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17 मार्च 2025 · MAR 17 , 2025

पत्र संपादक के नाम

पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

खत्म हुआ वनवास

देश की धड़कन और दिलवालों की दिल्ली ने 27 साल बाद भाजपा की वापसी करा दी। गुलाबी मौसम में खिला कमल संदेश दे रहा कि दिल्ली की जनता ने भाजपा को फिर मौका दे दिया है। 3 मार्च की आवरण कथा, ‘नमोस्ते दिल्ली’ से भाजपा की जीत की वजहों का पता चलता है। भाजपा को अखिल भारतीय स्तर पर वैचारिक प्रभाव बढ़ाने और अपनी संगठनात्मक राजनीति को चमकाने, भुनाने का रास्ता मिल गया है। यह हार केजरीवाल के लिए अस्तित्व का संकट है। भाजपा सत्ता में आते ही केजरीवाल की पार्टी के कद्दावरों को अपनी ओर खींचकर उनकी पार्टी तोड़ने की कोशिश कर सकती है। कुशल रणनीतिकार होते हुए भी केजरीवाल अन्य पार्टियों से सामंजस्य नहीं बिठा पाए। अगर वे कांग्रेस और अन्य पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ते, दूसरों को इतना न कोसते तो आज इस तरह औंधे मुंह न गिरते। विडंबना यह रही कि भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘एंग्रीमैन’ के रूप में राजनैतिक अवतार लेने वाला ‘आम-आदमी’ जब खुद सत्ता के दंभ और अहंकार में चूर हो जाए, तो उसका हश्र यही होता है। लेकिन जीत के बाद भाजपा यह न समझे कि दिल्ली अब उसकी है। उसे भी जनाकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरना होगा।

डॉ. हर्षवर्धन | पटना, बिहार   

 

हठधर्मिता ने डुबोई नैय्या

2015 के चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत प्राप्त करने वाली आम आदमी पार्टी इस बार दिल्ली चुनाव की जंग हार गई। इस बार आप को केवल 22 सीटों पर संतोष करना पड़ा। यह हार साधारण हार नहीं है। इस बार पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल सहित पार्टी के कई दिग्गज नेता चुनाव हार गए। राजनैतिक विश्लेषकों के साथ आम जनता को भी लगने लगा है कि यह आम आदमी पार्टी के अंत की शुरुआत है।  वास्तव में ऐसा है, तो इसका जिम्मेदार कौन है? अब आम आदमी पार्टी के लोगों का तर्क है कि भाजपा के साथ केंद्र की पूरी मशीनरी, मीडिया, धनबल और बाहुबल साथ था। लेकिन हार के बाद कुछ भी बोलने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। दिल्ली में भाजपा की संभावित फतह की सुगबुगाहट उसी समय शुरू हो गई थी जब, आप हरियाणा विधानसभा चुनाव में ‘इंडिया’ गठबंधन घटक का सदस्य होने के बावजूद राज्य की 89 सीटों पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस को हरियाणा की सत्ता में वापसी से रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह आप का विध्वंसक फैसला था। इसलिए इस हार के लिए सिर्फ और सिर्फ अरविंद केजरीवाल जिम्मेदार हैं। केजरीवाल ने पार्टी के गठन के बाद अपने संस्थापक सदस्यों और कई बुद्धिजीवियों का जिस तरह अपमान किया, वह भी इस हार का बड़ा कारण है। केजरीवाल के जिद्दी स्वभाव और हठधर्मिता ने पार्टी से जुड़े सैकड़ों कार्यकर्ताओं की मेहनत पर पानी फेरा है। (आवरण कथा, 3 मार्च, ‘नमोस्ते दिल्ली’)

तनवीर जाफरी | दिल्ली

 

अब तो कमल

3 मार्च के अंक में, ‘अरविंद नहीं, कमल’ लेख पढ़ा। आप एक नई आशा की किरण के रूप में दिल्ली की जनता के सामने उभरी थी। दिल्ली की जनता ने केजरीवाल और आप को सिर माथे पर बिठाया। लेकिन आप पार्टी शायद भूल गई थी कि प्रजातंत्र में जनता से ऊपर कोई नहीं है। शराब घोटाला, शीशमहल, सड़कों की बुरी हालत, पेयजल समस्या, प्रदूषण की मार झेलती दिल्ली की जनता और यमुना का जस का तस रहना यह सब केजरीवाल के पतन के कारण बने। रही सही कसर केजरीवाल के हरियाणा सरकार पर लगाए गए बेतुके बयान कि ‘‘सरकार ने यमुना में जहर मिला दिया है’’ ने पूरी कर दी। केजरीवाल आप की धुरी हैं उनके आसपास ही पूरी पार्टी घूमती है। उनकी हार पार्टी के लिए सबसे गंभीर झटका है। इंडिया गठबंधन में सामंजस्य की कमी पहले से ही दिख रही थी, जब राहुल गांधी और कांग्रेस के खिलाफ अखिलेश, ममता, उमर अब्दुल्ला के स्वर तेजी से उभरे और अब इस हार के बाद इस विपक्षी घटक में और बिखराव की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। 

