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23 जून 2025 · JUN 23 , 2025

ऑपरेशन सिंदूर/नजरिया: नई युद्ध रणनीति की शर्तें

आतंकवाद के खिलाफ नई नीति के तीन नए मानकों के लिए क्या जरूरी और क्या हैं भविष्य की चुनौतियां
निशानाः मुरीदके में भारतीय मिसाइल से ध्वस्त मस्जिद के पास मीडियाकर्मी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई, 2025 को राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा, ‘‘ऑपरेशन सिंदूर देश के करोड़ों लोगों की भावनाओं का प्रतिबिंब है... न्याय के प्रति हमारा अटूट संकल्‍प है।’’ ऑपरेशन सिंदूर पाकिस्तान की शह पर आतंकवादियों द्वारा बेकसूर लोगों की उनके परिजनों और बच्चों के सामने की गई हत्या के प्रति भारत की प्रतिक्रिया थी। भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में नौ आतंकवादी ठिकानों पर सटीक हमले किए, जिनमें लाहौर से लगभग 50 किमी उत्तर में मुरीदके में लश्कर-ए-तैयबा का मुख्यालय और लाहौर से लगभग 400 किमी दक्षिण में बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद का मुख्यालय शामिल है।

इस दौरान सैन्य कार्रवाई में भारत ने साफ बढ़त का प्रदर्शन किया। भारत ने पाकिस्तान की वायु रक्षा क्षमता को सफलतापूर्वक कमजोर किया और फिर पाकिस्तान के भीतर घुसकर संवेदनशील और अहम ठिकानों पर सटीक हमले किए। फिर पाकिस्तान से भारत के सैन्य तथा आम ठिकानों पर दागे गए सैकड़ों ड्रोन और मिसाइलों को बेअसर कर दिया। पाकिस्तान के संवेदनशील हवाई ठिकानों पर भारत का हमला इतना गहरा था कि पाकिस्तान को संघर्ष-विराम के तरीके खोजने पड़े।

संघर्ष-विराम के बाद प्रधानमंत्री ने घोषणा की और ऑपरेशन सिंदूर को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ‘न्‍यू नार्मल’ बताया। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ भारत की नई नीति के तीन मानकों की घोषणा की। पहला, भारत पर होने वाले हर आतंकवादी हमले का जवाब हमारी शर्तों पर ही दिया जाएगा। हम हर उस जगह पर सख्त कार्रवाई करेंगे, जहां से आतंकवाद की जड़ें निकलती हैं। दूसरा, भारत किसी भी परमाणु ब्लैकमेल को बर्दाश्त नहीं करेगा। भारत परमाणु ब्लैकमेल की आड़ में विकसित हो रहे आतंकी ठिकानों पर सटीक और निर्णायक हमला करेगा। तीसरा, हम सरकार प्रायोजित आतंकवाद और आतंकवाद के आकाओं के बीच फर्क नहीं करेंगे।

पहले मानक के लिए ठोस कार्रवाई की काबिलियत की दरकार है। यानी आतंक की जड़ों में मट्ठा डालने के लिए सटीक हमले और आकाओं पर सटीक निशाना लगाने की क्षमता की जरूरत है। भारत ने 6-7 मई, 2025 की रात को कुछ हद तक यह कर दिखाया, लेकिन टेक्‍नोलॉजी और पेशेवर तौर-तरीकों में और धार देने की दरकार है, इसलिए हमें तेजी से ऐसी क्षमता हासिल करनी होगी, जिससे यह तय हो सके कि हमारी बढ़त है। यह भी ध्यान में रखना होगा कि पाकिस्तान को चीन, तुर्किए, अजरबैजान और अन्य देशों की मदद से क्‍या हासिल हो सकता है और हम उसके मुकाबले कैसे बढ़त हासिल कर सकते हैं।

यकीनन पहले मानक की नींव ठोस खुफिया जानकारी और बारीक पड़ताल ही बनेगी। हमारा सामना ऐसे देश से हैं, जो छद्म युद्ध और अपनी हरकतों से इनकार करने की नीति पर चलता है। अजमल कसाब की गवाही सहित मुंबई हमले के सभी सबूतों के बाद भी, पाकिस्तान ने बड़े बेमन से कबूल किया था कि पाकिस्तान में ‘हमले की साजिश का एक हिस्सा’ ही बनाया गया हो सकता है। पहलगाम के बाद और पहले पुलवामा और ऐसे कई आतंकी हमलों में, पाकिस्तान ने साजिश के सिद्धांतों के साथ नैरेटिव को भटकाने के लिए प्रचार अभियान चलाया है और उन हमलों को राजनैतिक या अन्य उद्देश्यों के लिए भारतीय एजेंसियों का काम बताया है। इसलिए प्रभावी फैसलों, ठोस राजनैतिक इच्छाशक्ति, राष्ट्रीय एकता और संकल्प तथा फौरी जवाबी कार्रवाई के लिए खुफिया और बारीक पड़ताल सबसे जरूरी और अनिवार्य पहलू है।

