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12 मई 2025 · MAY 12 , 2025

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पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

दूसरे देशों की ओर रुख करें

‘तबाही की ट्रम्पगीरी’ (28 अप्रैल), अच्छा लेख है। ट्रम्प टैरिफ और टिट फॉर टैट एक साथ चलाना चाहते हैं। उनका जवाबी आयात शुल्क अपेक्षित था। भारत से ज्यादा मार तो चीन, बांग्लादेश और मलेशिया जैसे देशों को पड़ी है। वैसे भी भारत की अर्थव्यवस्था निर्यात प्रधान नहीं है, जैसी वियतनाम और चीन की है। अमेरिका को यह नहीं भूलना चाहिए की इस टैरिफ वॉर से उनके यहां महंगाई बढ़ेगी और अमेरिकी लोगों को ही इससे समस्या होगी। भारत को अभी इस बारे में ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि भारत अमेरिका के व्यापार सौदे पर अभी काम चल रहा है। अगर भारत अमेरिका के नजरिये से कोई राजकोषीय परिवर्तन करता है और कहीं रियायत, कहीं कड़ाई बरत कर लेन-देन वाला रुख अपनाता है, तो यह व्यापारिक सौदा ऐतिहासिक साबित हो सकता है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि यह टैरिफ युद्ध भारत को अवसर भी प्रदान कर रहा है। भारत सरकार को श्रम सुधारों पर, ब्याज दरें कम करने और काम कर हमारी कंपनियों के उत्पादों को और प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त हमें अन्य देशों में भी अपने माल को निर्यात करने के अवसर ढूंढने चाहिए ताकि अमेरिका पर निर्भरता कम हो। 

बाल गोविंद | नोएडा, उत्तर प्रदेश

 

टैरिफ वॉर

आउटलुक के 28 अप्रैल के अंक में ‘तबाही की ट्रम्पगीरी’ में सही हवाला दिया गया है कि टैरिफ लागू करने के साथ अमेरिका ने खुद ही अपने लिए मुसीबत मोल ले ली है। हालांकि ट्रम्प ने चीन पर यह रोक नहीं लगाई है। टैरिफ घोषणा के बाद वैश्विक स्तर पर व्यापार युद्ध छिड़ गया है। ट्रम्प के 180 से अधिक देशों पर टैरिफ लगाए जाने के बाद से तीन दिनों के बाजार घाटे ने वैश्विक इक्विटी मूल्य में लगभग 100 खरब डॉलर का नुकसान किया है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10 फीसदी है। टैरिफ नीति लागू किए जाने के कारणों का खुलासा करते हुए डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा वैश्विक व्यापार में अमेरिका के साथ अनुचित व्यवहार किया जा रहा है। उनका तर्क है कि कई देश अमेरिकी वस्तुओं पर अमेरिका की तुलना में अधिक टैरिफ लगाते हैं, जिससे असंतुलन पैदा होता है। ट्रम्प ने कहा है कि वह अमेरिकी आयातों पर उसी तरह का शुल्क लगाना चाहते हैं, जैसा कि अन्य देश अमेरिकी उत्पादों पर लगाते हैं। ट्रम्प का मानना है कि पारस्परिक टैरिफ देश के व्यापार घाटे को कम करके उनकी अमेरिका फर्स्ट आर्थिक नीति को बढ़ावा देंगे, जबकि अमेरिकी निर्माताओं की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार होगा।

युगल किशोर राही | छपरा, बिहार

 

केवल बातचीत नहीं

आउटलुक हिंदी के 28 अप्रैल अंक में, ‘तबाही की ट्रम्पगीरी’ पढ़ा। इस तबाही का असर सभी पर होगा। ट्रम्प ने सबको समान रूप से परेशान किया है। बस अंतर यह है कि इसमें कुछ लोग ज्यादा परेशान होंगे, तो कुछ कम। भारत को अब अपना कदम सोच-समझ कर बढ़ाना चाहिए। हालांकि अभी भारत ने तटस्थ होने की नीति अपना रखी है। लेकिन अब समय आ गया है कि भारत, इस पर जवाबी कार्यवाही करे। केवल बातचीत का रास्ता खुला रखने से बात नहीं बनेगी। भारत को अपनी ताकत दिखाना ही होगी। 

सुरेश शर्मा, प्रयाग | उत्तर प्रदेश

 

