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04 मार्च 2024 · MAR 04 , 2024

संपादक के नाम पत्र

पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

पंछी नहीं, स्वार्थी मन

आउटलुक की 19 फरवरी की आवरण कथा, ‘नीतीश का पंछी मन’ हर समय पाला बदलने वाले पलटू राम चाचा का तरीका है। जिन्हें राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है, वे भी अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पहचान गए हैं। नीतीश का नाम वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल होना चाहिए। वे शायद ऐसे पहले मुख्यमंत्री होंगे, जो सुबह त्यागपत्र देते हैं और दोपहर को फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ले लेते हैं। ऐसा उन्होंने एक-दो बार नहीं बल्कि पूरे नौ बार किया है। लोकतंत्र का इससे ज्यादा खिलवाड़ और क्या हो सकता है। उन्हें जहां पद मिलता है, वे उसी तरफ कूद जाते हैं। अब जब 'इंडिया' गठबंधन में भी उनकी बात नहीं बनी, तो उन्होंने फिर पलटी खा ली। लोकसभा चुनाव आते ही उन्होंने गिरगिट की तरह रंग बदल लिया। तेजस्वी यादव खुद कह चुके हैं कि चाचा पलटू राम कभी भी पलट सकते हैं। फिर भी सत्ता की मजबूरी देखिए कि उन्हीं पलटूराम चाचा के साथ उन्होंने सरकार बनाई। उनके पाला बदलने से लगता है कि वे बिहार के मुख्यमंत्री की सीट पर प्रलय आने तक बने रहेंगे! ऐसे खेल में जनता के वोट की कोई अहमियत ही नहीं रह जाती है। इसी अंक में ‘हाशिये के लोगों के नायक’ लेख भी अच्छा लगा। केंद्र सरकार ने भले ही उन्हें राजनीतिक कारणों से भारत रत्न दिया हो लेकिन यह अच्छा फैसला है। सादा जीवन जीने वाले नेताओं को इससे बल मिलेगा और नई पीढ़ी उनके कदमों पर चलने के बारे में सोचेगी। विपक्ष चाहे जो भी आरोप लगाए लेकिन केंद्र सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर पिछड़े वर्गों के उत्थान और विकास के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति का सम्मान किया है।

मीना धानिया | दिल्ली

 

कुर्सी की ताकत

आउटलुक की 19 फरवरी की आवरण कथा, ‘नीतीश का पंछी मन’ पढ़ कर आनंद आ गया। बहुत ही अच्छे ढंग से नीतीश की फितरत इस लेख में दिखाई पड़ती है। इस लेख में अंदरूनी घटनाओं का भी बहुत अच्छा जिक्र है। नीतीश फिर मुख्यमंत्री हैं, बस अंतर इतना है कि इस बार वे लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल और राहुल गांधी के कांग्रेस पार्टी के सहयोग के बिना मुख्यमंत्री हैं। दोनों से नाता तोड़ उन्होंने फिर भाजपा से दोस्ती कर ली है। संबंधों को फिर से बहाल करने की उनकी कुशलता को मैनेजमेंट पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाना चाहिए। इतनी कुशलता से पाला बदलने का हुनर ऐसा न हो कि उनके साथ ही चला जाए! लेकिन इसमें अकेले नीतीश को दोष नहीं दिया जा सकता। दोष तो भाजपा का भी बराबर का है, जो बार-बार उनसे ‘कुट्टी’ कर लेने के बाद फिर दोस्ताना हाथ बढ़ा देती है। लेख में सही लिखा है कि सत्ता का यह अनूठा हस्तांतरण बिना हींग, फिटकरी के हो गया। इतनी सहजता से शायद ही कहीं सत्ता बदलती हो। सबसे संकट में तो वे अधिकारी रहते होंगे, जो उनके साथ काम करते हैं। सुबह जो अधिकारी तेजस्वी या लालू की सुन रहे होते होंगे, शाम आते-आते वही फिर उनके फोन उठाना बंद कर देते होंगे। नीतीश को भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन उनके इस व्यवहार की उपेक्षा कर रहा है या हंसी उड़ा रहा है। उन्हें तो बस मुख्यमंत्री बने रहना है।

चांद शेख | अलीगढ़, उत्तर प्रदेश

 

