गुजरात का भविष्य
आउटलुक के 12 दिसंबर के अंक में ‘भाजपा की अबाध सत्ता क्यों कायम?’ पढ़ा। चुनावी अखाड़े में ‘आप’ ने दस्तक देकर भाजपा और कांग्रेस की नींद उड़ा दी है। गुजरात में चुनावी समीकरण इस बार पिछले चुनावों की तुलना में काफी अलग होने जा रहा है। दरअसल इस बार प्रदेश में मुख्य राजनीतिक भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी की भी एंट्री हो रही है। जिस तरह से दिल्ली के बाद आम आदमी पार्टी ने पंजाब में जबरदस्त जीत दर्ज की है, उसके बाद पार्टी के हौसले काफी बुलंद हैं। माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी गुजरात के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों की मुश्किल बढ़ा सकती है। आम आदमी पार्टी ने गुजरात को लेकर अपनी तैयारियां काफी तेज कर दी हैं। गुजरात भारतीय जनता पार्टी के लिए हमेशा से ही प्रतिष्ठा का सवाल रहा है। यहां खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है। यही वजह है कि पार्टी के तमाम दिग्गज नेता यहां प्रचार में उतरते हैं। खुद प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह ने यहां प्रचार की कमान संभाल रखी है। दोनों ही नेता प्रदेश में भाजपा के 27 साल के एकछत्र राज को कतई हाथ से निकलने नहीं देना चाहते हैं। हालांकि जिस तरह से आम आदमी पार्टी ने यहां सेंधमारी शुरू की है उसको लेकर भारतीय जनता पार्टी इस बार थोड़ा ज्यादा सक्रिय और सजग नजर आ रही है। बहरहाल देखने वाली बात है कि क्या आम आदमी पार्टी भाजपा के तकरीबन तीन दशक के किले को भेद पाती है या सिर्फ वोट कटवा बनकर रह जाती है।
युगल किशोर राही | छपरा, बिहार
बदलाव आसान नहीं
12 दिसंबर को आउटलुक की आवरण कथा, ‘नतीजे नहीं पड़ाव को देखिए’ बहुत कुछ कहती है। गुजरात में सरकार बदलेगी या नहीं यह तो वक्त बताएगा लेकिन यह मानना होगा कि 27 साल में भारतीय जनता पार्टी ने यहां बहुत काम किया है। जो लोग कह रहे हैं कि 27 साल हो गए सरकार बदलनी चाहिए वे लोग स्थायित्व का महत्व नहीं जानते हैं। स्थायित्व की वजह से ही यहां बहुत सारे काम हो सके हैं। विकास हुआ या नहीं हुआ इसे लेकर मतभेद हो सकते हैं लेकिन इतना तो तय है कि गुजरात समृद्ध राज्य में आता है। जो लोग बदलाव के बारे में सोच रहे हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि गुजराती लोग इतनी आसानी से कुछ नहीं बदलते। चुनाव में वही टिकता है, जो गुजरातियों के दिल के करीब होता है।
साजन दवे | मुंबई, महाराष्ट्र
नए खिलाड़ी
इस बार की आवरण कथा (‘नतीजे नहीं पड़ाव को देखिए’, 12 दिसंबर) में गुजरात का चुनावी परिदृश्य खूबसूरती से उकेरा गया है। गुजरात में इस बार सरकार का बदलना नई घटना होगी। गुजरात चुनाव भाजपा के लिए इतना आसान भी नहीं होगा। पिछले 27 साल से जनता वही चेहरे देख कर ऊब गई है। वहीं आम आदमी पार्टी ताजा हवा के झोंके के रूप में राज्य में आई है। आम आदमी पार्टी के पास भाजपा से बेहतर नजरिया है। पंजाब में चुनाव जीतकर आप यह साबित भी कर चुकी है। यह कहना गलत होगा कि गुजरात में चुनावी हवा नहीं है। आम आदमी पार्टी का माहौल यहां बन गया है। भले ही गुजरात में यह नया खिलाड़ी है लेकिन दो राज्यों में इस पार्टी ने बता दिया है कि वह कच्चा खिलाड़ी नहीं है। इसका कारण सिर्फ मुफ्त बिजली या महिलाओं को पैसे देना नहीं है। आम आदमी पार्टी वास्तव में साधारण लोगों के बारे में सोचती है। वह सिर्फ बात नहीं करती बल्कि उनके काम में दिखता है कि उन्हें जन की चिंता है। इसलिए यदि इस बार नतीजे भाजपा के पक्ष में न आएं, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
हेतल शाह | अहमदाबाद, गुजरात
कांग्रेस की मजबूती
12 दिसंबर की आवरण कथा, ‘नतीजे नहीं पड़ाव को देखिए’ कांग्रेस की स्थिति की बहुत अच्छी समीक्षा करती है। दरअसल कांग्रेस की दिक्कत खुद कांग्रेस को नहीं मालूम है। पिछले कुछ साल में कांग्रेस चुनाव जीतने के लिए नहीं, बल्कि खानापूर्ति करने को उतरती है। फिर भी यह तो मानना ही होगा कि उसका असर कम नहीं हुआ है और भाजपा में उसका खौफ कायम है। वरना क्या वजह थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी चुनावी रैली में मेधा पाटकर के बहाने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर निशाना साधते हैं। प्रदेश भाजपा के महामंत्री प्रदीपसिंह वाघेला भी आम आदमी पार्टी को छोड़ कर कांग्रेस को ही मुख्य प्रतिद्वंद्वी बताते हैं। इसका मतलब है कि कांग्रेस की पकड़ तो है और भाजपा कांग्रेस को हल्के में बिलकुल नहीं ले रही। मुख्यधारा के टीवी चैनल भले ही इस लड़ाई को आप बनाम भाजपा में तब्दील कर दें लेकिन कांग्रेस का वजूद है और रहेगा। अरविंद केजरीवाल दबाव बनाने के लिए कितना भी दावा कर लें कि भाजपा का वोट प्रतिशत इस बार 38 प्रतिशत से कम हो जाएगा लेकिन केजरीवाल भी जानते हैं कि उनके लिए गुजरात की राह आसान नहीं होगी। कांग्रेस के वे ही पर्यवेक्षक या कार्यकर्ता यह बात कह रहे हैं कि पार्टी चुनाव लड़ने के मूड में नहीं दिख जो भाजपा को फायदा पहुंचाना चाहते हैं।
आशीष खंडेलवाल | झाबुआ, मध्य प्रदेश
ब्रांड मोदी
आउटलुक के 12 दिसंबर के अंक में ‘मोदी तिलिस्म’ की जितनी तारीफ की जाए कम है। कम शब्दों में मोदी का इतना अच्छा विश्लेषण नहीं हो सकता। मोदी आखिर मोदी कैसे बने, इस लेख को पढ़कर समझा जा सकता है। गुजरात को मोदी की राजनीति की पाठशाला कहा जा सकता है। यहां रहकर उन्होंने खूब प्रयोग किए और चुनावी सियासत सीखी। यह सही है कि तकरीबन 21 साल से गुजरात में रचे-बसे और उसे ही अपनी मुख्य ताकत बनाने वाले नरेंद्र मोदी बार-बार चुनावी राजनीति में अपनी महारत दिखा चुके हैं। 2001 में पहली दफा वे गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। उसी की सीढ़ी चढ़ कर वे 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने खुद को एक ब्रांड के रूप में इस तरह स्थापित कर लिया है। चुनाव भले ही किसी भी राज्य में हो, चेहरा वही रहते हैं। और फिर यदि चुनाव उनके गृहराज्य गुजरात में हो, तो उनकी जिम्मेदारी दोहरी हो जाती है। वे हर मुद्दे को अपने आसपास ही रखते हैं और हरदम उन्हीं मुद्दों से खेलते हैं। वे वाकई चुनावी राजनीति की खास शख्सियत बन गए हैं। भारत में तो हमेशा से लोग काम को नहीं बल्कि व्यक्ति के चेहरे पर वोट करने जाते हैं। मोदी का विरोध जितना होता है वे उतना ही निखरते जाते हैं। मोदी गुजरात की गद्दी संभालने के बाद से ही देश की गद्दी पर नजर रखे हुए थे, जो कि उन्हें मिल भी गई।
सागर जैन | छतरपुर, मध्य प्रदेश
स्वतंत्र नहीं गुलाम
श्रद्धा की हत्या विश्वास की हत्या है। आउटलुक के 12 दिसंबर के अंक में ‘...और वह पिशाच बन गया’ और ‘धर्म नहीं, स्त्री-चश्मे से देखें’ सारगर्भित लगा। लेखिका की यह उक्ति कि प्रेम संबंध अपनी जगह, पर सभी अरेंज मैरिज को आप सही नहीं ठहरा सकते, कुछ हद तक सही कही जा सकती है। पहली बात तो यह है कि लिव इन रिलेशन का चलन हमारी संस्कृति का हिस्सा ही नहीं है। यह महज आंखों पर पट्टी बांध कर खुल्लम खुल्ला दैहिक प्रेम करने की मौन स्वीकृति जैसा है। तथाकथित आधुनिकीकरण की होड़ में आए दिन अभिजात परिवारों के शिक्षित बच्चे इस रिश्ते को ही अपना सब कुछ समझने लगते हैं। वे जान ही नहीं पाते कि कब वे रिश्ते की स्वतंत्रता के नाम पर गुलाम हो गए हैं। एक पूरी पीढ़ी इस नामुराद बीमारी का शिकार हो रही है। परंपरागत जीवन मूल्यों और मर्यादाओं को ताक पर रखकर अनधिकृत तौर तरीकों से युवक-युवतियों में दिन प्रतिदिन पैर पसारती इस कुप्रथा और असंगति (कुसंगति) पर तुरंत कानूनी नकेल कसना समय की मांग है ताकि अन्य ‘श्रद्धाओं’ को ऐसी श्रद्धांजलि न देनी पड़े।
