शाहखर्ची से बाज आएं
23 दिसंबर के अंक में, ‘विवाह बाजार में आमद’ पढ़ा। शादियों का मौसम भारतीय बाजार की रौनक बढ़ा देता है, इसमें कोई शक नहीं है। शादी में साधारण से साधारण व्यक्ति भी पैसा खर्च करने में कोताही नहीं बरतता। हर वर्ग का व्यक्ति अपनी हैसियत से बढ़ कर खर्च करता है। सोना-चांदी, हलवाई, बैंड, महंगी जगह, तरह-तरह का खानपान, एक से एक कपड़े क्या कुछ नहीं खरीदा जाता शादी के लिए। दुकानदारों के लिए कमाई का यही मौसम होता है। शादी का मौसम लाखों लोगों के लिए रोजी-रोटी का जरिया बन कर आता है। देश में लगातार शादी का बजट बढ़ता जा रहा है। जो शादियां पहले हजारों में निपट जाती है, उनका बजट अब लाखों और करोड़ों तक पहुंच गया है। लेकिन कई परिवार अभी भी हैं, जिनकी जेब इतना खर्च करने की इजाजत नहीं देती है। फिर भी देखादेखी वे लोग लाखों रुपये शादी में फूंक देते हैं। इससे कुछ परिवारों पर कर्ज बढ़ जाता है और उनका आगे का जीवन कष्टमय हो जाता है। बेहतर हो ऐसी शाहखर्ची पर लोग खुद ही अंकुश लगाएं।
शारदा शर्मा | जालंधर, पंजाब
महंगा सपना
पहले शादी के लिए सपनों का राजकुमार चाहिए होता था। अब इसकी जगह पैसे ने ले ली है। राजकुमार मिल भी जाए और पैसा न हो तो सब सूना लगता है। अब भड़कीली शादियों का दौर है। भव्य सजावट, भव्य परिधान, भव्य भोजना। लगता है भव्यता में कमी रह गई, तो शादी मान्य ही नहीं होगी। शादियों में नित-नए प्रयोग हो रहे हैं। हर परिवार, दूसरे परिवार को शादी की व्यवस्था में मात देना चाहता है। इसी होड़ और प्रतिस्पर्धा को व्यापार का नाम दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इकोनॉमी बूस्ट करने में शादियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। लेकिन इस प्रतिस्पर्धा से शादी की मूल भावना कहीं गुम हो गई है। शादी लोगों के मिलने-मिलाने का कार्यक्रम हुआ करता था लेकिन अब कोई किसी से मिल ही नहीं पाता है। यहां तक कि दूल्हा-दुल्हन से भी सभी रिश्तेदारों नहीं मिल पाते, क्योंकि फोटोग्राफर उनका पीछा ही नहीं छोड़ते। सेलिब्रिटी शादियों ने इसमें और तड़का लगा दिया है। सोशल मीडिया पर उनके फोटो छाए रहते हैं। फिर आम लोग भी उनके जैसी ही शादी की कल्पना करते हैं और अपनी तमाम बचत स्वाहा कर देते हैं। भारतीय विवाह उद्योग को नई दिशा जरूर दे रहे हैं। लेकिन ये शादियां समाज को दिशाहीन बना रही हैं। (23 दिसंबर, ‘विवाह बाजार में आमद’)
विशाल सागर | झांसी, उत्तर प्रदेश
विविधता को नुकसान
आजकल की शादियों में विविधता खत्म हो रही है। यानी पहले हर समाज का शादी की अपनी परंपरा और रस्में होती थीं। लेकिन अब बाजार इस कदर हावी है कि लोग अपनी परंपराएं छोड़ कर वही कर रहे हैं, जो सेलेब्रिटीयों की शादी में हो रहा है। जैसे, पहले हल्दी या मेहंदी जैसे आयोजन दिखाई नहीं पड़ते थे। लेकिन भला हो शादी को ईवेंट बना देने वाली कंपनियों का कि उन्होंने हर शादी में पीला और हरा रंग एकदम अनिवार्य कर दिया है। मेहंदी होगी, तो सभी रिश्तेदार हरा पहनेंगे, हल्दी होगी, तो सभी पीला। बारात का एक रंग है, रिसेप्शन का एक। सारे मेहमान एक जैसे नजर आते हैं। जो परिवारों में कभी नहीं होता था वो अब शादियों में होने लगा है। जैसे, वरमाला में हो हल्ला मचाना, कभी देखा नहीं था। इससे परिवार की रस्में पीछे हो जाती है। हर आयोजन की अलग सजावट, हर आयोजन के अलग कपड़े। गांव और कस्बे भी इसकी चपेट में हैं। शादी का काम करने वाले बाजार को लेकर बहुत उत्साहित हैं। आखिरकार पूरे साल की कमाई का मौका कौन छोड़न चाहेगा। लेकिन यह भेड़चाल है, जो ज्यादा दिन तक नहीं चलेगी।
