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पत्र संपादक के नाम

पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर भारत भर से आई प्रतिक्रियाएं

रोजगार का सवाल

19 अगस्त के अंक में, ‘बिहार को तोहफा, झारखंड को झटका’ पढ़ा। मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले बजट पर लेख पढ़कर लगा कि वित्त मंत्री ने बजट में रोजगार का समाधान करने के लिए कई उपाय बताए हैं। ये उपाय युवाओं को उत्साहित करने वाले हैं। लेकिन देखना यह है कि इस सिलसिले में सरकार ने जिन नई योजनाएं की घोषणा की है, वे रोजगार के कितने मौके उपलब्ध करा सकेगी। युवाओं के लिए यह घोषणा खासी आकर्षक है कि सरकार पांच सौ बड़ी कंपनियों में एक करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप और उन्हें पांच हजार रुपये महीना देगी। अच्छा हो कि इस दायरे में अन्य कंपनियां भी लाई जाएं ताकि अधिकाधिक युवाओं का कौशल विकास हो सके। यह महत्वपूर्ण है कि लोकसभा चुनावों में अपेक्षित परिणाम न मिलने के बाद भी सरकार ने खुद को लोकलुभावन योजनाओं से दूर रखा और देश को विकसित बनाने में सहायक बनने वाली योजनाओं पर अपना ध्यान केंद्रित रखा। ऐसा करते समय वित्तीय अनुशासन को प्राथमिकता दी। यह सरकार के आत्मविश्वास का परिचायक तो है लेकिन इसके बाद भी इस बजट में देश की सूरत बदलने वाले क्रांतिकारी उपायों का अभाव दिखता है। आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि शहरीकरण की तेज रफ्तार के चलते अगले पांच छह वर्षों में 40 प्रतिशत आबादी शहरों में रह रही होगी। इसे देखते हुए शहरों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए था क्योंकि शहर आर्थिक विकास के इंजन होते हैं। समस्या यह है कि शहरों के विकास के मामले में राज्य सरकारों का रवैया ढीला-ढाला है।

शैलेन्द्र कुमार चतुर्वेदी | फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश

पढ़ने की चुनौतियां

आउटलुक के 19 अगस्त के अंक में प्रथम दृष्टि में ‘छात्रों का पलायन’ समीक्षावादी लेख है। इस लेख ने समकालीन समय में पलायन का एक नया रूप प्रस्तुत किया। लेख में यह बताने का प्रयास है कि किस तरह आज के समय में उच्च और बेहतरीन शिक्षा लेने के लिए छात्र कोचिंग की ओर बढ़ते जा रहे हैं। यह कोचिंग संस्थान शिक्षा का केंद्र न होकर ‘आर्थिक-व्यवसाय’ का केंद्र बन चुके हैं। ये संस्थान फीस तो बड़ी लेते हैं लेकिन शिक्षा-सुविधा के नाम पर कुछ नहीं देते। आज के समय में दिल्ली, कोटा, रूड़की, पटना कई ऐसे शहर हैं, जहां पर हजारों की संख्या में छोटे-छोटे गांव तथा नगरों से छात्र कोचिंग के लिए आ रहे हैं। उनके पास उज्‍ज्वल भविष्य की उम्मीद है। ये उम्मीद सिर्फ उनकी नहीं होती, बल्कि पूरे घरवालों की होती है। इन उम्मीदों के साथ छात्र जब इन बड़े शहरों में आते हैं, तब बड़े कोचिंग सेंटर के अंदर शिक्षण और सुविधाओं के नाम पर उनके साथ धोखा होता है। यह सिर्फ छात्रों के साथ धोखा नहीं, बल्कि संपूर्ण भारतीय शिक्षण व्यवस्था के साथ होने वाला धोखा है। दिल्ली में जो तीन छात्रों के साथ हुआ उसके लिए जितनी शर्म की जाए, उतनी कम है।

