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भारत भर से आई पाठकों की प्रतिक्रियाएं
आउटलुक का अंक

बदलाव के नायक

आउटलुक के 7 सितंबर अंक में आवरण कथा, ‘गांव से आए डीएम साहब’ पढ़ कर लगा कि ये लोग वास्तव में बदलाव के नायक हैं। समाज में अब तक धारणा थी कि यह परीक्षा सुसंस्कृत और अमीर परिवारों के बच्चों के लिए ही है। लेकिन इन छात्रों ने बता दिया कि सफलता का कोई तोड़ नहीं। कई छात्रों ने तो बिना कोचिंग सफलता प्राप्त की। जमीन से जुड़े लोग जब ऊंचे पदों पर पहुंचते हैं, तो उम्मीद जागती है कि ये लोग वंचित तबके के लिए जरूर कुछ करेंगे।

सौमित्र घोष | मोतीहारी, बिहार

मिली प्रेरणा

इस बार की आवरण कथा, (7 सितंबर, गांव से आए डीएम साहब) पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा के बारे में इतनी विस्तृत जानकरी कम ही पढ़ने को मिलती है। अखिल भारतीय स्तर पर पहले नंबर पर आने वाले प्रवीण सिंह का साक्षात्कार मेरे जैसे सिविल सर्विसेस में जाने के इच्छुक अभ्यर्थी के लिए प्रेरणा है।

सुनील विनायक कुलकर्णी | पुणे, महाराष्ट्र

गणितज्ञ की कहानी

आउटलुक के 10 अगस्त के अंक में विद्या बालन का इंटरव्यू पढ़ा। उन्होंने फिल्म के बारे में बहुत साफगोई और बेबाकी से जवाब दिए हैं। शकुंतला देवी के चरित्र को निभाने के लिए विद्या बालन से अच्छा और कोई कलाकार नहीं हो सकता था। वे वाकई बहुत समर्थ कलाकार हैं। उन्होंने एक बात बहुत अच्छी कही कि किसी भी व्यक्ति की बायोपिक में आप उस व्यक्ति की नकल नहीं कर सकते, क्योंकि आप कभी वैसे नहीं हो सकते। उनकी शानदार अदाकारी की वजह से ही फिल्म इतनी सशक्त बन पाई है।

कमलेश जैन | श्रीगंगानगर, राजस्थान

रोज नए खुलासे

मीडिया सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बारे में रोज नए खुलासे कर रही है। अब यह बॉलीवुड के पाले से निकल कर राजनीति के पाले में चला गया है। लगता नहीं इस मसले का कोई हल निकलेगा। 

पार्थ सुनील कासार | सोनगीर, महाराष्ट्र

 

पुरस्कृत पत्र

कौन जीता

आउटलुक के 7 सितंबर अंक में, ‘सुलह दिल से या...’ लेख पढ़ा। राजस्थान सरकार ने विश्वास मत तो जीत लिया पर गहलोत और पायलट ने एक दूसरे का विश्वास जीता या नहीं यह कहना मुश्किल है। ये दोनों अब गाड़ी के साथ-साथ चलने वाले पहिेए नहीं रह गए हैं। आलाकमान को समझना चाहिए कि चिंगारी अभी बुझी नहीं है और इसकी अनदेखी के परिणाम बड़े हो सकते हैं। इस प्रकरण के बाद भले ही पायलट का कद छोटा लग रहा हो मगर उन्होंने, जिस समझदारी, शालीनता और राजनीतिक चतुराई से बगावत और सुलह को अंजाम दिया उससे भविष्य में उनका राजनीतिक कद बढ़ेगा। अभी बगावत या सुलह में किसी की जीत या हार नहीं हुई है। फिलहाल विरोधियों को मिले अभयदान के बावजूद गहलोत के ताज के कांटे बरकरार हैं।

बृजेश माथुर | गाजियाबाद, उ.प्र