अगर कुछ अरमान और थोड़ी खुशी पर काबू पाकर सफलता की बड़ी खुशी के लिए मशक्कत वाजिब है तो आदित्य श्रीवास्तव की कहानी ऐसी ही है। उन्होंने मध्य प्रदेश की क्रिकेट टीम को एक सूत्र में पिरोने में मदद की और खेल जगत के इतिहास में नाम दर्ज कराया। पिछले साल जून में शादी के लिए उन्हें सिर्फ दो दिन की छुट्टी मिली थी। आदित्य के पास हनीमून रद्द करने और कोच के निर्देश मानने के सिवाय कोई चारा नहीं था। उनके कोच भारतीय टीम के पूर्व विकेटकीपर हैं जो किसी भी बात पर समझौता नहीं करते।
आज आदित्य श्रीवास्तव और उनके साथी खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट के सुनहरे पन्नों में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। उनकी मध्य प्रदेश टीम ने 41 बार की चैंपियन मुंबई की टीम को छह विकेट से हराकर पहली बार रणजी ट्रॉफी जीती। आज से 69 साल पहले होलकर यानी इंदौर राज्य ने राष्ट्रीय क्रिकेट का यह खिताब हासिल किया था। 60 साल के पूर्व भारतीय विकेटकीपर चंद्रकांत पंडित के लिए उनके शानदार कोचिंग करिअर में एक और उपलब्धि है।
जब से रांची के महेंद्र सिंह धोनी भारतीय क्रिकेट टीम के आइकॉनिक कप्तान बने, तब से दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों से मध्य वर्ग के युवाओं में बेहतरीन प्रदर्शन की जैसे होड़ लग गई। श्रेष्ठ बनने की उत्कंठा से लबरेज ये युवा हर सामाजिक-आर्थिक बाधा तोड़ने को तैयार हैं। भारत में प्रोफेशनल क्रिकेट में प्रतिस्पर्धा ज्यादा है। लेकिन ये युवा हर लड़ाई लड़ने को तैयार नजर आते हैं।
अपेक्षाकृत नए इंडियन प्रीमियर लीग (आइपीएल) में गरीब परिवार के लड़कों के करोड़पति बनने की अनेक कहानियां मिलती हैं। लेकिन रणजी ट्रॉफी के 88 साल के इतिहास में मुंबई, दिल्ली और कर्नाटक जैसे शहरों या राज्यों का दबदबा रहा है। अब यहां भी गुजरात, उत्तर प्रदेश, विदर्भ, सौराष्ट्र और अब मध्य प्रदेश के खिलाड़ी अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं। लोकप्रिय टीवी रियलिटी शो इंडियन आइडल की तरह रणजी ट्रॉफी भी ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया है जहां भारत के हर कोने से आने वाले खिलाड़ियों को प्रतिभा प्रदर्शन का मौका मिलता है।
बेहतर प्रतिभा, अच्छे प्रदर्शन की लालसा और मैनेजमेंट का समर्थन सफलता की कहानियां लिखने के लिए जरूरी है लेकिन कोच की दूरदृष्टि भी खिलाड़ियों का करिअर मोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसी पहलू ने चंद्रकांत पंडित को ‘भारतीय क्रिकेट का एलेक्स फर्गुसन’ खिताब दिया है। स्कॉटलैंड निवासी लीजेंडरी फुटबॉल कोच फर्गुसन का नाम यूरोपियन फुटबॉल में मैनचेस्टर यूनाइटेड टीम के स्वर्णिम युग के साथ जोड़कर देखा जाता है। उनकी फिलॉसफी थी, कोई भी खिलाड़ी स्टार नहीं है। उनके कड़े अनुशासन और पूरी तरह ध्यान केंद्रित करने वाले रवैये ने ही मैनचेस्टर को दुर्धर्ष टीम बनाया था।
