झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के स्वराज्य स्वप्न पर हमेशा ही बात होती है, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इस भावना के पीछे कौन था। झांसी की रानी ने एक बार एक साधु से स्वराज्य की स्थापना के बारे में पूछा था। उनके मन में स्वराज्य स्थापना की मंशा थी पर समाधान नहीं था। तब उन्हें उत्तर मिला, “सेवा, बलिदान और तपस्या से ही स्वराज्य की स्थापना हो सकती है।” बाद में रानी इसी राह पर चलीं। उन्हें यह पथ दिखाने वाले थे, संत गंगादास। गंगादास 1855 ईस्वी के मध्य में ग्वालियर के पास एक कुटी बना कर रहते थे। उन्होंने न सिर्फ लक्ष्मी बाई को राह दिखाई बल्कि रानी का दाह संस्कार भी किया था। गंगादास संत होने के साथ-साथ कवि भी थे। इनके काव्य को पूरी तरह खोजा ही नहीं गया।
यह पुस्तक उनकी वाणी, ज्ञान, भक्ति और राष्ट्रीय भावना को समान रूप से पाठकों के सामने लाती है। संत गंगादास को खड़ीबोली काव्य का भीष्म पितामह भी कहा गया है। इस पुस्तक में पाठकों को उनके ऐसे पद भी पढ़ने को मिलेंगे जो प्रसिद्ध हैं। लेख और अध्ययन बताते हैं कि खड़ी बोली काव्य का स्वाभाविक रूप भारतेन्दु से भी पहले संत गंगादास के काव्य में उपलब्ध है।