चुनावों को प्रभावित करने के लिए कैंब्रिज एनालिटिका द्वारा फेसबुक डेटा में सेंधमारी के सनसनीखेज खुलासे के बाद केंद्र सरकार ने इन दोनों कंपनियों को नोटिस जारी किए हैं। इससे पहले जानलेवा ब्लू-व्हेल गेम पर पाबंदी लगाने के लिए भी केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों को नोटिस जारी किया था। तब भी इन नोटिसों में किसी कानूनी प्रावधान का जिक्र ही नहीं था, तो निजी कंपनियां किस डर से सरकारी आदेश पर अमल करतीं। अब भी सरकार ने ऐसे ही नोटिस जारी किए हैं।
खबर है कि कैंब्रिज एनालिटिका ने अपनी सहायक कंपनियों के जरिए भारत में 2003 से 600 जिलों के सात लाख गांवों का जाति संबंधी डाटा भी जुटा लिया और राजनैतिक दलों के लिए इसका जमकर इस्तेमाल किया। इसी तरह 2007 में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने भारत की छह अरब से ज्यादा जानकारियों को फेसबुक समेत नौ इंटरनेट कंपनियों के जरिए गैर-कानूनी तरीके से हासिल किया। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इस मामले पर एडवर्ड स्नोडन के खुलासे और कैबिनेट सेक्रेटरी को हमारे लिखित प्रतिवेदन के बावजूद यूपीए सरकार चुप रही। बाद में डिजिटल इंडिया के नाम पर उन्हीं कंपनियों के स्वागत के लिए एनडीए सरकार ने पलक पांवड़े बिछा दिए। इसके दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं।
टेक्नोलॉजी के विकास के साथ-साथ कानून और शासन प्रणालियों को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी सरकार और संसद पर है। लेकिन 2000 के बाद सूचना-प्रौद्योगिकी अधिनियम में जरूरी बदलाव नहीं हुए। ई-कॉमर्स, प्राइवेसी, डाटा सुरक्षा, ड्रोन, डिजिटल सिग्नेचर समेत महत्वपूर्ण मामलों पर आइटी एक्ट मौन है। सरकार और संसद की इस बेपरवाही का इंटरनेट कंपनियां न सिर्फ फायदा उठा रही हैं, बल्कि डिजिटल अराजकता फैल रही है। फेसबुक मामले ने भारतीय डेटा कानून के इस खोट को उजागर किया है।
भारत में डेटा के बारे में सूचना-प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा-2 (ओ) में डाटा को कानूनी तौर पर परिभाषित किया गया है। 120 करेाड़ लोगों के जुड़ने से 'आधार' अब विश्व का सबसे बड़ा डाटा बेस बन गया है। 100 करोड़ से ज्यादा मोबाइल होने के बाद भारत में डेटा की सर्वाधिक खपत होती है। 48 करोड़ से ज्यादा इंटरनेट यूजर्स और 30 करोड़ सोशल मीडिया यूजर्स के नाते भारत अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनियों के लिए सबसे आकर्षक बाजार बन गया है। फेसबुक जैसी सभी कंपनियां भारत के ग्राहकों से ऑनलाइन सहमति लेने के बाद भारत के सभी यूजर्स का डेटा व्यापारिक इस्तेमाल के लिए अमेरिका भेज देती हैं। उसके बाद भारत के ग्राहकों का डेटा कैंब्रिज एनालिटिका जैसी कंपनियों को बेच कर फेसबुक जैसी कंपनियां बड़ा मुनाफा कमाती हैं। कैंब्रिज से सवाल पूछने के साथ यदि फेसबुक द्वारा भारतीय डेटा के अवैध कारोबार की गहन जांच की जाए तो कैंब्रिज जैसी कई और कंपनियों के काले कारनामों का खुलासा हो सकता है।