राही बदल गए

आउटलुक की 19 फरवरी की आवरण कथा, ‘नीतीश का पंछी मन’ पढ़ कर पुराना गाना याद आ गया, ‘मंजिल वही है प्यार की, राही बदल गए।’ यहां प्यार की जगह सत्ता किया जा सकता है। वह वही रहते हैं, बस उनके सहयोगी बदल जाते हैं। विपक्ष में बैठ कर भाजपा के जो सदस्य सदन में उन पर हमलावर थे अब उन्हें ही नीतीश की तारीफ करना पड़ेगी। वहां के स्थानीय नेताओं को भी लगता होगा कि पहले पता कर लें कि नीतीश उनकी पार्टी में हैं या चले गए। तमाम राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बावजूद वे मुख्यमंत्री बने हुए हैं, तो उनमें कुछ तो बात होगी।

रंजन सुशांत | पटना, बिहार

 

अपनी जमीन तलाशें

आउटलुक के 19 फरवरी अंक में, ‘कांग्रेस का संकट’ पढ़ा। इंडिया गठबंधन के कई घटक दल कांग्रेस की कीमत पर ही फले-फूले हैं। आज भी वे अपने-अपने राज्यों में वोटों का बंटवारा रोकने के लिए गठबंधन कर कांग्रेस की बाकी बची जमीन हथियाना चाहते हैं। कांग्रेस की दिक्कत यह है कि जहां, वह कमजोर हैं वहां सीट शेयरिंग में ज्यादा सीटें ले कर खुद को मजबूत करने का सपना देख रही है। आप पक्ष में हो या विपक्ष में, गठबंधन के नाम पर विचारधारा से समझौता कर आप मजबूत नहीं हो सकते। लोकसभा में दो सीटों से पूर्ण बहुमत तक भाजपा किसी गठबंधन के दम पर नहीं बल्कि अपनी जमीन मजबूत कर ही पहुंची है। यही कांग्रेस को करना होगा। गठबंधन के शॉर्टकट के बजाय अपनी खोई जमीन हासिल करने के लिए संघर्ष करते हुए अकेले चुनाव लड़ना बेहतर विकल्प होगा।

बृजेश माथुर | गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

 

आखिरी प्रहार

‘माओवादियों पर कड़ी दबिश’, 19 फरवरी के अंक का अच्छा लेख है। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए लगातार खतरा बनने वाले नक्सली एक तरह से मौजूदा समय में वेंटिलेटर पर हैं। सरकार की सख्ती से उनका नेटवर्क कमजोर पड़ा है। नक्सली क्षेत्रों में उन पर बस आखिरी प्रहार करने की देर है। नक्सलियों की सबसे बड़ी ताकत उनका स्थानीय नेटवर्क है, जो जमीनी स्तर पर बिखरने और उखड़ने लगा है। मौजूदा समय में छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय नक्सली समस्या को लेकर बहुत गंभीर हैं। आने वाले समय में अनुमान है कि सरकार नक्सलियों के प्रति कड़ी कार्रवाई करेगी और नक्सलियों पर आखिरी प्रहार करते हुए नक्सलियों को कड़ा संदेश देगी। छत्तीसगढ़ के कई नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलियों का प्रभाव काफी कम हुआ है। नई सरकार की सख्ती देखते हुए लगता है कि आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ से नक्सल समस्या पर कुछ अंकुश लगेगा।

विजय किशोर तिवारी | नई दिल्ली

 

जरूरी बात पर चर्चा

राम मंदिर अब ऐतिहासिक घटनाक्रम के रूप में दर्ज हो गया है। 5 फरवरी की आवरण कथा, ‘राम राजनीति लीला’ में मस्जिद विवाद की ऐतिहासिक पड़ताल से पता चलता है कि इस‌ विवाद को पहले औपनिवेशिक शासन के समय हवा मिली, फिर जब देश आजाद हो गया, तब पहली बार राम के नाम पर वोट की राजनीति कांग्रेस ने शुरू की। गोविंद वल्लभ पंत जैसे हिंदूवादी कांग्रेस के नेताओं ने इसे प्रोत्साहित किया और आगे चलकर राजीव गांधी ने राम के नाम को राजनैतिक रूप दिया। इसने विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी को इस आंदोलन को आगे बढ़ाने में अप्रत्यक्ष रूप से मदद की। इस तरह बाबरी मस्जिद के विध्वंस में कहीं न कहीं कांग्रेस भी दोषी है। मुख्य मुद्दा यह है कि क्या अब भी हम इस बहस में पड़े रहेंगे या फिर कभी  देश के वास्तविक मुद्दों पर भी चर्चा करेंगे। बेहतर हो मंदिर-मस्जिद की बहस से बाहर निकल कर जरूरी बात की जाए।

