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27 नवंबर 2023 · NOV 27 , 2023

संपादक के नाम पत्र

भारत भर से आई पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

कानून-व्यवस्थाकीचुनौती

13 नवंबर का अंक बहुत खास रहा। आउटलुक में प्रकाशित आवरण कथा नौ साल मनोहर या...एक राजनीतिक समीक्षा है, जिसमें हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और उनकी सरकार की उपलब्धियों और विफलताओं पर विस्तार से बात की गई है। 2024 का साल अगर किसी राज्य और मुख्यमंत्री के लिए सबसे ज्यादा महत्व रखता है, तो वह हरियाणा ही है। क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव के कुछ समय बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। राजनीतिक घटनाक्रम बता रहे हैं कि इस बार गुदड़ी के लाल खट्टर सरकार को विपक्षी दल और उनके कार्यक्रम विपक्ष आपके समक्ष से सीधी टक्कर मिल रही है। यही कारण है कि खट्टर सरकार ने अभी से ही अपनी चुनावी तैयारी शुरू कर दी है। खट्टर के सामने सबसे बड़ी समस्या और मुद्दा हरियाणा में कानून-व्यवस्था की रही है। नूंह सांप्रदायिक दंगे इसके उदाहरण हैं। इन चुनौतियों से निपट कर ही वे फिर से मुख्यमंत्री बनने का सपना देख सकते हैं। इसी अंक में अब तो बस नाम की टक्कर बहुत अच्छा लगा। वाकई अब मुकाबले पहले जैसे नहीं रहे। विश्व कप में भारत और पाकिस्तान के मुकाबले पहले जितने टक्कर के होते थे, उतने अब दिखाई नहीं देते। अब इन दोनों देशों के बीच विश्व कप के मैच फीके लगते हैं। इसका एक बड़ा कारण यह है कि पाकिस्तान की टीम भारत की तुलना में काफी कमजोर हुई है। पाकिस्तान के खिलाड़ियों में पहले जैसा खेल और मिजाज दिखाई नहीं देता। विक्रांत मैसी की सहजता ने मन मोह लिया। उनका इंटरव्यू काफी सहज और दिल छूने वाला लगा। उनके अभिनय से दर्शक कहीं न कहीं खुद को जुड़ा हुआ पाता है।

विजयकिशोरतिवारी | नईदिल्ली

 

फिरखिलेगाकमल

13 नवंबर के अंक में नौ साल मनोहर या... हरियाणा की राजनीति का सटीक आकलन करती है। मनोहर लाल का भारतीय जनता पार्टी से दूसरी बार हरियाणा का मुख्यमंत्री बनना आश्चर्यजनक था क्योंकि जाटों की संख्या प्रबल होने के बाद भी मनोहर लाल ने राज्य में कमल का फूल खिला दिया था। लोकसभा के बाद इस राज्य में चुनाव होने हैं और पूरी उम्मीद है कि वे फिर सरकार बनाएंगे। आवरण कथा में उनके 9 साल के कार्यकाल का लेखा-जोखा इसकी गवाह है। मतदाताओं से वे लगातार संवाद करते हैं और जनता के बीच उनकी अच्छी पकड़ है। उन्होंने अब तक साफ-सुथरी सरकार चलाई है।

जावेदशेख | जींद, हरियाणा

 

