के परिजनों से मिलने की अनुमति मिली। उसी दिन उनकी बहन और पार्टी महासचिव तथा उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा को सीतापुर में हिरासत से रिहा किया गया। कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल में राहुल और प्रियंका के अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी थे।
वे सबसे पहले लवप्रीत सिंह के परिवार से मिले। 19 साल का लवप्रीत उस घटना में जान गंवाने वाला सबसे कम उम्र का शख्स था। उसके बाद कांग्रेस नेता पत्रकार रमन कश्यप के घर गए। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी कश्यप के परिवार से मुलाकात की। वे मृतक किसानों दलजीत सिंह, नछत्तर सिंह और गुरविंदर सिंह के परिजनों से भी मिले। बहुजन समाज पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल पार्टी महासचिव एससी मिश्रा की अगुवाई में पहुंचा। पीड़ितों की तरफ से लड़ने के लिए पार्टी ने वकीलों की एक टीम भी बनाई है।
लवप्रीत का शव कांच के एक बक्से में रखा था। उसके पिता सतनाम सिंह धान के खेत में ही बड़े बेटे का दाह संस्कार करने के लिए जगह बना रहे थे। उनकी आंखों से अनवरत आंसू बह रहे थे। दोनों बेटियां मां को सांत्वना देने की कोशिश कर रही थीं। रुंधे गले से सतनाम ने कहा, “उसने शाम तक लौट आने का वादा किया था। लेकिन जब उसे अस्पताल ले जाया जा रहा था तब उसने मुझे फोन किया। वह बस इतना ही कह सका कि पापा जल्दी आ जाओ। जब तक हम अस्पताल पहुंचते तब तक बहुत देर हो चुकी थी।”
“वह चाहता था कि हम सब एक अच्छी जिंदगी गुजारें, और इसलिए आइईएलटीएस की तैयारी कर रहा था ताकि कनाडा जा सके। मुआवजे की रकम का मैं क्या करूंगा, मुझे तो बस न्याय चाहिए।” यह कहते-कहते सतनाम सिंह की आंखों में आंसुओं की जगह गुस्सा दिखने लगता है। सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि सांत्वना देने उनके घर आए, लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा से कोई नहीं आया। वे बताते हैं, “स्थानीय प्रशासन के कुछ अधिकारी आए थे, मुआवजे का चेक देने।”
70 साल के किसान बिछत्तर सिंह को नहीं लगता कि कभी न्याय मिल पाएगा। वे खिन्न होकर कहते हैं, “हम सरकार का कुछ नहीं बिगाड़ सकते इसलिए उसे हमारी परवाह नहीं है। मोनू भैया ब्राह्मण है और ब्राह्मण समुदाय का वोट मायने रखता है। आपको क्या लगता है, टेनी महाराज को केंद्र में मंत्री क्यों बनाया गया? क्योंकि वे चाहते हैं कि ब्राह्मण समुदाय भाजपा को वोट दे। सरकार को न सिखों की परवाह है और न ही किसानों की। हरियाणा और पंजाब में सरकारें किसानों से 1,900 रुपये प्रति क्विंटल के दाम पर धान खरीद रही हैं, हमें 1100 रुपये का भाव भी नहीं मिल रहा है। हमने तो सारी उम्मीदें छोड़ दी हैं।”
लखीमपुर खीरी की 6.5 लाख आबादी में करीब एक लाख सिख हैं। इसे मिनी पंजाब भी कहते हैं। वैसे तो पूरे जिले की आबादी में वे तीन फीसदी से भी कम हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के अन्य किसी जिले में इतने सिख नहीं हैं। चुनाव में संख्या के लिहाज से उनका महत्व भले न हो, लेकिन घटना का असर अगले साल पंजाब और उत्तराखंड चुनावों में भी दिख सकता है। लखीमपुर खीरी से सटे उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में काफी सिख हैं।