गोविंद निषाद | प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

 

बराबरी का रामराज्य

आउटलुक के 5 फरवरी अंक में आवरण कथा, ‘राम राजनीति लीला’ में ठीक ही लिखा गया है कि राम राज्य तो वही है, जहां सब खुशहाल हों, सब एक समान हों और गैर-बराबरी मिटे। देश में भव्य राम मंदिर बनने के बाद अब राष्ट्र को विकसित करने के लिए लोगों को अपने जीवन में राम के आदर्शों को उतारना होगा। राम मंदिर ने पूरे भारत का माहौल बदल दिया है। अगर कहें कि पूरा देश राममय हो गया है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण एक घायल सभ्यता के खुद को ठीक करने का काम है। प्राण प्रतिष्ठा समारोह वह क्षण था, जब लंबे समय से दबी हुई राष्ट्र की चेतना को अभिव्यक्ति मिली। भारतीय पुनर्जागरण और हिंदू पुनरुत्थान एक ही है। ऐसे देश में जहां लगभग 80 प्रतिशत आबादी हिंदू है और बाकी अधिकांश पूर्व हिंदू हैं, सभ्यता के पुनरुत्थान का सांस्कृतिक मुहावरा हिंदू होना ही है। भारतीय मुसलमानों के लिए भौतिक और धार्मिक रूप से इससे बेहतर समय कभी नहीं रहा। उन्हें कभी भी बेहतर भोजन, शिक्षा और रोजगार नहीं मिला। अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, भारत आगे बढ़ रहा है और मुसलमानों को भी उतना ही फायदा हो रहा है जितना हिंदुओं को। सबसे बढ़कर, वे अब से अधिक सुरक्षित कभी नहीं रहे। दंगा-दर-दंगा धर्मनिरपेक्ष राज बहुत लंबा चल चुका है। मुसलमानों में कट्टरपंथ कम हो गया है, हिंसक प्रवृत्ति पर काबू पा लिया गया है, अलगाववादी नेरैटिव में अब उतना दम नहीं रहा और वोट बैंक की राजनीति ध्वस्त हो गई है। अब ध्यान शिक्षा और रोजगार पर केंद्रित हो गया है। राजनीतिक रूप से लगातार मजबूत होते लोकतंत्र में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के साथ मुसलमान किसी भी मुस्लिम-बहुल देश की तुलना में अधिक अधिकार प्राप्त और सशक्त हैं। देश की एकता और अखंडता के लिए जरूरी है कि सब मिलजुल कर रहें। हर कौम खुद को जुड़ा महसूस करेगी, तो इसका प्रभाव देश पर पड़ेगा। एकता हर परेशानी का समाधान है। यह सभी को समान रूप से समझना है।

युगल किशोर राही | छपरा, बिहार

 

पुरस्कृत पत्र: स्वार्थी नेता

आउटलुक की आवरण कथा, ‘नीतीश का पंछी मन’ (19 फरवरी 2024) पढ़ कर लगा कि यह समय का एक निरर्थक टुकड़ा है, जिस पर समय खराब नहीं करना चाहिए। अब राजनीति स्वार्थ से इतनी भर गई है कि इस पर बात करना बंद कर देना चाहिए। ये नेता सिर्फ अपने लिए जीते हैं, अपने लिए कमाते हैं और इनका उद्देश्य येन केन प्रकारेण सत्ता में बने रहना है। जब यह समझ आ ही गया है, तो इन पर बात ही क्यों की जाए। आउटलुक तो हमेशा से ही ऐसे लोगों के बारे में लिखता रहा है, जिनकी समाज में कोई पहचान नहीं और जो बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। ऐसे लोगों को ही जनता के बीच लाना चाहिए। नेता न सरकार ठीक से चलाते हैं, न जनता का जीवन सुलभ बनाते हैं। बेहतर हो मीडिया इन नेताओं को छापना बंद करे।

साक्षी बजाज | जूनागढ़, गुजरात

 

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