बाल गोविंद | नोएडा, उत्तर प्रदेश

 

बंट गए वोट

3 मार्च के अंक में, ‘दिल्ली से निकलती सियासत’ पढ़ कर लगा कि सभी लोगों को यही परिणाम अपेक्षित था। वैसे लेख में सही लिखा है कि अगर कांग्रेस-आप का गठबंधन होता तो भाजपा को जीत नहीं मिलती। भाजपा और आप को मिले कुल मतों में लगभग दो प्रतिशत का अंतर है। गठबंधन होने पर कांग्रेस को मिले छह लाख मत नतीजा बदल देते। मगर ऐसा हो नहीं सका। यही वजह रही कि आप से नाराज मत कांग्रेस और भाजपा में बंटा। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और आप-कांग्रेस गठबंधन को क्रमशः लगभग 54 और 43 प्रतिशत मत मिले थे। लगभग ग्यारह प्रतिशत की बढ़त के साथ भाजपा 52 विधानसभा क्षेत्रों में आगे थी। मतलब कांग्रेस-आप में गठबंधन न होने से भाजपा को 04 सीटों का नुकसान हुआ।

बृजेश माथुर | गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

 

नियम के आगे नतमस्तक

3 मार्च, 2025 के अंक में, ‘नमोस्ते दिल्ली’ बहुत अच्छा लेख है। दिल्ली जीत के बाद इसमें बदलाव पर सराहनीय सामग्री है। दिल्ली हार का लेख में बहुत सटीक विश्लेषण है। केजरीवाल अपने कई गलत फैसलों और जिद से हारे हैं। इसी अंक में, ‘जंजीरों में लौटे आज के गिरमिटिया’ पढ़ कर बहुत निराशा हुई। सुनहरे भविष्य के लिए भारतीय युवा मेहनत के बजाय गलत रास्ता अपना रहे हैं। विदेश में बसने की इच्छा रखना बुरा नहीं है। लेकिन गलत तरीके से जाना बुरा है। कुछ लोग अमेरिका के रवैये की आलोचना कर रहे हैं। लेकिन यह देखने वाली बात है कि उनके देश में अपराधियों से पुलिस ऐसे ही निबटती है। उनके देश में गलत तरीके से दाखिल होने पर वे लोग वहां अपराधी ही हैं। फिर भी, भारतीय विदेश मंत्रालय हस्तक्षेप करना चाहिए था। सरकारों को ऐसे गिरोहों का पर्दाफाश करना चाहिए जो लोगों को गलत रास्ते अमेरिका जाने में मदद कर रहे हैं।

गोविंद सिंह गहलोत | जयपुर, राजस्थान

 

गठबंधन कितना कायम

भाजपा ने आम आदमी पार्टी की चमक बिलकुल फीकी कर दी है। विपक्ष चाहता तो मजबूती से खड़ा रह सकता था। लेकिन सबके स्वार्थ हैं। यही वजह है कि वह हल्के से झोंके से ही बिखर गया। कहने के लिए तो विपक्ष ने मिल कर महागठबंधन बना लिया लेकिन इसका उपयोग कुछ नहीं किया। यह सिर्फ नाम के लिए था। दिल्ली विधानसभा चुनावों में मतदाता ने बता ही दिया कि भाजपा उसकी पसंद है। मतदाता अब राष्ट्रीय हित के लिए वोट कर रहा है। कांग्रेस को इसे गंभीरता से समझना होगा।

अरविंद पुरोहित | रतलाम, मध्य प्रदेश

 

पुरस्कृत पत्रः सबकी छुट्टी

3 मार्च की आवरण कथा, ‘नमोस्ते दिल्ली’ ने मोदी की ताकत को फिर दिखाया। मोदी ने अपने कौशल से आखिर उसे जीत ही लिया। लेकिन मोदी की इस जीत में केजरीवाल का भी कम योगदान नहीं है। देखा जाए, तो अपनी लापरवाही और अति आत्मविश्वास से उन्होंने मोदी को यह जीत प्लेट में खुद सजा कर दी। उन्हें जनता ने काम करने के लिए कम वक्त नहीं दिया था। लेकिन केजरीवाल बस गाल बजाते रहे और केंद्र सरकार पर आरोप लगाते रह गए। यह भी सही है कि केंद्र ने उनके काम में रोड़े अटकाए। फिर भी, आप को अच्छा मौका मिला था, जिसे बर्बाद कर दिया। जिस ढंग से वे बाहर हुए हैं, लगता नहीं कि उनकी वापसी जल्द होगी। काश! वे इसे पहले समझ कर अपनी रणनीति बदल लेते।

कलावंती बर्मन|चाइबासा, झारखंड

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