कोच के रूप में पंडित की वापसी से मध्य प्रदेश को काफी फायदा हुआ। पंडित ने 1986 से 1992 के दौरान पांच टेस्ट मैच और 36 एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेले थे। मुंबई में जन्मे और चंदू भाई नाम से लोकप्रिय पंडित को जब 2020 में कोविड-19 महामारी फैलने से ठीक पहले मार्च में मध्य प्रदेश की टीम का कोच नियुक्त किया गया तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा।
2002-03, 2003-04 और 2015-16 में अपनी कोचिंग से मुंबई टीम को रणजी खिताब दिलाने वाले चंदू पहले ही ‘पंडित’ का खिताब हासिल कर चुके थे। उनकी कोचिंग में 2017-18 में जब विदर्भ की टीम ने रणजी खिताब जीता था तो बतौर कोच पंडित का रुतबा बढ़ गया। उनकी मांग बढ़ गई। तीन टीमें उन्हें कोच बनाना चाहती थीं। लेकिन मध्य प्रदेश से उनका भावनात्मक जुड़ाव रहा है। इससे पहले मध्य प्रदेश ने सिर्फ 1998-99 में रणजी फाइनल में खेला था। उस टूर्नामेंट में उन्हें निराशा हाथ लगी थी। चंद्रकांत मध्य प्रदेश टीम के कप्तान थे और कर्नाटक के खिलाफ पहली पारी में 75 रनों की बढ़त लेने के बावजूद बेंगलूरू के चिन्नास्वामी स्टेडियम में मध्य प्रदेश की टीम दूसरी पारी में ढह गई और खिताब जीतने का सपना भी धरा रह गया।
एक इंटरव्यू में पंडित ने कहा, “मैंने सोचा क्यों न वापस मध्य प्रदेश चला जाए। आखिर मैं वहां की टीम में छह साल खेल चुका था। फिर 1998-99 में रणजी ट्रॉफी जीतने से चूक जाने की बात भी याद आई। शायद मेरे लिए उस ऑफर को स्वीकार करने का यह ईश्वर का संदेश था।” 23 साल पहले जिस स्टेडियम में बतौर खिलाड़ी पंडित रणजी ट्रॉफी को जीतने से रह गए थे, बतौर कोच न सिर्फ उसे हासिल किया बल्कि बेहतरीन खिलाड़ियों की एक टीम भी सामने लेकर आए।
भारतीय क्रिकेट में कोच बनना आसान नहीं होता। काम में हस्तक्षेप करने वाले अनेक होते हैं। रणजी ट्रॉफी टीमों में अधिकारी पैसे के बदले अपना ‘खेल’ खेलते रहते हैं। इसी सीजन में प्रथम श्रेणी के एक पूर्व क्रिकेटर बिहार की रणजी टीम के साथ कोच के रूप में जुड़े थे, उन्होंने बीच में ही इस्तीफा दे दिया। क्योंकि अधिकारियों ने उन पर कुछ ऐसे खिलाड़ियों को टीम में शामिल करने का दबाव बनाया जिन पर प्रथम श्रेणी का तमगा हासिल करने के लिए लाखों रुपये देने का आरोप है।
घरेलू क्रिकेट में अब खिलाड़ियों को अच्छा पैसा मिलने लगा है। मैच खेलने पर उनकी एक दिन की औसत कमाई 40 से 60 हजार रुपये तक होती है। दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआइ ने खिलाड़ियों का पारिश्रमिक बढ़ाया है। हालांकि घरेलू टूर्नामेंट में इनामी राशि अब भी कम है। रणजी चैंपियन टीम को सिर्फ दो करोड़ रुपये मिलते हैं, जबकि आइपीएल में तो अनेक खिलाड़ियों की बेस प्राइस इससे अधिक होती है।
