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वीलचेयर से ब्रह्मांड में

22 वर्ष की उम्र में हॉकिंग को पता चला कि वे स्नायु और मांसपेशियों को शिथिल करने वाले रोग से पीड़ित हैं
2015 में लंदन में एक कार्यक्रम के दौरान हॉकिंग

वीलचेयर पर बैठ कर ब्रह्मांड में घूमने वाले विश्व विख्यात भौतिकविद स्टीफन हॉकिंग अब ब्रह्मांड में विलीन हो चुके हैं। मौत करीब पचास साल से उनका पीछा कर रही थी लेकिन उनकी अद्‍भुत जिजीविषा के आगे मौत भी बेबस थी। उन्होंने अपने शरीर की विकलांगता को परास्त करते हुए ब्रह्मांड की उत्पत्ति और गुरुत्वाकर्षण की प्रकृति के बारे में गहन पड़ताल की। ब्लैक होल्स और सापेक्षता पर कार्यों से वे पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गए। अनसुलझे सवालों के जवाब खोजते-खोजते वह जिज्ञासा और दृढ़ संकल्प के प्रतीक बन गए। अपने अर्जित ज्ञान को प्रसारित करने के लिए उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं। अल्बर्ट आइंस्टीन के बाद वह पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने दुनिया में सर्वत्र सम्मान हासिल किया।

1988 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम इतनी ज्यादा लोकप्रिय हुई कि उसकी एक करोड़ से ज्यादा प्रतियां बिक गईं। 40 भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ। ‘द संडे टाइम्स’ की बेस्टसेलर्स लिस्ट में 237 हफ्ते तक बने रहने पर इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में स्थान मिला। इस पुस्तक से प्रेरित हो कर इरोल मोरिस ने एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई। उनकी अपनी कहानी पर 2014 में बनी फीचर फिल्म, द थियरी ऑफ एवरीथिंग को अवार्ड मिला। इस फिल्म में एडी रेडमीन ने डॉ. हॉकिंग की भूमिका अदा की थी और इसके लिए उन्हें एकेडमी अवार्ड दिया गया था। हॉकिंग एकेडमिक दुनिया के बाहर भी खूब लोकप्रिय हुए। उन्होंने ‘द सिम्पसंस’,’रेड ड्वार्फ’ और ‘द बिग बैंग थियरी’ सहित कई टीवी कार्यक्रमों में भाग लिया।

1963 में 22 वर्ष की उम्र में हॉकिंग को पता चला कि वह स्नायु और मांसपेशियों को शिथिल करने वाले एक गंभीर रोग (एमयोट्रॉफिक लेटरल स्क्लेरोसिस) से पीड़ित हैं। डॉक्टरों ने उनसे कहा कि उनके पास सिर्फ दो वर्ष का समय बचा है। इस बीमारी ने उन्हें वीलचेयर पर सीमित कर दिया। धीरे-धीरे वे बोलने में भी असमर्थ हो गए। लेकिन वह इन विषमताओं से हार मानने वाले नहीं थे। एक कंप्यूटर और एक वॉयस सिंथेसाइजर (कृत्रिम आवाज उत्पन्न करने वाली मशीन) से उन्होंने दुनिया से अपना संचार संपर्क जारी रखा। मशीनों के सहारे वह एक तरह से साइबर्ग (कृत्रिम अंग युक्त मानव) बन गए। लेकिन इस साइबर्ग में बैठा विलक्षण मस्तिष्क पूरी दुनिया को आंदोलित करता रहा। गत 14 मार्च को कैम्ब्रिज में हॉकिंग के अवसान से विज्ञान जगत में एक बड़ी रिक्तता उत्पन्न हो गई है।

हॉकिंग को वैज्ञानिक लक्ष्यों में पहली सफलता 1970 में मिली जब उन्होंने ऑक्सफोर्ड के गणितज्ञ रोजर पेनरोज के साथ ब्लैकहोल्स के गणित को ब्रह्मांड पर लागू किया। उन्होंने दर्शाया कि यदि बिग बैंग या ब्रह्मांडीय महाविस्फोट हुआ है तो उसकी शुरुआत जरूर एक अत्यंत छोटे बिंदु से हुई होगी जिसे सिंगुलेरिटी कहा जाता है। उनकी दूसरी बड़ी उपलब्धि ब्लैकहोल्स के बारे में थी। ब्लैक होल ब्रह्मांड के ऐसे बिंदु हैं जहां गुरुत्वाकर्षण इतना प्रबल होता है कि वहां से कुछ भी बाहर नहीं जा सकता। वहां से न तो चट्टानें और न ही गैसें बाहर निकल सकती हैं और प्रकाश भी बाहर नहीं आ सकता। हॉकिंग ने पता लगाया कि ब्लैकहोल्स ऊर्जा स्फुटित करते हैं और इस प्रक्रिया में अपना द्रव्यमान खो देते हैं। ऐसा ब्लैकहोल्स के छोर पर क्वांटम प्रभावों की वजह से होता है। ब्लैकहोल्स का यह क्षेत्र इवेंट होराइजन कहलाता है। ब्लैकहोल्स से होने वाला रेडिएशन बाद में ‘हॉकिंग रेडिएशन’ कहलाया।

