कलाकार की कद्र
16 मई का अंक इसलिए पसंद आया कि यह एक सच्चे कलाकार को समर्पित है। विशुद्ध व्यावसायिक पत्रिका में ऐसे कलाकार को आवरण कथा में जगह दी गई, जो किसी फिल्मी परिवार से नहीं आया, जो किसी नामी बिजनेसमैन का बेटा नहीं है, न किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि से उसका कोई लेना-देना है। कलाकार की कद्र वही कर सकता है, जो खुद संवेदनशील हो और कला की कीमत समझता हो। आउटलुक की संपादकीय टीम को पता है कि जो लोग खुद का बाजा नहीं बजाते इसका मतलब यह नहीं कि उनमें दम नहीं है। बल्कि वे इतने विनम्र हैं कि अपनी तारीफ करने में संकोच करते हैं। ऐसे कलाकार के बारे में सब कुछ जानना वाकई दिलचस्प लगा। पंकज त्रिपाठी को हाल के दिनों में ही जाना लेकिन जितना जाना उसी से समझ में आता है कि यह बंदा असली कलाकार है।
नीलकमल चौधरी | सतना, मध्य प्रदेश
लोकल नहीं ग्लोबल
नए अंक में ‘बेलसंड लोकल’ (16 मई) उम्दा है। बेलसंड का नाम आवरण पर लिख कर आपने उनके गांव को भी अमर कर दिया। इससे पहले मुझे भी नहीं पता था कि उनके गांव का नाम बेलसंड है। किसी भी कलाकार के गांव या शहर का नाम रोशन हो, तो वह सितारा खुद ब खुद जगमगाता है। राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त अभिनेता के बारे में कई ऐसी बातें पढ़ी, जो अनजानी थीं। उन पर कई लोगों ने अपने अनुभव लिखे हैं। इससे पता चलता है कि वह वाकई सच्चे इंसान हैं। शायद यही वजह है कि उनकी यह सच्चाई उनके अभिनय में भी झलकती है।
शमीम कुरैशी | मुंबई, महाराष्ट्र
बड़ा संदेश
मेगा रोड शो के जरिए आम आदमी पार्टी ने संदेश दे दिया है कि पंजाब के बाद अब बारी गुजरात की है (16 मई)। आम आदमी पार्टी यहां थर्ड पावर के साथ ही खुद को कांग्रेस का विकल्प बनाने की तैयारी में है। पिछले कुछ दिनों से गुजरात में पार्टी की हलचल तेज हो गई है। अपने गुजरात दौरे पर केजरीवाल ने कई नेताओं से मुलाकात भी की। हालांकि निकाय चुनाव के बाद से आम आदमी पार्टी की अखिल भारतीय होने की चर्चा भी होने लगी है। लग रहा है, गुजरात में आप बड़ा धमाका करेगी। पंजाब के बाद अब गुजरात में राजनीतिक परिवर्तन होने जा रहा है।
हरीश चंद्र पांडे | हलद्वानी, उत्तराखंड
ओछी राजनीति
16 मई के अंक में यशवंत सिन्हा ने बुलडोजर न्याय को असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक बताया है। इस पर बहस होनी चाहिए लेकिन इसे समुदाय से जोड़ने की कोशिश ओछी राजनीति को दर्शाती है। हिंसा और आतंकवाद पर जब भी कोई कार्रवाई होती है तभी सबको संविधान और मानवाधिकार याद आते है। कभी दो शब्द पत्थरबाजी, हिंसा, अवैध कब्जे पर भी बोल दें तो बेहतर हो। आज जिस तृणमूल के साथ ये लोग हैं, उनके लोग पश्चिम बंगाल में क्या-क्या करते हैं जरा उस पर भी प्रकाश डालें। इस अंक की आवरण कथा भी अच्छी लगी। पंकज त्रिपाठी अब जाना पहचाना नाम बन गए हैं। उनके अभिनय में सहजता है, जो दर्शकों को जोड़े रखता है।
राकेश गुप्ता | दिल्ली
युवाओं में नया नशा
