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इंटरव्यू/मां शीला आनंद

भगवान ने कहा था, “शीला लौट आ सकती है... लेकिन मेरे लिए वक्त जीवन में आगे बढ़ने का था”
मां शीला आनंद

“मैं जरूर कहना चाहूंगी कि जो शख्स मुझे सबसे ज्यादा प्यार करता था, उसे जब मैं छोड़ कर गई तो वह बहुत निराश और नाराज हुआ। इसकी वजह से उसने मुझे बहुत बुरा-भला कहा, लेकिन यह उसकी समस्या थी, न कि मेरी। ”

शीला बर्नस्टील आज कइयों के लिए अनजाना नाम हो सकता है, लेकिन मां आनंद शीला, जैसा उन्हें उस वक्त जाना जाता था, कहते ही ऐसी खूबसूरत, रहस्यमयी और विवादास्पद महिला की छवि उभरती है, जो भगवान ‘ओशो’ रजनीश के अमेरिका में विशाल कम्यून में घोटालों-घपलों और गड़बड़झालों को लेकर उठे तूफान के केंद्र में थी। उस कम्यून को रजनीश ने 1980 के दशक की शुरुआत में पुणे का आश्रम बंद करने के बाद खोला था। अपनी तरह ही विवादास्पद ‘अमीरों के गुरु’ की सर्वशक्तिशाली सचिव के तौर पर वे बड़ी धमक और शानो-शौकत के साथ अमेरिका के ऑरेगन में रजनीशपुरम सिटी के करोड़ों के साम्राज्य की तब तक कर्ताधर्ता थीं, जब तक उन पर अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की खातिर कानून के उल्लंघन और कथित जैव-आतंक जैसे कई तरह के अपराध करने के आरोप नहीं लगे। बाद में जब उस गुरु ने ही त्याग दिया, जिनसे उन्हें प्यार था तो शीला को 39 महीने अमेरिका की जेल में गुजारने पड़े और 1988 में जर्मनी भेज दी गईं। उसके बाद शीला चुपचाप स्विट्जरलैंड में जा बसीं और वहां बीमार और बुजुर्गों के लिए केअर होम खोल लिए। इस तरह उन्होंने कई साल गुमनामी में बिताए।

रजनीशपुरम के विवादों पर 2018 में नेटफ्लिक्स की डॉक्यूमेंट्री ‘वाइल्ड वाइल्ड कंट्री’ ने फिर से उन्हें सुर्खियों में ला दिया। अब नेटफ्लिक्स पर उन पर एक और डॉक्यूमेंट्री ‘सर्चिंग फॉर शीला’ दिखाई जा रही है, जिसे करन जौहर के धर्मा एंटरटेनमेंट ने प्रोड्यूस किया है। नेटफ्लिक्स की यह डॉक्यूमेंट्री शीला के भारत तक की यात्रा का वृतांत है, जिसमें 35 साल बाद 2019 में अपने गृहनगर वडोदरा में वापसी शामिल है, जहां शीला अंबालाल पटेल के रूप जन्म लिया था।

गिरिधर झा के साथ विस्तृत बातचीत में उन्होंने बड़ी बेबाकी से अपनेे गुरु के साथ संबंधों और तमाम मुद्दों के अलावा यह भी खुलासा किया कि वे अपने गुरु से बेइंतहा प्यार के बावजूद उनके पास कभी नहीं लौटीं। संपादित अंश:

 

आपको भारत में अपनी जड़ों की ओर लौटने में इतना वक्त क्यों लगा? आप 1988 में जेल से छूटने के बाद वापस घर आ सकती थीं....