नए-नवेलेगठबंधन

13 नवंबर के अंक में, टिकाऊ एकता मौजूदा दौर की राजनीति का समग्र अवलोकन है। भारतीय राजनीति अभी भी वहीं ठहरी हुई हैं, जहां चुनाव से पहले ही जागने का रिवाज है। लेकिन अब मतदाता जागरूक है और वह जानता है कि चुनाव से पहले के मुद्दे और हर वक्त जनता के साथ बने रहने में क्या फर्क है। अब सिर्फ वैचारिक प्रतिबद्धता से चुनाव का रुख नहीं मोड़ा जा सकता। अब ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है, जो सिर्फ चुनाव के बीच बने गठबंधन को बेहतर पहचान लेते हैं। किसी जमाने में राजनीति में वैचारिक होने से काम चल जाता था। लेकिन अब मौजूदा सरकार पर जब नए-नए बने गठबंधन हमला करते हैं, तो जनता भी जानती है कि यह कुछ सत्ता लोलुप लोगों का समूह मात्र है। जो भी देश की भलाई चाहता है, वह जाति के फेर में नहीं पड़ता। जिन्हें राष्ट्रवाद शब्द से अपच हो जाती है, वे चाहते हैं कि भारत को प्यार करने वाले लोग उन्हें वोट करें। भाजपा के खिलाफ बने नए-नवेले गठबंधन पर यह लेख बहुत अच्छा आकलन करता है। इस देश को अब न तो जातिवाद की जरूरत है, न वंशवाद की।

सोनालीशर्मा | लखनऊ, उत्तरप्रदेश

 

दिलचस्पमुकाबला

आउटलुक के 13 नवंबर के अंक में पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की तैयारियों का लेखा-जोखा पढ़ कर वहां की स्थिति का पता चला। पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा के बाद से ही वहां की फिजा बदल चुकी है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होने जा रहे हैं। तेलंगाना और मिजोरम में तो हर मीडिया हाउस की दिलचस्पी कम है। लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के नतीजों पर सबकी नजरें रहेंगी। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच सीधे मुकाबले में देखते हैं कि छत्तीसगढ़ में धान की कटाई के समय किसान किसे याद रखते हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किसानों का कर्ज माफ करने की घोषणा कर कुछ हद तक बाजी अपने हाथ में कर ली है। इससे मुकाबला दिलचस्प हो गया है और भाजपा भी जीत के लिए बहुत जोर लगा रही है। सवाल उठता है कि केंद्र सरकार कब तक छत्तीसगढ़ सरकार, राजस्थान सरकार पर आरोप लगा कर अपने लिए वोट बटोरेगी। धान की खरीदारी में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी भाजपा बिना वजह वितंडा खड़ा कर रही है, जबकि भूपेश सरकार ईमानदारी से किसानों को उनका हक देना चाहते हैं। बघेल भी भाजपा पर हमलावर हैं। छत्तीसगढ़ में धन की कमी नहीं है। लेकिन वहां गरीबी भी उतनी ही है। अभी भी कई इलाकों में नक्सलियों का बोलबाला है, जिससे वहां विकास नहीं हो पाता। पिछले 15 साल में सत्ता में रहने के बाद बाहर हो गई भाजपा किसी भी तरह सत्ता में वापसी चाहती है।

प्रगतिगुप्ता | बोकारो, झारखंड

 

ईमानदारमैसी

13 नवंबर के अंक में विक्रांत मैसी का इंटरव्यू बहुत ही सराहनीय है। उनका हर जवाब दिल से निकला हुआ है। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा है। कुछ ही चुनिंदा उस मुकाम तक पहुंचते हैं। मैसी ने ऐसे एक लड़के की भूमिका में जान डाल दी है। वे इस फिल्म में बहुत ईमानदार लगे हैं। जैसी भूमिका उन्होंने निभाई है, वैसी ही बातचीत भी उन्होंने की है। एक कलाकार को ऐसा ही विनम्र और साफ होना चाहिए। उनकी बातचीत में कहीं कोई लाग-लपेट नही हैं। उनका यह कहना भी एकदम सही है कि अब लोग मसाला फिल्मों से ऊब रहे हैं। अब सच्ची और अच्छी कहानियों का दौर है। इन कहानियों के पात्रों को निभाने के लिए विक्रांत मैसी जैसे कलाकार चाहिए।

कांताप्रसादवागीश | बनारस, उत्तरप्रदेश

 