आजकल आइपीएल का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है (आइपीएल के फ्लॉप स्टार, 16 मई)। आइपीएल युवाओं में बढ़ते नशे की तरह है। जब आइपीएल शुरू हुआ था, तब लगा था कि नए तरह का क्रिकेट शुरू हुआ है, लेकिन अब यह खेल न होकर नशे की तरह हो गया है। भारत का युवा वर्ग अपना सारा काम-धाम छोड़ कर टीवी से चिपका बैठा रहता है। बड़े-बड़े उद्योगपति टीमें खरीद रहे हैं, ऊंची बोलियों में खिलाड़ी बिक रहे हैं और नतीजा क्या कि ये लोग फ्लॉप हो रहे हैं। एक तरह से यह सट्टे का कारोबार है, जो गैरकानूनी होकर भी कानूनी तरीके से चलाया जा रहा है। बड़े नामी सितारे इसका विज्ञापन करते हैं। यानी सभी को किसी न किसी तरह का फायदा है। बस नुकसान में है, तो वह युवा वर्ग, जो इसे देखने में अपना समय नष्ट कर रहा है। आइपीएल में तो क्रिकेट की बारीकियां भी देखने को नहीं मिलतीं। खिलाड़ी अपना खेल कौशल दिखाने नहीं बल्कि सिर्फ रन बनाने उतरता है। यह पैसे का ही खेल है कि कोरोनाकाल में भी इसे रद्द नहीं कर दूसरे देश में कराया गया ताकि बड़े-बड़े सट्टा कारोबारियों का नुकसान न हो। जब सारा देश बंद था, लोगों के पास रोजगार नहीं था, तब भी आइपीएल का होना इतना जरूरी क्यों था? किसी के पास इसका जवाब नहीं है। युवा पीढ़ी पर इसकी गिरफ्त बढ़े उससे पहले इसका निदान जरूरी है। खेल को खेल की तरह ही होना चाहिए, इसे व्यापार नहीं बनना चाहिए।
विकास शर्मा | रुड़की, उत्तराखंड
सहिष्णुता रखनी होगी
‘कामयाबियों की महाभारत’ (2 मई) दिल को छू गई। कुदरत ने जिसे न पुरुष बनाया न पूरे तरीके से स्त्री, सोचिए ऐसे लोगों पर क्या गुजरती होगी। लेकिन संवेदनहीन समाज इन्हें हिजड़ा, छक्का, कहने से परहेज नहीं करता है। पैदा होने से लेकर मरने तक इन्हें हीन भावना से देखा जाता है। जैसे, थर्ड जेंडर होना दुनिया का सबसे बड़ा गुनाह हो। किसी सार्वजनिक स्थान पर जा नहीं सकते, सगाई-शादी में भी शामिल होने नहीं बल्कि नेग लेने ही जा पाते हैं। ये लोग सार्वजनिक समारोह में नहीं जा पाते कि लोग क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे। ये लोग कितने भी कामयाब या होशियार हों, बात केवल थर्ड जेंडर पर आकर खत्म हो जाती है। इसमें किसी की गलती नहीं है क्योंकि हमें शुरुआत से ही ट्रांसजेंडरों के प्रति ऐसी सोच रखना सिखाया गया है। सदियों से हम इन्हें इसी भावना से देखते चले आ रहे हैं। इस आवरण कथा को पढ़ कर इनके बारे में जाना। अब जब भी कभी ये दिखेंगे, मन में इनके प्रति सहिष्णुता रहेगी। आखिर इनका जन्म भी तो हमारे आपके जैसे परिवार में ही हुआ है। बस नियति ने इनके साथ क्रूरता की है। इसलिए हमें अपनी सोच बदलनी होगी। कोशिश करनी होगी कि ये लोग भी स्कूल-कॉलेजों तक पहुंचें और अपनी पढ़ाई पूरी करें।
ऐश्वर्या तिवारी | बनारस, उत्तर प्रदेश
इनकी प्रतिभा भी कम नहीं
‘कामयाबियों की महाभारत’ (2 मई) अच्छा अंक लगा। आज जब ये ट्रांसजेंडर प्रतिभाएं आगे आकर अपने-अपने क्षेत्रों में नाम कमा रही हैं तो हमें यह सोचना चाहिए कि सिर्फ लिंग समस्या की वजह से ऐसी कितनी प्रतिभाओं का गला घोंट दिया गया होगा। लैंगिक असमानता को उनके पूरे व्यक्तित्व पर लाद कर उन्हें समाज के हाशिये पर धकेल देना कहां तक जायज है? इसी मानसिकता को अब ट्रांसजेंडर समुदाय अपनी प्रतिभा के बूते आईना दिखा रहा है। बदलाव की बयार समाज से चलनी ही चाहिए। हम हॉलीवुड की ओर भी देखें तो हमें कुछ भी पता नहीं चलता जबकि 1970 में आई पॉल मौरीसे की फिल्म ट्रैश में एक ट्रांसजेंडर हॉली वूडलॉन ने अभिनय किया था और प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक जॉर्ज ककोर ने उनको बेस्ट एक्ट्रेस का नामांकन दिलवाने के लिए बाकायदा हस्ताक्षर अभियान भी चलाया था। यह छोटी बात नहीं थी लेकिन इस महत्वपूर्ण घटना को भी भुला दिया गया और उनका यह प्रयास भी कोई बड़ा बदलाव न ला सका।
सूर्यन मौर्य, पुणे | महाराष्ट्र
सराहनीय अंक
ट्रांस नायकों को समर्पित 2 मई का आउटलुक अंक संग्रहणीय है। किसी फिल्मकार को कम से कम दो बायोपिक बनाने की सामग्री तो मिल ही सकती है। भले ही वो फिल्म या वेबसीरीज के रूप में सामने आए। किंतु सेलिना जेटली के इस कथन से मैं सहमत नहीं हूं कि ट्रांस लोगों को ही ट्रांस की भूमिका देनी चाहिए। फिर अभिनेता होने का अर्थ क्या रह जाएगा? सकारात्मक बात तो तब होगी जब कोई ट्रांसजेंडर आम चरित्रों को पर्दे पर साकार करे। उन्हें भी अभिनय के मैदान में उतने ही मौके मिलने चाहिए, जितने बाकी लोगों को मिलते हैं। जब ये लोग बाकी पेशे में सफलता के परचम लहरा सकते हैं, तो सिनेमा की दुनिया भी अछूती नहीं रहनी चाहिए। यहां भी वे अपनी प्रतिभा दिखा सकते हैं। ऐसे अंक लोगों का नजरिया बदलने की प्रक्रिया जारी रखते हैं। आखिर वे भी तो यही चाहते हैं कि उनके प्रति लोगों का नजरिया बदले।
राजीव रोहित | मुंबई, महाराष्ट्र
शराफत की उम्मीद नहीं
‘नया आउट, पुराना इन’ (आउटलुक, 2 मई) में पाकिस्तान के बारे में अच्छी रिपोर्ट है। पाकिस्तान में इमरान सरकार का तख्तापलट और शाहबाज शरीफ का प्रधानमंत्री बनना भारत के लिए कोई नई उम्मीद की किरण नहीं दिखाता है। पद संभालने से पहले ही शरीफ ने अपनी शराफत का परिचय देते हुए कश्मीर का राग अलाप कर अपनी नीति और नीयत का संकेत दे दिया है। वे भी वही भाषा बोलेंगे, जो सेना उन्हें सिखाएगी। जगजाहिर है कि पाकिस्तान में दिखावे के लिए प्रजातंत्र है असल में वहां तूती तो सेना की बोलती है। सेना जो निर्धारित करती है, प्रधानमंत्री को वैसे ही चलना होता है। अगर वे थोड़े से भी खिलाफ गए तो उन्हें सत्ता से बाहर निकाल दिया जाता है। वहां की सेना तो चाहती है कि भारत के साथ कभी हालात शांति, सौहार्द और भाईचारे वाले न हों।
हेमा हरि उपाध्याय | उज्जैन, मध्य प्रदेश
आप की जीत के मायने
2 मई के अंक में 'कांग्रेस की जगह लेने का मंसूबा' अच्छी लगी। रिपोर्ट को गहरे समझ कर पाया कि आज की राजनीति का मूल है- शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सामान्य आदमी के सुकून के लिए काम करना है। इसलिए ही आम आदमी पार्टी का दिल्ली मॉडल पंजाब में सफल हुआ है और आगे भी होगा। पंजाब में पार्टी को मिली जीत से साबित तो हुआ है कि आम जनता जाग चुकी है। आप राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प के तौर पर उभर रही है। यह सबके लिए सबक है कि राजनीति को सिर्फ वोट न समझ कर समाजसेवा के रूप में भी लें। मतदाता की भावनाओं का खयाल रखना जरूरी है।
संदीप पांडे | अजमेर, राजस्थान
पुरस्कृत पत्रः अब आई बारी
लंबे समय से बॉलीवुड को असली कहानियों की तलाश थी, जिसके साथ आम आदमी जुड़ सके। लेकिन ऐसे कलाकार ही नहीं थे, जो वास्तविक चरित्रों को विश्वसनीयता से निभा सकें। पंकज त्रिपाठी जैसे कलाकारों ने इसे मुमकिन बनाया है। उनका हर चरित्र अलग होता है और वे अभिनय नहीं करते बल्कि उस चरित्र की परदे पर जीते हैं, जो वो निभा रहे होते हैं। उन्हें दर्शकों को हंसाने के लिए न फिजूल हरकत करने की कोशिश करनी पड़ती है न ही परदे पर नाराजगी जाहिर करने के लिए वे दांत पीसते हैं या किसी खास शैली में संवाद बोलते हैं। यही सहजता उन्हें दर्शकों के करीब लाती है। कालीन भैया ने भले ही उन्हें शोहरत दिलाई हो मगर न्यूटन में वे लाजवाब थे। ऐसे कलाकार को स्थान देना सराहनीय है।
वाणी एस. मोरे | बैतूल, मध्य प्रदेश