मेरा परिवार नहीं चाहता था कि मैं भारत लौटूं... मैं कोई उम्मीद लेकर भारत नहीं आई थी। इसलिए मुझे यह देखकर आश्चर्य जरूर हुआ कि लोग मुझमें इतनी दिलचस्पी ले रहे हैं

उस वक्त मेरी कानूनी स्थिति स्थिर नहीं हो पाई थी। इसके अलावा मुझे पैसे भी कमाने थे। अपने गृहनगर लौटने के सुकून के बारे में सोचने से पहले मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना था। आप एक झटके में नहीं लौट सकते। मुझे एक और साहसिक कदम उठाने से पहले अपने लिए कुछ काम करना था। इसके अलावा, मेरा परिवार भी काफी प्रभावित हुआ था। वे नहीं चाहते थे कि मैं भारत लौटूं। उन्हें लगता था कि यहां मेरी जिंदगी पर खतरा है।

क्या भारत यात्रा के दौरान अपने गृहनगर वडोदरा गईं?

मैं उस समय को याद कर रही था जो मैंने बचपन में अपने माता-पिता के साथ बिताया था। कितना प्यारा बचपन था! लेकिन मैं आज के वडोदरा को देखकर बहुत निराश हुई क्योंकि बड़ौदा (वडोदरा) एक सुंदर शहर था, चारों ओर हरियाली हुआ करती थी। मेरे घर में भी कई पेड़ और सुंदर बगीचा था। अब कुछ नहीं है। चारों ओर कंक्रीट जंगल पसरा है। मैंने उन जगहों पर कूड़े के ढेर देखे, जो वास्तव में सुंदर थे। मेरे मन में दो तरह की भावनाएं आईं।

 

मैं रजनीशपुरम में वहां अपने पद अथवा काम की वजह से नहीं थी। मैं इसलिए थी क्योंकि मैं उनसे प्यार करती थी और वह प्यार बहुत कीमती था। मैं उस पर समझौता करने को तैयार नहीं थी।

 

क्या आप रिश्तेदारों, पुराने पारिवारिक मित्रों, पड़ोसियों....से मिलीं? क्या वे भी रजनीशपुरम के दिनों के विवादों के कारण आपको बाकी दुनिया की तरह देखते हैं?

मैं किसी भी रिश्तेदार से नहीं मिली, क्योंकि मेरा बड़ौदा में उनसे कोई संपर्क नहीं है। लेकिन जब मैं पड़ोस से गुजर रही थी, तो वे सभी मुझे बहुत प्यार और सम्मान के साथ बधाई देते मिले।

नेटफ्लिक्स के वाइल्ड वाइल्ड कंट्री से यह डॉक्यूमेंट्री कितनी अलग है?

मुझे नहीं पता है। जहां तक मेरा संबंध है, तो मैंने अपनी भावनाओं को वैसे ही व्यक्त किया है जैसा मैंने अभी किया। वास्तव में ऐसी ही हूं। एक बात कहूंगी कि अचानक, दोनों फिल्मों के कारण शायद मेरी यात्रा पर बहुत ध्यान दिया जाएगा। बाकी मेरी जिंदगी का सफर!

इतने वर्षों बाद भारत वापसी आपके लिए कैसी रही? आप उन लोगों से खुश हैं या नाखुश जो आज भी आपको उन कहानियों के आधार पर देखते हैं जो अतीत में आपके बारे में सुन रखी हैं?

मैं ऐसी कोई उम्मीद लेकर नहीं आई थी। इसलिए लोग मुझमें इतनी दिलचस्पी रख रहे हैं, यह देखकर मुझे आश्चर्य जरूर हुआ। और मैं नकारात्मक या सकारात्मक दिलचस्पी की तरह नहीं देखती, बस दिलचस्पी ही काफी है। यही अपने आप में बड़ी बात है।

कई वर्षों से आपके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इस वजह से हर तरह के कयास लगाए जा रहे थे। रजनीशपुरम में जो भी हुआ, उसके लिए केवल आपको जिम्मेदार ठहराया गया था। क्या वाइल्ड वाइल्ड कंट्री आपके प्रति लोगों की धारणा में कोई बदलाव लाया है?

