पूर्वोत्तर का मिजोरम 1987 में राज्य का दर्जा हासिल करने और पहले विधानसभा चुनाव के वक्त से ही सिर्फ दो पार्टियों के दो चेहरों से ही रू-ब-रू रहा है- कांग्रेस के लल थनहवाला और मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के जोरमथंगा। ये दोनों हर दशक में बतौर मुख्यमंत्री बदलते रहे हैं। इस बार राज्य की राजनीति में एक तीसरा चेहरा जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) के 74 वर्षीय ललदुहोमा का उभरा ।
वैसे, तौलपुइ गांव में एक किसान परिवार में 22 फरवरी 1949 को जन्मे ललदुहोमा मिजोरम की राजनीति में कोई नए नहीं हैं। रिटायर आइपीएस अधिकारी, ललदुहोमा 1982 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सुरक्षा प्रभारी रहे हैं। वे राजीव गांधी की अध्यक्षता में 1982 के एशियाई खेलों की आयोजन समिति के सचिव भी थे। उन्होंने 1984 में नौकरी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए। बाद में, ललदुहोमा कांग्रेस की टिकट पर मिजोरम से लोकसभा के लिए चुना गए, लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पार्टी से इस्तीफा दे दिया और 1988 में दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित होने वाले पहले सांसद बने।
उन्होंने 1997 में जोरम नेशनलिस्ट पार्टी (जेडएनपी) की स्थापना की और 2018 के चुनावों में लालदुहोमा की जेडएनपी छह क्षेत्रीय दलों के गठबंधन जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) में शामिल हुई।
इस साल, चुनाव में जेडपीएम ने भ्रष्टाचार विरोध और युवाओं तथा किसानों के उत्थान को मुद्दा बनाया और उसे सत्ता विरोधी लहर का लाभ मिल गया। इस तरह ललदुहोमा मुख्यमंत्री बने और राज्य में एमएनएफ और कांग्रेस के अलावा तीसरे पक्ष की आमद हो गई।