जनता सब जानती है
25 नवंबर के अंक में, ‘पहचान बचाओ’, दोनों राज्यों के संकट पर बहुत अच्छा विश्लेषण है। केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने दोनों ही राज्यों में मुकाबले को कड़ा बना दिया है। भाजपा हरियाणा में कांग्रेस को पटकनी दे ही चुकी है। देखना है, क्या कांग्रेस महाराष्ट्र और झारखंड में भी हिसाब बराबर कर लेगी। उद्धव ठाकरे या शरद पवार ही शायद ज्यादा कुछ कर पाएंगे। शिबू सोरेन ने झारखंड में जो साख बनाई थी, हेमंत सोरेन ने उसे अलग मुकाम पर ले जाने का ही काम किया है। वे भले ही भाजपा पर केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का कितना भी इल्जाम लगाएं, लेकिन वहां की जनता भी जानती है कि हेमंत ने झारखंड के विकास के लिए कुछ नहीं किया है। झारखंड में भ्रष्टाचार का सिलसिला आज भी जारी है। देखना होगा, जनता इस बार हेमंत को क्या सिला देती है।
तारा मंडल | कानपुर, उत्तर प्रदेश
खत्म हुआ जादू
25 नवंबर के अंक में, ‘पहचान बचाओ’ बहुत अच्छी रिपोर्ट है। चुनावी बिसात बिछ जाने के बाद ही नेता चेतते हैं। उससे पहले तो उन्हें याद भी नहीं रहता कि जनता जैसा कुछ होता भी है। हेमंत सोरेन और उद्धव ठाकरे दोनों ने अपने पिता की बनाई विरासत को संभालने के लिए कुछ नहीं किया। चुनाव सिर पर आने के बाद ऊटपटांग बयानबाजी या फिर मुफ्त में सामान या पैसा बांटने के सिवाय दोनों को और कुछ नहीं सूझ रहा है। महाराष्ट्र में अब उद्धव ठाकरे का जादू खत्म हो गया है। इन दोनों ही राज्यों में क्षेत्रीय दलों के सामने अपने सियासी वजूद और अपनी पहचान का वाकई संकट आ खड़ा हुआ है।
जमुना कछवाहा | सतना, मध्य प्रदेश
लगेगा झटका
25 नवंबर 2024 के अंक में, आवरण कथा ‘दांव पर विरासत’ झारखंड और महाराष्ट्र की चुनावी विरासत पर अच्छा विश्लेषण करती है। यह सच है कि ये चुनाव उद्धव और हेमंत के वजूद का सवाल है। दोनों को ही अपनी साख बचानी है। भाजपा दोनों ही परिवारों को हटा कर अपने लिए जगह तलाश रही है। हालांकि दोनों बड़ी पार्टियां हैं लेकिन भाजपा के पास हमेशा एक कामयाब रणनीति होती है, जिसका तोड़ अभी तक क्षेत्रीय दल खोज नहीं पाए हैं। फिर भी झारखंड मुक्ति मोर्चा, शिवसेना और रांकपा की स्थिति बुरी भी नहीं है। वे लोग अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे हैं। अगर इन लोगों को बहुमत मिल भी जाएगा, तो छह महीने बाद भाजपा सरकार बनाने के लिए अपना एजेंडा चलाने लगेगी। उस पार्टी की खास बात यह है कि सरकार बनाने के लिए उन लोगों को किसी से परहेज नहीं होता है। सत्ता के लिए भाजपा को न परिवारवाद से परेशानी होती है, न क्षेत्रवाद से। लगता तो है कि इस बार महाराष्ट्र का परिणाम उत्तर प्रदेश की तरह ही भाजपा को झटका देने वाला है।
यशवंत पाल सिंह | वाराणसी, उत्तर प्रदेश
सरकार की मर्जी
