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17 फरवरी 2025 · FEB 17 , 2025

पत्र संपादक के नाम

पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

नई उम्मीद

3 फरवरी के अंक में, ‘सुनहरे कल के नए सितारे’ में जिन खिलाड़ियों को नई उम्मीद के रूप में पेश किया गया है, वह सराहनीय है। क्रिकेट में यशस्वी जायसवाल जैसे उभरते हुए कस्बाई बल्लेबाज का उदय भारत में खेल की दुनिया में बड़े बदलाव को बताता है। यह सच है कि ये सभी खिलाड़ी लंबी रेस के घोड़े साबित होंगे। डी. गुकेश ने शंतरज की दुनिया में जो बादशाहत कायम की है, वह उनकी मेहनत का ही परिणाम है। इन्हीं खिलाड़ियों की बदौलत भारत अब विश्व में खेल की दुनिया में नई उम्मीद के रूप में उभर रहा है। ये खिलाड़ी इसी तरह अपना प्रदर्शन जारी रखें, तो अगले ओलंपिक में हमारा प्रदर्शन निश्चित रूप से काफी सुधर जाएगा।

यशवंत पाल सिंह | वाराणसी, उत्तर प्रदेश

 

आप की मुश्किल

3 फरवरी के अंक में, ‘चुनावी किल्ली की दरारें’ दिल्ली विधानसभा चुनाव की सही तस्वीर पेश करती है। इस बार आप पार्टी पर मतदाताओं का ऐसा भरोसा नजर नहीं आ रहा है। अरविंद केजरीवाल लोगों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके। उन्हें लगता है कि केवल मुफ्त चीजें बांटने से ही चुनाव जीता जा सकता है। कांग्रेस भी दम तो लगा रही है मगर उसकी दावेदारी कमजोर है। इसलिए आप का मुकाबला भाजपा से ही है। केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया था इससे जनता को उन पर भरोसा जमा था लेकिन उन्होंने मनीष सिसोदिया को मुख्यमंत्री पद न सौंप कर आतिशी को चुना। आतिशी ने भी एक कुर्सी खाली रख कर चापलूसी की हद कर दी। इस बार मतदाता उनसे छिटक सकते हैं।

नवल किशोर शर्मा | दिल्ली

 

अधूरी जानकारी

3 फरवरी के अंक में, ‘भोपाल का विष पीथमपुर को’ पढ़ा। यह जानकारी अधूरी लगती है। आउटलुक जैसी पत्रिका से यह अपेक्षा की ही जाती है कि उनके पत्रकार पूरी जानकारी के साथ लेख दें। दरअसल पूरे मीडिया में शोर है कि भोपाल का कचरा पीथमपुर पहुंचा दिया गया है। अखबार यही लिख रहे हैं और इसी के आधार पर जनता शोर मचा रही है। लेकिन सरकारी दावे पर भी गौर करने की दरकार है। सरकार के मुताबिक अब कचरे के निस्तारण के लिए पूरी प्रक्रिया अपनाई जाती है। कोई भी कचरा कहीं भी नहीं फेंका जा सकता। जैसे प्लास्टिक को गला कर उसकी ईंटे बना दी जाती हैं और यह सड़क निर्माण में काम आ जाती हैं। इसी तरह रासायनिक जैसे दवा फैक्ट्री या अन्य कैमिकल फैक्ट्री से निकला अपशिष्ट पहले की तरह नाली में नहीं बहाया जा सकता। ऐसे कचरे के निस्तारण के लिए मध्य प्रदेश में दो इकाइयां हैं एक मेघनगर, झाबुआ और दूसरी पीथमपुर में। यही वजह है कि यह रासायनिक कचरा वहां ले जाया गया है।  40 साल बाद इस कचरे में जहरीला जैसा कुछ बचा नहीं है। यह कचरा भोपाल की हवा-पानी को जितना नुकसान पहुंचाना था, पहुंचा चुका है। अब यह सिर्फ कागजी खानापूर्ति बची है कि खतरनाक अपशिष्ट को खत्म करने के लिए पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया है।

डॉ. मुकेश परिहार | धार, मध्य प्रदेश

(संबंधित लेख में सरकारी दावे और प्रक्रिया का पूरा जिक्र है-सं.)

