हर बात पर मौन
रोज अखबार देखते हैं, खबरें सुनते हैं और मन बेचैन हो जाता है कि आखिर देश में क्या हो रहा है। जनता के हितों से जुड़े किसी मसले पर कहीं कोई सार्थक बहस नहीं। आम आदमी बस निरीह सा देखता रह जाता है और ठगा सा महसूस करता है। (11 जुलाई 2022, ‘अग्निपथ में अंगारे’) उपद्रव आखिर क्यों हुआ और किसने किया, किसी के पास कोई जवाब नहीं।
हरीशचंद्र पाण्डे | हल्द्वानी, उत्तराखंड
अनोखे बेरोजगार
अग्निवीर योजना पर जिस तरह युवा सड़क पर उतरे वह किसी भी कीमत में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। जिन लोगों ने लिखित या शारीरिक परीक्षा पास कर ली और नतीजे के इंतजार में थे उनके लिए यह बड़ा झटका है। फिर भी जिस बड़ी संख्या में लड़के हिंसा करने बाहर निकले उन्हें देख कर लगता नहीं कि वे लोग सिर्फ इस ऐलान का गुस्सा निकालने निकले थे। ‘युवाओं को गुस्सा क्यों आता है’ (11 जुलाई) अच्छी रिपोर्ट है लेकिन युवाओं का तरीका बहुत गलत है।
केशव मौर्य | वाराणासी, उत्तर प्रदेश
खाली बैठना मंजूर!
आउटलुक की 11 जुलाई की आवरण कथा, ‘युवाओं को गुस्सा क्यों आता है’ पढ़ी। अग्निवीर योजना पर जिन लोगों ने बवाल किया उन्हें बिलकुल माफ नहीं किया जाना चाहिए। अब इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर भी कुछ नहीं होता, यदि डिग्री किसी आला दर्जे के संस्थान की न हो। युवाओं को बेकार बैठ कर पबजी खेलना सुहाता है लेकिन चार साल में कुछ पैसा कमा लेना खराब लग रहा है। बेरोजगारी का खूब हल्ला मचता है। लेकिन जब एक विकल्प आया, तो आग लगाई जा रही है। इन्हें किसी सरकारी नौकरी में जगह नहीं मिलना चाहिए।
चारू शर्मा | भोपाल, मध्य प्रदेश
प्रचार-प्रसार हो
11 जुलाई के अंक में, ‘महिला क्रिकेट की किंवदंती’ ऐसा लेख है, जिसे सभी लोगों को पढ़ना चाहिए। महिला खिलाड़ियों को उनका हक सिर्फ इसलिए नहीं मिल पाता कि ज्यादातर दर्शकों की इसमें दिलचस्पी नहीं है। अगर दर्शक वर्ग होगा, तो यहां भी पैसा बरसेगा। मिताली को वह सम्मान क्यों नहीं मिला यह सभी को मिल कर सोचना होगा।
सी.एच. वर्मा | सांगली, महाराष्ट्र
पुरस्कृत पत्र: नौकरी है, नूडल नहीं
11 जुलाई का अंक सारगर्भित लगा। युवाओं को अग्निवीर बनाने के सरकारी प्रयास के बारे में बहुत से लोगों के तर्क-वितर्क हैं। कुछ का कहना है कि सरकार कौन सा जबरन उन्हें घर से ले जा रही है, जिन्हें न जाना हो वे न जाएं, यह नई तरह की योजना है इसलिए युवाओं को एक बार कोशिश करके जरूर देखना चाहिए। ये नौकरी है। कोई नूडल नहीं जो ट्राय किया, पसंद न आया, तो फेंक दिया। यहां बात युवाओं के भविष्य की है। चार साल बाद वे छोटे-मोटे काम के भी नहीं रहेंगे, क्योंकि उन्हें लगेगा कि वे सैनिक हैं इसलिए सम्मानीय हैं। एक तरह से सच भी है। अभी जो लोग भारतीय सेना, जवानों के कसीदे काढ़ते नहीं थकते, क्या वे लोग इन अग्निवीरों को भी वैसा उचित सम्मान देंगे।
नारायण तिवारी | बांदा, उत्तर प्रदेश