खीरी इलाके में चाय की दुकान चलाने वाले हरि ओम को लगता है कि इस घटना के बावजूद अगर आशीष मिश्र को टिकट दिया गया तो वे जीत जाएंगे। वे कहते हैं, “उनकी गिरफ्तारी से कोई खास असर नहीं पड़ेगा। जब तक टेनी महाराज हैं तब तक कोई और पार्टी यह सीट नहीं जीत सकती।” टेनी महाराज यानी अजय मिश्र भाजपा में शामिल होने से पहले भी जिला परिषद सदस्य के तौर पर गांव के झगड़े निपटाते थे। वे 2012 में निघासन से विधायक बने। यहां उनकी छवि बाहुबली की है। उस साल लखीमपुर खीरी की नौ में से सिर्फ इसी सीट पर भाजपा को जीत मिली थी। 2014 में अजय मिश्र ने लोकसभा चुनाव लड़ा और इस सीट से जीतने वाले पहले ब्राह्मण नेता बने। उनसे पहले इस सीट से पारंपरिक रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग समुदाय के कुर्मी नेता जीतते आए थे।
पत्रकार रमन कश्यप का श्राद्ध भोज
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) से जुड़े राजनीतिक विचारक संजय कुमार मानते हैं कि इस घटना ने भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है। वे कहते हैं, “किसानों की मांगें तत्काल मांग लेना यही साबित करता है। घटना ने निश्चित रूप से प्रदेश में भाजपा सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाया है।” संजय के मुताबिक विधानसभा चुनाव के लिए यह घटना नया मोड़ साबित होगी या नहीं, यह कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन इसने भाजपा को खतरनाक संकेत दे दिए हैं।
पड़ोसी संसदीय क्षेत्र पीलीभीत से भाजपा सांसद वरुण गांधी भी इसी ओर इशारा करते हैं। कथित तौर पर प्रदर्शनकारी किसानों का समर्थन करने की वजह से पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटाए जाने के दो दिन बाद उन्होंने ट्वीट किया, “लखीमपुर खीरी को हिंदू बनाम सिख लड़ाई में बदलने की कोशिश की जा रही है। यह न सिर्फ अनैतिक और गलत है, इस तरह की अफवाह फैलाना और उन पुराने घावों को कुरेदना खतरनाक है जिन्हें ठीक करने में एक पीढ़ी लग गई। हमें तुच्छ राजनीतिक लाभ को राष्ट्रीय एकता से ऊपर नहीं रखना चाहिए।”
दरअसल, इस इलाके में यह प्रचार करने की कोशिश की जा रही है कि प्रदर्शनकारी किसान खालिस्तानी हैं और उन्होंने भिंडरावाले की तस्वीर वाली टी-शर्ट पहन रखी थीं। यहां के बाजार में सबसे बड़ी मिठाई की दुकान चलाने वाले प्रदीप गुप्ता निघासन में आशीष मिश्र के चुनाव प्रचार का काम देख रहे थे। वे कहते हैं, “जांच पूरी होने दीजिए, सब कुछ साफ हो जाएगा। उनमें कुछ वास्तव में किसान हो सकते हैं लेकिन ज्यादातर बाहर से आए लोग थे। शायद पंजाब से उपद्रव फैलाने यहां आए हों। खालिस्तानी गुंडों ने जिस तरह भाजपा कार्यकर्ताओं की निर्ममतापूर्वक हत्या की, उस तरह की प्रतिक्रिया कोई किसान कभी नहीं दिखाएगा।”
27 साल के भाजपा कार्यकर्ता शुभम मिश्र के परिवार के सदस्य बताते हैं कि उन्हें इतनी बुरी तरह मारा गया कि चेहरे से पहचानना असंभव था। शुभम के पिता विजय मिश्र कहते हैं, “वीडियो में आपको भिंडरावाले की तस्वीर वाली टी-शर्ट पहने किसान भाजपा कार्यकर्ताओं को पीटते दिख जाएंगे। हमने तो शुभम को उसके अंडरवियर से पहचाना। उसके कपड़े तक फाड़ दिए गए थे।” वे सवाल करते हैं, “राहुल या प्रियंका गांधी हमसे मिलने क्यों नहीं आए? क्या हमने अपना बेटा नहीं खोया? उसकी डेढ़ साल की बेटी को यह भी नहीं मालूम कि उसके पिता के साथ क्या हुआ। यह कैसा न्याय है?”
