चल पड़ा सिलसिला
13 अक्टूबर के अंक में आवरण कथा ‘पिंग क्रांति’ में युवाओं के गुस्से को बखूबी दर्शाया गया है। नेपाल में जेन जी ने समूची व्यवस्था को बता दिया कि उनकी ताकत किसी से कम नहीं है। सोशल मीडिया आज के युवाओं की ताकत है। वे लोग भावनात्मक रूप से इससे जुड़े हुए हैं। इस पर प्रतिबंध लगाना नेपाल सरकार को भारी पड़ा। सोशल मीडिया ने कई वैश्विक आंदोलनों को धार दी है। अब यह कहना बिलकुल अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आने वाले समय में सोशल मीडिया सत्ता के लिए विपक्ष से भी बड़ी चुनौती बनने जा रहा है। जो काम विपक्ष नहीं कर पाता, वह काम सोशल मीडिया कर देता है। इस माध्यम को कमतर नहीं आंका जा सकता। इसका सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। पूरे विश्व में युवा गुस्से में हैं। लेकिन दक्षिण पूर्व एशिया, खासकर भारतीय उपमहाद्वीप में नौजवानों ने इसकी ताकत को पहचान लिया है। अब यह सिलसिला ही चल पड़ा है कि निर्वाचित सरकारों को उनकी गलती के लिए चुनाव में हराने तक का इंतजार मत करो। उन्हें उनके महलों से निकालो और सजा दो।
गौरीनाथ शाक्य | ग्वालियर, मध्य प्रदेश
झूठे वादों से तौबा
13 अक्टूबर के अंक में आवरण कथा ‘पिंग क्रांति’ नेपाल की हालत को बहुत अच्छे से बयां करती है। पहले श्रीलंका, फिर बांग्लादेश और अब नेपाल। तीनों ही देशों में लोगों ने क्रांति की और युवाओं ने उसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। सरकार की नीतियों ने लोगों को गुस्से से भर दिया और राजनैतिक अभिजात वर्ग ने आम जनता की जो अनदेखी की थी, उससे उपजे असंतोष ने नेपाल सरकार को बैकफुट पर ला दिया। युवाओं के गुस्से और असंतोष को सोशल मीडिया का साथ मिला और जेन जी ने ऐसी यादगार क्रांति की कि अब कोई नेता उनसे झूठे वादे करने से पहले सौ बार सोचेगा।
चारूलता मरांडी | फारबिसगंज, झारखंड
असली अग्निपरीक्षा बाकी
13 अक्टूबर के अंक में आवरण कथा ‘पिंग क्रांति’ पढ़ी। राजनैतिक दल लोकतंत्र के मूलमंत्र लोक कल्याण की कसौटी पर परखे जाते हैं। जब जनता को लगे कि राजनैतिक दलों में लोक कल्याण की भावना नहीं रही और लोकतांत्रिक सरकार तानाशाह की तरह काम कर रही है, तब क्रांति होती है। नेपाल में यही हुआ। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नेता, आर्थिक असमानता, बेरोजगारी, युवाओं को अंधकारमय दिखता भविष्य और संवैधानिक संस्थाओं के राजनीतिकरण ने आंदोलन की जमीन तैयार की। इस जमीन पर आंदोलन का ज्वालामुखी सोशल मीडिया पर बैन से फूटा क्योंकि इससे आम युवा का अपने दुख-दर्द, नाराजगी, पसंद-नापसंद व्यक्त करने का सबसे सहज माध्यम भी खत्म हो गया। वैसे नेपाल की अंतरिम सरकार परिवर्तन की वाहक नहीं हो सकती। उसका काम फिलहाल सिर्फ शांति की स्थापना और लोकतंत्र की बहाली है। चुनाव के बाद जो भी सरकार आएगी, उसे असली अग्निपरीक्षा देनी होगी।
बृजेश माथुर | गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
पारदर्शिता लानी होगी