 

तंत्र की कमी

3 फरवरी अंक में, ‘लिखने की सजा’ पढ़कर स्तब्ध हूं। भ्रष्टाचार उजागर करने की इतनी बड़ी सजा? वह पत्रकार अपनी नौकरी कर रहा था। सही जानकारी लिखना और लोगों तक उसे पहुंचाना उनकी नौकरी थी। मुकेश जैसे कई लोग हैं, जिनका जीवन ऐसे भ्रष्टाचारी छीन लेते हैं। हम कितनी भी असत्य पर सत्य की जीत की बात करें लेकिन जीत कई बार भ्रष्टाचारियों की ही होती है। सेना की ओर से लड़ते हुए जान गंवाने वाले तो शहीद का दर्जा पा जाते हैं लेकिन पत्रकारों के हिस्से वह भी नहीं आता।

राजू मेहता | जोधपुर, राजस्थान

 

परंपरा का उत्सव

आउटलुक के 3 फरवरी अंक में, ‘संगम में निराला समागम’ पढ़कर लगा कि कुंभ का मेला भारतीय उत्सवधर्मिता का सबसे प्रमुख और विराट रूप है। कुंभ को केंद्र में रखकर कहा जा सकता है कि धर्म को ऊर्जा और उल्लास यहां से मिलता है। कुंभ एक पंरपरा का उत्सव है। कुंभ पर्व मात्र नहीं यह जल और जमीन से जुड़ी साधना का ऐसा समुच्चय है, जो मनुष्य को मोक्ष का एहसास कराता है। कुंभ अनहद नाद की तरह है, जिसका न कोई आरंभ हैं न कोई अंत। तिथि और नक्षत्र अंतरिक्ष के ब्रहमांड के काल समयानुसार चलते हैं और लोग गठरी बांधकर उसकी ओर चल पड़ते हैं। 

शैलेंद्र कुमार चतुर्वेदी | फीरोजाबाद, उत्तर प्रदेश

 

सभी की जिम्मेदारी

3 फरवरी की आवरण कथा, ‘दस साल की बादशाहत खत्म’ भारतीय किक्रेट टीम की मौजूदा हालत दिखाती है। भारतीय टीम को आलोचकों को जवाब देने के बजाय अपना प्रदर्शन सुधार कर बल्ले से जवाब देना चाहिए। हर खिलाड़ी सिर्फ अपनी व्यक्तिगत छवि सुधारने में लगा है। टीम से उनका कोई लेनादेना नहीं है। यह जानकर ही दुख होता है कि भारतीय क्रिकेट टीम में भी अब व्यक्तिगत पसंद-नापसंद को तरजीह दी जाने लगी है। खेल के आधार पर टीम का उत्साह बढ़ाना चाहिए, न कि जाति या किसी अन्य आधार पर। कुछ खिलाड़ी सिर्फ तारीफ ही चाहते हैं। टीम को मैदानी ताकत बढ़ाने पर गंभीरता से काम करना होगा। भारतीय किक्रेटरों ने क्रिकेट जगत में भारत की बेहतर छवि बनाने के लिए बहुत प्रयास किया है। सभी की जिम्मेदारी है कि इस छवि को बनाए रखने में मदद करें।

पांडुरंग शास्त्री | अकोला, महाराष्ट्र

 