सरकारी डेटा के विदेश जाने से पब्लिक रिकॉर्ड्स एक्ट का उल्लंघन- संसद द्वारा 1993 में पारित पब्लिक रिकॉर्ड्स एक्ट की धारा-4 के अनुसार सरकारी रिकॉर्ड्स और डेटा सक्षम अधिकारी की सहमति के बगैर भारत से बाहर विदेशों में नहीं भेजा जा सकता है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गोविंदाचार्य मामले में आदेश दिया था कि सरकारी कामकाज के लिए एनआइसी या उन ई-मेल सेवाओं का इस्तेमाल किया जाए, जिनके सर्वर्स भारत में स्थित हैं। केंद्र सरकार के 50 लाख कर्मचारी, पीएसयू और राज्यों के लगभग तीन करोड़ सरकारी अधिकारियों में अधिकांश को शायद ही इस कानून की जानकारी हो? डिजिटल इंडिया के नाम पर देश के सभी गांवों में संचार क्रांति का वादा करने वाली सरकार भी अभी तक केंद्र सरकार के सभी अधिकारियों को एनआइसी की ई-मेल भी नहीं दे पाई है। इसके परिणामस्वरूप अधिकांश अधिकारी जी-मेल, याहू, हॉटमेल समेत निजी ई-मेल का गैर-कानूनी इस्तेमाल कर रहे हैं, जो भारत का सरकारी डाटा विदेशों के सर्वर्स में रखते हैं। यह जानना दिलचस्प है कि पब्लिक रिकॉर्ड्स एक्ट की धारा-9 के अनुसार, सरकारी डेटा को अनधिकृत तौर पर विदेश भेजे जाने पर तीन साल तक की सजा हो सकती है।
पब्लिक के डेटा की चोरी रोकने के लिए वैधानिक स्पष्टता नहीं- सरकारी डेटा के बेजा इस्तेमाल को रोकने के लिए पब्लिक रिकॉर्ड्स एक्ट का कानून है। डेटा की संगठित चोरी या हैकिंग को रोकने के लिए आइटी एक्ट और आधार कानून में भी कानूनी प्रावधान हैं। आम जनता का सामान चोरी हो जाए तो भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) कानून के तहत पुलिस कार्रवाई कर सकती है। लेकिन डेटा चोरी के रोजमर्रा के मामलों में किस कानून के उल्लंघन पर किसके पास शिकायत दर्ज कराई जाए, इस पर भारत में भ्रम का माहौल है। भारतीय दूरसंचार प्राधिकरण (ट्राई) को दूरसंचार के तहत इंटरनेट का भी नियामक माना जाता है। कानून के अनुसार, यूजर ही डेटा का मालिक होता है। इसके बावजूद ट्राई ने डेटा के कानूनी अधिकार पर ही कंसल्टेशन पेपर जारी करके मामले को और पेचीदा बना दिया।
प्राइवेसी कानून में बेवजह विलंब- सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार यानी प्राइवेसी को संविधान के तहत मूल अधिकार मानने के लिए अगस्त 2017 में आदेश पारित किया था। प्राइवेसी पर विधि आयोग की रिपोर्ट और जस्टिस ए.पी. शाह द्वारा 2012 में दिए गए ड्राफ्ट और विस्तृत प्रतिवेदन के बावजूद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में नया आयोग बना दिया। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दिसंबर 2017 तक प्राइवेसी कानून के मसौदे को अंतिम रूप देने का आश्वासन दिया था, जो अभी भी पूरा नहीं हुआ। मसौदे पर सरकार के अनेक विभागों के विमर्श और कैबिनेट की मंजूरी के बाद ही इसे संसद में पेश किया जा सकता है। संसद में गतिरोध और प्राइवेसी कानून पर बड़ी कंपनियों के दबाव के बाद बकाया कार्यकाल में क्या सरकार प्राइवेसी का प्रभावी कानून बना पाएगी, जो डेटा सुरक्षा के साथ अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान कर सके?