यह सवाल दर्शकों और मेरे बारे में राय रखने वाले लोगों के लिए है। मैं स्विट्जरलैंड में अपने काम में मशगूल किसी ‘नजरिए से दूर’ थी। दुनिया इससे नावाकिफ थी कि मैं स्विट्जरलैंड में रह रही हूं। लेकिन मैं स्विट्जरलैंड में पूरी तरह से खुला जीवन जी रही थी। अगर किसी ने मुझसे संपर्क किया तो मैं मुलाकात, बातचीत या हर मदद को तैयार थी। मैंने खुद को कभी नहीं छिपाया।

भारत यात्रा के दौरान आप पुणे में ओशो के समाधि स्थल पर भी गईं। क्या आपने उनके भारत लौटने के बाद कभी उन्हें अपना पक्ष समझाने की कोशिश की? आखिर ओशो की मृत्यु के दो साल पहले आप अमेरिका की जेल से रिहा हो गई थीं।

नहीं, मैंने सीखा है कि आगे बढ़ो और अतीत को भुला दो। इसलिए मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। और कुछ समझाने को था नहीं। वहां से निकलने के पहले मैंने उन्हें सब कुछ बता दिया था, लिखकर भी दे दिया था। उसके अलावा और कुछ कहने को था नहीं। उनकी अपनी स्थिति थी और मेरी अपनी। मैंने अपनी सबसे बड़ी ताकत, प्यार को अपनी कमजोरी के रूप में कभी नहीं देखा। और उनका मानना था कि ‘वह जितना प्यार करती है, शीला कभी मुझे छोड़कर नहीं जाएगी!’ लेकिन मैंने ऐसी कोई वजह नहीं पाई। बेशक, भगवान ने एक सार्वजनिक प्रवचन में कहा था कि शीला किसी भी समय लौट सकती है, उसे अपना पद वापस मिल जाएगा और हमारे बीच किसी भी बारे में कोई विवाद नहीं है। उन्होंने कुछ ऐसी ही बात की थी। लेकिन वह मेरी समस्या नहीं थी। मैं वहां इसलिए नहीं थी क्योंकि मैं उस पद पर थी या उस काम को चाहती थी, जो मैं कर रही थी। मैं वहां केवल इसलिए थी क्योंकि मैं उनसे प्यार करती थी और वह प्यार बहुत कीमती था। मैं उस पर समझौता करने को तैयार नहीं थी।

उनकी तरफ से कभी कोई संदेश या संकेत आया कि आप वापस आ जाओ?

उन्होंने अपने प्रवचनों में कई बार बात की, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि मेरे लिए वह आगे बढ़ने का समय था।

आप उनसे बहुत प्यार करते थीं और ऐसा माना जाता है कि वे भी आपसे बेहद प्यार करते थे। लेकिन सार्वजनिक प्लेटफॉर्मों से उन्होंने आपको यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि आपने अमेरिका में जो कुछ भी किया, उसकी जिम्मेदार आप खुद थीं। क्या इससे आपको कभी गुस्सा या निराशा नहीं हुई?

मैं यह कहना चाहती हूं कि जो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते थे, मैं छोड़ कर गई तो वे बहुत निराश और नाराज थे। उसकी वजह से उन्होंने मुझे बहुत भला-बुरा कहा, लेकिन यह उनकी समस्या थी, न कि मेरी। जहां तक मेरी बात है, मैं उन्हें आज भी प्यार करती हूं और उनका सम्मान करती हूं। यह व्यवहार मेरे प्यार की गहराई को बताता है।

क्या आपको लगता है कि यह सब केवल दो व्यक्तियों के बीच था, या कुछ और चीजें शामिल थीं? रजनीश कम्यून विशाल साम्राज्य बन गया था। क्या भगवान रजनीश के आसपास के कुछ लोगों ने उन्हें आपके खिलाफ भड़काया था, या वे अपने सभी फैसले खुद से लेने वाले व्यक्ति थे?

मैं वहां बहुत मजबूत स्थिति में थी और वहां कई ऐसी संन्यासिन थीं जो शायद मुझसे या मेरी हैसियत से खुश नहीं थी। लेकिन मेरा मुद्दा उनके और मेरे बीच का था और मेरे पास उनकी शिक्षाओं और उनके कम्यून और उनकी रक्षा करने की जिम्मेदारी थी। उनके करीबी वे लोग नहीं थे जो उनके साथ ड्रग्स का प्रयोग कर रहे थे। यह एक बुरा विचार था। और अमेरिकी सरकार हमें समाप्त करने के मौका तलाश रही थी। उसकी रक्षा करने के लिए, मैं उनके पास गई और कहा, भगवान, हमें रोकने के लिए यह सब किया जा रहा है। लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि आप इस काम में दखल नहीं दे सकती हैं। ऐसे में जो काम मुझे सौंपा गया था, मैं वह नहीं कर सकती थी, क्योंकि ऐसा करने के लिए उन्होंने मुझे रोक दिया था। साफ था कि मेरे जाने का समय आ गया था और इसीलिए मैंने छोड़ दिया। चाहे दुनिया इसे स्वीकार करे या नहीं, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

गुरु-शिष्या: अमेरिका में रजनीश के साथ युवा मां शीला आनंद

 

आपने भगवान रजनीश के नए आश्रम के रूप में ऑरेगन में बसने से पहले भारत में कई स्थानों का पता लगाया। लेकिन वहां जो कुछ भी हुआ उसके बाद आपके दिमाग में यह विचार आया कि वह किसी भी अन्य पुरातनपंथी अनुदार जगह से अलग नहीं था। क्या यह सच है?

72 साल की उम्र में, मैं आपसे कह सकती हूं कि उस वक्त मैं भोली थी जिस वजह से मैं सोचती थी कि अमेरिकी संविधान पवित्र है। लेकिन आप अनुभव से सीखते हैं। अब कोई पूछे तो मैं भगवान को अमेरिका जाने की सलाह नहीं देती।

क्या आपको लगता है कि अमेरिका जाना एक गलती थी?

नहीं, उन दिनों मेरे भोलेपन का एक कारण था। अमेरिका में लोकतंत्र काम कर रहा था लेकिन आप 2020 के अमेरिकी चुनावों से समझ सकते हैं हैं कि वहां कितना अच्छा लोकतंत्र है। ये वही रिपब्लिकन थे जिन्होंने हमारी योजनाओं पर आपत्ति जताई, जिन्होंने हमें अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया। आप इसे पसंद करें या नहीं करें लेकिन नेता ऐसे ही काम करते हैं।

अमेरिका जाने के पहले पुणे से भी बड़ा रजनीश कम्यून स्थापित करने के लिए आपको भारत में उपयुक्त स्थान क्यों नहीं मिला? क्या ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनके विचारों को सत्ता विरोधी के रूप में देखा जाता था? पुरातनपंथी लोग पुणे आश्रम की कुछ कथित गतिविधियों पर नाराज भी थे?

खैर, उस वक्त भारत में राजनीतिक इमरजेंसी लगी थी। हम कई वर्षों से एक जगह की तलाश कर रहे थे लेकिन कुछ भी करने की अनुमति नहीं थी। और यही वास्तविकता थी।

 

रिपब्लिकन ने हमारी योजनाओं पर आपत्ति जताई तो राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल भी किया। आप पसंद करें या नहीं, नेता ऐसे ही काम करते हैं

 

आप स्विट्जरलैंड में बीमार और बुजुर्गों के लिए आश्रम चलाने जैसे परोपकार का काम कर रही हैं। भविष्य में भारत में इसी तरह का मिशन शुरू करने की कोई योजना है?

मैं इसे करना पसंद करूंगी। अगर मुझे ऐसा करने का अवसर दिया जाता है, तो मैं जरूर करूंगी।

मैं आपसे एक काल्पनिक प्रश्न पूछूं? अगर आपकी सोच के अनुरूप रजनीशपुरम को अमेरिका में फलने-फूलने की अनुमति दी गई होती तो वह अब, करीब साढ़े तीन दशक बाद, कैसा दिखता?

मुझे नहीं पता। मैं बहुत ही व्यावहारिक महिला हूं और फंतासी में नहीं, बल्कि हकीकत में जीती हूं।

 

 

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