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संपादक के नाम पत्र

भारत भर से आईं पाठकों की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आईं प्रतिक्रयाएं

जनता की आवाज

आउटलुक की 1 नवंबर की आवरण कथा, ‘आलाकमान पर आंच’ में उठाए गए सभी मुद्दों से मैं सहमत हूं। यह सही है कि असली मुद्दे केवल प्रियंका गांधी ही सामने ला रही हैं। लखीमपुर खीरी में राजनीति, ईंधन के बढ़ते दाम, उत्तर प्रदेश में बढ़ता अपराध। लेकिन सत्ता में किसको पड़ी है कि इस ओर सोचे।  आज खाद्य तेलों, दालों और चायपत्ती की कीमत सुनकर आम आदमी सदमे से चौंकता है। सत्ता में बैठे लोग भी जानते हैं कि इन चीजों के बिना आम आदमी का गुजारा नहीं हो सकता इसलिए जब तक चलता है चलने दो। देश में कोई तो हो, जो निरंकुश सत्ता को चुनौती दे सके। प्रियंका गांधी वही कर रही हैं। अगर देश में अन्न का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है, तो फिर खाने-पीने की वस्तुओं की कीमत क्यों बढ़ रही है?  न देश के अन्न उत्पादक को लाभ मिल रहा है न उपभोक्ता को। तो फिर लाभ में कौन है। लॉकडाउन के दौरान अरबपतियों की संपत्ति में पैंतीस फीसदी की वृद्धि हुई। सही मायनों में विदेशी कंपनियों के खातों का उपयोग कर भारत जैसे विकासशील देशों में संपन्न और ताकतवर लोग देश को राजस्व कर से वंचित कर रहे हैं। यह वह धन है, जिसकी देश में बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, पर्यावरण और अन्य बड़ी परियोजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए जरूरत होती है। आम आदमी बस वोट बैंक है और कुछ नहीं। मजदूर और जो लोग अपनी आवाज बुलंद नहीं कर पा रहे हैं प्रियंका गांधी उनकी आवाज बन कर उभरी हैं। केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को कृषि सुधार कानूनों का विरोध कर रहे किसानों की मांग पर गंभीरता दिखानी चाहिए। किसान गुस्से में हैं तो उनकी नाराजगी भी सुनी जानी चाहिए। उनके आक्रोश का लाभ निहित स्वार्थी तत्व और राजनेता उठा रहे हैं। लखीमपुर जैसी घटनाएं दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण हैं। लोकतंत्र में विरोध के स्वरों को भी सम्मान दिया जाना चाहिए, यही लोकतंत्र की खूबसूरती है। पर्णिका हर्डे जी के मनमोहक नागपुर विवरण के साथ पत्रिका के सभी लेख बहुत अच्छे लगे। बिग बी से रूबरू होते हुए देश दुनिया को जाना। 

डॉ. पूनम पांडे | अजमेर, राजस्थान

 

कमरतोड़ महंगाई

‘आलाकमान पर आंच’ (1 नवंबर) में गौरव वल्लभ का साक्षात्कार पढ़कर और जिगनेश मेवाणी के विचार पढ़ कर बहुत कुछ जानने का मौका मिला। आज देश लखीमपुर खीरी की आग में जल रहा है। मंहगाई कमर तोड़ रही है। ऐसे दौर में जब कोरोना संकट से उपजे हालात में आम आदमी की आय के स्रोतों में आई कमी अभी सामान्य स्थिति तक नहीं पहुंची है और आए दिन बढ़ती महंगाई मुसीबत बढ़ा रही है। निस्संदेह, विकास सरकार का प्रिय शगल है लेकिन उससे पहले हर व्यक्ति के लिए रोजगार की जरूरत है। इसमें दो राय नहीं कि कोरोना संकट के दौरान सरकार की आय के स्रोत भी सिमटे हैं। लेकिन सत्ताधीशों की राजनीतिक विलासिताएं भी तो कम नहीं हुई हैं। देश के विभिन्न भागों में पेट्रोल-डीजल के दाम सौ का आंकड़ा पार कर गए हैं, जिससे माल-ढुलाई में वृद्धि से महंगाई की आना सुनिश्चित है। हाल ही में घरेलू गैस के दामों में वृद्धि चुभने वाली है। आज यह देश की विडंबना ही है कि एक तो महंगाई में जीवनयापन मुश्किल हो रहा है, दूसरे कोरोना संकट के चलते आय के स्रोत घटे हैं। इस दौरान बुजुर्गों और सेवानिवृत्त लोगों का संकट और गहरा हुआ है। सरकार को इन लोगों के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए।

हरीशचंद्र पाण्डे | हल्द्वानी, उत्तराखंड

 

