कोरोना महामारी के बीच मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शपथ लेने के 29 दिन बाद मंत्रिमंडल बनाया, लेकिन जैसा वे चाहते थे, वैसा मंत्रिमंडल नहीं बना पाए। पांच लोगों के मंत्रिमंडल में दिल्ली के नेताओं की छाप ज्यादा दिखाई पड़ रही है। इस मंत्रिमंडल से आने वाले दिनों में शिवराज सिंह को कितना फ्री हेंड मिलेगा, यह भी बड़ा सवाल है। मंत्रिमंडल के आकार और चेहरे से लगता है शिवराज के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद भी नाप दिया गया। साथ ही पिछले 15 साल तक राज्य के बड़े चेहरे रहे भाजपा नेताओं को हैसियत दिखा दी गई। सिंधिया मंत्रिमंडल में कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे अपने छह विश्वस्तों को मंत्री और एक को उप मुख्यमंत्री बनाना चाह रहे थे। यह उनके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न भी था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। उन्हें दो लोगों से ही संतोष होना पड़ा। कमलनाथ सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे तुलसी सिलावट को जल संसाधन विभाग दे दिया गया, उनके पुराने अनुभव का लाभ लेना भी शिवराज ने जरूरी नहीं समझा, जबकि सिलावट कुछ दिनों पहले मुख्यमंत्री से मिलकर कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए लंबा सुझाव दे आए थे। कांग्रेस सरकार में मलाईदार परिवहन और राजस्व विभाग की कमान संभाल चुके गोविंद राजपूत को खाद्य-नागरिक आपूर्ति और सहकारिता विभाग की जिम्मेदारी दी गई।
एक बात साफ है कि सिंधिया की मांग के कारण मंत्रिमंडल गठन टल रहा था और सहमति नहीं बन पा रही थी। अन्यथा 23 मार्च को मुख्यमंत्री के साथ कुछ मंत्रियों को शपथ दिलाने में कोई दिक्कत नहीं थी। इससे कांग्रेस को ऊंगुली उठाने का भी मौका भी नहीं मिलता। मंत्रिमंडल को लेकर कांग्रेस के हल्ला बोल अभियान के कारण भाजपा हाईकमान ने छोटा मंत्रिमंडल बनाकर उसे चुप करा दिया साथ ही कई संकेत भी दे दिए। ब्राम्हण चेहरे गोपाल भार्गव कांग्रेस राज में नेता प्रतिपक्ष थे, फिर भी उन्हें वेटिंग लिस्ट में डाल दिया गया। ब्राम्हण नेता नरोत्तम मिश्रा को मंत्रिमंडल में शामिल कर नंबर दो का दर्जा देकर हाईकमान ने अपने विश्वस्त पर ज्यादा भरोसे की रणनीति अपनाई। नरोत्तम मिश्रा केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता अमित शाह के करीबी होने के साथ उनके आपरेशन लोटस में अहम भूमिका निभा चुके हैं। कहा जाता है नरोत्तम मिश्रा को अमित शाह अपने कार्यकाल में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन तब मुख्यमंत्री शिवराज के विरोध के कारण मिश्रा पीछे हो गए और शाह को जबलपुर के सांसद राकेश सिंह के नाम पर मुहर लगानी पड़ी। 22 विधायकों के दल-बदल के बाद मुख्यमंत्री की दौड़ में शिवराज और अन्य नेताओं के साथ नरोत्तम भी थे, लेकिन भाजपा हाईकमान ने राज्य में 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव को मद्देनजर रखते हुए पुराने खिलाड़ी शिवराज पर ही दांव लगाया। पर मंत्रिमंडल से लग रहा है कि हाईकमान ने लगाम अपने पास ही रखी है।
नरोत्तम मिश्रा को गृह और स्वास्थ्य-परिवार कल्याण विभाग दिया गया है। वर्तमान कोरोना संक्रमण से निपटने में गृह और स्वास्थ्य विभाग की ही अहम भूमिका है। कहा जा रहा है कि नरोत्तम को पहले स्वास्थ्य विभाग ही दिया जा रहा था, उन्होंने हाईकमान से दबाव बनवाकर गृह विभाग भी ले लिया। गौरतलब है कि कमलनाथ के राज में ई- टेंडरिंग मामले में गड़बड़ी के आरोप में नरोत्तम मिश्रा के निजी सचिवों के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो ने कार्रवाई की थी।
कमल पटेल को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का करीबी माना जाता है। मध्यप्रदेश की राजनीति में शिवराज और कैलाश विपरीत ध्रुव जैसे हैं, तो कुछ मौकों पर कमल पटेल भी शिवराज के खिलाफ खड़े दिखाई दिए। साफ है कि हाईकमान की सहमति के बैगर पटेल न तो मंत्री बन पाते न उन्हें कृषि और किसान कल्याण जैसा बड़ा विभाग मिल पाता। मीना सिंह के नाम ने सबको चौंकाया। कमलनाथ सरकार में मंत्री न बन पाने से दुखी बिसाहूलाल सिंह ने मंत्री बनने लिए ही कांग्रेस से बगावत की थी। कांग्रेस के बड़े आदिवासी नेता और कई बार मंत्री रहे बिसाहू लाल की जगह उमरिया की आदिवासी विधायक मीना सिंह को मंत्री बना दिया गया। मीना सिंह को संघ और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीडी शर्मा की पसंद बताया जा रहा है। मीना सिंह को आदिमजाति कल्याण मंत्री बनाया गया है।
मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल के विस्तार की जब भी बात चली मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खास पांच पूर्व मंत्रियों के नाम चर्चा में जरूर रहे- पूर्व गृह एवं परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह, पूर्व कृषि एवं सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन, पूर्व ऊर्जा एवं खनिज मंत्री राजेंद्र शुक्ला, पूर्व आदिम जाति कल्याण मंत्री विजय शाह तथा पूर्व पीएचई मंत्री रामपाल सिंह। कल्पना भी नहीं की जा रही थी कि शिवराज का मंत्रिमंडल बनेगा और उसमें ये नहीं होंगे। इनमें से किसी को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। कहा जाता है कि ये नेता 13 साल तक शिवराज की छाया की तरह रहे। अपने लोगों को कैबिनेट में जगह न दिलाने को पार्टी में शिवराज की पकड़ कमजोर होने के तौर पर देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री की दौड़ में रहे गोपाल भार्गव मंत्री तक नहीं बन पाए। इस झटके से स्वाभाविक तौर पर भार्गव खुश नहीं होंगे। भार्गव का सम्मान बरकरार रखने के लिए कुछ लोग उनका नाम विधानसभा अध्यक्ष के लिए चला रहे हैं। वैसे छोटे मंत्रिमंडल में जगह न मिल पाने से नाराज विधायकों से प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा और प्रदेश प्रभारी एवं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे ने बात की है और अगले विस्तार में मंत्री बनाने का भरोसा दिलाया है।
विस्तार कब होगा, यह तय नहीं है। लॉकडाउन खुलने या फिर उपचुनाव के बाद। सिंधिया का जोर इस बात पर है कि उनके 7-8 लोग मंत्री के तौर पर उपचुनाव में जाएं, जिससे जीत में मदद मिले। बिसाहूलाल सिंह, एदलसिंह कंसाना, राजवर्धनसिंह दत्तीगांव, हरदीप सिंह डंग भी मंत्री पद की चाह में कांग्रेस छोड़कर भाजपा आए हैं। सवाल है कि भाजपा कितने गैर विधायकों को मंत्री बना सकती है। अभी तो दो मंत्री पद मिला है, लेकिन इससे ज्यादा होते हैं तो कांग्रेस अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है। भोपाल के एडवोकेट जेपी. धनोपिया कहते हैं, “विधायकी छोड़ने वालों को मंत्री बनाना लोकतंत्र की हत्या है। संविधान में गैर विधायकों को मंत्री बनाने की सीमा भले ही तय नहीं है, लेकिन चुनाव जीतने की प्रत्याशा में कितनों को मंत्री बनाया जा सकता है?” भाजपा के पास अभी 107 विधायक हैं। 230 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए उसे दस और विधायकों की जरूरत है। इसलिए भाजपा सिंधिया की शर्तों को ज्यादा भाव नहीं दे रही है। भाजपा सिंधिया के दबाव में रहती तो तय था कि मंत्रिमंडल का आकर बड़ा होता और कांग्रेस से भाजपा में आए दस लोग मंत्री बन जाते।
तुलसी सिलावट के उप मुख्यमंत्री न बनने को सिंधिया के हथियार डालने के रूप में देखा जा रहा है। फिर भी सिंधिया अपने वजूद को बचाए रखने के लिए चंबल-ग्वालियर संभाग की अधिकांश सीटें भाजपा की झोली में डालना चाहेंगे। मुख्यमंत्री शिवराज कह रहे हैं, “कोरोना संकट से निपटने के बाद विस्तार में और लोगों को मौका दिया जायएगा।” भाजपा हाईकमान ने छोटे मंत्रिमंडल में जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधकर सिंधिया-शिवराज की आंखों का चश्मा हटा दिया है। अब शिवराज को नरोत्तम की पीठ पर बैठकर कोरोना की जंग लड़नी होगी। नरोत्तम के पास गृह और स्वस्थ्य दोनों विभाग है। अब देखना है कि वे शिवराज को पटकते हैं या साथ लेकर आगे बढ़ते हैं।
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आपात स्थिति को ध्यान में रखकर यह मंत्रिमंडल बनाया गया है। कुछ लोगों ने अपनी भावनाएं जरूर व्यक्त की हैं। आगे विस्तार में और लोगों को मौका दिया जाएगा। पार्टी में किसी प्रकार की नाराजगी नहीं है
विनय सहस्त्रबुद्धे
मध्य प्रदेश प्रभारी एवं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भाजपा
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भाजपा ने प्रदेश की जनता के साथ मजाक किया है। मंत्रिमंडल के गठन से ही इनके संघर्ष की वास्तविकता सामने आ चुकी है। आज जिनकी आवश्यकता थी, वो नदारद और जो संकट में भाग खड़े हुए वो अंदर हैं
कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री एवं मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष