Advertisement

मोदी पर भारी कर्जमाफी और एमएसपी

राज्य में 11 लोकसभा सीटों में तीन प्रत्याशियों को छोड़कर भाजपा और कांग्रेस ने इस बार नए-नवेले उम्मीदवारों पर लगाया दांव
चुनावी अभियानः बस्तर में 11 अप्रैल को वोटिंग से पहले प्रचार करते भाजपा कार्यकर्ता

नक्सल हिंसा के लिए पहचान बना चुके छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में लोकसभा चुनाव का शोरगुल पिछले चुनावों जैसा दिखाई नहीं दे रहा है। शहरी और ग्रामीण इलाकों में इक्के-दुक्के बैनर-पोस्टर के अलावा पार्टी प्रत्याशियों के प्रचार में न तो गाड़ियां दौड़ती नजर आ रही हैं और न ही लाउडस्पीकर की गूंज सुनाई पड़ रही है। एक तो चुनाव आयोग की सख्ती और दूसरा कांग्रेस-भाजपा के नए-नवेले प्रत्याशियों के कारण चुनाव का रंग फीका है। राज्य की 11 लोकसभा सीटों में तीन प्रत्यशियों को छोड़कर दोनों दलों के 19 उम्मीदवार पहली बार लोकसभा के लिए ताल ठोक रहे हैं। भाजपा ने माहौल बदलने के लिए अपने मौजूदा 10 सांसदों का टिकट काटकर नए चेहरे उतारे। ये चेहरे चमत्कार दिखाने की जगह पहचान को मोहताज और संघर्ष करते दिख रहे हैं। ऐसे में चेहरे बदलने का दांव उसके लिए कहीं आत्मघाती न हो जाए। यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और काम पर कांग्रेस का किसानों का कर्जमाफी और 2500 रुपये में धान खरीदी का फैसला भारी पड़ता नजर आ रहा है। कांग्रेस न्यूनतम आय के मुद्दे को भुनाने में लगी है। यात्रा भी निकाली जा रही है। कांकेर जिले के सिंगारभाट के देवेंद्र ठाकुर का कहना है कि एयर स्ट्राइक और राष्ट्रवाद का ग्रामीण इलाके में कोई असर नहीं है। गांव के लोग तो अपने प्रत्याशी और स्थानीय मुद्दों पर वोटिंग करेंगे। बस्तर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत कोंडागांव के जितेंद्र कुमार का कहना था कि यहां के भाजपा प्रत्याशी बैदूराम कश्यप को हम नहीं जानते। कांग्रेस प्रत्याशी दीपक बैज की छवि सक्रिय और युवाओं के लिए आवाज उठाने की है। 2013 में दीपक और बैदूराम चित्रकोट विधानसभा में भिड़ चुके हैं, जिसमें बैदूराम को हार का सामना करना पड़ा था। देवेंद्र ठाकुर का कहना है कि कांकेर से कांग्रेस प्रत्याशी बीरेश ठाकुर को क्षेत्र के लोग जानते हैं। भाजपा के मोहन मंडावी क्षेत्र के लिए अनजान हैं। मोहन मंडावी और बीरेश ठाकुर रिश्ते में चाचा-भतीजा बताए जाते हैं। मोहन मंडावी छत्तीसगढ़ लोकसेवा आयोग के सदस्य से इस्तीफा देकर चुनाव मैदान में आए हैं, जबकि बीरेश के बारे में कहा जा रहा है कि वे पिछले कई वर्षों से जमीनी राजनीति से जुड़े रहे हैं। जगदलपुर के पत्रकार संतोष सिंह का कहना है कि यहां की जनता इस बार पॉजिटिव वोट करेगी। यानी भूपेश बघेल सरकार के तीन महीने के काम से खुश होकर किसान और वनवासी वोट डालेंगे। दीपक बैज ने आउटलुक से कहा, “जीत तय है। लोगों का सकारात्मक रुख दिखाई दे रहा है।”

