आठ नवंबर 2016 को भारत में हुई नोटबंदी के करीब डेढ़ साल बाद भी नेपाल में मौजूद पुराने भारतीय नोट अधर में हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) को वापस आए नोटों की गिनती करने में ही साल भर लग गया। पता चला कि चलन से बाहर किए गए हजार और पांच सौ रुपये के करीब 99 फीसदी नोट वापस आ चुके हैं। इस तथ्य ने नेपाल में मौजूद पुराने नोटों के मसले को पेचीदा कर दिया है। दरअसल, भारत की तरह नेपाल के बैंकों ने नोटबंदी के बाद पुराने नोट वापस नहीं लिए थे, क्योंकि भारत सरकार की ओर से इस बाबत कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश उनके पास नहीं था।
पड़ोसी देश के केंद्रीय बैंक नेपाल राष्ट्र बैंक (एनआरबी) ने नोटबंदी के अगले ही दिन पुराने भारतीय नोटों के चलन पर रोक लगा दी थी। वहां के बैंकों को आदेश थे कि बंद हुए भारतीय नोटों को न तो जमा करें और न ही बदलें। नेपाल को उम्मीद थी कि चलन से बाहर किए गए नोटों को भारत जल्द ही बदल देगा। लेकिन, नोटबदली को लेकर दोनों देशों के बीच आज तक सहमति नहीं बन पाई है। नतीजा, न नेपाल के केंद्रीय बैंक ने पुराने भारतीय नोट वापस लिए और न ही नेपाल में मौजूद ये नोट भारत लौट पाए। आज नेपाल में पुराने भारतीय नोटों का कितना भंडार है, यह दोनों देशों में किसी को पता नहीं है। सूत्रों के मुताबिक, इस गफलत का फायदा उठाकर दलाल और नेपाल के प्राइवेट बैंक मोटी कमाई करने में लगे हैं। इस उम्मीद में कि आज नहीं तो कल पुराने नोट भारत वापस ले लेगा।
भारत में बड़ी संख्या में पुराने नोटों की बरामदगी से इन आशंकाओं को बल मिल रहा है। बीते 22 मार्च को उत्तर प्रदेश के बस्ती में पुलिस ने एक करोड़ 11 लाख रुपये मूल्य के पुराने नोट के साथ पांच लोगों को गिरफ्तार किया था। इनमें तीन नेपाल के नागरिक थे। ये लोग पुराने नोट की खेप लेने बस्ती पहुंचे थे। इससे पहले मार्च में ही गुड़गांव में करीब 50 लाख रुपये मूल्य के पुराने नोट बरामद किए गए थे। उससे पहले कानुपर में करीब 96 करोड़, मेरठ में 25 करोड़, हैदराबाद में 2.5 करोड़, भरूच में 49 करोड़ और दिल्ली में 15.75 करोड़ रुपये के पुराने नोट बरामद किए गए थे।
नोटबंदी के बाद रद्दी हो चुके नोटों की भारी बरामदगी कई सवाल पैदा करती है। आखिर पुराने नोट इतनी बड़ी मात्रा में क्यों मिल रहे हैं? इस सवाल का जवाब जांच एजेंसियों के पास भी नहीं है। हालांकि, सूत्र बताते हैं कि नोटबदली में देरी का फायदा उठाकर करेंसी माफिया नेपाल के विभिन्न बाजारों में पुराने नोट खपा रहे हैं। नेपाल सीमा से लगे भारत के करीब बीस जिलों के कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों की भी मिलीभगत हो सकती है। बताया जाता है कि पुराने नोट को जमा करने का ठिकाना उत्तर प्रदेश में कानपुर, मेरठ और बिहार में पटना है। यहां से पुराने नोटों को खपाने के लिए नेपाल के अलग-अलग इलाकों में भेजा जाता है।
संधि के बावजूद देरी
अंतरराष्ट्रीय आर्थिक समझौते के अनुसार, नेपाल के बैंकों में जमा पुराने नोट भारत को लेने ही होंगे। यही कारण है कि पुराने भारतीय नोट आज भी नेपाल में बदले जा रहे हैं। इसमें शामिल लोगों का मानना है कि जब भारत नोटवापसी के लिए राजी होगा तब पता लगाना मुश्किल होगा कि कौन से नोट नोटबंदी से पहले के हैं और कौन से बाद के। नई दिल्ली स्थित नेपाली दूतावास में काउंसलर (पॉलिटिकल) हरि प्रसाद ओडारी ने आउटलुक को बताया, “कई दौर की बातचीत के बावजूद नोट बदलने को लेकर आरबीआइ और एनआरबी में सहमति नहीं बन पाई। एनआरबी चाहता है कि प्रति व्यक्ति 25 हजार रुपये मूल्य के नोट बदलने की अनुमति मिले, क्योंकि नेपाली नागरिकों को इतनी भारतीय मुद्रा रखने की इजाजत है। जबकि आरबीआइ प्रति व्यक्ति चार-पांच हजार रुपये से ज्यादा के नोट बदलने की इजाजत नहीं देना चाहता है। पिछले कुछ महीनों से इस संबंध में बातचीत भी बंद है। ऐसे में समझौता कब तक हो पाएगा यह बताना मुमकिन नहीं है।” एनआरबी और नेपाल के अन्य वाणिज्यिक बैंकों के पास फिलहाल सात करोड़ के पुराने भारतीय नोट हैं। कम से कम इन्हें बदलने का आग्रह नेपाल ने आरबीआइ से किया था। लेकिन इसका भी जवाब नहीं मिला।
इस बारे में वित्त मंत्रालय और आरबीआइ का पक्ष जानने के लिए हमने फोन और ई-मेल से कई बार संपर्क किया, लेकिन जवाब नहीं मिला। हालांकि, कुछ दिन पहले केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि कितनी भारतीय मुद्रा नेपाल के पास है और इसे कैसे बदला जा सकता है, इसके लिए आरबीआइ ने एक समिति बनाई है। जेटली के मुताबिक, ऐसा इसलिए किया गया है ताकि केवल जायज करेंसी ही देश में आए न कि काला धन।
ओडारी का कहना है कि नेपाली नागरिकों के पास जो पुराने भारतीय नोट हैं वे बैंकिंग सिस्टम में तभी लौटेंगे जब भारत इन्हें बदलने को राजी होगा। उनका दावा है कि अब भी नोट बदले जाने की खबरों में सच्चाई नहीं है। खुली सीमा के कारण ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं। नेपाली पुलिस या अन्य एजेंसियों को कभी ऐसी कोई सूचना नहीं मिली। वैसे भी जिन नोटों के बदले जाने पर संशय है उन्हें नेपाल के व्यवसायी क्यों लेंगे?
