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19 अगस्त 2024 · AUG 19 , 2024

पत्र संपादक के नाम

पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

विश्व विजेता

विश्व कप विजेताओं पर 5 अगस्त, 2024 का अंक बहुत भाया। एकदम सही समय पर ‘रो-को के बाद कौन’ आवरण कथा आई। इस जीत ने हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया। पिछले 11 साल से भारत ऐसी जीत चाहता था। भारत कई बार जीत के करीब पहुंचा लेकिन चैंपियन नहीं बन पाया। लेकिन इस बार टीम इंडिया ने कड़ी मेहनत और अनुशासन से देशवासियों को जीत का तोहफा दे ही दिया। दक्षिण अफ्रीका पर रोमांचक जीत में मैच के दौरान कई बार दर्शकों की सांसें ही थम गई थीं। भारत में क्रिकेट की जीत से बड़ा कुछ नहीं है। आखिरकार भारतीय टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए जीत के लिए तरस रहे भारत को राहत की वर्षा दी।

सुनिधि गुप्ता | हिसार, हरियाणा

 

सूखा समाप्त

रोहित शर्मा की अगुआई वाली भारतीय टीम ने गजब जीत हासिल की। 11 साल का सूखा खत्म कर हमारी टीम चैंपियन बन गई। आउटलुक के 5 अगस्त अंक में, ‘रो-को के बाद कौन’ में दो दिग्गजों के संन्यास पर भी बहुत अच्छे ढंग से बात की गई है। इस टूर्नामेंट की खास बात यह रही कि टीम पूरी शृंखला में एक भी मैच नहीं हारी। रोहित शर्मा की टीम पर कितनी शानदार पकड़ होगी कि टीम का प्रदर्शन इतना बेहतर हो गया। एक बार को तो लगने लगा था कि अब मैच भारत के हाथ से फिसल गया है। कोई नहीं सोच सकता था कि भारतीय टीम इतने दबाव में खिताबी मुकाबला जीत जाएगी। बाजी पलटने वाले इस खेल के लिए गेंदबाजों को धन्यवाद दिया जाना चाहिए। उन्होंने ही अंत में मैच बदला और टीम को चैंपियन बनाने में अहम भूमिका निभाई।

सारंग पासी | हाजीपुर, बिहार

 

बदहाल व्यवस्था

5 अगस्त के अंक में, ‘हादसे की जटिल परतें’ लेख उस भयावह मंजर को जीवंत कर देता है। यह बहुत ही दर्दनाक हादसा है, जिस पर सरकार सिर्फ लीपा-पोती कर रही है। सत्संग में भगदड़ हुई है इसलिए उसकी पूरी जिम्मेदारी उस संत की ही है। महिलाएं और छोटे बच्चों की जान इतनी सस्ती भी नहीं कि प्रशासन को झकझोर न सके। लेकिन यह विडंबना है कि सभी खुले घूम रहे हैं और अब तक इस मामले में जवाबदेही भी तय नहीं हो सकी है। भगदड़ कितनी भयानक होगी कि देखते-देखते सत्संग की जगह मरघट में बदल गई। अगर लोगों को समय पर अस्पताल पहुंचाया जाता, तो बहुत-से लोगों की जान बच सकती थी। इस घटना से पूरे देश में जैसा कोहराम मचना चाहिए था, वैसा नहीं मचा। दुखद है कि लोग मौत में भी राजनीति देखते हैं। सत्संग में जिन लोगों के परिवारजन बिछुड़ गए, वे ताउम्र इस दुख के साथ रहेंगे। उनका दुख तो नहीं बांटा जा सकता लेकिन कम से कम सरकार यह तो करे कि दोषियों को कठोर दंड दे दे ताकि अपने वालों की मृत्यु का गम हल्का हो सके।

चानी मिश्रा | सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश

 