‘आधा देश जद में’ (25 नवंबर), उपचुनावों की दिलचस्प कथा कहती है। वाकई पहली बार उपचुनावों की भी इतनी चर्चा हो रही है। भाजपा को किसी भी कीमत पर जीत की दरकार होती है। मतदान की तारीख को बदल देना और उसके लिए कोई ठोस कारण भी नहीं देना। एक सीट के उपचुनाव को मनमर्जी से टाल देना, जैसी हरकतें पहले कभी नहीं हुईं। इससे चुनाव आयोग की साख भी गिरी है। इससे स्पष्ट पता चलता है कि चुनाव आयोग किसके दबाव में काम कर रहा है। फिर जब विपक्षी दल कहता है कि चुनाव आयोग सरकार के इशारे पर काम करता है, तो पार्टी के नेताओं को यह बात नागवार गुजरती है। लेकिन सच्चाई तो यही है।
राजेन्द्र गजाधर कुलकर्णी | कोल्हापुर, महाराष्ट्र
दोस्त राष्ट्रपति
25 नवंबर के अंक में, ‘अगला राष्ट्रपति और रिश्तों की शर्त’ में बहुत जरूरी सवाल उठाए गए हैं। चुनाव अमेरिका के हुए लेकिन चर्चा भारत भर में रही। डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस जीते या रिपब्लिकन ट्रंप भारत के आम नागरिक को कोई असर नहीं पड़ना था। लेकिन मीडिया ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों की इतनी दुहाई दी कि हर आदमी को लगने लगा कि ट्रंप का जीतना बहुत जरूरी है। डोनाल्ड ट्रंप भी हाथी के दांत की तरह है, जो खाने के अलग और दिखाने के अलग होते हैं। ऐसा बिलकुल नहीं है कि उनके जीतने से भारत एकदम ताकतवर हो जाएगा। लेकिन मीडिया है, जो समझा दिया आम लोग वही समझ जाते हैं। डोनाल्ड ट्रंप को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पसंद करते हैं। लेकिन डोनाल्ड भी वैसा ही मोदी को पसंद करें, तब बात बने।
प्रभविता पद्मा | सहरसा, बिहार
दोनों हाथ लड्डू
25 नवंबर के अंक में, ‘अगला राष्ट्रपति और रिश्तों की शर्त’ अच्छा लेख है। भारत के दोनों हाथों में लड्डू हैं। भारत को किसी के भी राष्ट्रपति बनने पर अब बहुत फायदा मिलने वाला है। ट्रंप के बारे में कहा जा रहा है कि वे वर्तमान में चल रही युद्ध नीति को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते हैं। अतः विश्व में युद्ध एवं मारामारी के बजाय शांति की स्थापना हो यह सभी चाहते हैं। फिर एक बात और है, ट्रंप न तो चीन को पसंद करते हैं न ही पाकिस्तान को। भारत एवं हिंदुओं के प्रति वह काफी सकारात्मक राय रखते हैं। अच्छे बहुमत से डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया है। माना जा रहा है, अब भारत के प्रति अमेरिकी प्रशासन का रवैया एक बार फिर गहरे दोस्ताना व्यवहार में पहले की तरह अवश्य बदलेगा। सभी भारतीयों को ऐसी आशा है। ट्रंप के राष्ट्रपति होना हमें चीन की दगाबाजियों से न केवल बचाएगा बल्कि हर तरह से मददगार भी साबित होगा।
मनमोहन राजावतराज | शाजापुर, मध्य प्रदेश
कड़े हों कानून
11 नवंबर के अंक में, ‘नशे का नया ठिकाना’ मध्य प्रदेश जैसे शांत राज्य के लिए चिंता की बात है। केवल एक फैक्ट्री में छापे से आखिर क्या होगा। यह फैक्ट्री तो छापे के बाद सुर्खियों में आ गई। लेकिन पता नहीं ऐसी कितनी फैक्ट्रियां होंगी, जिन पर किसी की नजर नहीं पड़ी है। करोड़ों रुपये के जहर का कारोबार सरकार की नाक के नीचे चलता रहा और किसी को मालूम नहीं पड़ा। भारत के दूसरे राज्यों में, तो नशे का जाल बिछ चुका है। खबर पढ़ कर लगा कि अब मध्य प्रदेश भी इससे पीछे नहीं रहेगा। नशीले पदार्थों से युवाओं को खोखला किया जा रहा है, लेकिन सरकारों को इससे कोई लेना-देना नहीं है। नशे की वजह से पंजाब तो संकट में है ही अब लगता है, यह साया मध्य प्रदेश में भी मंडराने लगा है। नशे का कारोबार करने वालों को सख्त सजा देना जरूरी है। कानून इतने कड़े हों कि इससे कोई रसूखदार बच न जाए।