मनमीत छाबड़ा | भोपाल, मध्य प्रदेश
वेड इन इंडिया
23 दिसंबर, के अंक में, ‘विवाह बाजार में आमद’ शादी की दुनिया की नई परतें खोलती है। हमारे जैसे कस्बों में रहने वाले लोगों के जीवन में भी विवाह समारोह में बहुत बदलाव आया है। ये शहरी बदलाव देख कर लगा कि यह तो दूसरी दुनिया की ही बातें हैं। भारतीय विवाह कारोबार दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा है, यह जानकर बहुत खुशी हुई। अब भारत का लक्ष्य डेस्टिनेशन वेडिंग इंडस्ट्री में प्रमुख बनने का है। यह मुश्किल काम नहीं है। भारतीय शादियां वैसे भी बहुत चर्चित रहती हैं। थोड़ी सी मेहनत की जाए, तो यह मकाम पाना आसान हो जाएगा।
प्रीति मंत्री | कुक्षी, मध्य प्रदेश
नई पहचान
23 दिसंबर के अंक में, ‘विवाह बाजार में आमद’ पढ़ कर लगा कि यह दूसरे व्यापार क्षेत्रों के साथ पर्यटन मंत्रालय के लिए भी फायदे का सौदा है। जैसे दूसरे उद्योग शादियों के कारण फल-फूल रहे हैं, वैसे ही पर्यटन मंत्रालय भी भारत को वैश्विक स्तर पर वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में प्रचारित और स्थापित कर सकता है। बस जरूरत है, तो व्यापक अभियान शुरू करने की। दुनिया भर से लोग जब अपनी शादी करने यहां आएंगे, तो पर्यटन उद्योग को भी मुनाफा होगा। यह बहुत अच्छी पहल है। इसी लेख से पता चला कि इसके लिए देश के लगभग 25 प्रमुख स्थलों की प्रोफाइलिंग की जा रही है। वहां बेहतर सुविधाएं दी जाएंगी, तो भारत की पहचान वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में भी हो जाएगी।
गरिमा श्रीवास्तव | लखनऊ, उत्तर प्रदेश
नया विचार
भारत सरकार ‘मेक इन इंडिया’ की तर्ज पर ‘वेड इन इंडिया’ की शुरुआत करने जा रही है। यह देश की अर्थव्यवस्था को बूस्ट करने का यह गजब का उपाय है। कुछ इसे साहसिक कदम भी कह सकते हैं क्योंकि अब तक किसी सरकार ने इस तरह नहीं सोचा। शादी से देश की वित्तीय व्यवस्था पर भले ही बहुत बड़ा फर्क न पड़े लेकिन भारत का नाम पूरे विश्व में पहुंच जाएगा। उत्तराखंड के खूबसूरत स्थलों पर शादी का विचार ही मन को रोमांचित कर देता है। प्रधानमंत्री खुद देशवासियों से इसके लिए आग्रह कर रहे हैं। ज्यादा से ज्यादा लोग जब उत्तराखंड आकर शादी करेंगे, तो इस छोटे से राज्य को कितना राजस्व मिलेगा। इससे भारतीयों में भी डेस्टिनेशन वेडिंग में दिलचस्पी बढ़ेगी। प्रवासी भारतीय वैसे भी हमेशा देश से जुड़े रहने के कोई न कोई बहाने खोजते ही रहते हैं। इसकी बढ़ती मांग से सांस्कृतिक पहचान भी बढ़ेगी। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और मध्य पूर्व जैसे देशों में जाकर शादी करने से बेहतर है भारत में पारंपरिक के साथ विलासिता भरी शादी की जाए। भारतीय जोड़ों को अपनी शादी के आयोजन के लिए नए तरीके से सोचने की जरूरत है।
पारुल जोशी | नासिक, महाराष्ट्र
सोशल मीडिया का असर