पूर्व क्रिकेटर और वरिष्ठ प्रशासक संजय जगदाले कहते हैं, “चंदू की एकमात्र शर्त थी कि उन्हें अपने तरीके से काम करने की आजादी मिले। सबसे बड़ा बदलाव टीम के चयन में दिखता है। पहले मध्य प्रदेश में खिलाड़ियों का चयन सिर दर्द हुआ करता था। चंदू कोच होने के नाते चयन समिति की बैठक में मौजूद रहते हैं और पूरी तैयारी के साथ आते हैं। उनके रहते अभी तक ऐसा नहीं हुआ कि कोई खिलाड़ी वास्तव में हकदार हो और उसे जगह न मिली हो।”
मुंबई और मध्य प्रदेश के बीच फाइनल मुकाबले को गैर-बराबरी का माना जा रहा था। मध्य प्रदेश की टीम में आइपीएल के सुपरस्टार आवेश खान और वेंकटेश अय्यर नहीं थे। लेकिन पंडित तो ऐसी टीम पसंद करते हैं जो अच्छे प्रदर्शन में भरोसा रखती है और जहां कोई खिलाड़ी स्टार नहीं होता। उन्होंने अपने खिलाड़ियों का साथ दिया, उनके बैटिंग क्रम में कुछ बदलाव किए और टीम के महत्वपूर्ण खिलाड़ियों का भरोसा जीता।
जगदाले कहते हैं, “उदाहरण के लिए अक्षत रघुवंशी पिछले साल अंडर-19 दिन में भी नहीं थे, लेकिन पंडित उन्हें टीम में लेकर आए और देखिए अक्षत ने कैसा प्रदर्शन किया। तीन अर्धशतक, एक शतक और सेमीफाइनल में मैच जिताऊ पारी। चंदू जब किसी युवा खिलाड़ी को चुनते हैं तो उसका पूरा समर्थन करते हैं, उसे पूरी सुरक्षा देते हैं।”
कोच का समर्थन हो तो खिलाड़ियों का आत्मविश्वास कई गुना बढ़ जाता है। यह बात रजत पाटीदार के खेल से साबित होती है जिनके लिए रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूरू की तरफ से खेलते हुए आइपीएल 2022 का सीजन बहुत अच्छा रहा। पंडित बल्लेबाजी क्रम में पाटीदार को थोड़ा नीचे लेकर आए और उसके नतीजे बेहतरीन निकले। चौथे क्रम पर खेलते हुए पाटीदार ने 122 रन बनाए। बल्लेबाजी क्रम में बदलाव से मध्य प्रदेश को कई बार फायदा हुआ। इसी बदलाव के बाद यश दुबे ने भी बेहतरीन प्रदर्शन किया। पंडित ने दुबे को 28 पारियों के बाद सलामी बल्लेबाज के रूप में उतारा। नतीजा देखिए, दुबे ने केरल के खिलाफ दोहरा शतक लगाया। फाइनल में उन्होंने 133 रन बनाए और दूसरे विकेट के लिए शुभम शर्मा (116) के साथ 222 रनों की साझेदारी की।
विदर्भ और मध्य प्रदेश जैसी टीमों के साथ पंडित की योजनाओं ने घरेलू स्तर पर अच्छे नतीजे दिखाए हैं। संभव है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी रणनीति काम न आए। पंडित भी इस बात को स्वीकार करते हैं, “घरेलू क्रिकेट में एक व्यक्ति के लिए अपने तरीके लागू करवाना आसान होता है। मेरे पास गेंदबाजी या बल्लेबाजी कोच नहीं है। ज्यादा सलाह खिलाड़ियों को भ्रमित कर सकती है। घरेलू स्तर पर खेलने वाले युवाओं की ग्रहण करने क्षमता उतनी नहीं होती।”
जो भी हो, पंडित मध्यवर्गीय भारतीय क्रिकेटरों की आकांक्षाओं पर खरा उतरते हैं। युवाओं में बड़े फलक पर जाने की भूख बढ़ रही है। पंडित जैसे पुराने स्कूल के गुरु जानते हैं, खिलाड़ी के मस्तिष्क को कैसे पढ़ा जाए और उसके खेल को कैसे आगे बढ़ाया जाए।