आपदा में अवसर

आउटलुक हिंदी के 28 अप्रैल अंक में, ‘तबाही की ट्रम्पगीरी’ टैरिफ नीति के बाद आर्थिक मुद्दे के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है। अमेरीका ने भारत पर 26 प्रतिशत टैरिफ लगाया है। ट्रम्प प्रशासन के माध्यम से भारत पर लगाई गई इस टैरिफ नीति से इतना घबराने की जरूरत नहीं है। समय के अनुसार सामान्य स्थिति पर इस टैरिफ को व्यापारिक बातचीत से कम किया जा सकता है। भारत इस टैरिफ नीति को एक अवसर के रूप में देख सकता है क्योंकि भारत के तुलना में कई देश जैसे चीन, बांग्लादेश, वियतनाम आदि पर अधिक टैरिफ लगाया गया है। इससे उनके उत्पाद भारत की तुलना में अमेरीका में ज्यादा दामों पर बिकेंगे। मोदी सरकार आपदा को अवसर में बदलना जानती है और इसे ध्यान में रखकर भारत ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है। भारत ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ नहीं ‘वैश्विक व्यापारिक युद्ध’ में खुद को शामिल किए बिना चमड़ा, रसायन, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद के निर्यात को बढ़ावा देकर अपने नुकसान की भरपाई कर लेना चाहता है। भारत की कोशिश है कि इस टैरिफ नीति को एक व्यापारिक अवसर बना सके।

विजय किशोर तिवारी | नई दिल्ली

 

ट्रम्प टेरर

टैरिफ टेरर से ट्रम्प ने अपना विशुद्ध व्यावसायिक रूप दुनिया को दिखा दिया है। (‘तबाही की ट्रम्पगीरी’, 28 अप्रैल), अब कोई भी देश उसका मित्र या शत्रु नहीं है। सब उसके व्यापार में साझीदार हैं। रूस को मित्र और भारत और यूरोपीय देशों के प्रति बेरुखी दिखाने से उसे कोई गुरेज नहीं है। जहां चीन मैक्सिको और कनाडा ने विरोध जताया भारत ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। भारत का आर्थिक नुकसान सीधे-सीधे तौर पर हो रहा है। शेयर बाजार गिर गया फिर भी सन्नाटा है। चीन को अपना व्यावसायिक प्रतिद्वंद्वी मानते हुए उसके साथ अलग टैरिफ का झगड़ा है। इसी अंक में, ‘मामला महज जमीनी या...’ वक्फ संशोधन बिल से ध्रुवीकरण की राजनीति को बखूबी समझाता है। इससे आगामी चुनाव में नए समीकरण बनने की पूरी संभावना है। कैसे कोई राजनैतिक दल बिना किसी समुदाय को प्रतिनिधित्व दिए उसके हित की बात कर सकता है। परिसीमन पर, ‘इससे तो ढहेगा संघीय ताना-बाना’ संसद में दक्षिण के राज्यों के प्रतिनिधत्व को प्रभावित करने की अच्छी कहानी कहता है। केवल उत्तर प्रदेश और बिहार ही जनसंख्या में भारी वृद्धि दिखा रहे हैं उसके कारण उत्तर दक्षिण का अलगाव ज्यादा हो रहा है।

यशवन्त पाल सिंह | वाराणासी, उत्तर प्रदेश

 

वोटों की खलबली

आउटलुक हिंदी के 28 अप्रैल के अंक में, नए वक्फ कानून पर ‘मामला महज जमीनी या...’ जानकारीपूर्ण लेख है। पढ़कर महसूस हुआ कि वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ वहीं लोग विरोध प्रदर्शन में लगे हैं, जिन्हें पुराने कानून के जरिए जमीन कब्जाने का लाइसेंस मिला हुआ था। नए कानून में वह गुंजाइश खत्म कर पिछड़े और वंचित मुस्लिम समाज की सत्ता कुंजी का पता बता दिया है। अब तक मुस्लिम राजनीति में अशरफिया मुसलमानों का कब्जा रहा है। आजादी के बाद भी मुसलमानों का नेतृत्व इसी वर्ग के हाथ में रहा है। इसी कारण पसमांदा मुस्लिम राजनीति में हाशिए पर हैं। नए वक्फ कानून के बाद यही थोक वोट बैंक राजनीतिक दलों को दरकता दिख रहा है। अगर ऐसा हुआ जिसके की पूरे आसार हैं, तो पसमांदा वर्ग मुस्लिम समाज के थोक वोट बैंक से छिटक सकता है। इसी कारण इस समुदाय के वोटों पर राजनीति करने वाले दलों में घबराहट है। एक बड़ा सवाल यह है कि यदि हिन्दू समुदाय जातियों में बंट सकता है, उसे जातीय स्तर पर खंडित कर दल अपनी राजनीतिक रोटी सेंक सकते हैं, सत्ता के लिए दहलीज लांघ सकते हैं तो मुस्लिम वोट बैंक में दरार से क्यों परेशान होने लगी।

