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संपादक के नाम पत्र

भारत भर से आईं पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आईं प्रतिक्रियाएं

सांप्रदायिकता आधार

14 दिसंबर के अंक में ओवैसी का इंटरव्यू, ‘मुसलमानों में गहरी बेचैनी है’ पढ़ा। आपने लिखा है कि असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम सांप्रदायिक राजनीति के उभरते धूमकेतु हैं। लेकिन इनकी राजनीति अलगाववाद और वैमनस्यता की है। यह वह कुनबा है जिसकी जुबान से अल्लाह हू अकबर के साथ बहुसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ जहर निकलता है। इनका यह कथन कि ‘मुसलमानों में गहरी बेचैनी है’, स्पष्ट करता है कि ओवैसी बंधु सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने में माहिर राजनेता हैं। ये ऐसे मुस्लिम लीडर हैं, जो बहुसंख्यकों से अपेक्षा करते हैं कि वे सेकुलर बने किंतु मुसलमानों में कट्टरता पैदा करने के लिए हर अवसर पर सांप्रदायिक बयानबाजी करते हैं। उनकी पार्टी एआइएमआइएम की राष्ट्रीय स्तर पर उपस्थिति यह स्पष्ट करती है कि ओवैसी मुसलमानों के कट्टर नेता बनने जा रहे हैं। देश को इस खतरनाक विचारधारा से नुकसान ही होगा। पूरा देश सांप्रदायिक आधार पर बांटा जा रहा है, जिसके लिए कुछ अंशों में ओवैसी भी जिम्मेदार हैं।

हरिकृष्ण बड़ोदिया | रतलाम, मप्र

 

गंगा-जमुनी तहजीब का खयाल

आउटलुक का 14 दिसंबर का अंक पढ़ा। आउटलुक का यह प्रयास अच्छा लगता है कि वह सभी पक्ष पाठको के सामने रखने का प्रयत्न करता है। मुझे लगता है, भारत की पहचान धार्मिक नहीं है, ऐसे में कोई भी पार्टी यदि धर्म या किसी विशेष संप्रदाय को तरजीह देती है तो गलत है। ओवैसी भी संप्रदाय या धर्म विशेष में ही अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा होता रहा, तो गंगा-जमुनी तहजीब को निशाना बनाया जाता रहेगा। ओवैसी एक शहर के नेता हैं, उन्हें देश का नेता बनाने का प्रयास नहीं करना चाहिए।

ऊर्विन शाह | वालोड, गुजरात

 

लव जिहाद का सच

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार, लव जिहाद के खिलाफ अध्यादेश लाई है। इस अध्यादेश का उद्देश्य, दबाव डालकर, लालच देकर या किसी तरह के छल कपट से होने वाले धर्म परिवर्तनों को रोकना है। साथ ही यह दूसरे धर्म में शादी करके किए जाने वाले धर्म परिवर्तन को भी रोकेगा। 14 दिसंबर के अंक में ‘प्यार पर पाबंदी कितनी जायज’ में भी इसी विषय पर बात की गई है। लेकिन सवाल यह है कि इसका कितना फायदा होगा और कितना नुकसान। कानून बनाना आसान है लेकिन इस भ्रष्ट समाज में उसका पालन कराना बहुत कठिन है। अपराधी पीड़ित महिला और उसके परिवार को डरा या धमका सकता है। ऐसी स्थिति में पीड़ित महिला और उसके परिवार द्वारा कानून की मदद ले पाना बहुत कठिन हो जाता है। कानून बनाने के साथ-साथ समाज को जागरूक करना अच्छा उपाय होता है। कुछ लोग लव जिहाद पर सवाल उठा रहे हैं। आप किसी भी नाम से पुकारें, कोई फर्क नहीं पड़ता, बस होना यह चाहिए कि महिलाओं के खिलाफ अत्याचार रुकें। किसी भी तरह के दबाव में उन्हें परेशान होकर अपनी अस्मिता न खोना पड़े।

रंजना मिश्रा | कानपुर, उप्र

 