मीना धानिया | नई दिल्ली
वर्चस्व की लड़ाई
मुंबई अंडरवर्ल्ड सिर्फ फिल्मकारों का ही नहीं, बल्कि आम लोगों की भी पसंद का विषय रहा है। यही वजह है कि इन लोगों पर समय-समय पर फिल्में बनती रही हैं। मुंबई में अपराध का साया हमेशा से रहा है। यह अलग बात है कि पहले के डॉन या गैंगस्टर लोगों के बीच रॉबिनहुड की तरह प्रसिद्ध थे। बाद में दाऊद इब्राहिम जैसे लोगों ने गैंगस्टर होने से ज्यादा मोस्ट वांटेड अपराधी होने के काम किए। 1993 के बम धमाकों के लिए कोई भी भारतवासी उन्हें माफ नहीं करेगा। अबू सलेम मुंबई में फिल्म निर्माताओं से उगाही करता था। वह जाली पासपोर्ट बना कर भारत से बाहर चला गया। धीरे-धीरे इन लोगों ने अवैध वसूली और अपना दबदबा बनाने के लिए खूनी गैंगवार शुरू कर दिया। जिसकी चाही उसकी हत्या कर दी। बाबा सिद्दीकी की हत्या पर कुछ लोग इस हत्या पर ऊंगली नहीं उठा रहे हैं क्योंकि यह ‘हिंदू’ डॉन है। इसी तरह दिमागी रूप से दिवालिया लोग अपराधियों को भी धर्म में बांट कर विरोध या समर्थन देते रहे, तब तो भारत देश का भगवान ही मालिक है। (‘मायानगरी की सियासत में जरायम के नए चेहरे’, 11 नवंबर)
चमनलाल कनाड़िया | जयपुर, राजस्थान
हरि अनंत हरि कथा अनंता
‘मायानगरी की सियासत में जरायम के नए चेहरे,’ (आवरण कथा, 11 नवंबर), सच पूछिए तो, हरि अनंत हरि कथा अनंता की तरह है। कभी हाजी मस्तान, दाऊद इब्राहिम, अरुण गवली, छोटा शकील तो कभी लॉरेन्स बिश्नोई अपराध की दुनिया के ऐसे शातिर जरायमपोश हैं, जो जेल में बैठे- बैठे अपने काम को अंजाम देते रहे हैं। राजनीति के नापाक गठबंधन की उपज ये जरायमपोश जब स्वयं को राष्ट्रवाद से जोड़ने लगते हैं, तो इसका असर देश की सीमा से पार राजनयिक संबंधों पर भी पड़ता है। जरायमपेशा से राष्ट्रवाद को जोड़ना सरासर गलत है। वक्त का तकाजा है कि इन जरायमपोशों के अपराध-पुराण को जड़ से खत्म किया जाए ताकि देश की आर्थिक राजधानी भयमुक्त रहे। इस पुनीत काम में राजनीतिक दृढ़-इच्छाशक्ति लाजिमी है।
डॉ. हर्ष वर्द्धन | पटना, बिहार
पुरस्कृत पत्रः बहुत लंबा रास्ता
25 नवंबर के अंक में, ‘कमला हैरिस की चुनौती’ पढ़ कर ही लग रहा था कि कमला हैरिस के लिए अभी रास्ता बहुत लंबा है। पश्चिम कितना भी आधुनिक हो जाए, लेकिन स्त्रियों को सत्ता सौंपने में अभी उनके यहां बहुत देर है। हिलेरी क्लिंटन भी जब खड़ी हुई थीं, तो ट्रंप जीत गए थे। इस बार तो दोहरा इतिहास बनाने की बारी थी। कमला अश्वेत भी हैं और महिला भी। अमेरिका को इससे अच्छा मौका दोबारा पता नहीं कब मिलेगा। इस बार भी वहां की जनता ने ट्रंप को नहीं, पुरुष राष्ट्रपति को चुना है। अब तक चार बार महिला राष्ट्रपति के उम्मीदवार अमेरिका में खारिज हो चुके हैं? महिलाओं के लिए अभी भी अमेरिका के राष्ट्रपति की कुर्सी दूर की कौड़ी है। भारत इस मायने में ज्यादा सहिष्णु है कि यहां महिलाओं को मौका मिलता है।
सेबेस्टियन जॉर्ज|कोट्टयम, केरल