मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह की सरकार के रास्ते में उनके अपने ही कांटे बिछाने में लग गए हैं। इसके चलते न तो मंत्रिमंडल का विस्तार हो पा रहा और न ही विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस से आगे निकलने की गारंटी दिख रही है। राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग की आशंका के मद्देनजर शिवराज का कैबिनेट बड़ा नहीं हो पाया। पांच लोगों के सहारे ही शिवराज सरकार चला रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने पाले में करके कमलनाथ की सरकार गिराई और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार बना तो ली, लेकिन पार्टी का हर बड़ा-छोटा नेता मंत्री बनना चाहता है। कई दौर की बातचीत के बाद भी मुख्यमंत्री शिवराज रास्ता तलाश नहीं पाए हैं।
कहने को तो भाजपा काडर-आधारित पार्टी है और बगावत करने की हिम्मत कोई नहीं करता। कोई बगावत करता है, तो उसका हश्र बुरा होता है। इसके बावजूद पार्टी में बगावत या फूट के सुर सुनने को मिलने लगे हैं। पार्टी के पुराने दिग्गज और एक दशक से ज्यादा समय तक लगातार मंत्री रहे गोपाल भार्गव, विजय शाह और गौरीशंकर बिसेन की बंद कमरे में चर्चा ने संगठन के कान खड़े कर दिए हैं। ये फिर मंत्री बनना चाहते हैं, लेकिन पार्टी के भीतर इनका विरोध भी हो रहा है। पुराने चेहरों की ही बार-बार ताजपोशी से कुछ लोग आवाज उठाने लगे हैं, पर पुराने लोगों को नजरअंदाज करने का साहस फिलहाल पार्टी दिखा नहीं सकती, क्योंकि उसके पास इतने विधायक नहीं हैं कि कुछ पर कार्रवाई के बाद अपनी सरकार बचा ले। इस मौके का फायदा उठाकर भाजपा के दिग्गज और दूसरे विधायक दबाव की राजनीति कर रहे हैं। 230 सदस्यीय मध्य प्रदेश विधानसभा में फिलहाल भाजपा के 107 और कांग्रेस के 92 विधायक हैं। बसपा-सपा और निर्दलीय मिलाकर विधायक सात हैं।
भाजपा के सामने समस्या यह भी है कि सिंधिया के साथ कांग्रेस से आए दस लोगों और कुछ निर्दलीय विधायकों को भी उसे मंत्री पद देना होगा। अभी दो सिंधिया समर्थक मंत्री बना दिए गए हैं। ऐसे में भाजपा के कोटे से मंत्री कम होंगे। प्रदेश में अधिकतम 34 मंत्री बनाए जा सकते हैं। कई जिलों में भाजपा और सिंधिया के लोगों में से किसे मंत्री बनाया जाए, यह समस्या खड़ी हो गई है। मसलन, सागर जिले में सिंधिया समर्थक गोविंद सिंह राजपूत के मंत्री बनने से उसी जिले से गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह को कैसे मंत्री बनाया जाए, यह समस्या आ रही है। इसी तरह रायसेन जिले से सिंधिया समर्थक डॉ. प्रभुराम चौधरी और भाजपा के सुरेंद्र पटवा में टक्कर की स्थिति है। भाजपा के भीतर भी मंत्री बनने के लिए खींचतान है। रीवा संभाग में पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ल के खिलाफ गिरीश गौतम और केदारनाथ शुक्ल ताल ठोक रहे हैं। यही नहीं, 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के हारे प्रत्याशियों ने भी उपचुनाव में सिंधिया समर्थकों को टिकट देने के खिलाफ बगावत का बिगुल बजाना शुरू कर दिया है। हाटपीपल्या सीट से हारे पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी मुखर हो गए हैं। सांची सीट पर भाजपा के डॉ. गौरीशंकर शेजवार को अपने प्रतिद्वंद्वी प्रभुराम चौधरी को सहन करना पड़ेगा।
कांग्रेस से भाजपा में गए लोगों और ग्वालियर-चंबल संभाग में दलबदलुओं के फीके स्वागत ने भाजपा के पेशानी पर बल ला दिया है। ग्वालियर इलाके में स्व. माधवराव सिंधिया के करीबी रहे बालेंदु शुक्ल की कांग्रेस में वापसी से चुनावी समीकरण पर असर पड़ सकता है। प्रेमचंद गुड्डू की कांग्रेस वापसी से भाजपा को सांवेर सीट पर चुनौती मिल सकती है।
कोरोना संकट के कारण मध्य प्रदेश में विधानसभा के उपचुनाव नवंबर में होने का अनुमान है। कांग्रेस उपचुनाव वाले इलाकों में जोर लगा रही है, लेकिन भाजपा मंत्रिमंडल में ही उलझकर रह गई दिखती है। राज्य में राज्यसभा चुनाव के लिए 19 जून को मतदान होने हैं। तीन सीटों के लिए कांग्रेस से दिग्विजय सिंह तथा फूलसिंह बरैया और भाजपा की तरफ से ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी प्रत्याशी हैं। भाजपा हर हाल में दो सीटें जीतना चाहती है, लेकिन कई नेताओं के मंत्री न बनने की स्थिति में क्रॉस वोटिंग के भय ने कैबिनेट का विस्तार रोक दिया। अब देखना है कि राज्यसभा चुनाव के बाद मंत्रिमंडल का विस्तार होता है या नहीं। विस्तार की तारीखें बढ़ती जा रही हैं। इससे कयास लगने लगे हैं कि कहीं मंत्रिमंडल विस्तार उपचुनाव खत्म होने तक न खिंच जाए।
अगर उपचुनाव में नतीजे गड़बड़ाए तो मुश्किल हो सकती है। भाजपा को पूर्ण बहुमत के लिए कम से कम दस सीटें चाहिए। सिंधिया समर्थक और कांग्रेस छोड़कर आए दूसरे नेता मंत्री के रूप में जनता के बीच चुनाव में जाना चाहते हैं। इस कारण उनमें भारी बेचैनी है, तो भाजपा विधायक भी मंत्री बनने के लिए कुलबुला रहे हैं। शिवराज कैबिनेट का विस्तार राज्यसभा के नतीजे पर निर्भर करेगा। नतीजे से ही मंत्रिमंडल विस्तार की रणनीति तय होगी।