Advertisement

पत्र संपादक के नाम

पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

सितारों की दमक

आउटलुक के 30 सितंबर अंक में, ‘ग्लोबल मंच के लोकल सितारे’ खूब अच्छी लगी। मायानगरी के नए सितारों के बारे में बहुत-सी बातें जानने को मिली। मायानगरी के इन नए सितारों (जितेंद्र कुमार, जयदीप अहलावत, मोनिका, अभिषेक बैनर्जी, वैभवराज गुप्ता वगैरह) को ओटीटी सुपरस्टार कहा जाए, तो भी गलत नही होगा। आज इन ओटीटी सितारों ने सिनेमा और टीवी से अलग एक नई दुनिया बनाई है। इन लोगों ने मनोरंजन का एक नया संसार खड़ा कर दिया है। गांव तथा छोटे कस्बों में, जहां सिनेमा आज भी महंगा साधन है, वहां ओटीटी ने मनोरंजन की नई राह दिखाई है। आम जनता को ओटीटी के ये सितारे अपने जैसे ही लगते हैं। ऐसा लगता है कि ये हमारे बीच से निकले हुए सितारे हैं। यहां कही जा रही कहानियां (पंचायत, गुल्लक, ये मेरी फैमिली) आम लोगों के जीवन से ही जुड़ी हुई कहानियां हैं। सभी लोग कहीं न कहीं खुद को इनसे जुड़ा हुआ पाते हैं। अब उनकी इतनी अहमियत हो गई है कि बॉलीवुड के सितारों की लोकप्रियता उनके स्टारडम में दब रही है। ये सभी आम जनता के कलाकार और स्टार हैं। कोरोना के बाद ओटीटी को नई शुरुआत मिली है। अब बड़े फिल्मों के स्टार को नहीं, बल्कि आम जनमानस ओटीटी के इन कलाकारों को देखना चाहते हैं। एक तरह से हम कह सकते हैं कि जहां सिनेमा ने हमें स्टार दिए, वहीं ओटीटी ने हमें कलाकार दिए हैं। इसलिए शायद फिल्मों के असली कलाकार (नसरुद्दीन शाह, मनोज वाजपेई, पंकज त्रिपाठी) ओटीटी के भी असली स्टार बन गए।

विजय किशोर तिवारी | नई दिल्ली

 

स्टार, स्टार न रहे

मनोरंजन के लिए यह अलग तरह का दौर है। 30 सितंबर की आवरण कथा ‘बॉलीवुड की तीसरी दुनिया’ इस नब्ज को बखूबी पकड़ती है। स्टार आधारित ढांचे का पूरा रूप ही बदल गया है। अब स्टार की परिभाषा ही अलग है। डिजिटल इंटरटेनमेंट ने नए कलाकारों, पुराने स्टार, भूले-बिसरे कलाकारों को नई जिंदगी दी है। इस मंच ने न सिर्फ ऐसे कलाकारों को सहारा दिया है, बल्कि स्टार और स्टारडम की परिभाषा ही बदल दी है। स्टारडम सिर्फ शोहरत ही नहीं है, इसमें एक कलाकार की पूरी मेहनत होती। इसी से मिल कर स्टार बनता है और ओटीटी के सितारों ने इसे साबित किया है।

नितिन राज | देहरादून, उत्तराखंड

 

नई उड़ान

ओटीटी प्लेटफॉर्म ने बहुत से सितारों को स्थापित किया है। जामताड़ा, मिर्जापुर और पंचायत की धुंआदार सफलता ने बता दिया कि ये लोग वाकई, ‘ग्लोबल मंच के लोकल सितारे’ (30 सितंबर) हैं। ओटीटी पर जो भी हिट है, उसमें अदाकारी के साथ कहानियों के केंद्र में स्थानीयता का बड़ा योगदान है। इन किरदारों को निभाने वाले अपनी भूमिकाएं इतनी विश्वसनीयता से निभाते हैं। ओटीटी मंच के साथ सितारों की प्रतिभा भी थी, जिससे उनके करियर को नई उड़ान मिली है। सोशल मीडिया ने भी इन कलाकारों को आगे बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया है। अब दर्शक इन्हीं माध्यमों से इन कलाकारों के बारे में जानता है और फिर अपनी पसंद से कोई भी वेब सीरीज देखता है। इसका फायदा यह हुआ है कि अब मनोरंजन के लिए लोगों को बड़े पर्दे का रुख नहीं करना पड़ता। घर बैठे अपनी सुविधानुसार दर्शक अपनी पसंद के कार्यक्रम देख पाते हैं। अब मनोरंजन करने का एकाधिकार फिल्मी सितारों के पास नहीं रह गया है। नए आए कलाकारों ने उनके स्टारडम को कम कर दिया है। बेशक ओटीटी ने छोटी जगहों से आए कलाकारों को नई उड़ान दी है। अगर ओटीटी न आता, तो इन प्रतिभाओं को बहुत लंबा इंतजार करना पड़ता।

