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23 जून 2025 · JUN 23 , 2025

पत्र संपादक के नाम

पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

टीआरपी का खेल

9 जून के अंक में ‘परदे पर उन्माद की अफीम’ को उम्दा लेख कहने के बजाय उम्दा कटाक्ष कहना ज्यादा सही होगा। लेखक ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर टीवी रिपोर्टिंग, दर्शकों की दिमागी हालत, सोशल मीडिया के गैर-जिम्मेदाराना रवैये को बहुत ही सटीक तरीके से, सरस शब्दों में बयां किया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की रिपोर्टिंग ने सिवाय सनसनी फैलाने के कुछ नहीं किया। सोशल मीडिया पर तो लग रहा था कि बस पाकिस्तान भारत के हाथ आ ही गया है। युद्ध से बड़ी युद्ध की टीआरपी का बाजार था। यही वजह है कि आज भी प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता कायम है। भले ही टीवी और सोशल मीडिया की त्वरित और व्यापक पहुंच है लेकिन यह मीडियम बाजार के कब्जे में है। प्रिंट मीडिया ने जनता के बीच आज भी भरोसा कायम रखा हुआ है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को अपनी गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग के लिए माफी मांगना चाहिए। ऐसा न हो कि भविष्य में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को नियंत्रित करने के लिए कानून ज्यादा सख्त करना पड़े।

बृजेश माथुर | गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

 

जय हिंद की सेना

9 जून के अंक में, ‘भारतीय सेना ने साबित की अपनी बढ़त’ बेजोड़ और प्रभावी लेख था। भारतीय सशस्त्र बलों ने दिखा दिया कि जय हिंद की सेना पर आखिर हिंदुस्तान गर्व क्यों करता है। भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ करके बता दिया कि आखिर भारतीय सेना की गिनती दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में क्यों होती है। आज पूरे हिंदुस्तान की जनता अपने जवानों के कारण सुरक्षित है और चैन की नींद सो रही है। हमारी सेना के आगे पाकिस्तान की सेना नतमस्तक हो चुकी है। भारत की सेना अपने आक्रमण से सिर्फ पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब ही नहीं दे रही है बल्कि इस युद्ध में शामिल चीनी हथियारों की भी पोल खोल रही है। पाकिस्तान को अब समझ लेना चाहिए कि अगर उसने आगे युद्ध जारी रखा, तो आने वाले समय में पाकिस्तान सेना को और भी शर्मनाक हार का सामना करना पड़ेगा। हो सकता है, उसके अस्तित्व पर भी खतरा उत्पन्न हो जाए।

विजय किशोर | तिवारी, नई दिल्ली

 

जीत की खुशी

आउटलुक की 9 जून की आवरण कथा ‘फतह और नए मोर्चे’ लेख पढ़ा। आखिर देश की 140 करोड़ जनता की मुराद पूरी हो गई लेकिन इसकी पूर्ण आहूति, तो तब होती जब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर भारत के कब्जे में होता। यही नहीं, बलूचिस्तान भी पाकिस्तान के शिकंजे से मुक्त हो जाता, तो अच्छा होता। इसमें कोई शक नहीं कि नेतृत्व मजबूत और दृढ़ संकल्प वाला हो तो कोई भी देश खुद पर गर्व कर सकता है। भारत के पास अब वैश्विक स्तर का नेता है, जिसे दुनिया के सभी महत्वपूर्ण देश जानते पहचानते हैं और उसे विशिष्ट नेतृत्व के लिए मानते हैं। यह भारत के लिए अच्छा संकेत है। पाकिस्तान के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई में राफेल घातक लडाकू विमान साबित हुआ। भारतीय सेना ने 23 मिनट में पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया। हमारी ताकत से पाकिस्तान थर्रा गया है। 22 अप्रैल की पहलगाम घटना के बाद पाकिस्तान को सबक नहीं सिखाया जाता, तो उसका उत्पात बढ़ता ही जाता। 

शैलेंद्र कुमार चतुर्वेदी | फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश

 