विदेशी कंपनियों के भारत में कार्यालय- कैंब्रिज के पूर्व अधिकारी क्रिस्टोफर वायली द्वारा ब्रिटिश संसदीय समिति के सम्मुख दिए गए बयान के अनुसार कैंब्रिज एनालिटिका की पैतृक कंपनी एस.सी.एल. भारत में 2003 से कारोबार कर रही थी। इसके बाद कैंब्रिज ने सहायक कंपनी ओबीआइ के माध्यम से भारत में सर्वे और चुनावी व्यापार का कारोबार जारी रखा। फेसबुक, गूगल और ट्विटर भारत में अपनी 100 फीसदी सहायक कंपनियों के माध्यम से व्यापार करते हैं। इसके बावजूद भारत स्थित कंपनी विदेशी पैरेंट कंपनी की भारतीय कारोबार के लिए जवाबदेही नहीं लेती। कंपनी कानून के अनुसार, सहायक कंपनियों के व्यापार के लिए पैरेंट कंपनी की भी जवाबदेही बनती है, लेकिन भारत की कंपनी तो खुद को पैरेंट कंपनी का एजेंट मानने के लिए भी तैयार नहीं हैं। कानून का सही अनुपालन नहीं होने से इंटरनेट कंपनियों को टैक्स चोरी के साथ कानूनी जवाबदेही से भी छूट मिल जाती है।
फेसबुक की ओर से भारतीय कारोबार के लिए शिकायत अधिकारी की नियुक्ति आयरलैंड में क्यों- सूचना प्रौद्योगिकी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस) नियम-2011 की धारा-3 (11) के अनुसार भारत में कारोबार कर रही हर इंटरनेट कंपनी को शिकायत अधिकारी की नियुक्ति करना जरूरी है। इस नियम का पालन नहीं होने पर हमारी याचिका पर दिल्ली हाइकोर्ट ने अगस्त 2013 में फेसबुक और गूगल को शिकायत अधिकारी नियुक्त करने के आदेश दिए थे। अदालती आदेशों का पालन करना मजबूरी थी, लेकिन नियमों को धता बताते हुए फेसबुक ने आयरलैंड में और गूगल ने कैलिफोर्निया में शिकायत अधिकारी की नियुक्ति कर दी। आम नागरिक, पुलिस, बैंक, सुरक्षा एजेंसियों समेत किसी को भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोई आपत्ति हो तो शिकायत अधिकारी द्वारा 36 घंटे के भीतर समस्या की जांच और निराकरण का प्रावधान है। लेकिन कंपनियों द्वारा मनमर्जी से बनाए गए नियम के अनुसार भारत के लोग इंटरनेट की क्लिक के दौर में विदेश स्थित शिकायत अधिकारी को अपनी शिकायत लिखित पत्र द्वारा ही भेज सकते हैं। ई-मेल से शिकायत भेजने के लिए डिजिटल हस्ताक्षर होना आवश्यक है। गौरतलब है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर छोटे बच्चे भी करने लगे हैं, लेकिन डिजिटल सिग्नेचर 18 साल से कम उम्र के लोगों को सामान्यतः नहीं मिलता। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग को भारत तलब करने का बड़ा बयान दिया, लेकिन क्या मोदी सरकार शिकायत अधिकारी को भारत लाकर आम जनता को राहत दे पाएगी?
डेटा के व्यावसायिक इस्तेमाल पर टैक्स के लिए कानून में स्पष्टता नहीं- डेटा के गैर-कानूनी कारोबार का स्याह आर्थिक पहलू भी है। सुप्रीम कोर्ट के जज एस.के. कौल ने नौ जजों द्वारा दिए गए प्राइवेसी के ऐतिहासिक निर्णय में लिखा था कि फेसबुक के पास कोई कंटेंट नहीं है, उबर के पास टैक्सी नहीं है और अली बाबा के पास सामान नहीं हैं, फिर भी वे विश्व की सबसे समृद्धतम कंपनियों में हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया कंपनियां जब ग्राहकों को फ्री में सेवा देती हैं तो फिर ग्राहक ही एक प्रोडक्ट बन जाता है। हर नए खाते से फेसबुक की वैल्यू में हजारों रुपयों की बढ़ोतरी के साथ प्रत्येक लाइक और क्लिक से फेसबुक को भारी आमदनी होती है। गूगल, फेसबुक की आमदनी का अधिकांश हिस्सा आयरलैंड और अमेरिका चला जाता है। भारत में स्थित सहायक कंपनियां आमदनी के छोटे हिस्से पर ही टैक्स देकर पैरेंट कंपनियों को सारी जवाबदेहियों से मुक्त कर देती हैं। बिजनेस वर्ल्ड मैगजीन में दो वर्ष पूर्व प्रकाशित रिपोर्ट में गूगल इंडिया का 4.29 लाख करोड़ रुपये का टर्नओवर दिखाया गया था। दूसरी ओर वित्त मंत्रालय द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में दिए गए हलफनामे के अनुसार गूगल इंडिया लगभग पांच हजार करोड़ की आमदनी पर ही टैक्स देती थी। सिर्फ गूगल की चार लाख करोड़ से ज्यादा के टर्नओवर और आमदनी पर यदि टैक्स लग जाए तो भारतीय अर्थव्यवस्था को नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों से ज्यादा फायदा हो सकता है। एक अनुमान के अनुसार फेसबुक समेत अनेक विदेशी इंटरनेट कंपनियों द्वारा भारत से 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार किया जा रहा है, जिस पर टैक्स लगाने से डेटा के गैर-कानूनी कारोबार पर खुद-ब-खुद रोक लग जाएगी। इसके लिए आयकर एवं कंपनी कानून में प्रावधान हैं, लेकिन क्या उन्हें लागू करने के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण और इच्छाशक्ति मोदी सरकार के पास है?
(लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील और आइटी मामलों के विशेषज्ञ हैं)