शक्ति शर्मा | जोधपुर, राजस्थान

 

नयापन जरूरी

30 सितंबर के अंक में आवरण कथा, ‘ग्लोबल मंच के लोकल सितारे’ खूब पसंद आई। यह अंक ऐसा है, जिससे हमें उन कलाकारों को जानने का मौका मिला, जिनके बारे में कम बात होती है। इस अंक में फैसल कुमार, दुर्गेश कुमार, अशोक पाठक, बुल्लू कुमार के साक्षात्कार बहुत अच्छे लगे। सभी कलाकार लंबे वक्त तक संघर्ष कर यहां तक पहुंचे हैं। फिल्मों में काम करने के लिए संघर्ष कर रहे ये कलाकारों के लिए ओटीटी संजीवनी की तरह साबित हुआ। फिल्म की दुनिया अभी तक बड़ी इसलिए लगती थी, क्योंकि उसके सामने कोई भी दूसरी चीज नहीं थी। फिर जब ओटीटी आया, तो इन कलाकारों को मौका मिला। लेकिन यह बात ध्यान रखी जानी चाहिए कि लोगों के पास जब बहुत विकल्प हो जाते हैं, तो वे लोग ऊबते भी ज्यादा हैं। इसलिए अब चुनौती है कि कंटेंट में नयापन आता जाए और कलाकार भी नई तरह की भूमिकाएं निभाते रहें। जो दुनिया अभी तक चमत्कारिक लग रही  है, वह कल बुरी भी लग सकती है। कलाकारों को सचेत रहना चाहिए कि मीडिया में वे ओवर एक्सपोज न हों 

जी.एल वाधवानी | बीना, मध्य प्रदेश

 

सारगर्भित संपादकीय

आउटलुक के 30 सितंबर अंक में प्रथम दृष्टि मूल्यवान थी। एक संतुलित प्रस्तुति, सत्य की संस्तुति। वास्तव में प्रतिभा को कोई रोक नहीं सकता जैसे कि आगत प्रभात को। पर सफलता की सुबह के लिए अभ्यर्थी को रात भर जागना पड़ता है। साथ ही वांछित दीप्ति की प्राप्ति के लिए सतत श्रम करना ही पड़ता है। मेहनत करने वालों का आज नहीं तो कल उनका होता ही है। भाव बोध और अभिनय में अप्रतिम ये नए नायक सौ करोड़ के हुनर से भले दूर हों पर सौ करोड़ नयनों के पास हैं। संपादकीय में नवोदित सितारों को जो मान दिया है, वह सराहनीय है। आभार स्वीकारें।

राजू मेहता | जोधपुर, राजस्थान

 

मोहभंग

आउटलुक के 16 सितंबर अंक में, ‘कितना चटकेगा चंपाई रंग’ झारखंड की अंर्तकथा कहती है। भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद हेमंत ने बाहर आते ही चंपाई सोरेन को बाहर कर दिया। उनके इस कदम से संदेश यही गया कि उन्हें पार्टी या राज्य से ज्यादा मुख्यमंत्री पद की चाह है। चंपाई झारखंड मुक्ति मोर्चा के खास और पुराने सिपाही रहे हैं। उन्हें इस तरह बाहर करना कहीं से भी अच्छा फैसला नहीं है। हेमंत ने बैठे बिठाए भारतीय जनता पार्टी को एक आदिवासी नेता दे दिया है। आने वाले विधानसभा चुनाव में झामुमो को इसका नुकसान होगा। भारतीय जनता पार्टी को जिस तरह के आदिवासी नेता की तलाश थी, वह अब पूरी हो गई है। हेमंत को चंपाई का आदर और सम्मान रखना ही था। यही वजह है कि चंपाई का झारखंड मुक्ति मोर्चा से मोहभंग हो गया। चुनाव के मद्देनजर हेमंत को संगठन को मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए और वे हैं कि पद के लालच में एक अच्छा नेता खो दिया।