कड़ी सजा की दरकार

नारायण हरि उर्फ सूरजपाल सिंह जैसे ढोंगी को तत्काल प्रभाव से सलाखों के पीछे डाल देना चाहिए। जेल की कठोर सजा ही ऐसे बहुरूपियों को सुधार सकती है। बाबा बनकर एक फर्जी आदमी इतने लोगों को मूर्ख बनाता रहता है और प्रशासन सोता रहता है। इसके लिए प्रशासनिक अधिकारियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि काफी हद तक वे भी इसके लिए कसूरवार हैं। किसी भी तरह के अपराध में जब भी किसी बाबा का नाम आता है, पुलिस का काम अपने आप धीमा हो जाता है। सरकार कोई भी हो ऐसे बाबाओं पर कोई कार्रवाई नहीं करता, बल्कि उलटे पुलिस ही ऐसे ढोंगियों को अपना साम्राज्य खड़ा करने में मदद करती है। हादसा होने के बाद कहा जा रहा है कि सत्संग में ली गई अनुमति से ज्यादा भीड़ थी। सबसे पहले तो यही सवाल पूछा जाना चाहिए कि यदि ऐसा हुआ, तो गलती किसकी थी। पुलिस ने छोटी-सी जगह में भारी भीड़  को आखिर अनुमति ही क्यों दी? वहां आपातकालीन व्यवस्थाएं क्यों नहीं थीं? लेकिन सवाल तो यही है कि आखिर यह सब पूछे कौन। (5 अगस्त, ‘हादसे की जटिल परतें’)

के.के. शांडिल्य | मंदसौर, मध्य प्रदेश

 

जीवंत लोकतंत्र

आउटलुक के 5 अगस्त अंक में, ‘वनवास से लौटे लेबर’ पढ़ा। ब्रिटेन के लोगों ने अभाव में जीना नहीं सीखा है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर लाने के लिए देशवासियों की सिंचित कमाई में हस्तक्षेप करने लगे, तो वहां की जनता ने चुनाव में ऋषि को पूर्व प्रधानमंत्री बना दिया। 44 वर्षीय भारतवंशी ऋषि सुनक ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए पीएम पद और कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पद से इस्तीफा दे दिया। भारत में क्या कोई ऐसा नेता है, जो हार की जिम्मेदारी लेगा। यहां तो ईवीएम और पार्टी कार्यकर्ताओं को बलि का बकरा बनाया जाता है। भारत में जीवंत लोकतंत्र है। मगर यहां राजनीतिक संस्कृति विकृति की ओर जा रही है। जीत या हार की जवाबदेही लेने की प्रवृ‌ित्त तो समाप्ति पर है। अब नया दौर शुरू हुआ है कटुता, नफरत और झूठ की राजनीति का।

युगल किशोर राही | छपरा, बिहार

 

कब होंगे चुनाव

आउटलुक के 24 जुलाई के अंक में, ‘जल्द की मियाद’ खूब पसंद आया। इस बहाने जम्मू-कश्मीर के असेंबली चुनाव पर चर्चा पढ़ने को मिली। जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने की चर्चा और घोषणा होती रही है मगर अब तक इसे अमली जामा नहीं पहनाया गया। जम्मू-कश्मीर की अवाम चुनाव के लिए तरस रही है। अगर चुनाव हो जाता, तो अपनी सरकार बन जाती और राष्ट्रपति शासन का अंत हो जाता। 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद जनता को विश्वास था कि जल्द ही चुनाव कराया जाएगा, मगर दस साल से अवाम के साथ विश्वासघात ही किया जा रहा है। 

बद्री प्रसाद वर्मा अनजान | गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

 

हारे सुनक

आउटलुक के 5 अगस्त के अंक में, लेबर पार्टी की जीत पर अच्छा लेख है। लेबर पार्टी को 14 साल बाद स्पष्ट बहुमत मिला है। वाकई उनका वनवास खत्म हुआ है। लेबर पार्टी के आने से ब्रिटेन के साथ-साथ यूरोप की राजनीति भी प्रभावित होगी। हालांकि भारतीय होने के नाते ऋषि सुनक के हारने पर दुख भी हुआ। लेकिन इस बार लेबर पार्टी की आंधी थी, जिसके आगे कंजरवेटिव टिक नहीं पाई। सुनक की कई नीतियों के कारण ब्रिटेन में काफी हलचल थी। महंगाई आसमान छू रही थी। इमीग्रेशन का मुद्दा भी ऋषि सुनक पर भारी पड़ा। अब देखना है कि लेबर पार्टी के कीर स्टामर के पास ब्रिटेन की जनता के लिए क्या है।