वरिष्ठों को तवज्जो मिले

कांग्रेस की अंदरूनी और बाहरी चुनौतियों को ‘युवा तुर्क बनाम ओल्ड गार्ड’ (1 नवंबर) में बहुत अच्छे तरीके से बताने की कोशिश की गई है। लेकिन कांग्रेस के लिए फिर जिंदा होकर खड़े होना, खड़े होकर चलना और फिर दौड़ लगा देना इतना आसान नहीं होगा। राहुल गांधी राजनीति के लिए अनफिट है, यह बात कांग्रेस को समझनी होगी। यदि इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्रियंका गांधी का प्रदर्शन भी ठीक नहीं रहता, तो सोनिया गांधी को चाहिए कि वे पार्टी में आमूलचूल परिवर्तन करें और पार्टी की कमान योग्य व्यक्ति को सौंपे। राहुल को सिखाने और आजमाने के चक्कर में कांग्रेस बहुत साल बर्बाद कर चुकी है। अब यही गलती प्रियंका के साथ नहीं दोहराई जानी चाहिए कि एक के बाद एक चुनाव हाथ से निकलते जाएं और प्रियंका पर ही दांव लगा रहे। कांग्रेस सबसे पुरानी पार्टी है और उसे अपने वरिष्ठों की राय को भी तवज्जो देना चाहिए।

सुधीर एस. रेड्डी | बेंगलूरू, कर्नाटक

 

सही फैसले लें

बेशक कांग्रेस अभी तक की सबसे पुरानी पार्टी है लेकिन वह वैसा व्यवहार नहीं कर रही है। 1 नवंबर के अंक में, ‘युवा तुर्क बनाम ओल्ड गार्ड’ पढ़ कर लगा कि इससे अच्छे दांव-पेच तो कल की आई आम आदमी पार्टी चल लेती है। पुराने नेता हाशिये पर हैं, सोनिया की सुनी नहीं जा रही। प्रियंका-राहुल के फैसले पंजाब जैसे महत्वपूर्ण राज्य में सिर्फ रायता बिखेर रहे हैं। तो फिर पार्टी खुद को राजनैतिक पार्टी कह ही क्यों रही है। छोटे से छोटा किराना व्यापारी भी चाहता है कि उसका बेटा ही दुकान का काम काज संभाले। लेकिन यदि बेटा नाकारा निकलता है, तो व्यापारी अपनी दुकान बंद करने पर नहीं तुल जाता है। वह किसी दूसरे बेटे को ये काम सौंपता है या फिर योग्य व्यक्ति खोजता है, जो उसकी दुकान चला सके। लेकिन सोनिया गांधी ने तो जैसे तय कर लिया है कि वे और राहुल-प्रियंका कांग्रेस की दुकान बंद करवा कर ही रहेंगे। उत्तर प्रदेश में प्रियंका की खबरें बन रही हैं, वो सड़कों पर उतर भी रही हैं। लेकिन अब मंदिर जाने, गंगा स्नान करने और गरीबों के गले में हाथ डाल कर फोटो खिंचवाने के तरीके करने के लिए कांग्रेस को बहुत देर हो चुकी है। लोगों के मन में बैठ गया है कि ये लोग सिर्फ चुनाव के वक्त मंदिर जाते हैं। परंपरा का पालन यदि हमेशा न किया जाए, तो यह ढोंग लगता है। बेहतर हो कि प्रियंका गांधी सख्ती से फैसले लें और सही फैसले लें। नवजोत सिद्धू जैसे लोगों को ज्यादा तवज्जो न दें और सिर्फ उत्तर प्रदेश के भरोसे न रहें, पूरे भारत पर ध्यान दें। उन राज्यों की भी यात्राएं करें, जहां चुनाव नहीं हैं। तभी कांग्रेस उबर पाएगी।

यासेर अली | अयोध्या, उत्तर प्रदेश

 

राजनेताओं का फायदा

लखीमपुर खीरी में जो हुआ, वह निस्संदेह दर्दनाक है। किसी भी देश में ऐसी घटनाओं के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। ‘दबंगई का क्रूर नजारा’ रिपोर्ट में वहां के हालात का जायजा है। लेकिन बाहर से देखने पर जैसा लग रहा है, स्थितियां वैसी हैं नहीं। दरअसल अब ऐसी घटनाओं पर कभी न तो एकतरफा नाराजगी होती है न ही सहानुभूति। इसका सीधा सा कारण सोशल मीडिया है। हर हाथ में मोबाइल फोन ने ऐसी घटनाओं के प्रति लोगों की संवेदनाएं खत्म कर दी हैं। लोग घटना पर दुख नहीं जताते, बल्कि हर नागरिक खोजी पत्रकार बन जाता है। मिनट भर में घटना के वीडियो भारत तो क्या भारत से बाहर तक पहुंच जाते हैं। फिर इस पर चर्चा का सिलसिला शुरू हो जाता है। हर कोई खबर को अपना ‘एंगल’ देना चाहता है। लोग वीडियो या फोटो में लाल घेरे लगा-लगा कर उसे फॉर्वर्ड करते हैं और आरोप-प्रत्यारोप चलता रहता है। यही वजह है कि घटना का असर कुछ घंटों में ही कम हो जाता है। लोग फिर दूसरी घटना में लग जाते हैं। इससे फायदा बस राजनीति करने वालों को होता है, जो हवा का रुख अपनी ओर मोड़ने के लिए ऐसी घटनाओं को उस वक्त फिर हवा देते हैं, जब जरूरत होती है।