कूटनीति सफल

9 जून की आवरण कथा में, ‘भारतीय सेना ने साबित की अपनी बढ़त’ सिलसिलेवार ढंग से सब बातों को समझाती है। उन्मादी लोग ही भारत पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की घोषणा से परेशान हैं। दोनों के बीच विराम राहत की सांस लेने वाला फैसला है। लेकिन सबसे प्रमुख सवाल यह रह गया कि इस संघर्ष विराम में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मध्यस्थता संदिग्ध रही। आखिर क्यों वे अचानक से बीच में आ गए, ऐसे कई सवालों के जवाब अनुत्तरित रह गए। ट्रम्प को समझना चाहिए था कि यह दो देसों के बीच का मसला है। उन्होंने संघर्ष विराम की पहले सूचना देकर चाहे अपनी अपरिपक्वता जाहिर की या अपना गणित साधा, इसका जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को देना चाहिए।

प्रमोद सांवले | भोपाल, मध्य प्रदेश

 

मौजूं सवाल

‘वादी बोली दहशतगर्दी से तौबा’ (आउटलुक, 26 मई) पूरी स्थिति का पोस्टमार्टम करती दिखी। पहलगाम के आतंकी करतूत में निर्दोष और मासूम भारतीयों की हत्या का बदला लेना जरूरी है। लेकिन इस हमले के बाद यह सवाल पैदा होता है कि  हमारी खुफिया एजेंसी और सुरक्षा तंत्र विफल कैसे हो गए? जब पता था कि बहुतायत संख्या में पर्यटक आएंगे, तो सुरक्षा के पुख्ता इंतजामात क्यों नहीं किए गए? क्या हमें नहीं पता था कि ‘शत्रु-मित्र’ पाकिस्तान हमेशा ‘मुंह में राम, बगल में छुरी’ वाली कहावत चरितार्थ करता रहा है। वक्त का तकाजा है कि अब पाकिस्तान को जैसे को तैसा वाली भाषा में समझाया जाए। पाक हमारी उदारता को कायरता समझ रहा है, उसे सबक सिखाना बहुत जरूरी है।

डॉ. हर्ष वर्धन कुमार | पटना, बिहार

 

उम्दा संपादकीय

आउटलुक के 26 मई के संपादकीय, ‘कश्मीर की आवाज’ अच्छा लगा। पाकिस्तान बरसों से कश्मीर घाटी का माहौल बिगाड़ने पर उतारू रहा है। मगर अनुच्छेद 370 हटाने के बाद, ऐसा लग रहा था कि कश्मीर घाटी के लोग अब आतंकियों के मंसूबे सफल नहीं होने देंगे। वे लोग अपने राज्य को खुशहाल बनाने के लिए जी-जान से जुटे हैं। लेकिन एक बार फिर जिस तरह से आतंकियों ने पहलगाम की घटना को अंजाम दिया, तब लगा कि घाटी में आतंक सिर उठाने में सफल हो गया हैं। लेकिन वहां के लोगों ने समझदारी का परिचय दिया। इस घटना के बाद माहौल का शांतिपूर्ण रहना बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें सच लिखा है कि भारत और पाकिस्तान की सियासत में यही मूलभूत फर्क है कि यहां संसद का फैसला सर्वोच्च रहता है और पाकिस्तान में फौज का कब्जा रहता है। ऐसी परिस्थिति में दोनों देशों के बीच सार्थक संवाद होना सच में मुश्किल है। पाकिस्तान जब तक अपना कश्मीर का राग नहीं छोड़ेगा, तब तक किसी का भला नहीं होने वाला। 

मनमोहन राजावत | शाजापुर, मध्य प्रदेश

 