पूजन गौतम | फरीदाबाद, हरियाणा
पैसे से प्रतिष्ठा
पैसे से प्रतिष्ठा खरीदना कोई नई बात नहीं है। लेकिन अब आभासी दुनिया में भी मस्क की कृपा से ऐसा होने लगेगा। 28 नवंबर के अंक में, ‘ब्लू टिक की महिमा’ लेख पढ़ कर यही कहा जा सकता है। ट्विटर पर ब्लू टिक का क्या महत्व है यह छुपा हुआ नहीं है। लेकिन अब मस्क साहब इसके लिए पैसे वसूलने जा रहे हैं। इस दौर में लोकप्रियता ही सब कुछ है। ऐसे में हर लोकप्रिय व्यक्ति चाहता है कि वह ब्लू टिक के साथ दिखे ताकि उसके विचार की विश्वसनीयता हो। हालांकि बहुत से नामी लोगों ने इसका बहिष्कार करने की घोषणा की है लेकिन इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि कई हैं, जो लोगों के साथ आमने-सामने जुड़ने से ज्यादा आभासी रूप से जुड़ना पसंद करते हैं। जो भी नामी लोग ट्विटर छोड़ेंगे, उनसे ज्यादा ऐसे लोग पैसा देकर ब्लू टिक हासिल कर लेंगे। समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं, पैसा चुका कर इसे हासिल जरूर करेंगे।
डॉ. पूनम पांडे | अजमेर, राजस्थान
भ्रम में नहीं जनता
आउटलुक के 28 नवंबर के अंक में, ‘पदयात्रा राहुल या राजनीति की’ लेख अच्छा लगा। कांग्रेस पार्टी के युवा नेता राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से आम जनता के मन को छुआ है। वे जी जान से जन जागरण के काम में जुट गए हैं। भुखमरी, बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा और कुशासन इन सभी मुद्दों को सरकार भलीभांति समझती है और इसलिए सरकार नहीं चाहती कि राहुल पदयात्रा करें। इस पदयात्रा से ही पता चलता है कि कांग्रेस के पास जनाधार की कोई कमी नहीं है और उसमें लोगों की दिलचस्पी भी बहुत नहीं घटी है। यकीनन भाजपा इस यात्रा से घबराई हुई है। जाहिर है, भाजपा जनता को भ्रमित कर रही है कि कांग्रेस पार्टी केवल अपने परिवार की साख बचाने के लिए लोगों को भ्रमित कर रही है। पार्टी कांग्रेस के नव निर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बारे में भी भ्रम फैला रही है कि वे रिमोट से चलने वाले अध्यक्ष हैं। लेकिन जनता सब समझती है। आने वाले चुनाव में यह देखने को मिल सकता है।
डॉ. जसवंतसिंह जनमेजय | नई दिल्ली
पुरस्कृत पत्र : चुनावी मौसम
यह कहा जा सकता है कि भारत में कुछ नहीं हो रहा होता है, तब चुनाव हो रहे होते हैं, बल्कि यह कहना भी गलत नहीं होगा कि भारत हमेशा चुनावी मोड में रहता है । और यदि चुनाव गुजरात में हों, तो कहने ही क्या। लगता है जैसे, हर आम और खास (मीडिया) को मनचाहा काम मिल गया है। आउटलुक की आवरण कथा (‘नतीजे नहीं पड़ाव को देखिए’, 12 दिसंबर) इस मायने में अलग और खास है। गुजरात जाकर जमीनी रिपोर्ट लाने की बात ही अलग होती है। इस रिपोर्ट में बहुत संतुलित तरीके से हर पार्टी की ताकत जिसे आजकल हैसियत कहा जाने लगा है का लेखा जोखा है। पहले होता था कि चुनावी हार जीत सामान्य थी। लेकिन अब हारना प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है और इसी सोच ने राजनीति को पूरी तरह बदल कर रख दिया है।
सुहानी बलदेव सिंह | जालंधर, पंजाब