आतंकवाद के खिलाफ भारत की नई नीति का दूसरा मानक कहता है कि भारत एटमी ब्लैकमेल की आड़ में विकसित हो रहे आतंकवादी ठिकानों पर सटीक और निर्णायक हमला करेगा। यानी एटमी ब्लैकमेल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऑपरेशन सिंदूर से पहले ही पाकिस्तान के मंत्रियों ने हमेशा की तरह एटमी हौवा खड़ा करना शुरू कर दिया था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारत ने पाकिस्तान के एटमी हौवे को बेनकाब करने की अपनी महारत को निखारा है। भारत ने 1998 के एटमी परीक्षणों के फौरन बाद, 1999 में करगिल की लड़ाई के दौरान पारंपरिक तरीके से जवाब देने के अपने संकल्प का प्रदर्शन किया था। 2016 में उड़ी हमले और 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत की जवाबी कार्रवाई के बारे में भी यही कहा जा सकता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 15 मई, 2025 को श्रीनगर में ‘न्‍यू नार्मल’ का दायरा बड़ा करने के साथ पाकिस्तान को एटमी हथियारों वाला बदमिजाज देश बताया। उन्‍होंने कहा कि अमेरिका पर 9/11 के हमलों के बाद पश्चिमी दुनिया के नेताओं और थिंक टैंकों के बीच यह आम बात थी, क्योंकि इन हमलों के मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन और खालिद मोहम्मद शेख के पाकिस्तान के साथ गहरे संबंध थे।

तीसरा मानक है आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों के बीच कोई फर्क न करना। इसके जरिए भारत की सहनशीलता की हद नए सिरे से परिभाषित की गई है। 6-7 मई, 2025 की दरमियानी रात 1:44 बजे रक्षा मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति में साफ कहा गया था कि ‘‘पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सिर्फ आतंकवादी ढांचों’’ को ही निशाना बनाया गया। इसमें अघोषित संदेश में स्‍पष्‍ट था: अगर पाकिस्तान सैन्य ठिकानों को निशाना बनाता है, तो भारत को उचित जवाब देने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। लेकिन पाकिस्‍तान ने जवाबी कार्रवाई में न सिर्फ हमारे सैन्य ठिकानों, बल्कि पूरी पश्चिमी सीमा और एलओसी पर आम आबादी पर भी हमले किए। उससे भी बदतर यह था कि मारे गए संदिग्‍धों का अंतिम संस्‍कार राजकीय सम्‍मान के साथ किया गया। इस तरह पाकिस्तान ने अपना रुख साफ कर दिया कि आतंकवादियों को सरकार का समर्थन मिलता रहेगा और उन्‍हें ‘रणनीतिक सहयोगी’ माना जाता रहेगा। जैसा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया, ‘‘पाकिस्तान सरकार मसूद अजहर पर 14 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बना रही है, भले ही वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादी है।’’ मीडिया खबरों के मुताबिक, पाकिस्तानी मंत्री राणा तनवीर हुसैन ने मुरीदके में लश्कर के मुख्यालय का दौरा किया और सरकारी खर्च पर उसके पुनर्निर्माण का ऐलान किया। जाहिर है, पाकिस्तानी फौज, आइएसआइ और आतंकवादी आकाओं के बीच गठजोड़ और मजबूत हो गया है। एक तरह से पहलगाम आतंकी हमले को अमेरिका पर 9/11 और लंदन ट्यूब धमाकों जैसे बड़े आतंकी हमलों से जोड़कर प्रधानमंत्री ने आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध का झंडा फिर बुलंद करने की कोशिश की है।

लेकिन पाकिस्तान पहलगाम हमले में किसी भी तरह से जुड़ाव होने से इनकार करने के लिए दुष्प्रचार पर उतारू है और उसे भारत पर थोप रहा है। लोगों की याददाश्त कमजोर होती है, इसलिए दुनिया को यह याद दिलाने की जरूरत है कि ओसामा बिन लादेन एबटाबाद में पाकिस्तान की फौजी अकादमी के करीब छिपा हुआ पाया गया था और 9/11 का मुख्य साजिशकर्ता खालिद मोहम्मद शेख पाकिस्तानी मूल का था और वह भी पाकिस्तान में पाया गया था। मध्यस्थता का श्रेय लेने की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इच्छा, पाकिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) का बेलआउट पैकेज और चीन, तुर्किए और अजरबैजान का पाकिस्तान के पक्ष में मजबूती से खड़ा होना, भारत के लिए गंभीर कूटनीतिक और राजनैतिक चुनौतियां हैं।

आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्‍तान को आइएमएफ बेलआउट पैकेज कुछ पूर्व शर्तों के साथ मिल सकता है, जिसका पूरा पैकेज जारी होने तक कुछ असर हो सकता है, लेकिन लंबे समय से पाकिस्तान इन अंतरराष्ट्रीय निकायों को झांसा देने में कामयाब रहा है। सिंधु जल संधि को स्थगित रखे जाने का असर दिखने में समय लगेगा। अपनी कमजोर अर्थव्यवस्था के बावजूद पाकिस्तानी फौज अपने दोस्तों की मदद से इन फंडों को रक्षा तैयारियों में लगाएगी।

सैन्य नजरिए से, आतंकवाद के खिलाफ नई नीति की जरूरतों के अनुरूप, भारत को अपनी रणनीति की समीक्षा करनी होगी। इस ताकत में बहुत उच्च स्तर की आत्मनिर्भरता होनी चाहिए, जो अपनी शर्तों पर उचित जवाब देने की अनिवार्य शर्त है। पाकिस्तान प्रायोजित प्रत्यक्ष या परोक्ष आतंकवाद लगातार जारी रहनी तय है, इसलिए मैं सशस्त्र बलों, शिक्षाविदों, उद्योग और हमारे वैज्ञानिक समुदाय में अपने सहयोगियों के लिए अपना पसंदीदा उपदेश दोहराता हूं: ‘‘हमें भारत के उपायों और उपकरणों के साथ भारत के युद्ध जीतने चाहिए।’’

लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) सुब्रत साहा

(लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) डॉ. सुब्रत साहा मानेकशॉ सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज ऐंड रिसर्च के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। विचार निजी हैं)

 

 

 

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