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ट्रायल बगैर ‘गोल्डन पंच’ पर दांव

कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए भारतीय मुक्केबाजी संघ ने पहली बार बिना ट्रायल के चुनी टीम, प्वाइंट्स सिस्टम के आधार पर सेलेक्शन से कई दिग्गज बाहर
ट्रायल पर पंचः ओलंपियन शिव थापा (बाएं) भी कॉमनवेल्थ गेम्स में जगह नहीं बना सके

चार से 15 अप्रैल के बीच ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए भारत ने 12 बॉक्सर्स के दल की घोषणा कर दी है। लेकिन भारतीय बॉक्सिंग टीम के चयन पर सवाल भी उठने लगे हैं। दरअसल, भारतीय मुक्केबाजी संघ ने अपने इतिहास में पहली बार बिना किसी ट्रायल के कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए खिलाड़ियों का सेलेक्शन किया है। जबकि दुनिया के तमाम देश ट्रायल के जरिए ही अपनी टीमों का चुनाव करते हैं। भारत ने ट्रायल की जगह प्वाइंट्स सिस्टम यानी अंक प्रणाली के आधार पर खिलाड़ियों के चयन का फैसला किया। इस चयन प्रक्रिया में भी पारदर्शिता नहीं दिखती है, क्योंकि 91 किलोग्राम और 52 किलोग्राम वर्ग में खिलाड़ियों को प्वाइंट्स नहीं, बल्कि ट्रायल के आधार पर चुना गया। यानी भारतीय मुक्केबाजी संघ ने कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए जो टीम चुनी, उसके लिए कोई एक पैमाना नहीं अपनाया गया। इससे कई अच्छे खिलाड़ी टीम में अपनी जगह बनाने से चूक गए। इस पर भारतीय मुक्केबाजी संघ (बीएफआइ) के महासचिव जय कोवली का कहना है कि हम नहीं चाहते कि एक दिन की परफॉर्मेंस के आधार पर खिलाड़ियों का सेलेक्शन हो, इसलिए ट्रायल की जगह प्वाइंट्स सिस्टम को लागू किया गया। हालांकि, ओलंपियन बॉक्सर अखिल कुमार ने कहा कि एक खिलाड़ी के तौर पर कहूं तो ट्रायल होना चाहिए था। वह 2006 के कॉमनवेल्थ गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाले बॉक्सर जीतेंद्र कुमार का हवाला भी देते हैं। अखिल कुमार ने बताया कि 2006 कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले अगर ट्रायल नहीं होता तो पदक जीतने का सपना पूरा नहीं हो पाता। जीतेंद्र ने ट्रायल में 2002 कॉमनवेल्थ गेम्स के गोल्ड मेडल विनर मोहम्मद अली कमर और वर्ल्ड यूथ चैंपियन बलबीर सिंह को हराकर टीम में जगह बनाई और मेडल भी जीता।

 फिर 91 और 52 किग्रा वर्ग का ट्रायल क्यों

सवाल यह भी उठता है कि अगर प्वाइंट्स के आधार पर ही खिलाड़ियों का सेलेक्शन होना था, तो 91 किलोग्राम और 52 किलोग्राम वर्ग के लिए ट्रायल क्यों लिए गए? इसका खामियाजा उन खिलाड़ियों को उठाना पड़ा, जो परफॉर्म अच्छा कर रहे थे, लेकिन चोटिल होने के कारण कुछ समय से एक्शन में नहीं थे। ऐसे ही एक खिलाड़ी हैं गौरव बिधूड़ी। गौरव ने अगस्त-सितंबर 2017 में आयोजित वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता था।