हॉकिंग ने अनुमान लगाया कि बिग बैंग के समय सूक्ष्म ब्लैकहोल्स का अस्तित्व रहा होगा। इन ब्लैकहोल्स ने लुप्त होने से पहले अपना द्रव्यमान गंवाया होगा। एक बड़े विस्फोट में उनकी जीवनलीला समाप्त हुई होगी और इस प्रक्रिया में असीम ऊर्जा बाहर आई होगी। सत्तर के दशक में हॉकिंग ने इस बात पर विचार किया कि एक ब्लैकहोल में प्रवेश करने वाले कण और प्रकाश ब्लैकहोल के वाष्पित होने पर नष्ट हो जाएंगे। हॉकिंग ने शुरू में सोचा कि यह ‘सूचना’ ब्रह्मांड से खो गई होगी। लेकिन अमेरिकी भौतिकविद लियोनार्ड ससकाइंड ने इस विचार से असहमति जाहिर की। यह आइडिया बाद में ‘इन्फॉर्मेशन पैराडॉक्स’ के रूप में चर्चित हुआ। 2004 में हॉकिंग ने स्वीकार किया कि यह सूचना अवश्य ही संरक्षित होनी चाहिए।

अपनी मूलगामी खोजों की बदौलत हॉकिंग 1974 में रॉयल सोसाइटी के लिए चुने गए। उस समय उनकी उम्र मात्र 32 वर्ष थी। पांच साल बाद उन्हें कैम्ब्रिज में ‘लुकासियन प्रोफेसर ऑफ मैथमेटिक्स’ बनाया गया जो ब्रिटेन की अत्यंत प्रतिष्ठित चेयर मानी जाती है। इस पद पर कभी सर आइजैक न्यूटन भी विराजमान थे। हॉकिंग को अपने समय का महानतम भौतिकविद तो शायद नहीं कहा जा सकता लेकिन निसंदेह वह ब्रह्मांड विज्ञान में एक बहुत ऊंची हस्ती थे। हॉकिंग को अल्बर्ट आइंस्टीन अवार्ड, वुल्फ पुरस्कार, कोप्ले मैडल और फंडामेंटल फिजिक्स प्राइज जैसे कई पुरस्कार मिले लेकिन वे नोबेल पुरस्कार से वंचित रहे। नब्बे के दशक में उन्हें सर की उपाधि देने की पेशकश की गई थी। दस साल बाद पता चला कि उन्होंने विज्ञान के लिए सरकारी फंडिग से जुड़े विवाद के कारण यह पेशकश ठुकरा दी थी। हॉकिंग ने 1965 में अपने कॉलेज समय की दोस्त जेन वाइल्ड से विवाह किया। लेकिन दोनों के संबंधों में मिठास कम और कड़वाहट ज्यादा रही। इसका अंदाज जेन की पुस्तक, ट्रैवलिंग टू इन्फिनिटी: माई लाइफ विद स्टीफन को पढ़ कर लगाया जा सकता है। 1985 में जिनेवा स्थित सर्न की यात्रा के दौरान हॉकिंग को एक इंफेक्शन की वजह से अस्पताल में दाखिल करना पड़ा। वे इतने बीमार हो गए कि डॉक्टरों ने जेन से पूछा कि क्या वे उनका लाइफ स्पोर्ट हटा सकते हैं। जेन ने इनकार कर दिया। हॉकिंग को वापस कैम्ब्रिज ले जाया गया जहां उनकी जान बचाने के लिए ट्रेकियोटोमी (सांस नली की सर्जरी) करनी पड़ी। इस ऑपरेशन से उनकी जान तो बच गई लेकिन उनकी आवाज चली गई।