विजय किशोर तिवारी | नई दिल्ली

साख पर आंच

पूजा खेड़ेकर ने सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा में सेंध लगा कर साबित कर दिया कि भारत में कुछ भी हो सकता है। 19 अगस्त के अंक में, ‘पूजा कांड से कठघरे में आयोग’ पढ़ कर आश्चर्य हुआ कि एक आम छात्रा ने कैसे यूपीएससी परीक्षा में धांधली कर ली। साफ-सुधरे ढंग से परीक्षा कराने का जिम्मा संघ लोक सेवा आयोग का है। हर साल लाखों छात्र इसी भरोसे के साथ परीक्षा में बैठते हैं। अगर उम्मीदवार ऐसा काम करेंगे, तो उसकी विश्वसनीयता क्या रह जाएगी। इस पूरे मामले ने संघ लोक सेवा आयोग की प्रतिष्ठा पर भी बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।

मोहिनी गजानन | पुणे, महाराष्ट्र

एक और धांधली

19 अगस्त के अंक में, ‘पूजा कांड से कठघरे में आयोग’ पढ़ कर मन दुखी हो गया। आखिर यह हो क्या रहा है। क्या भारत में एक भी परीक्षा ऐसी नहीं बची कि छात्र भरोसे के साथ उसमें बैठ सके। पहले नीट-यूजी का बवाल, फिर यूपीएससी का। पूजा खेड़ेकर ने तो हद ही कर दी। संघ लोक सेवा आयोग को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। इससे आयोग की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। यह देश का सबसे प्रतिष्ठित आयोग है। यहां हजारो छात्र आंखों में सपना लिए आते हैं। पूरा भारत इस आयोग पर भरोसा करता है। यदि लोग इसे भी शंका की नजर से देखने लगेंगे, तो क्या होगा।

अविनाश प्रजापति | भोपाल, मध्य प्रदेश

भगवान ही मालिक

आखिर यह सवाल क्यों न पूछा जाए कि यूपीएससी में इतना बड़ा घोटाला हुआ कैसे। संघ लोक सेवा आयोग इतना कमजोर कब से हो गया कि एक साधारण छात्रा ने उसे अपनी तरह से चला लिया। क्या आयोग के पास ऐसी कोई तकनीक नहीं है कि वह इस तरह के फर्जीवाड़े को रोक सके। एक अभ्यर्थी अपना नाम बदलती रही और आयोग का सिस्टम इसे पकड़ ही नहीं सका। जब देश की ऐसी प्रतिष्ठित परीक्षाओं में ऐसी धांधली होती है तो इससे न सिर्फ छात्र बल्कि उनके परिवार भी संकट में आ जाते हैं। परीक्षा लेने वाली संस्थाओं को चाहिए कि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष परीक्षाएं करवाने सक्षम रहें। अगर ऐसे ही देश के प्रतिष्ठित परीक्षाओं पर से छात्रों का विश्वास डगमगाया रहा, तो फिर भगवान ही मालिक है।

चारू छापेकर | कोल्हापुर, महाराष्ट्र

हैरिस पर दांव

आउटलुक के 19 अगस्त अंक में, ‘पहली महिला राष्ट्रपति की आस’ पढ़ कर लगा कि भारत में भी बेसब्री से अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव का इंतजार है। पूरी दुनिया जानना चाहती है कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन होगा। इस बार एक महिला भी चुनाव लड़ रही है इसलिए यह और दिलचस्प हो गया है। क्योंकि इससे पहले कभी वहां महिला राष्ट्रपति नहीं हुई है। अमेरिका की छवि शक्तिशाली देश की है। जो बाइडन के चुनाव से हटने और कमला के उम्मीदवार बनने से चुनाव बहुत दिलचस्प हो गया है। इस बीच पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भी पैर जमाए हुए हैं। देखना होगा कि अब ऊंट किस करवट बैठता है।