गौरव बिधूड़ी इस पर कहते हैं, “चोटिल होने की वजह से मैं किसी प्रतियोगिता में नहीं खेल सका और प्वाइंट्स के लिए खेलना जरूरी है। इसलिए मैंने फेडरेशन से कहा कि अभी मैं फिट हूं और मेरा भी ट्रायल ले लीजिए। लेकिन फेडरेशन ने कहा कि आपकी इंजरी अभी पूरी तरह सही नहीं है और आपने कोई कॉम्पिटिशन नहीं खेला है। इस आधार पर उन्होंने ट्रायल लेने से मना कर दिया।” भारतीय मुक्केबाजी संघ के महासचिव जय कोवली इस पर सफाई देते हैं कि खिलाड़ियों के सेलेक्शन से पहले टॉप तीन या चार बॉक्सर्स के प्वाइंट्स देखे गए। फिर फैसला हुआ था कि अगर प्वाइंट्स में कम का अंतर हो, जैसे किसी का 29 और किसी का 24 है तो इतने अंतर के लिए हम कैसे किसी को बाहर निकालेंगे। इसलिए 91 किलोग्राम और 52 किलोग्राम वर्ग में ट्रायल हुए। गौरव के मामले में जय कोवली का कहना है कि वह सितंबर 2017 में वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज लेकर आया था। फिर उसने नेशनल खेला नहीं। कैंप में आने के बाद वह चोटिल हो गया। उसने एक भी सेलेक्शन ट्रायल में भाग नहीं लिया। एक भी टूर्नामेंट नहीं खेला। सितंबर की परफॉर्मेंस के आधार पर उसे हम अप्रैल में कैसे भेज सकते थे।

ट्रायल के सवाल पर उन्होंने कहा कि अगर पांच दिन पहले आप फिट हो जाते हैं और जो लोग पांच महीने से मेहनत कर रहे हैं, उन्हें हम क्या जवाब दें। प्वाइंट्स सिस्टम और ट्रायल की उठापटक के बीच कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए नहीं चुने जाने वाले खिलाड़ियों में बॉक्सर शिव थापा भी हैं। थापा एशियाई चैंपियनशिप के तीन बार पदक विजेता और 2015 विश्व चैंपियनशिप के कांस्य पदक विजेता हैं। वह 2012 के ओलंपिक में भी खेल चुके हैं। उनकी जगह 60 किग्रा वर्ग में राष्ट्रीय चैंपियन और इंडिया ओपन के स्वर्ण पदक विजेता मनीष कौशिक को चुना गया है।

प्वाइंट्स सिस्टम से कैसे हुआ फैसला

बकौल जय कोवली 2017 के अक्टूबर-नवंबर में आयोजित नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप के बाद  मुक्केबाजी संघ ने अपने कैलेंडर के हिसाब से एक मार्च तक की प्रतियोगिता में खिलाड़ियों के प्रदर्शन के

हिसाब से अंक देने का फैसला किया। इस दौरान चार टूर्नामेंट हुए। इनमें गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को अलग-अलग अंक दिए गए। इन सभी टूर्नामेंट में ज्यादा अंक पाने वालों का सेलेक्शन किया गया।

सबसे दिलचस्प यह है कि शिव थापा और गौरव बिधूड़ी 2020 ओलंपिक के लिए सरकार की टारगेट ओलंपिक पोडियम (टीओपी) स्कीम की प्राथमिकता में हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टूर्नामेंट नहीं खेलना हैरान करने वाला फैसला लगता है। दूसरी तरफ कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद अगस्त में एशियन गेम्स होने वाले हैं और फिर से प्वाइंट्स के आधार पर खिलाड़ियों को चुना जाता है तो यहां भी इनका सेलेक्शन होना मुश्किल है।

प्वाइंट्स सिस्टम पर अंधेरे में खिलाड़ी

प्वाइंट्स सिस्टम के बारे में कुछ खिलाड़ियों का कहना है कि उन्हें बहुत देर से इसके बारे में बताया गया। खिलाड़ियों ने बताया कि भारतीय मुक्केबाजी संघ ने अक्टूबर 2017 के बाद होने वाले टूर्नामेंट के आधार पर प्वाइंट्स देने का फैसला किया, जबकि इसकी जानकारी उन्हें जनवरी 2018 में दी गई।

ऐसे में यह सवाल उठता है कि दो महीने के अंदर कोई खिलाड़ी अचानक अपनी तैयारी कैसे बदलेगा। इस पर जय कोवली कहते हैं कि खिलाड़ियों को जानकारी भले ही जनवरी में दी गई, लेकिन उनकी परफॉर्मेंस को अक्टूबर से ही आंका जा रहा है। लेकिन बड़ा सवाल अब भी बरकरार है कि इतनी बड़ी प्रतियगिता (कॉमनवेल्थ गेम्स) से महज चंद महीने पहले खिलाड़ियों के सेलेक्शन प्रक्रिया में बदलाव से मेडल जीतने की संभावना पर कितना असर पड़ेगा।

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