हॉकिंग और जेन के तीन बच्चे हुए लेकिन 1991 में दोनों अलग हो गए। जेन ने हॉकिंग को अहंकार से ग्रस्त बच्चा बताया। चार साल बाद हॉकिंग ने एक नर्स, इलेन मेसोन से शादी की जिसे उनकी 24 घंटे देखभाल करने के लिए नियुक्त किया गया था। यह शादी 11 साल चली। इस दौरान कैम्ब्रिजशर पुलिस ने हॉकिंग पर हुए कथित हमलों की जांच की। हॉकिंग ने इससे इनकार किया कि इन हमलों में इलेन का हाथ था। बाद में पुलिस ने यह जांच बंद कर दी। हॉकिंग विनोदी स्वभाव के व्यक्ति थे भले ही उनके वैवाहिक संबंध बहुत अच्छे नहीं रहे। हॉकिंग को वैज्ञानिक विषयों पर शर्त लगाने की बहुत आदत थी। हिग्स बोसोन कण की खोज पर वह 100 डॉलर की शर्त हार गए थे। उन्होंने 2012 में गॉर्डन केन के साथ शर्त लगाई थी कि हिग्स बोसोन की खोज कभी नहीं होगी।

अपने बयानों से दुनिया को खूब चौंकाया

स्टीफन हॉकिंग ने अपने मूल विषय की परिधि से बाहर निकल कर पृथ्वी और मानवता के भविष्य पर कई ऐसे विवादास्पद बयान दिए जिनसे वैज्ञानिक जगत और मीडिया में काफी खलबली मची। कुछ वर्ष पहले उन्होंने कहा था कि ब्रह्मांड में पारलौकिक सभ्यताएं मौजूद हैं और अंतरिक्ष में लंबी यात्रा के दौरान यदि मनुष्य की मुलाकात किसी एलियन से होती है तो उसके नतीजे मानव जाति के लिए भयंकर होंगे। अंतरिक्ष में परग्रही जीवन का मिलना पृथ्वी के लिए एक बड़ी वैज्ञानिक घटना होगी लेकिन परग्रही प्राणियों से संपर्क करने में बहुत बड़ा जोखिम रहेगा। यदि एलियंस पृथ्वी पर आने का फैसला करते हैं तो नतीजा यूरोपीय लोगों के अमेरिका पहुंचने जैसा ही होगा। एलियंस पृथ्वीवासियों का वैसा ही हाल करेंगे जैसा यूरोपीय लोगों ने अमेरिका के मूल निवासियों का किया था।

एक अवसर पर हॉकिंग ने कहा था कि अगले एक हजार साल के अंदर मनुष्य निर्मित वायरसों, परमाणु प्रलय, क्षुद्रग्रह की टक्कर या ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी तबाह हो जाएगी। ऐसी स्थिति में मनुष्य के लिए अंतरिक्ष को कोलोनाइज करना जरूरी हो जाएगा। प्रो. हॉकिंग को इस बात का भरोसा है कि विज्ञान और प्रोद्योगिकी में तेजी से हो रही प्रगति को देखते हुए मनुष्य एक दिन मंगल और सौरमंडल के दूसरे खगोलीय पिंडों पर आत्मनिर्भर बस्तियां बसाने में कामयाब हो जाएगा। मनुष्य सौरमंडल से बाहर आकाशगंगा के दूसरे ठिकानों में भी अपने पैर पसार सकता है।

एक अन्य मौके पर उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि हिग्स बोसोन कण अथवा गॉड पार्टिकल पूरे ब्रह्मांड को नष्ट सकता है। हॉकिंग का कहना था कि यदि हिग्स बोसोन कण अस्थिर हो गया तो ब्रह्मांड में विनाशकारी क्षय हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि 2012 में जिनेवा स्थित सर्न प्रयोगशाला के लार्ज हेड्रोन कोलाइडर में कार्यरत वैज्ञानिकों ने हिग्स बोसोन कण की खोज की थी। ब्रह्मांड के ताने-बाने में इस कण की महत्वपूर्ण भूमिका है। अस्थिर होने पर इसकी ऊर्जा का स्तर 100 अरब गीगा इलेक्ट्रॉन वोल्ट्स तक पहुंच सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस स्थिति में ब्रह्मांड एक भयंकर क्षय की ओर अग्रसर होगा। हॉकिंग ने कहा था कि ऐसा खतरा सिर्फ सैद्धांतिक है। हमें 100 अरब गीगा इलेक्ट्रॉन वोल्ट्स ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए बहुत बड़ा पार्टिकल एक्सलेरेटर चाहिए। दरअसल, यह मशीन पृथ्वी से भी बड़ी होनी चाहिए। सर्न की मशीन में ऊर्जा का यह स्तर हासिल नहीं हो सकता।

