इन कहानियों में भारतीय समाज अलग ढंग से दिखाई पड़ता है। अचला जी की कहानियां अंग्रेजी में हैं जिन्हें हिंदी में अनूदित किया गया है। भारतीय परिवेश की होने और शब्दश: अनुवाद न होने से लगता नहीं कि ये कहानियां किसी दूसरी भाषा में लिखी गई होंगी। संग्रह में शामिल ‘अगर इच्छाओं के पंख होते’ और ‘अस्सी पार’ मध्य वर्ग परिवार की उस नब्ज को पकड़ती है जिससे मध्य वर्ग छुटकारा तो पाना चाहता है पर पा नहीं सकता। एक तरफ कहने को उच्च वर्ग से आई बहू है लेकिन एक बिंदू पर वह पाती है कि उसकी इच्छा साधारण गृहिणी की इच्छा में ऐसे मिल गई है जैसे वह इच्छा कभी दो थी ही नहीं। ‘अस्सी पार’ में भी सास है लेकिन इनसे ऊपर एक दादी सास भी है जो पूरी एक पीढ़ी के अंतर को उल्लांघती हुई पोता बहू के साथ तालमेल बैठा लेती है। अचला बंसल अपनी कहानियों में सिर्फ आस-पास के लोग ही नहीं तलाशतीं बल्कि बोली, भाषा और व्यवहार को भी कहानी का हिस्सा बना देती हैं। उनकी कहानी ‘मक्खी’ बुजुर्ग दंपती के जीवन के अंदर इतनी गहराई से झांकती है कि मन तरल हो जाता है। बुजुर्ग दंपती अपनी बेबसी और बेचारगी पर दुख मनाते-मनाते फिर उसी का आनंद उठाने लगते हैं। कहानियों के पात्र अपने लगते हैं।
आस-पास से
मध्यवर्ग की आत्मा को पकड़ती कहानियां
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