सम्राट नेगी | हमीरपुर, हिमाचल

हैरिस से चुनौती

आउटलुक के 19 अगस्त अंक में, ‘पहली महिला राष्ट्रपति की आस’ अच्छा लेख है। सबसे दिलचस्प उम्मीदवार ट्रंप हैं, जो तमाम विरोध के बाद भी हटने को तैयार नहीं हैं। कमला हैरिस की इस बार जीतने की पूरी संभावना है क्योंकि उन्हें छोड़कर डेमोक्रेटिक पार्टी में कोई ऐसा नेता नहीं है, जो रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप को सीधी टक्कर दे सके। कमला हैरिस होशियार हैं और उनका प्रभाव भी बहुत है। उन्हें युवाओं और महिलाओं का भी बहुत समर्थन मिल रहा है। अश्वेत, एशिया, अफ्रीका के लोग तो खैर हैं ही उनके साथ। कमला हैरिस का जुड़ाव भारत से भी है। हो सकता है, इसके कारण कमला हैरिस को भारतीयों के वोट भी मिल जाएंगे। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप भी कुछ कम नहीं हैं। उनके प्रशंसक भी कम नहीं हैं। इसलिए कुछ लोग उनकी जीत पक्की मान कर चल रहे हैं। अगर कमला हैरिस न आतीं, तो यह तो तय था कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की जीत पक्की थी। लेकिन हैरिस के आने से उनकी लोकप्रियता को टक्कर मिल रही है।

प्रेरणा अग्रवाल | मेरठ, उत्तर प्रदेश

अराजक तख्तापलट

19 अगस्त के अंक में बांग्लादेश के हालात पर, ‘कोटा पर फूटा छात्रों का कहर’ लंबे समय से चल रहे हिंसक छात्र आंदोलन और अराजकता को बखूबी दर्शाता है। हिंसा के भंवर में हिचकोले खाते लोकतंत्र पर फौज ने कब्जा कर लिया। इतना ही नहीं, अराजक बनी भीड़ ने प्रधानमंत्री कार्यालय और आवास को भी घेर लिया और उस पर कब्जा कर लिया। भारत-सरकार ने भी पड़ोसी धर्म निभाते हुए शेख हसीना को शरण दी। कोटा को लेकर छात्रों की नाराजगी ऐसी तबाही ले आएगी, इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। 21वीं सदी के परिपक्व होते लोकतंत्र पर यह करारा तमाचा है कि किस प्रकार हुड़दंगियों और सैन्य शक्तियों के सामने लोकतां‌त्रिक ढंग से चलती सरकार को उखाड़ फेंक दिया गया। बांग्लादेश में तख्तापलट के षड्यंत्र का रिमोट कहीं और से संचालित हो रहा है। वरना क्या कारण है कि जिस बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान ने बांग्लादेश को जन्म दिया और एक लोकतांत्रिक देश बनाया, आज उनकी प्रतिमा को तोड़ दिया गया। वक्त का तकाजा है कि वहां किसी भी तरह लोकतंत्र को बहाल किया जाए। यह भारत के हित में भी है। 

डॉ. हर्षवर्द्धन | पटना, बिहार

भारत पर भी संकट

19 अगस्त के अंक में, ‘कोटा पर फूटा छात्रों का कहर’ चिंताजनक हालात को बताता है। ऐसी स्थिति भारत के लिए भी चिंता का सबब है। पहले सिर्फ पाकिस्तान की ओर से संकट रहता था। लेकिन अब श्रीलंका और बांग्लादेश भी इसमें शामिल हो गए हैं। चीन पहले से ही हमारा दोस्त नहीं है। ऐसे में भारत के आसपास सभी ओर बस चुनैतियां ही हैं।

कविता सिंह | नई दिल्ली

पुरस्कृत पत्र : जन्नत की हकीकत

नए अंक में (19 अगस्त, कश्मीर सूरते हाल) आवरण कथा ने उस राज्य की खबर ली, जिसका हाल कोई नहीं जानना चाहता। उस राज्य के लिए इससे ज्यादा दुखद स्थिति क्या होगी कि उसे सिर्फ सियासत की जमीन बनाया जा रहा है। हर पार्टी उसके बहाने अपनी राजनीति चमकाने में लगी हुई है। कोई नहीं जानना चाहता कि वहां के सही हालात क्या हैं, वहां के लोग किस स्थिति में रह रहे हैं। कश्मीर दिल्ली से इतनी दूर है कि वहां तक यहां की अवाम की आवाज ही नहीं पहुंचती। पूरे देश से लोग बस यहां घूमने आते हैं और फिर उसे भुला दिया जाता है। आखिर क्यों दूसरे राज्यों के लोग पुरजोर ढंग से सरकार पर दबाव नहीं बनाते कि वहां चुनाव हों, वहां भी लोकतंत्र की बहाली की जाए। आखिर सरकार चुनाव कराने से डर क्यों रही हैं।

स्वराज कौशिक|रोहतक, हरियाणा

 

 

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