डेस्टिनेशन वेडिंग के बढ़ते क्रेज के लिए सेलिब्रिटीज की शादियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सोशल मीडिया पर इन शादियों का ब्यौरा देख कर शादी करने वाले जोड़े उसी तरह से शादी करना चाहते हैं। आलीशान शादियों का अपना ही मजा है। शादी जीवन में एक बार होती है और इसके लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जानी चाहिए। भारत में होने वाली शादियां इतने लोगों को लुभाती हैं, तो जाहिर सी बात है, इनमें कुछ तो खास बात होगी। हर जोड़ा चाहता है कि उसका यह खास पल हमेशा के लिए यादगार हो। सजावट से लेकर खानपान तक, कपड़ों से लेकर मेकअप तक। हर बात में आम भारतीय परिवार सेलेब्रिटी की नकल करते हैं। उनके कपड़े, जेवर, सजावट सब कुछ तुरंत फैशन का हिस्सा बन जाते हैं। अनुष्का ने अपनी शादी में हल्के रंग के कपड़े पहने और उसके बाद से ही दुल्हनें हल्के रंग के कपड़े पहनने लगीं। इस वजह से डिजाइनरों की भी चांदी हो गई है। शादी के मौके पर खास लगना सबकी चाह होती है और इस चाह के लिए पैसा खर्च भी हो, तो परेशानी की को बात नहीं। रही बात खर्च की तो भारतीय जनता वैसे भी खर्चीली है।
परिधि गुप्ता | कानपुर, उत्तर प्रदेश
बदल गए मायने
शादी के मायने अब बिलकुल बदल गए हैं। जिसे देखो वह विराट कोहली-अनुष्का शर्मा, कियारा आडवाणी-सिद्धार्थ मल्होत्रा, दीपिका पादुकोण-रणवीर सिंह, प्रियंका चोपड़ा-निक जोनस जैसी शादी करना चाहता है। 23 दिसंबर के अंक में ‘शाहखर्ची की शादियां’ पढ़ कर दिमाग सुन्न पड़ गया। यह क्या हो रहा है। लोग करोड़ो रुपये सिर्फ शादी में खर्च कर रहे हैं। सच है कि शादी व्यक्तिगत मसला है और किसी को भी यह सलाह नहीं दी जा सकती कि इतने पैसों में इतने लोग पढ़ लेते या इतने लोगों का इलाज हो जाता या इतने लोग इतने साल खाना खा लेते। लेकिन फिर भी जो लोग शादी में पैसा खर्च कर सकते हैं उन्हें इस खूबसूरत पल का ऐसा दिखावा नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसी हाई-प्रोफाइल शादियां लाखों लोगों को इसी अंदाज में शादी करने के लिए प्रेरित करती हैं। शादी में खर्च करना बुरी बात नहीं है लेकिन पानी की तरह पैसा बहाना एक तरह की अश्लीलता है। इन सबके बीच सादे तरीके से हुई रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की शादी की बात नहीं की जाती क्योंकि हमारे समाज को वह शादी सूट नहीं करती है। यह हमारी हिप्पोक्रेसी है। वैवाहिक जीवन की शुरुआत जितने सादे तरीके से होगी, जीवन उतना अच्छा और शांतिपूर्वक चलेगा। मध्यवर्गीय परिवारों को तो कम से कम इससे बचना चाहिए।
पंकज शाह | मुंबई, महाराष्ट्र
पुरस्कृत पत्र: दम तोड़ते रिवाज
23 दिसंबर के अंक में ‘बैंड बाजा बाजार’ आवरण कथा पढ़ी। पूरी आवरण कथा में ऐसा दिखाया गया है कि शादियों से ही हमारी इकोनॉमी चल रही है। जैसे हर बेरोजगार शादी से ही लाखों-करोड़ों कमा रहा है। सच्चाई इससे बहुत दूर है। व्यापारी वर्ग मुनाफा कमाता हो तो अलग बात है। लेकिन बाकी सब तैयार होकर केवल रील बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड कर रहे हैं। अब शादियों में तामझाम भी ऐसा कि मेहमानों के कपड़ों का रंग भी मेजबान तय कर रहे हैं। हर मौके का खास रंग है, जिसे पहनना अनिवार्य है। ऐसी शादियां अब ऊब देने लगी है। चमक-दमक, हो-हल्ले के बीच रिवाज दम तोड़ रहे हैं। लेकिन इसकी फिक्र किसी को नहीं है। एक जैसे मेकअप और कपड़ों में सभी को फिक्र है, तो बस अच्छी फोटो की।
वासंती पाकड़े|पुणे, महाराष्ट्र