कई शहरों में फैला जाल
सूत्रों के अनुसार काठमांडू, बीरगंज, पोखरा लेखनाथ, भरतपुर, विराटनगर और ललितपुर नेपाल के वे बड़े शहर हैं जहां अमान्य भारतीय नोटों को बदलने का धंधा गुपचुप तरीके से चल रहा है। नेपाल सीमा से सटे रक्सौल और जयनगर के लोगों की मानें तो नेपाल के जिन छोटे शहरों में भारतीयों की आवाजाही ज्यादा है, वहां खुदरा तरीके से नोट खपाए जा रहे हैं। इस गोरखधंधे का पूरा नियंत्रण बीरगंज और काठमांडू जैसे बड़े शहरों में बैठे आकाओं के हाथ में है।
सीमा सुरक्षा बल (एसएसबी) के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि बिहार के सीतामढ़ी, किशनगंज, अररिया, सुपौल, मधुबनी, पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण जिले तस्करी के कारण काफी संवेदनशील हैं। ये इलाके नकली नोटों और सोने की तस्करी को लेकर पहले से कुख्यात हैं।
द काठमांडू पोस्ट के स्तंभकार अतुल के. ठाकुर ने आउटलुक को बताया, “बड़ी संख्या में नेपाल के नागरिक भारत से आने वाले पैसे पर निर्भर हैं। नोटबदली न होने के कारण भारतीय मुद्रा पर निर्भर नेपाली नागरिक इन्हें चलाने के लिए दलालों की मदद लेने को मजबूर हैं। नोटबदली के समझौते में देरी ने सीमा पर सक्रिय दलालों और तस्करों को एक नया काम दे दिया है।” सूत्र बताते हैं कि पुराने भारतीय नोट 80-90 फीसदी कमीशन पर नेपाली करेंसी से बदले जा रहे हैं। सोने के बिस्किट के जरिए भी नोट बदले जा रहे हैं। कहा जाता है कि काठमांडू और बीरगंज के कसीनो में भी अमान्य नोट चल जाते हैं। एक कसीनो मालिक ने बताया कि भारत जब नोटबदली के लिए तैयार हो जाएगा उस वक्त प्राइवेट बैंकों की मदद से ऐसे सभी नोट वापस हो जाएंगे।
आशंका है कि नोटबदली के दौरान नेपाल से जाली नोट भी भारत आ सकते हैं। नोटबदली में भारत की तरफ से देरी की एक बड़ी वजह यह भी हो सकती है। बंद हुई 99 फीसदी मुद्रा पहले ही वापस आ चुकी है, ऐसे में नेपाल से नोट वापसी का रास्ता खोलना एक नई मुसीबत बन सकता है। हालांकि, ओडारी कहते हैं, “एनआरबी ने आरबीआइ से कहा है कि वह पूरी जांच-पड़ताल के बाद केवल वैध नोट ही बदले।”
ओली से आस
नेपाल का दो तिहाई से ज्यादा कारोबार भारत के साथ है। भारतीय रुपये की नेपाल में इस्तेमाल होने वाली मुद्रा में करीब एक चौथाई हिस्सेदारी है। इसलिए नोट बदलने में देरी का असर नेपाल के साथ संबंधों पर भी पड़ रहा है। नेपाल में भारत विरोधी भावनाएं भड़काई जा रही हैं। बीते साल आम चुनावों में भारत के प्रति झुकाव रखने वाली नेपाली कांग्रेस की करारी हार में इस मुद्दे ने अहम भूमिका निभाई थी। अब नजरें नेपाली प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की भारत यात्रा पर टिकी हैं। इस दौरान यदि नोटबदली पर सहमति नहीं बनी तो समस्या और गहरा सकती है।