आउटलुक की 13 अक्टूबर की कवर स्टोरी, ‘तख्तापलट का जवां तेवर’ ने सही रूप में जेनरेशन जेड के असंतोष की स्थिति को उजागर किया। वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई और सीमित अवसरों ने युवा वर्ग में हताशा और असंतोष की भावना को बढ़ाया है। नेपाल में युवा बेरोजगार हैं और राजनैतिक अस्थिरता के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। बांग्लादेश में लगभग 16 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं, पाकिस्तान और श्रीलंका में भी आर्थिक संकट के चलते युवा और छात्र प्रदर्शन कर चुके हैं। यूरोप में फ्रांस और इटली में बेरोजगारी और सामाजिक असमानता के खिलाफ युवा सड़कों पर उतरे हैं। यानी देखा जाए, तो विश्व में हर जगह कहीं न कहीं असंतोष की चिंगारी भड़क रही है। डिजिटल युग ने इस असंतोष को और तेज कर दिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गुस्सा, गलत सूचनाएं और सामाजिक ध्रुवीकरण तेजी से फैलते हैं, जिससे वास्तविक समस्याओं की चर्चा विकृत हो जाती है। जेनरेशन जेड केवल शिकायत नहीं कर रहा, वह नैतिक गंभीरता, डेटा-संचालित आलोचना और डिजिटल कनेक्टिविटी के माध्यम से जवाबदेही की मांग कर रही है। ऐसे प्रदर्शनों को रोकने के लिए सरकारों को तत्काल और ठोस कदम उठाने होंगे। युवाओं के लिए रोजगार सृजित करना होगा, शासन में पारदर्शिता लानी होगी और सामाजिक सुरक्षा जाल मजबूत करना पड़ेगा। अगर युवाओं की मांगों की लंबे समय तक अनदेखी की गई, तो यह असंतोष, आर्थिक ठहराव और सामाजिक विखंडन का कारण बन सकती है। ठोस नीतियों से ही युवा ऊर्जा को रचनात्मक में बदला जा सकता है।
विजय सिंह अधिकारी | नैनीताल, उत्तराखंड
भ्रष्टाचार मुक्त छवि
13 अक्टूबर के अंक में, ‘प्रतिबंध बनी चिंगारी’ लेख बहुत पसंद आया। जेन जी के विरोध प्रदर्शन के बाद सुशीला कार्की नेपाल की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बन गईं। 2016 में वे नेपाल के सुप्रीम कोर्ट की प्रथम महिला प्रधान न्यायाधीश भी रह चुकी हैं। उनकी ताजपोशी नेपाल के इतिहास में मील का पत्थर है। अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर अगले वर्ष मार्च तक के लिए उनके कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी है। उनको यह साबित करना होगा कि वे वास्तव में बदलाव की प्रतीक हैं। कार्की के सामने कानून-व्यवस्था को मजबूत करने के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था और पर्यटन को वापस पटरी पर लाने की जिम्मेदारी है। अंतरिम सरकार के गठन में उन्होंने जेन जी के प्रतिनिधियों से भी गहन विमर्श किया है, तो आशा करें कि वे उन सब युवाओं की अपेक्षाओं पर खरा उतरेंगी, जिन्होंने उनको चुना है। उन्हें हर संभव प्रयास करना होगा की वे युवाओं के लिए नए रोजगार के अवसर उपलब्ध करा पाएं। उन्हें भ्रष्टाचार में लिप्त ओली सरकार की छवि से नई सरकार को मुक्त करना होगा। नेपाल की भौगोलिक स्थिति उसे भारत-चीन के बीच संतुलन की चुनौती देती है। चीन हाल के साल में नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, तो कार्की को भारत के साथ ऐतिहासिक रिश्तों को मजबूत रखते हुए चीन की पकड़ को नियंत्रित करना होगा।
बाल गोविंद | नोएडा, उत्तर प्रदेश
खेलने की क्या मजबूरी