मीना धानिया | दिल्ली

 

सकारात्मक परिवर्तन

16 सितंबर के अंक में, ‘कश्मीर में चुनाव’ पर सकारात्मक ढंग से लिखा, प्रथम दृष्टि पढ़ा। देश ने संविधान के निरपेक्ष भाव और कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत के एकात्मक भाव के संरक्षण के लिए 2014 में एक सकारात्मक राजनीतिक परिवर्तन किया था। कश्मीर में विधानसभा चुनावों की घोषणा कर केंद्र सरकार ने उस पर लग रहे तानाशाही के आरोपों को धो दिया। यह भी सही है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 30 सितंबर 2024, तक कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने के लिए निर्देश दिया था। इससे सिद्ध हुआ कि भारत की संवैधानिक संस्थाएं और न्यायपालिका स्वतंत्र है। उक्त सारा घटनाक्रम भाजपा सरकार की राष्ट्रवादी लोकतंत्र की चाहत को पुष्ट करता है। इस सब के बावजूद विदेशी धरती पर भारत सरकार को बदनाम करने की कांग्रेसी मंशा देश में अब बलवती नहीं हो सकती है। क्षेत्रीय और जातीय गठबंधन के कंधे पर बैठ कांग्रेस ने लोकसभा में अपनी सीटें भले ही निन्यानवे कर ली हों, लेकिन यह उसकी उपलब्धि नहीं है। भारतीय संसद को एक सशक्त विपक्ष चाहिए लेकिन कांग्रेस वह विकल्प नहीं हो सकती। कांग्रेस अपने अदूरदर्शी नेतृत्व के कारण एक बार फिर अपना कद बौना कर लेगी।

अरविन्द पुरोहित | रतलाम, मध्य प्रदेश

 

जीवंत वर्णन

16 सिंतबर के अंक में बेलगावी पर शहरनामा बहुत अच्छा लगा। एक शहर का जीवंत वर्णन पढ़ना अलग अनुभव होता है। शहर की हर छोड़ी बड़ी बात इसमें बहुत करीने से आई। यहां का खानपान, इतिहास, संस्कृति, मौसम सभी के बारे में रोचक ढंग से लिखा गया था। यह एक शहर का रेखाचित्र था, जिसने बहुत आनंददायक अनुभव दिया। जिस शहर में हम रहते हैं, वो हमारे जीवन का हिस्सा हो जाते हैं। जो लोग शहर से प्यार करते हैं, वे ही इसके हर पहलू पर लिख सकते हैं। आउटलुक में शहरनामा हमेशा से ही अच्छा लगता है। यह एक प्रकार से शहर के प्रति आदर भी है, जो कोई लेखक या वहां का रहवासी शब्दों में व्यक्त करता है। इससे दूसरे लोग भी उस शहर को बेहत तरीके से जान पाते हैं। उसके इतिहास और संस्कृति में हिस्सा हो पाते हैं। 

प्रकाश पिराले | हुबली, कर्नाटक

 

पुरस्कृत पत्र: अलग ही दुनिया

30 सितंबर, ‘बॉलीवुड की तीसरी दुनिया’ पढ़ा। सच में इनकी दुनिया ही अलग है। ये लोग सही मायनों में कलाकार हैं। बड़ा शहर हो, कस्बा हो या फिर गांव हर जगह इनके प्रशंसक हैं। यह इस बात का संकेत है कि दर्शकों को अच्छा और बुरा समझ आता है। वे इसका अंतर बखूबी समझते हैं, तभी उन्हें ग्लोबल दुनिया में लोकल कहानियां आकर्षित कर रही हैं। यहां न सौ करोड़ का दबाव है, न टीआरपी का जोखिम। यह भी कारण हो सकता है कि कलाकार खुल कर अभिनय करते हैं। एक सीजन के बाद दूसरे का इंतजार, दूसरे के बाद तीसरे की बेकरारी। यह बताता है कि सिनेमा की अर्थव्यवस्था आज नहीं तो कल इन लोगों की वजह से संकट में आएगी जरूरी। फिर परदे पर बस ये ही लोग रहेंगे।

मुक्ता गांधी|रांची, झारखंड

Advertisement
Advertisement
Advertisement