बस्तर लोकसभा में जगदलपुर, कोंटा, कोंडागांव, चित्रकोट, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बस्तर और बीजापुर विधानसभा सीटें आती हैं। 70 फीसदी आदिवासी वोटर हैं, जिनमें गोंड़, मारिया, ध्रुव और हल्बा जनजाति प्रमुख हैं। बस्तर लोकसभा सीट के भाजपा  और कांग्रेस दोनों के प्रत्याशी गोंड़ जनजाति के हैं। इस सीट में 11 अप्रैल को मतदान है। कांग्रेस को यहां लोहंडीगुडा में टाटा से आदिवासियों को जमीन वापस दिलाने का फायदा मिलेगा। टाटा की फैक्टरी से प्रभावित होने वाले करीब 16 हजार वोटर हैं। वहीं, भाजपा प्रत्याशी को बलीराम कश्यप परिवार का कितना साथ मिलता है, यह बड़ा मायने रखेगा। भाजपा ने 21 साल बाद बलीराम कश्यप परिवार के सदस्यों का टिकट काटा है। कश्यप परिवार का जमीनी आधार आज भी मजबूत बताया जा रहा है। बलीराम कश्यप ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रभाव को खत्म कर यहां 1998 में कांग्रेस की जमीन पर पहली बार अपना परचम लहराया था। इंदिरा गांधी ने 1972 में बस्तर आकर कांग्रेस की नींव तैयार की थी। जगदलपुर के पत्रकार विनोद सिंह का कहना है, “इंदिरा गांधी अबूझमाड़ भी गईं थीं, जो आज अत्यधिक संवेदनशील नक्सली क्षेत्र है। भाजपा ने चावल, नमक और चना सस्ते में बांटकर आदिवासियों को अपने साथ जोड़ा। लेकिन 2015 में योजना बंद करने से उसे 2018 में नुकसान उठाना पड़ा।” बैदूराम कश्यप ने आउटलुक से कहा, “लोगों से मिलकर अपनी बात रख रहे हैं। मोदी जी के नाम पर लोग भाजपा को वोट करेंगे।” दंतेवाड़ा निवासी योगेंद्र ठाकुर का कहना है कि इस विधानसभा में भाजपा की स्थिति ठीक रहेगी, लेकिन दीपक बैज को दूसरे विधानसभा में उनकी सक्रियता का लाभ मिलेगा। बस्तर इलाके के कांकेर लोकसभा क्षेत्र में चार जिलों के आठ विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें धमतरी जिले के सिहावा, बालोद जिले का संजारी बालोद, गुंडरदेही, डोंडी लोहारा, कांकेर जिले के कांकेर, भानुप्रतापपुर, अंतागढ़ और कोंडागांव जिले का केशकाल विधानसभाएं शामिल हैं। कांकेर लोकसभा में 52 फीसदी आदिवासियों के साथ ओबीसी मतदाता भी बड़ी संख्या में हैं। यहां एससी वोटर करीब नौ प्रतिशत हैं। बस्तर में भाजपा मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के लिए जनता से वोट मांग रही है, तो कांग्रेस ‘जो कहा, सो किया’ का नारा देकर प्रदेश के बाद देश में बदलाव को हथियार बनाए हुए है। नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जगदलपुर रुक कर ओडिशा जा रहे हैं, लेकिन यहां कार्यक्रम नहीं कर रहे हैं। कांकेर  में भाजपा और कांग्रेस हमेशा प्रत्याशी बदलती रही है, लेकिन दो दशक से यहां भाजपा का कब्जा है। इस लोकसभा में आने वाले चारामा के राजेंद्र सिन्हा और भेखराम का कहना है कि इस बार स्थिति बदलेगी। बस्तर की दोनों सीटों में कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला सीधा है। दूसरे दल के प्रत्याशी हैं, लेकिन कोई जोर नहीं मार पाएंगे।

छत्तीसगढ़ के बस्तर ही नहीं, बल्कि दूसरे लोकसभा क्षेत्र में भी भाजपा को चेहरे का नुकसान होता दिख रहा है। महासमुंद लोकसभा सीट में कांग्रेस के धनेन्द्र साहू के सामने भाजपा के चुन्नीलाल साहू बौने लग रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और अभनपुर के विधायक धनेन्द्र पहले रायपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। उनके लिए पहचान का संकट नहीं है। धमतरी के सुनील शर्मा का कहना है कि यहां 20 फीसदी साहू समाज के वोट हैं। यह तो बंटेगा, लेकिन 10 फीसदी कुर्मी, 25 फीसदी आदिवासी, 8 फीसदी एससी और 37 फीसदी अन्य समाज का वोट किधर जाता है, इस पर चुनाव नतीजा निर्भर करेगा। साहू समाज के प्रदेश अध्यक्ष विपिन साहू के कांग्रेस में आने से पार्टी प्रत्याशियों को लाभ मिल सकता है। बिलासपुर में भाजपा के अशोक साव और कांग्रेस के अटल श्रीवास्तव दोनों पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा राज में बिलासपुर में पुलिस लाठीचार्ज से अटल चर्चित चेहरा हो गए। अशोक साव के लिए पहचान का संकट है। जांजगीर सीट में भाजपा प्रत्याशी पूर्व सांसद गुहाराम अजगले बाहरी के फेर में फंस गए हैं। सरगुजा में  कांग्रेस के खेलसाय सिंह और भाजपा की रेणुका सिंह में जबरदस्त टक्कर के आसार हैं। पूर्व सांसद रहे खेलसाय सिंह और पूर्व मंत्री रेणुका प्रेमनगर विधानसभा के प्रतिद्वंद्वी हैं। दुर्ग लोकसभा में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। दुर्ग में भाजपा-कांग्रेस दोनों के प्रत्याशी कुर्मी समाज से हैं। यहां साहू समाज का वोट निर्णायक होगा। राजनांदगांव में भाजपा प्रत्याशी एकदम नए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह पर ही दारोमदार है। कांग्रेस ने साहू समाज से उम्मीदवार खड़ा किया है। वे विधायक भी रह चुके हैं। रायगढ़ में भी नए और स्थापित चेहरे के बीच मुकाबला है। कोरबा में विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत लड़ रही हैं। यह महंत का पुराना क्षेत्र है। भाजपा प्रत्याशी के नए होने से कांग्रेस को लाभ मिलता दिख रहा है। रायपुर सीट में नए और पुराने महापौर के बीच लड़ाई है। कांग्रेस प्रत्याशी और महापौर प्रमोद दुबे काफी पहले सक्रिय हो गए थे। इससे प्रचार में आगे दिख रहे हैं।

जमीनी स्तर के माहौल से लग रहा है कि राज्य में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का दो दशक से चला रहा सूखा खत्म होगा। तीन चुनावों में भाजपा के 10 और कांग्रेस के एक का आंकड़ा पलटता दिख रहा है। सत्ता में होने से कांग्रेस को फायदा होता भी नजर आ रहा है। अब 23 मई को ही नतीजों की घोषणा के साथ नजारा साफ होगा।

Advertisement
Advertisement
Advertisement