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साल गया, सवाल बाकी

कैप्टन सरकार का एक साल पूरा, राज्य की खराब माली हालत के कारण घोषणा-पत्र पर अमल धीमा
वादे कितने पूरेः किसानों को कर्जमाफी सर्टिफिकेट देते मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह

पंजाब में भाजपा-अकाली दल के दस साल के शासन को समाप्त करने और आम आदमी पार्टी की चुनौती से पार पाने के लिए कांग्रेस ने 2017 के विधानसभा चुनाव में दिल खोलकर वादे किए थे। पार्टी ने ‘नौ नुक्तों’ यानी नौ बिंदुओं पर आधारित एक घोषणा-पत्र पेश किया था। कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार का  एक साल पूरा होने के बाद भी ज्यादातर वादों पर अमल शुरू नहीं हो पाया है। सत्ता में आने के चार हफ्ते के भीतर अमरिंदर सिंह ने ड्रग्स के खात्मे का वादा किया था। सरकार बनने के बाद से 1,419 तस्कर गिरफ्तार किए गए हैं। इसके बावजूद राज्य में नशे का कारोबार अब भी धड़ल्ले से चल रहा है। किसानों का सारा कर्ज माफ करने की बात कही गई थी। ढाई एकड़ जमीन वाले 5.65 लाख किसानों का कर्ज माफ करने के लिए 1,500 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया। लेकिन, अब तक केवल 329 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं और सिर्फ 76 हजार किसानों को ही फायदा मिल पाया है। राज्य के वित्त मंत्री और घोषणा-पत्र कमेटी के चेयरमैन रहे मनप्रीत बादल ने बताया कि नए बजट में घोषणाओं के बजाय सरकार पुरानी घोषणाओं को पूरा करेगी। पांच एकड़ तक के सभी 10.25 लाख किसानों की कर्जमाफी इस साल नवंबर तक पूरी हो जाएगी। इस पर 9,500 करोड़ रुपये खर्च होने का सरकार का आकलन है।

121 पन्नों के घोषणा-पत्र में कुल 481 वादे थे। जून 2017 के पहले बजट में अमरिंदर सरकार ने 74 वादों को पूरा करने के लिए 7,580 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। लेकिन, 74 में से केवल सात वादों पर ही काम शुरू हो पाया है। इन सात घोषणाओं को पूरा करने के लिए 3,226 करोड़ रुपये की जरूरत है, लेकिन जनवरी से लेकर अब तक केवल 552 करोड़ रुपये ही जारी हुए हैं। हालांकि, बादल का दावा है कि 125 से अधिक घोषणाएं पूरी की गई हैं। उन्होंने बताया, “घोषणा-पत्र के वादों को पूरा करना सरकार का पांच साल का रोडमैप है। अभी एक साल ही हुआ है। 14 हजार करोड़ से अधिक के रेवेन्यू घाटे वाले पंजाब को रेवेन्यू सरप्लस करने में अभी तीन साल और लगेंगे।”

सेंटर फॉर रिसर्च ऐंड रूरल ऐंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट (सीआरआरआइडी) के पूर्व महानिदेशक डॉ. सुच्चा सिंह गिल का कहना है कि अमरिंदर सिंह ने जो वादे किए थे उन्हें पूरा करने के लिए सालाना 10 हजार करोड़ रुपये चाहिए। लेकिन, इसके लिए साल भर में सरकार कोई ठोस एक्‍शन प्लान सामने नहीं रख पाई है। जीएसटी के कारण सरकार के हाथ से रेवेन्यू कलेक्‍शन बढ़ाने का विकल्प भी निकल गया है। उन्होंने बताया कि सरकार चाहे तो माइनिंग, स्टांप ड्‍यूटी, एक्साइज, ट्रांसपोर्ट और लोकल बॉडीज से रेवेन्यू कलेक्शन में सुधार कर सालाना पांच हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त राजस्व जुटा सकती है।

राज्य की खराब आर्थिक हालत का असर योजनाओं के आवंटन पर साफ-साफ दिखता है। बुढ़ापा, विधवा और अनाथ बच्चों की पेंशन बीते साल जून से 500 रुपये से बढ़ाकर 750 रुपये करने का ऐलान किया गया था। इससे सालाना 312.31 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ने से पेंशन बजट एक हजार करोड़ रुपये से ज्‍यादा का हो गया है। बीते साल अप्रैल से दिसंबर तक की बकाया पेंशन लोगों को अब तक नहीं मिली है। बीते सात मार्च को कैप्टन ने इस मद में हर महीने 128 करोड़ रुपये जारी करने का ऐलान किया लेकिन यह पैसा अब तक जारी नहीं हुआ है। इसी तरह करीब डेढ़ करोड़ बीपीएल परिवारों को हर महीने एक किलो चीनी और 100 ग्राम चाय पत्ती के लिए बजट 350 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 500 करोड़ रुपये किया गया, लेकिन इसके लिए पैसा जारी नहीं हो पाया है। ऐलान के साल भर बाद भी चीनी, चाय पत्ती नहीं मिल रही। बादल ने बताया कि अभी नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन के तहत लोगों को सिर्फ गेहूं ही मिलेगा। चाय पत्ती और चीनी इस साल भी उन्हें नहीं मिल पाएगी।