शुभम, आशीष मिश्र का सहपाठी था और प्रचार में उसके साथ था। उसके चाचा अनूप मिश्र आउटलुक से कहते हैं, “वह कुछ बेपरवाह किस्म का था। उसके पिता जब भी उसे सुधरने के लिए कहते, तो वह हंस कर जवाब देता कि अगर मैं अच्छा बन गया तो भगवान मुझे जल्दी बुला लेगा। लॉकडाउन के दौरान वह काफी बदल गया और जिम्मेदार बन गया था।”
उत्तर प्रदेश शासन ने शुभम या अन्य भाजपा कार्यकर्ताओं हरिओम मिश्र और श्याम सुंदर के लिए मुआवजे की घोषणा नहीं की। अधिकारी चुपचाप जाकर मुआवजा राशि का चेक दे आए। पंजाब और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारों ने मृतक किसानों और पत्रकार के परिवारों को 50-50 लाख रुपये अतिरिक्त मुआवजा देने की घोषणा की, लेकिन उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए मुआवजे का ऐलान नहीं किया।
शुभम के पड़ोसी अमित वर्मा कहते हैं, “बात मानवता या सहानुभूति की नहीं है। लखीमपुर हिंसा और मौतें चुनाव के लिए राजनीतिक मुद्दा बन गई हैं। अबकी बार लखनऊ का रास्ता लखीमपुर से होकर जाएगा।” लेकिन लखीमपुर खीरी जिले से बाहर इस घटना का ज्यादा असर नहीं दिखता। लखनऊ के बाहरी इलाके में बिजनौर चौराहे पर लोग लॉकडाउन, नौकरियां जाने, बेरोजगारी, महंगाई और योगी आदित्यनाथ सरकार की स्कीमों के बारे में चर्चा करते हैं। चौराहे पर ही साइकिल मरम्मत की दुकान चलाने वाले विद्यांशु के मुताबिक लॉकडाउन से उन्हें बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ जिससे उबरने में लंबा वक्त लगेगा। वे कहते हैं, “कोरोना की प्रॉब्लम तो थी मगर उससे ज्यादा महंगाई की है।” वे कहते हैं कि स्कॉलरशिप स्कीम, उज्ज्वला, मुफ्त बिजली कनेक्शन और गौशाला स्कीमें ठीक से नहीं चल रही हैं।
भिंडरावाले समर्थक होने के आरोपों के विरोध में भगत सिंह की तस्वीर वाली टी-शर्ट पहने लोग
विद्यांशु की दुकान पर साइकिल मरम्मत कराने पहुंचे रामदयाल गौतम कहते हैं, “इन स्कीमों के बारे में लोग अधिक नहीं जानते। उज्ज्वला स्कीम में लोगों को मुफ्त में गैस कनेक्शन मिला और कुछ दिनों तक सिलिंडर पर सब्सिडी भी मिली, लेकिन अब उन्हें एक सिलिंडर के 900 रुपये देने पड़ रहे हैं। गौशालाएं काम नहीं कर रही हैं और गायें सड़कों पर मर रही हैं। बिजली कनेक्शन तो मुफ्त है लेकिन बिजली काफी महंगी है। बिजली जब-तब जाती रहती है।”
ज्यादातर लोग मानते हैं कि विधानसभा चुनाव में मुकाबला भाजपा के योगी और सपा के अखिलेश भैया के बीच होगा। कुछ लोग आम आदमी पार्टी की भी चर्चा करते हैं। मतदाताओं की चर्चा में अभी तक कांग्रेस और बसपा के लिए जगह नहीं बन पाई है। लखनऊ के टैक्सी ड्राइवर कौशलेंद्र कुमार कहते हैं, “अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। राजनीति में छह महीने का समय बहुत होता है। चुनाव से चंद रोज पहले ही लोग तय करेंगे कि किसे वोट देना है।”
विद्यांशु की 80 साल की दादी दुर्गा देवी कहती हैं, “हम तो मोदी को ही वोट देंगे। उसका बोलने का तरीका बहुत सॉलिड है।” जाहिर है कि घटनास्थल लखीमपुर खीरी और लखनऊ के बीच फासला बहुत ज्यादा है।