हॉकिंग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) पर कहा था कि रोबोटों का उदय मानवजाति के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। उन्होंने कहा कि एआइ का उदय मानव इतिहास की सबसे बड़ी घटना होगी और यदि हमने इसके खतरों से बचना नहीं सीखा तो यह संभवतः हमारे इतिहास की अंतिम घटना भी हो सकती है। एआइ डिजिटल सहायकों और ड्राइवर रहित कारों के रूप में हमारे सामने आ रही है लेकिन हॉकिंग के अनुसार यह मनुष्य जाति  के लिए खतरे की घंटी है। मानव जाति के सामने अनिश्चित भविष्य है क्योंकि टेक्नोलॉजी ने खुद अपने बारे में सोचना और माहौल के साथ खुद को ढालना सीख लिया है। लेकिन हॉकिंग ने यह भी माना कि यह टेक्नोलॉजी युद्ध, गरीबी और बीमारी के उन्मूलन में मनुष्य के लिए मदद कर सकती है।

कैसे किया दुनिया से संवाद?

इस बात पर आश्चर्य होता है कि जिस व्यक्ति का शरीर लगभग लकवाग्रस्त हो गया हो और जो बोलने में असमर्थ हो, उसने दुनिया के साथ संवाद कैसे किया? सत्तर के दशक में स्नायु-क्षयकारी बीमारी से हॉकिंग की हालत गड़बड़ा गई। मांसपेशी पर नियंत्रण नहीं होने की वजह से उनकी आवाज लड़खड़ाने लगी थी। 1985 में एक सर्जरी के बाद उनकी बोलने की क्षमता पूरी तरह खत्म हो गई। शुरू में अपने शब्दों का चयन करने के लिए हॉकिंग एक क्लिकर का उपयोग करते थे। हाथ में रखे इस क्लिकर से वे शब्दों का चुनाव करते जिन्हें आवाज में परिवर्तित किया जाता था। जब हॉकिंग ने अपने हाथों के इस्तेमाल की क्षमता खो दी तब उन्होंने एक ऐसे सिस्टम का उपयोग शुरू किया जो चेहरे की हलचल को डिटेक्ट करता है। इंटेल द्वारा तैयार एसीएटी (असिस्टिव कांटेक्स्ट-अवेयर टूलकिट) प्रोग्राम ने हॉकिंग को शब्दों को चुनने में मदद की।

हॉकिंग के चश्मे पर एक इंफ्रारेड स्विच लगा हुआ था जो उनके गालों की हलचल को डिटेक्ट कर सकता था। इससे कर्सर या माउस को स्क्रीन पर घूमने से रोका जा सकता था। इस प्रोग्राम के द्वारा हॉकिंग अपने गाल हिला कर कर्सर को रोक देते थे जो अपने आप कीबोर्ड को स्कैन कर लेता था। हॉकिंग द्वारा किसी शब्द के पहले कुछ अक्षर चुने जाने के बाद कंप्यूटर उनके पिछले भाषणों और पुस्तकों के अध्ययन के आधार पर यह अनुमान लगा लेता था कि वे क्या कहना चाह रहे हैं। इससे हॉकिंग अपनी आवाज के इस्तेमाल के बगैर भी पूरे वाक्य बना सकते थे।

एक बार पूरा वाक्य लिखने के बाद वे उसे अपने स्पीच सिंथेसाइजर को भेजते थे जो जोर से उनके वाक्य को पढ़ता था। इस प्रोग्राम के जरिए स्टीफन हॉकिंग पूरे कंप्यूटर पर कर्सर घुमा कर ईमेल, वर्ड प्रोसेसर और वीडियो चैटिंग तक भी पहुंच सकते थे। स्टीफन हॉकिंग द्वारा इस्तेमाल किया गया एसीएटी सॉफ्टवेयर निःशुल्क सॉफ्टवेयर लाइसेंस के तहत जारी किया गया था। ऐसा कोई भी व्यक्ति इस सॉफ्टवेयर का उपयोग कर सकता है, जो अपंगता की वजह से कंप्यूटर का पारंपरिक इस्तेमाल करने में असमर्थ है।

 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और विज्ञान पर लिखते हैं)

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