इसी तरह गरीब दलित, पिछड़ों, ईसाई, मुस्लिम, विधवाओं और तलाकशुदा महिलाओं की बेटियों की शादी पर शगुन के तौर पर मिलने वाली राशि बढ़ाकर 15 हजार से 21 हजार रुपये करने की घोषणा की गई थी। बजट में 200 करोड़ रुपये का ऐलान भी हुआ लेकिन फंड जारी नहीं हुआ। पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए बैकफिन्को स्कीम के तहत 50 हजार रुपये तक की कर्जमाफी के लिए केवल 2.44 करोड़ रुपये ही आवंटित किए गए हैं। युवाओं को हर महीने 2,500 रुपये बेरोजगारी भत्ता, फसल खराब होने पर किसानों को 12 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा, फसल बीमा, कर्मचारियों को छठें वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ देने, छात्रों को मुफ्त किताबें, लड़कियों को पहली से पीएचडी तक की मुफ्त शिक्षा, सरकारी प्राइमरी स्कूलों में फर्नीचर जैसे वादों पर अमल भी शुरू नहीं हो पाया है।

ज्यादातर ऐसे वादे पूरे हुए हैं जिनके लिए पैसों की जरूरत नहीं थी। इनमें प्रॉपर्टी पर स्टांप ड्‍यूटी छह फीसदी और ट्रांसफर फीस दो फीसदी करना प्रमुख हैं, जिसका जनता को सीधा लाभ मिला है। सरकारी वाहनों से लाल बत्ती हटाने, हर साल पांच फीसदी शराब ठेके कम करने, किसान आयोग का पुनर्गठन, गवर्नेंस ‌रिफॉर्म ऐंड एथिक्स कमीशन, ट्रक यूनियनें भंग करने जैसे वादे पूरे किए जा चुके हैं।

विपक्ष का कहना है कि जीएसटी, एक्साइज, स्टांप ड्‍यूटी, माइनिंग से सरकार को अच्छा खासा रेवेन्यू आ रहा है। लेकिन खजाना खाली बताकर सरकार वादा पूरा करने से पीछे हट रही है। इन आरोपों को खारिज करते हुए वित्त मंत्री बादल ने आउटलुक को बताया, “चुनाव नतीजों से एक दिन पहले ही अकाली सरकार ने 31 हजार करोड़ रुपये की कैश क्रेडिट लिमिट (सीसीएल) को टर्म लोन में तब्दील करा लिया था। इस पर 20 साल तक हरेक साल 3,240 करोड़ रुपये ब्याज देना पड़ेगा। 17 हजार करोड़ के उदय बांड भी पूर्व सरकार ने चुनावों से ठीक पहले जारी किए। जून 2017 में बजट के समय जब हमने आर्थिक हालात पर श्वेत-पत्र तैयार किया था तब पता चला कि यहां तो कर्मचारियों के डीए एरियर के 2,700 करोड़, पावर सब्सिडी के 2,900 करोड़ समेत 13,000 करोड़ रुपये के बिल भी पेंडिंग हैं। अभी भी सात हजार करोड़ रुपये के बिल पेंडिंग हैं। पहले पुरानी देनदारी निपटाएंगे उसके बाद घोषणाएं पूरी हो सकेंगी।”

पंजाब प्लानिंग बोर्ड के पूर्व वाइस चेयरमैन डॉ. एस.एस. जोहल का कहना है, “दो दशक से लगातार कर्ज के बोझ तले दबते जा रहे पंजाब को आर्थिक संकट से निकालने के लिए कोई भी सरकार गंभीर नहीं रहीं है। खस्ता माली हालत के बावजूद लोकलुभावन वादे और आखिरी राजनीतिक पारी की बात कहकर कैप्टन अमरिंदर सरकार बनाने में तो कामयाब रहे हैं पर अब वादों को पूरा करने से पीछे हट रहे हैं। आर्थिक संकट से निकलने और जरूरतमंदों को सरकारी योजनाओं का फायदा पहुंचाने के लिए कई अनप्रोडक्टिव खर्च घटाने होंगे।” डॉ. सुच्चा सिंह का कहना है कि 1.82 लाख करोड़ रुपये कर्ज विरासत में मिलने की बात कह कैप्टन सरकार अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकती। लिहाजा अमरिंदर सरकार के लिए चुनौती बड़ी है।

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