आरक्षणपरफिरबात

आउटलुक के 30 अक्टूबर के अंक में, मंडल-कमंडल का नया दंगल आरक्षण की बहस को फिर सामने लाता है। पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के समय मंडल आयोग की सिफारिश को लागू कर पिछड़े वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण पर मोहर लगी थी। उसके बाद ही विभिन्न राज्यों में पिछड़े वर्ग के मुख्यमंत्री देखने को मिले। उत्तर प्रदेश में स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव, बिहार में लालू प्रसाद और राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर स्वर्गीय शरद यादव की राजनीति लंबे समय तक चली। समय-समय पर विभिन्न राजनीतिक दलों ने जाति जनगणना की मांग उठाई लेकिन ऐसा हो न सका। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाति जनगणना करके जता दिया कि वे दम रखते हैं। उनके इस काम से आरक्षण पर नए सिरे से बात हो सकेगी और पिछड़ी जातियों को उनका हक मिल सकेगा। केंद्र सरकार मना ही करती रह गई और नीतीश इस काम में अव्वल आ गए। केंद्र सरकार अभी तक जाति जनगणना के लिए तैयार नहीं है, बल्कि वह जनगणना भी नहीं करा पाई है। भले ही भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर आंबेडकर, राम मनोहर लोहिया जाति तोड़ो के हिमायती थे लेकिन यह कड़वी सच्चाई है कि भारत में जाति से ऊपर कुछ नहीं है। और बात राजनीति की हो, तो जाति बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।

मीनाधानिया | नईदिल्ली

 

राजनैतिकटोटका

30 अक्टूबर के अंक में, मंडल-कमंडल का नया दंगल नए आवरण में पुरानी पुस्तक है। राजनीतिक तिकड़मों से बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण बने रहे नीतीश कुमार की केंद्रीय राजनीति में छलांग लगाने की मंशा के लिए जाति जनगणना मात्र शिगूफा है। भाजपा को सांप्रदायिक दल कहने वालों को यह सोचना चाहिए कि फिर वे क्या हैं। उन्होंने भाजपा के मुकाबले में सिर्फ नया शिगूफा छोड़ा है। इससे कुछ होना जाना नहीं है। आजादी के बाद से सर्वहारा या तथाकथित पिछड़ों, अति पिछड़ों के मसीहा अब तक कहां थे? भारत में अब आर्थिक असमानता का कारण जातिगत भेदभाव नहीं, काला बाजारी और भ्रष्टाचार है। आर्थिक असमानता पाटने के लिए सिरों की गणना नहीं, उनकी दरिद्रता के कारण तलाशना होंगे। भाजपा को अपने नारे सबका साथ सबका विकास से  पिछड़ों को मिला चवालीस प्रतिशत समर्थन, स्वयं मोदी और कई मुख्यमंत्री, सांसद और विधायकों का पिछड़ा होना इस बात का प्रमाण है कि भाजपा की राजनीति में जातिगत भेदभाव नहीं है।

अरविन्दपुरोहित | रतलाम, मध्यप्रदेश

 

पुरस्कृतपत्रःअधूरीएकता

13 नवंबर के अंक में टिकाऊ एकता पढ़ कर यही लगा कि भारत में अभी विपक्षी एकता को लंबा रास्ता तय करना है। इंडिया गठबंधन पहले अपने बीच के मतभेद भुला दे, किसी एक को नेता मान ले फिर देश की राजनीति में उतरे तो बेहतर होगा। चुनाव करीब आने पर नेता एकजुटता दिखते हैं, जबकि वास्तविकता ऐसी होती नहीं है। लोकसभा चुनाव सिर पर होने के बाद भी अभी यह तय नहीं है कि विपक्ष का नेता कौन होगा या कौन प्रधानमंत्री पद पर बैठेगा। ऐसे में जनता भ्रमित होती है और वह फिर सत्तारूढ़ दल को ही दोबारा चुन लेती है।  इसमें कोई शक नहीं कि अभी के प्रधानमंत्री लोकप्रिय हैं। लेकिन महंगाई, बेरोजगारी से लोग पस्त हैं।

देवयानीभारद्वाज | हिसार, हरियाणा

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