आतंक के जख्म

प्रेम ओर सौंदर्य का प्रतीक कश्मीर, जिसकी रूमानी सफेद बर्फीली वादियों को धरती पर जन्नत कहा जाता है, वही राज्य आतंकियों के हाथों लहूलुहान हो रहा है। अनुच्छेद 370 हटाना कुछ लोगों को बिलकुल रास नहीं आ रहा है। राज्य में निर्भीक चुनाव हो चुके हैं, यह पाकिस्तान को हजम नहीं हो रहा है। कश्मीर को फिर से धरती का स्वर्ग बनाकर राज्य को आर्थिक विकास की पटरी पर देखने के लिए कश्मीरी भी लालायित हैं। यह सब पाकिस्तानी परस्त आतंकियों और उनके आकाओं को नागवार होने लगा और वह किसी न किसी तरह से हमेशा कश्मीर की फिजा को खून से लाल करने की फिराक में रहते थे। इस जघन्य हत्याकांड ने एक बार फिर पुराने जख्मों को ताजा कर दिया, जब कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की निर्मम हत्या करके दहशत पैदा करने की कोशिश की जाती थी। लेकिन इससे कश्मीर का विकास नहीं थमेगा। आउटलुक की आवरण कथा, ‘वादी बोली दहशतगर्दी से तौबा’ में इन सभी बातों को बहुत अच्छे से समझाया गया है। 

अरविन्द रावल | झाबुआ, मध्य प्रदेश

 

वैश्विक समस्या

आउटलुक के 26 मई के अंक में, प्रकाशित आवरण कथा, ‘वादी बोली दहशतगर्दी से तौबा’ में यह साफ हो गया है कि यह हमला इंसानियत और कश्मीरियत पर हुआ है। जिस तरह धर्म पूछ कर निर्दोष पर्यटकों की हत्या की गई वाकई वह निम्न स्तर की करतूत है। आतंकियों ने मजहब के नाम पर जो काम किया, उसे रोकने के लिए मुस्लिमों को खुद इसका समाधान ढूंढने आगे आना होगा। अब यह नहीं कहा जा सकता कि आतंकवाद का धर्म नहीं होता। किसी एक धर्म के लिए यह कहना कि वह शांति का पैरोकार है, बेहद पाखंडभरी और दिखावटी बात है। सरकार अब कह रही है कि वह जांच कराएगी, लेकिन सब जानते हैं कि जांच में कुछ नहीं निकलेगा। आतंकवाद वैश्विक समस्या बन चुका है। पूरी दुनिया के सभी देशों को मिलकर आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। जब तक आतंकी संगठनों को कड़ा संदेश नहीं जाएगा, वे सुधरने वाले नहीं हैं। पाकिस्तान के साथ खेल के रिश्ते बहुत पहले ही खत्म हो चुके हैं। अब पूरी तरह व्यापार के साथ वहां के कलाकारों के साथ संबंध भी खत्म कर लेना चाहिए। वे लोग इस लायक नहीं हैं कि उनके साथ कोई रिश्ता रखा जाए। वे लोग बस दहशतगर्दी करना जानते हैं।

युगल किशोर राही | छपरा, बिहार

 

पुरस्कृत पत्रः आंतरिक सुरक्षा उपाय

9 जून की आवरण कथा, ‘फतह और नए मोर्चे’, बहुत अच्छी लगी। पहलगाम में हुए आतंकी हमले का भारतीय सेना ने करारा जवाब दिया। लेकिन पाकिस्तान ऐसा देश है, जिसे सिर्फ जवाब समझ नहीं आता। उसे जितनी बार सबक सिखाया गया, वह पलट कर फिर आया है। हो सकता है कि भारत ने अपनी सामरिक शक्ति का अच्छा प्रदर्शन किया हो लेकिन इस देश को सुधारने की जरूरत है। मच्छरों का सबसे अच्छा उपाय मच्छरदानी होता है। उस पर कोई कीटनाशक काम नहीं करता। वे बढ़ते ही जाते हैं। इसलिए हमें अपनी आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करना चाहिए। चारों तरफ सुरक्षा इतनी पुख्ता हो कि ये लोग अंदर न आ पाएं, अंदर सुरक्षा इतनी चाक-चौबंद हो कि कोई हमला न हो। ऐसे सुरक्षा उपाय ही हमें इन लोगों से बचाए रखेंगे।

प्रज्‍ज्वल रावत|कोटद्वार, उत्तराखंड

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