शैलेंद्र कुमार चतुर्वेदी | फीरोजाबाद, उत्तर प्रदेश

 

पलटी मार पार्टी

14 अप्रैल के अंक में, ‘किसानों पर ‘आप’ पलटी’ पढ़कर लगा कि पंजाब की आप सरकार का किसानों के प्रति यह असंवेदनशील रवैया दोहरा चरित्र प्रदर्शित करने वाला है। ये राजनीतिक दल कब ‘मीठा-मीठा गप्प, कड़वा-कड़वा थू’ करने लग जाते हैं, समझ से परे है। इन दलों और नेताओं का चाल, चरित्र, चेहरा, हाव-भाव कब बदल जाते हैं पता ही नहीं चलता। जब तक इन्हें अपना राजनीतिक हित सधता दिखाई दे रहा था, तब तक ये किसानों के साथ होने का दिखावा कर रहे थे। ‘यूज एंड थ्रो’ की यह नीति आने वाले समय में आप के लिए घातक साबित होगी। उन्हें अपनी एक ही विचारधारा पर कायम रहना चाहिए था। मान सरकार ने किसानों के साथ जो ढुलमुल रवैया अपनाया वह अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मारने जैसा है।

हेमा हरि उपाध्याय | उज्जैन, मध्य प्रदेश

 

बढ़ेगा अंतरिक्ष प्रदूषण

14 अप्रैल के अंक में, ‘सितारों की सैर’ अंतरिक्ष सैर के फैशन पर बढ़िया लेख है। इस लेख से पूरी स्थिति पता चली। यह कैसी विडंबना है कि बढ़ते पूंजीवाद और उफनते ‘अल्ट्रा-रिच’ शौक ने अंतरिक्ष यात्रा को वैज्ञानिक अनुसंधान और शोध का शगल बनाने के बजाय स्पेस टूरिज्म के बहाने अंधाधुंध कमाई का जरिया बना दिया। 2030 तक अंतरिक्ष में होटल निर्माण भले ही स्पेस टूरिज्म का नया बाजारू अध्याय लिखे लेकिन हकीकत तो यह है कि इससे अंतरिक्ष में प्रदूषण का घातक स्तर बढ़ेगा। यह सुनने में जितना आकर्षक है, उतना ही गंभीर सुरक्षा और पर्यावरणीय चिंताओं को जन्म देनेवाला है। लालच में निजी खिलाड़ियों का स्पेस टूरिज्म को मनमाने ढ़ंग से बढ़ावा देना मानव सभ्यता के अस्तित्व पर ही संकट न पैदा कर दे।

डॉ. हर्षवर्धन कुमार | पटना, बिहार

 

पुरस्कृत पत्रः तानाशाही रवैया

आउटलुक के 28 अप्रैल के अंक में, ‘तबाही की ट्रम्पगीरी’ ट्रम्प के नजरिये को दिखाता है। ट्रम्प को लगता है कि उन्होंने अमेरिका का चुनाव जीत कर दुनिया जीत ली है। वे भूल गए हैं कि तानाशाही से कुछ नहीं किया जा सकता है। वो जिस टैरिफ को लेकर दुनिया में खौफ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, वह एकदम फिजूल है। अमेरिका को समझना चाहिए कि अब ये 50 या 60 का दशक नहीं है। वह जमाना अलग था, जब उसकी ताकत के आगे सब झुक जाते थे। अब दुनिया में दूसरे देशों ने भी बहुत तरक्की की है। तकनीक पर अब दूसरे देशों की पकड़ भी बढ़ती जा रही है। ट्रम्प को शायद पता नहीं है कि दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है। वक्त के साथ बदलना जरूरी है। अगर वे पुराने दौर वाले अमेरिकी राष्ट्रपतियों सा अकड़ू व्यवहार करेंगे, तो नुकसान में ही रहेंगे।

नीलमणि उपाध्याय|जयपुर, राजस्थान

 

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