श्याम गिरी | फैजाबाद, उत्तर प्रदेश

 

पकड़ बनाने की जुगत

इस बार की आवरण कथा (1 नवंबर), उत्तर प्रदेश की सियासी हलचल पर है। हर पार्टी उत्तर प्रदेश में चुनाव के बुखार से ग्रस्त है। जिसे देखो उत्तर प्रदेश की यात्रा पर है और वहीं के मुद्दे उठाए जा रहे हैं। एक जमाना था जब कांग्रेस बहुत आसानी से जीत जाती थी। उसे ब्राह्मण, दलित और अल्पसंख्यकों का पूरा-पूरा समर्थन मिलता था। लेकिन धीरे-धीरे स्थितियां बदलीं और इन बदली हुई स्थितियों के कारण ही कांग्रेस को अब जमीन पर दोबारा पकड़ बनाने में दिक्कत हो रही है। बहुजन समाज पार्टी के उभार से लगा था कि उत्तर प्रदेश में कड़ा मुकाबला हमेशा बना रहेगा लेकिन इस बार ये पार्टी एकदम गायब लग रही है। 2014 के बाद से हर प्रदेश में राजनीति की स्थिति बहुत बदल गई है। आम चुनाव की दृष्टि से उत्तर प्रदेश हर पार्टी के लिए बहुत मायने रखता है। यही वजह है कि चुनावी शोर अभी से शुरू हो गया है। कोई जाति के आधार पर चुनाव लड़ रहा है, तो कोई धर्म के आधार पर। अब देखना यह है कि अंतिम वक्त में मतदाता प्रियंका की मेहनत चुनते हैं या धर्म या जाति।

विमल नारायण खन्ना | कानपुर, उत्तर प्रदेश

 

अस्सी के अमिताभ

अमिताभ बच्चन अभी भी फिल्म जगत के सबसे व्यस्त सितारे हैं। ‘कब कहें अलविदा’ पढ़कर पता चला कि मशहूर पटकथा लेखक सलीम खान ने उन्हें फिल्मों से रिटायर होने को कहा है। उनका कहना है कि अमिताभ ने अपने करिअर में सब कुछ हासिल कर लिया है। वे तो खुद फिल्म उद्योग से जुड़े हुए हैं और आखिर किसी कलाकार के बारे में वे ऐसा कैसे कह सकते हैं। क्योंकि सरकारी कर्मचारी या नौकरी करने वाले रिटायर होते हैं। कलाकार नहीं। जब तक दर्शक उन्हें देख रहे हैं तब तक उन्हें काम करना ही चाहिए। यदि अमिताभ भी ऐसा सोचते तो वे गुलाबो-सिताबो जैसी बेहतरीन फिल्म नहीं कर पाते। हम चाहते हैं वे काम करते रहें।

चंदा सिसोदिया | देवास, मध्य प्रदेश

 

गर्व से बिहारी

आउटलुक हिंदी के 18 अक्टूबर के अंक में संघ लोक सेवा आयोग 2020 के टॉपर कटिहार के शुभम कुमार का साक्षात्कार अच्छा लगा। एक जगह उन्होंने कहा है कि बिहार में पर्सनेलिटी डेवलप नहीं हो पाती। आखिर हम बिहार को ऐसा क्यों मानते हैं। बिहार में कई प्रतिभाएं हैं। बिहार में कई ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं, जो गुमनाम हैं। यहां गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर डॉ. पॉल हैं, तो 8 घंटे में सर्वाधिक 51 हजार से ऊपर मास्क वितरण करने वाले युवा उपन्यासकार टी. मनु भी हैं। हमें यह भूल जाना चाहिए कि यहां पर्सनेलिटी डेवलप नहीं हो पाती।

रचना कुमारी | भागलपुर, बिहार

 

पुरस्कृत पत्र

 

भावनात्मक सौदा

नए अंक (1 नवंबर) में, ‘लुटकर वापस हुए महाराजा’ अच्छा लगा। हो सकता है, इस सौदे की वजह से एयर इंडिया की किस्मत दोबारा चमक जाए। हालांकि उसे दोबारा सुधारने में टाटा को पसीना आ जाएगा। इतने घाटे में टाटा ने एयर इंडिया खरीदी ही इसलिए होगी कि यह जेआरडी का सपना था। यदि ऐसा न होता तो टाटा 18,000 करोड़ रुपये इस पर खर्च न करते। रिपोर्ट को पढ़ कर लगता है कि लालफीता शाही और बाबू लोग मिल कर अच्छी से अच्छी संपत्ति को कैसे बर्बाद कर सकते हैं। होना तो यह चाहिए कि सरकार के पास जो भी कंपनी हो वह अच्छे से चले। लेकिन होता इसका बिलकुल उलट है। उम्मीद है अब एयर इंडिया के दिन बहुरेंगे।

गौरव मित्तल | जयपुर, राजस्थान

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