सुविधाओं का बाजार

20 जनवरी 2025 की आवरण कथा ‘25 साल के 25 तोहफे’ पढ़ा। युवा पीढ़ी जिसके जीवन का हर पल तकनीकी बुनियाद पर टिका है, उनके लिए यह आवरण कथा बहुत खास है। यह बदलाव बताते हैं कि पिछली पीढ़ी के पास भले ही तकनीक की सुविधा नहीं थी लेकिन सुकून बहुत था। वह भी एक दौर था, जब बिना तकनीक, मोबाइल के बिना भी काम चलता था। इन सब सुविधाओं ने एक नया बाजार खड़ा किया है। यह सिर्फ बाजार के हित के लिए ही है। नई पीढ़ी उत्पादों का उपभोग करने वाली पीढ़ी है। वह एक ही उत्पाद से जल्दी बोर हो जाती है। यही वजह है कि बाजार में हर दिन नई तकनीक और उससे जुड़ी बातें हैं। अल्फा पीढ़ी, बीटा पीढ़ी सब कुछ भ्रम है। वास्तव में ये पीढ़ियों का वर्गीकरण भी इसलिए है कि इससे बाजार  को ही गति मिलती है। बाजार बताता है कि हम फलां पीढ़ी से इस पीढ़ी तक आ गए हैं। यह चिंता का विषय है कि नई पीढ़ी अपना खानपान, रहन सहन, आचार व्यवहार सब इसी से तय कर रही है।  अब शिक्षा, संस्कार जैसी बातें गैरजरूरी हो गई हैं।

राजबाला तिवारी | लखनऊ, उत्तर प्रदेश

 

सशक्त आलेख

20 जनवरी के अंक में, ‘लोकतंत्र में घटता लोक’ सशक्त आलेख है। यह लेख हमारे गणतंत्र के प्रति गंभीर चिंता दर्शाता है। गणतंत्र के चार स्तंभ में सही संतुलन न होना गहन चिंता का विषय है। हालांकि भारत में संविधान अभी भी सर्वोपरि है। बस अब कुछ ताकतें हैं, जो इसके साथ खिलवाड़ कर रही हैं। पूर्व जस्टिस एच.आर. खन्ना ने गण के अस्तित्व, आजादी और मूलभूत अधिकारों की, बड़ी कीमत चुका कर भी अहमियत दी। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या कम है। हमारे यहां दिक्कत यह भी है कि ब्यूरोक्रेसी करिअर के लिए है, सुधार के लिए नहीं। मीडिया का जितना पतन हाल के दिनों में हुआ है, उतना पहले कभी देखने को नहीं मिला। पत्रकार सरकार के कामकाज, योजनाओं का सही मूल्यांकन कर ही नहीं पाते।

गोविन्द सिंह गहलोत | जयपुर, राजस्थान

 

संविधान के रक्षक

20 जनवरी के अंक में, ‘दो न्यायिक खानदानों की नजीर’ अच्छा लगा। इससे देश के 16वें प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ सीनियर के बेटे डी.वाइ. चंद्रचूड़ की कहानी पता चली। अब प्रधान न्यायाधीश बने संजीव खन्ना और उनके चाचा जस्टिस एच.आर. खन्ना ने न्यायपालिका के क्षेत्र में स्वर्गीय पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लोहा लिया। उन्होंने इमरजेंसी में जिस तरह नागरिकों को अनुच्छेद 21 के तहत हासिल निजी जीवन और आजादी की गारंटी को खत्म न होने देने में योगदान दिया, वह अभूतपूर्व है। पांच जजों की खंडपीठ में असहमति जताने वाले जस्टिस खन्ना इकलौते थे। उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। उन्होंने प्रधान न्यायाधीश का पद गंवा कर भी अपना कर्तव्य निभाया।

मीना धानिया | नई दिल्ली

 

पुरस्कृत पत्र: खिलाड़ियों का उदय

अब देश में खेल के मैदान भी चमक रहे हैं। नई-नई प्रतिभाएं देश्‍ा का नाम रोशन कर रही हैं। भारतीय खिलाड़ियों ने लगभग हर खेल में अपना दबदबा कायम किया है। ये खिलाड़ी बेमिसाल भरोसे की दास्तान हैं। कुछ साल पहले तक खेल को देश में गंभीरता से नहीं लिया जाता था। क्रिकेट को छोड़ दिया जाए, तो किसी भी खेल में लोगों की खास रुचि नहीं थी। भारतीय माता-पिता भी नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे कोई खेल खेलें। इसका सीधा सा संबंध रोजगार न मिलने से जुड़ा था। लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। कई भारतीय खिलाड़ियों की कामयाबी बताती है कि यह सब बीते दिनों की बातें हैं। देश में खेल का भविष्य अब उज्‍ज्वल है। (3 फरवरी, सुनहरे कल के नए सितारे)

शीबा मल्होत्रा|चंडीगढ़

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