अन्नदाता की सुध

14 दिसंबर के अंक में, ‘संघर्ष के नए गीत और गायक’ अच्छा लगा। कृषि बिल में किसानों के हितों की अनदेखी की गई है। मंडी कानून, न्यूनतम समर्थन मूल्य और अन्य समस्याओं पर सरकार को विचार करना चाहिए और ऐसे उपाय किए जाने चाहिए कि किसानों को लाभ मिल सके। जब तक अन्नदाता भूखा रहेगा, देश के विकास की बात करना बेमानी होगी।

जफर अहमद | मधेपुरा, बिहार

 

किसान की राय लें

14 दिसंबर के अंक में, ‘संघर्ष के नए गीत और गायक’ में पता चला कि किसान इस बार आर-पार के मूड में हैं। दिल्ली में किसान डेरा डाले हुए हैं। सरकार और किसान आंदोलन के नेता के बीच चर्चा वार्ता का दौर चल रहा है। किसान आंदोलन के नेता भी अपनी रणनीति बार-बार बदल रहे है, समाधान कैसे होगा यह बड़ा सवाल है। सरकार बिल को ऐतिहासिक और किसानों के लिए फायदे वाला बता रही है। भारत कृषि प्रधान देश है और यहां की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा कृषक वर्ग है। ऐसे में यदि किसान हित में कोई भी विधेयक तैयार होता है, तो उसे आनन-फानन में पारित करने की बजाय उस पर सबसे पहले किसान वर्ग की राय लेना थी। अच्छा होता सरकार विधेयकों पर संसद में गंभीरता से चर्चा करती। विपक्ष की आपत्तियों को सुनती। जरूरी होने पर कुछ संशोधन करती। लेकिन सरकार ने बिना किसी चर्चा के बिल को पास दिया।  इससे संदेह पैदा होता है। बिना चर्चा बिल पास कराना संसद की गरिमा के खिलाफ है। किसान आंदोलन उग्र रूप ले इससे पहले सरकार को चेतना होगा।

प्रदीप कुमार दुबे | देवास, मप्र

 

गैर जिम्मेदार विपक्ष

जब से एनडीए की सरकार बनी है, तब से ही यह देखने मे आ रहा है कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष बहुत ही गैर जिम्मेदारी भरा व्यवहार करता आ रहा है। सत्ता में आने की व्याकुलता इतनी अधिक है कि विपक्ष को अर्बन नक्सली, माओवादी, इस्लामिस्ट और खलिस्तानियों की अनैतिक और राष्ट्रद्रोही गतिविधियों का समर्थन करने से भी गुरेज नहीं है। विभिन्न आंदोलन या प्रदर्शन के नाम पर देश तोड़ने, तेरे मेरा रिश्ता क्या, हिंदुओं की कब्र खुदेगी, खिलाफत 2.0, मोदी को इंदिरा गांधी की तरह मारने जैसी आतंकी धमकी और उनकी दहशत को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। किसान आंदोलन को जिस प्रकार खालिस्तानियों और इस्लामिस्टों ने हाईजैक किया है, उससे आम गरीब किसान का बहुत नुकसान हो रहा है। इससे न सिर्फ देशभक्त किसान बदनाम हो रहे हैं बल्कि उनकी वास्तविक मांगों को लेकर संदेह बढ़ रहा है। किसानों को चाहिए अपने बीच छिपे ऐसे देशद्रोहियों को पहचाने और उन्हें बाहर करें। ताकि आंदोलन की गरिमा और पहचान बनी रहे। जिससे आमजन का भी साथ किसानों को मिल सके।

युवराज पल्लव | मेरठ, उप्र

 

अच्छे विश्लेषण

आउटलुक का 30 नवंबर अंक पढ़ा। आउटलुक में जिस तरह से बिहार के चुनाव में मोदी की भूमिका को रेखांकित किया गया है, वह काबिले तारीफ है। पिछले संस्करण में हमने किसानों की समस्या देखी तो इस संस्करण में कोरोना वैक्सीन के ऊपर अच्छा लेख दिया गया था। इसके साथ ही अमेरिकी चुनाव के बाद नए अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन की चुनौतियों को नए तरीके से प्रस्तुत किया गया है। इसके साथ ही धार्मिक गुरु किस तरह इंटरनेट के माध्यम से अपना आर्थिक व्यापार बनाने में लगे हुए हैं यह विश्लेषण भी बहुत अच्छा है। हिमाचल प्रदेश की ‘बदलती फिजा’ लेख के माध्यम से वास्तव में हम एक नए हिमाचल को देखते है। आउटलुक ऐसी पत्रिका है, जो राजनीतिक सामाजिक मुद्दों को तो उठाता ही है साथ ही अपने समग्र लेखन से खेल जगत की खबरों और मनोरंजन को भी जगह देता है।