13 अक्टूबर के अंक में, ‘हाथ मिलाते रहिए’ सटीक लेख है। एक बात समझ के परे है कि ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि भारत को एशिया कप खेलना पड़ा? ऑपरेशन सिंदूर के बाद से भारत-पाक रिश्तों का असर क्रिकेट पर भी पड़ना ही था। दोनों टीमें साथ में खेलीं जरूर लेकिन दोनों ही टीमों के खिलाड़ियों ने आपस में हाथ नहीं मिलाया। यह बात खेल भावना को आहत करती है। जब ऐसा ही करना था, तो खेलने की क्या मजबूरी थी। इतना ही नहीं, मैच रेफरी को भी बेवजह विवाद में घसीट लिया गया। ऐसा लग रहा था जैसे खेल का मैदान न हुआ, जंग का मैदान हो गया। जब दो देश खेल के मैदान में उतरें, तब उनके बीच आपसी संबंध भी अच्छे होने चाहिए। तभी खेलने उतरना भी चाहिए, क्योंकि खेल का असर दूसरी टीम के खिलाड़ियों पर, पूरी टूर्नामेंट पर पड़ता है।
संजय जानी | रायपुर, छत्तीसगढ़
नीतियों की त्रासदी
आउटलुक के 29 सितंबर के अंक में आवरण कथा ‘ढहते पहाड़ जलमग्न धरती’ पढ़ी। इस साल मानसून के दौरान पहाड़ी राज्यों में बादल फटने, भूस्खलन, फ्लैश फ्लड जैसी घटनाओं से जनधन की काफी हानि हुई। हालांकि ये घटनाएं हर साल होती हैं लेकिन पिछले कुछ साल के मुकाबले इस बार कुछ ज्यादा ही घटनाएं देखने को मिल रही हैं। दुख की बात यह है कि इन घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया जाता। जंगल काटना, अति संवेदनशील पहाड़ों को काटकर निर्माण करना, नदियों को मोड़ना ऐसी मानवीय भूल हैं, जो इन घटनाओं को और विकराल रूप दे देती हैं।
संजीव कुमार | लखनऊ, उत्तर प्रदेश
उपलब्धि देखिए
29 सितंबर के अंक में, ‘उद्घाटन पर रस्साकशी’ भारत में घुलती जा रही संकीर्णता से परिचय कराता है। भारत में कब से धर्म, संस्कृति आदि के नाम पर इतना भेदभाव होने लगा। किसी संस्था या समारोह के उद्घाटन में धर्म देखना उस व्यक्ति का अपमान है, जिसने अपने बल पर नाम कमाया। बानू मुश्ताक बुकर विजेता हैं। मैसूर के ऐतिहासिक दशहरा समारोह का उनसे उद्घाटन कराना सरकार का शानदार कदम है। उनके इस समारोह से जुड़ने से समारोह में चार चांद लगे। विरोध करने वालों को उनकी उपलब्धि देखना चाहिए थी, न कि धर्म। भारत के लोगों का दिल इतना छोटा कभी नहीं रहा कि बुद्धिजीवियों का धर्म देखकर उनका अपमान करे।
कृष्ण कान्ता गहलोत | जयपुर, राजस्थान
पुरस्कृत पत्र: असंतोष का आक्रोश
फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हॉट्सऐप, यूट्यूब, एक्स और ऐसे कुछ दूसरे प्लेटफार्म ने तो कमाल कर दिया। अभी तक युवाओं को इस बात के लिए कोसा जाता था कि ये लोग इन माध्यमों पर अपना समय खराब कर रहे हैं। लेकिन नेपाल में “नेपोकिड्स” या “नेपोबेबिज” जैसे हैशटैग के जरिए युवाओं ने सरकार की चूलें हिला दीं। यह वाकई प्रशंसनीय काम है। मीम पीढ़ी कहे जाने वाले इस वर्ग ने बता दिया कि इस माध्यम में कितनी ताकत होती है। युवाओं ने रील्स बनाने की लत से बाहर निकल कर लोगों को इकट्ठा किया। यही क्रांति की नींव साबित हुई। जहां नेताओं के संतानों की विलासिता और उनकी जीवनशैली की पोल खोली गई और यह ऑनलाइन आक्रोश विरोध प्रदर्शन में बदल गया। (13 अक्टूबर, ‘पिंग क्रांति’।)
प्रियम राज|पणजी, गोवा