सचिन नायक | नई दिल्ली

 

बॉलीवुड को नहीं चाहिए खेल

आउटलुक के 24 जुलाई के अंक में, खेल आधारित फिल्मों की अच्छी समीक्षा है। चक दे इंडिया, भाग मिल्खा भाग, एमएस धोनी द अनटोल्ड स्टोरी, दंगल जैसी फिल्में खेल से जुड़ी होने के बावजूद लोगों ने पसंद की। लेकिन इसके बाद बॉलीवुड में खेल से जुड़ी हुई कई बड़ी फिल्मों को वैसी समफलता नहीं मिली। इसमें सूरमा, साइना, 83, शाबाश मिठू शामिल हैं। ये सभी फिल्में दर्शक नहीं जुटा पाईं। यहां तक कि स्टारडम भी इन्हें नहीं बचा पाया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मैदान फिल्म है। अजय देवगन ने अपने अभिनय से इस फिल्म में जान डाल दी थी। फिल्म को समीक्षकों ने सराहा भी लेकिन दर्शकों ने इसे नकार दिया। सबसे बड़ा झटका, चंदू चैंपियन को लगा है। कार्तिक आर्यन की बेहतरीन अदाकारी और कुशल निर्देशक कबीर खान की बड़े बजट की यह फिल्म दर्शकों के दिल में जगह नहीं बना पाई। पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि बॉलीवुड को अचानक खेल आधारित फिल्मों से विरक्ति हो गई है।

विजय किशोर तिवारी | नई दिल्ली

 

भारी भ्रष्टाचार

5 अगस्त के अंक में, संपादकीय ‘भ्रष्टाचार के सेतु’ बहुत अच्छा लिखा है। बिहार में 17 दिनों के अंदर एक दर्जन से अधिक पुल धराशायी हो गए हैं। राज्य में इस तरह पुलों का गिरना नई बात नहीं है। कुछ वर्ष से, तो निर्माणाधीन पुल भी गिर रहे हैं। कुछ उद्घाटन के चंद मिनट बाद ही ध्वस्त हो रहे हैं। सरकार को लेकिन किसी बात की फिक्र नहीं है। पुलों का ध्वस्त हो जाना, संकेत है भारी मात्रा में भ्रष्टाचार हुआ है। इसके लिए संबंधित विभाग और इंजीनियर पूरी तरह से दोषी हैं। लेकिन किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। न उन कंपनियों को ब्लैकलिस्ट किया जा रहा है न उन पर भारी जुर्माना लगाया जा रहा है। उन आपराधिक मामला दर्ज होना तो दूर की बात है। सत्ता पक्ष और विपक्ष भी बस एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं। मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री बस भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने की घोषणा ही करते रह जाते हैं। यदि भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ना है, तो भ्रष्ट अधिकारियों को दंडित करना होगा। 

मीना धानिया | नई दिल्ली

 

पुरस्कृत पत्र

चैंपियन भारत

रोहित शर्मा की टीम ने पूरे भारत को खुश होने का मौका दिया। 5 अगस्त की आवरण कथा, ‘रो-को के बाद कौन’ बहुत अच्छी लगी। क्रिकेट सही मायने में पूरे देश को जोड़ता है। फिल्म में भी कभी-कभी प्रदेश की सीमाएं हो सकती हैं लेकिन क्रिकेट इन सब से परे है। हर भारतीय चाहता है कि उसकी टीम हमेशा चैंपियन रहे। लेकिन कई बार से भारत इसमें असफल हो रहा था। इस जीत का पूरा श्रेय कप्तान रोहित शर्मा दिया जाना चाहिए, क्योंकि बतौर कप्तान किसी भी खिलाड़ी पर दोहरा दबाव रहता है। उनकी बनाई रणनीति सफल रही, तभी भारत के सिर जीत का सेहरा बंधा। भारत को अगले भी ऐसे ही कप्तान की दरकार है, जो मजबूती के साथ टीम के लिए खड़ा रहे और खिलाड़ियों को भरपूर मौका दे।

सुलभा साठे|पुणे, महाराष्ट्र

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