Advertisement

संस्थाओं के शिल्पकार

वास्तुकला की दुनिया के सबसे बड़े सम्मान ने याद दिलाई प्रो. बालकृष्ण दोशी के सृजन की अहमियत
वास्तुकला को जीवन का विस्तार मानने वाले प्रो. दोशी के डिजाइन आधुनिकता और प्रकृति के बीच साम्य रखते हैं

साल 2015 की बात है। अहमदाबाद में 87 साल के एक बुजुर्ग वास्तुकार अपने द्वारा स्थापित संस्थान की इमारतों में बेतुके बदलाव को लेकर अपने ही शागिर्दों से जूझ रहे थे। महीनों तक बहस छिड़ी रही कि वर्तमान जरूरतों को पूरा करने के लिए एक बेमिसाल कैंपस के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ कहां तक जायज है। लेकिन मामले को तूल न देते हुए उन्होंने संस्थान के मैनेजमेंट बोर्ड से इस्तीफा देना बेहतर समझा। न कोई शिकवा, न शिकायत! अपने डिजाइन के साथ खड़े रहे, लेकिन नए निर्माण में बाधक बनने के बजाय आगे बढ़ गए। वे वास्तुकार प्रो. बालकृष्ण विट्ठलदास दोशी थे और उस संस्थान को अब सेप्ट यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है।

वास्तुकला जगत को स्तब्ध करने वाली इस घटना के तीन साल बाद प्रो. दोशी को प्रतिष्ठित प्रित्जकर आर्किटेक्चर पुरस्कार के लिए चुना गया है। जिस दौरान देश में महापुरुषों की मूर्तियां तोड़ने और विचारधाराओं को हिंसा से कुचलने की होड़ मची है, टूट-फूट के इस दौर में भारतीय वास्तुकला के लिए यह बड़ी खुशखबरी है। एक भारतीय की कला और दर्शन को “आर्किटेक्चर का नोबेल” सरीखा सम्मान मिला है। इस उपलब्धि के बहाने प्रो. दोशी का काम पूरी दुनिया का ध्यान खींच रहा है। इमारतों के रूप में उन्होंने जिन जगहों को रचा वे आधुनिकता के साथ-साथ प्रकृति, मानव और संस्कृति के बीच साम्य का बेजोड़ उदाहरण हैं। आइआइएम, बेंगलूर का कैंपस हो या अहमदाबाद में सेप्ट, प्रेमभाई हाल या इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी की इमारतें या फिर इंदौर की अरण्य हाउसिंग, प्रो. दोशी ने इन जगहों में जीवन को विस्तार देने की भरपूर गुंजाइश रखी।

अपनी वास्तुकला को जिंदगी का बैकड्रॉप मानने वाले प्रो. दोशी के असली योगदान को समझना हो तो कभी अहमदाबाद जाइये। कई सुंदर इमारतों से इतर भी वहां बहुत कुछ ऐसा है जो उनके योगदान को उल्लेखनीय बनाता है। अहमदाबाद में स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर, स्कूल ऑफ प्लानिंग, विजुअल आर्ट सेंटर और कनोरिया सेंटर फॉर आर्ट की स्थापना में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। लेकिन खास बात यह रही है कि वे कभी इन संस्थाओं पर हावी नहीं हुए। नींव के पत्थर बने रहे, दूसरों को चमकने का मौका देकर पीछे हट गए।

साल 2005 में जब मैंने पहली दफा सेंटर फॉर एन्वायरनमेंट प्लानिंग ऐंड टेक्नोलॉजी यानी सेप्ट में कदम रखा तो दंग रह गया था। कोई कैंपस भला ऐसा भी हो सकता है? न कोई गेट, न चारदीवारी, न चौकीदार! दिन-रात खुला कैंपस, 24 घंटे रचनात्मकता की गवाह बनती डिजाइन लैब! माहौल में एक इत्मीनान और खुलापन। प्रो. दोशी और उनके सेप्ट से यह मेरी पहली मुलाकात थी। अगले कुछ दिन जहन में वह जगह बनी रही। जैसे फिल्म देखकर हॉल से निकलते हैं तो घर आने तक पिक्चर आंखों में घूमती रहती है। तब जाना कि ईंट, सीमेंट, क्रंकीट की ये इमारतें कैसे मानवीय गतिविधियों के आश्रय से आगे बढ़कर जीवन का बैकड्रॉप बन सकती हैं। खुद दोशी अपनी वास्तुकला को जीवन की पृष्ठभूमि के तौर पर ही परिभाषित करते हैं। वास्तुकारों को भी वे क्लाइंट की सेवा के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी निभाने की सीख देते हैं। उनकी इमारतें इस संदेश की सबसे बड़ी वाहक हैं।

प्रो. दोशी की वास्तुकला की पहचान बन चुकी सेप्ट की इमारत यूं बहुत विशाल नहीं है। न भव्यता इसकी सादगी पर हावी होती। न ही आधुनिकता प्रकृति को नजरअंदाज करती है। सेप्ट कैंपस में तब एक-दूसरे से कुछ फासले पर चार-पांच इमारतें थीं, सब की सब अपने आप में अनूठी। मानो पूरी इमारत ही कोई कलाकृति हो। भूतल के ऊपर-नीचे लुकाछिपी करते भवन गहराई और खुलेपन की झलक देते हैं। वास्तुकला जीवन, स्वप्न और आकांक्षाओं का अक्स कैसे बन सकती है इन इमारतों में साफ झलकता है।

90 साल के प्रो. दोशी प्रित्जकर पुरस्कार का श्रेय अपने गुरु ली कार्बुजिए को देते हैं। 50 के दशक में कार्बुजिए के पेरिस स्टूडियो में काम करने के बाद दोशी ने भारत आकर उनके प्रोजेक्ट संभाले और एक से बढ़कर एक उम्दा इमारतें डिजाइन कीं। वास्तुकारों की पूरी पीढ़ी को तराशा। साथ ही कई संस्थाओं का स्वप्न साकार किया। राष्ट्र निर्माण का यह उनका अपना तरीका है।

अस्सी के दशक में जब शहरीकरण की आंधी में गगनचुंबी इमारतों और बेतरतीब विकास की होड़ मची थी तब प्रो. दोशी ने समाज के कमजोर वर्ग के लिए सस्ते आवास की नजीर पेश की। इंदौर का अरण्य हाउसिंग प्रोजेक्ट और जयपुर में विद्याधर नगर की प्लानिंग के जरिए उन्होंने समावेशी शहरी विकास का प्रारूप पेश किया। अहमदाबाद के आर्किटेक्ट प्लानर और सेप्ट के पूर्व छात्र अजय अग्रवाल मानते हैं कि शहरी नियोजन में प्रो. दोशी ने जो राह दिखाई सरकारें उस पर अमल करने में नाकाम रही हैं।

Advertisement
Advertisement
Advertisement