विजय किशोर तिवारी | जनकपुरी, नई दिल्ली

 

अच्छा अंक

आउटलुक के 30 नवंबर के अंक में आवरण पर ‘दबंग’ की जगह ‘प्रभावशाली’ शब्द ज्यादा शालीन होता। साथ ही बिहार की जीत पर, ‘डबल इंजन की सरकार के माथे जीत का सेहरा’ पूर्वाग्रह से ग्रस्त प्रतीत होता है। वैसे संपादकीय से लेकर कई प्रभावशाली आलेख आज के सबसे ज्वलंत और संवेदनशील समस्या कोरोना टीके को लेकर है, जो इस अंक में चार चांद लगाते हैं। ‘शहरनामा’ में मिर्जापुर के बारे में एक और रोचक जानकारी जोड़कर मुझे खुशी होगी कि अपने समय के सबसे लोकप्रिय उपन्यासकार, कुशवाहा कांत और प्रखर साहित्यकार पांडेय बेचैन शर्मा ‘उग्र’ जिन पर अश्लील साहित्य लिखने के आक्षेप को गांधी जी ने उनकी रचना पढ़कर ‘क्लीन चिट’ दी थी वे यहीं के थे।

दीपक कुमार सिंह | गया, बिहार

 

 

इतिहास का आईना

 

प्रिय हेनरी,

मैंने अभी ब्रेकफास्ट एट टिफेनिज की आपकी तस्वीर देखी। इस बार आपने अनोखा संगीत तैयार किया है। 

संगीत के बिना फिल्म वैसी ही है, जैसे बिना ईंधन के विमान। यह काम आपने खूबसूरती से किया है। हालांकि हम अभी भी जमीन पर और वास्तविकता की दुनिया में हैं। आपके संगीत ने हमें ऊपर उठाकर उड़ा दिया है। हर वो बात जो हम शब्दों में बयां नहीं कर सकते या दिखा नहीं सकते, उसे आपने हमारे लिए अभिव्यक्त किया है। इस काम को आपने बहुत सारी कल्पना, आनंद और खूबसूरती के साथ किया है।

आप बहुत शांत और संगीतकारों में सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं।

प्रिय हैंक आपका बहुत धन्यवाद

सस्नेह

ऑड्रे

ब्रेकफास्ट एट टिफिनज का संगीत सुन कर ऑड्रे हेपबर्न ने फिल्म के संगीतकार हेनरी मैनकिनी को चिट्ठी लिखी थी, जिन्होंने इसके लिए एकेडमी अवॉर्ड जीता था

 

पुरस्कृत पत्र

इन पर भी हो लेख

बिहार चुनाव में धमक के साथ अपनी मौजूदगी दर्ज कराने वाले ओवैसी के बारे में जानकर अच्छा लगा। 14 दिसंबर की आवरण कथा से ओवैसी के बारे में नई जानकारियां मिलीं। पहली बार है कि ओवैसी और उनकी पार्टी के बारे में प्रामाणिक तौर पर कुछ लिखा गया है। आउटलुक ने उनके बारे में लिखा है, आवरण पर जगह दी है, तो जाहिर सी बात है राजनीति में उनका कद बढ़ रहा है। इस लेख में सबसे अच्छा, ‘इतिहास के गायब पन्ने’ लगा। पहली बार जाना कि एआइएमआइएम इतनी पुरानी पार्टी है। धर्मनिरपेक्ष राजनीति के विघटन के कारण ही ओवैसी का उदय हुआ है। भाजपा जितना हिंदुत्व-हिंदुत्व चिल्लाएगी, ओवैसी उतने ही बड़े नेता बनते जाएंगे।

शांतिप्रिय अवस्थी |हरदोई, उप्र

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