कठुआ, उन्नाव, सूरत, बाड़मेर.....सिलसिला थमता नहीं और हर वारदात नृशंसता में एक-दूसरे से होड़ लेती लगती है। मानो कोई दबा-छिपा नासूर फूट पड़ा हो, मानो वर्षों से किन्हीं नैतिक दबावों में ढंकी विकृतियों का ढक्कन खुल गया हो और वे खुलकर खेलने लगी हों! इससे भी हैरतनाक इन घटनाओं पर उठीं प्रतिक्रियाएं हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इन सभी मामलों में मासूम और नाबालिग कुकर्म और कत्ल के शिकार हैं। खेमे बंट गए हैं। कहीं हिंदू-मुस्लिम दलील हावी है तो कोई इन्हें जातिगत और आपसी रंजिश की घटनाएं बता रहा है। हर खेमे के पास जायज और नाजायज ठहराने के अपने किस्से-कहानियां हैं, गोया हर कोई फिल्मी अदालतों में अजीबोगरीब दलील दे रहा हो। प्रशासन और तंत्र की प्रारंभिक प्रतिक्रिया पीड़ितों के हक में कार्रवाई के बदले दूसरी दलीलों को तवज्जो देती दिखती है। इन दलीलों में वहशियाना घटनाओं की तस्वीर डूबती-उतराती नजर आती है, मानो उससे ज्यादा जरूरी पहले दूसरी बातों का निपटारा हो।
यह तीखा सामाजिक-सियासी बंटवारा सिर्फ इन अमानवीय घटनाओं में ही नहीं दिख रहा है, बल्कि इसके अक्स और भी कई रूपों में दिख रहे हैं। हैरानी तब और होती है कि स्वतंत्रता आंदोलन से निकले सामाजिक समरसता के प्रतीक तिरंगे को लहराकर सीधे टकराहटों का इजहार किया जाने लगा है, धमकियां और धौंस-पट्टी दी जाने लगी है। सरकारें या तो मौन हैं या फिर उनकी प्रतिक्रिया इतनी देर से आती है कि कटुता की ये भावनाएं तीखी होती जाती हैं। आखिर कहां आ गए हैं हम! यह कौन-सा मुकाम है! इसके सामाजिक-राजनैतिक नतीजे क्या होने वाले हैं?
जब हैवानियत भी सहम जाए
जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में एक तहसील है हीरानगर। इस तहसील में एक गांव है रसाना। गांव जंगल से घिरा हुआ है। 17 जनवरी को इस गांव के जंगल में आठ साल की एक बच्ची की क्षत-विक्षत लाश मिली। बच्ची का ताल्लुक बकरवाल समुदाय से था और वह पिछले एक हफ्ते से लापता थी। 10 जनवरी को दोपहर करीब 12.30 बजे वह घर से घोड़ों को चराने के लिए निकली थी मगर फिर नहीं लौटी। घरवालों ने हीरानगर पुलिस में उसके गायब होने की शिकायत दर्ज करवाई मगर पुलिस ने खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। आखिरकार हफ्ते भर बाद लाश मिलने के बाद पोस्टमॉर्टम हुआ। उसमें पता चला कि बच्ची के साथ कई बार कई दिनों तक गैंगरेप हुआ, उसे भूखा रखा गया और नशे की गोलियां दी गईं। उसके दुपट्टे से उसका गला घोंटा गया और फिर सिर पर पत्थर मारकर उसकी हत्या की गई। मेडिकल रिपोर्ट में यह भी साफ हुआ कि जिस दिन शव जंगल में फेंका गया था, उससे 72 घंटे पहले ही उसकी हत्या कर दी गई थी।
इससे पूरे जम्मू-कश्मीर में हंगामा खड़ा हो गया। लोग हजारों की संख्या में सड़क पर विरोध प्रदर्शन करने लगे। विधानसभा में विपक्षी पार्टियों ने सरकार को कठघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया। 20 जनवरी को सरकार ने एसएचओ को सस्पेंड कर दिया और मामले की मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दे दिए। फिर भी हंगामा नहीं थमा। इसके बाद जम्मू-कश्मीर की मुफ्ती सरकार ने 23 मार्च को पूरे मामले को क्राइम ब्रांच को सौंप दिया। क्राइम ब्रांच ने एसआइटी का गठन किया और मामले की जांच शुरू हुई।
सबसे पहले गिरफ्तार हुआ जांच अधिकारी
जांच के दौरान क्राइम ब्रांच ने इस पूरे मामले के जांच अधिकारी रहे सब इंस्पेक्टर आनंद दत्ता को गिरफ्तार कर लिया। जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि इस गैंगरेप में जम्मू-कश्मीर का एक स्पेशल पुलिस अफसर दीपक खजूरिया भी शामिल था। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ती गई, आरोपियों की संख्या भी बढ़ती रही। पुलिस ने कुल सात लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें एक नाबालिग है। गिरफ्तार होने वालों में स्पेशल पुलिस अफसर (एसपीओ) दीपक खजूरिया, पुलिस अफसर सुरेंद्र कुमार, रसाना गांव का परवेश कुमार, असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर आनंद दत्ता, हेड कांस्टेबल तिलक राज, पूर्व राजस्व अधिकारी का बेटा विशाल और उसका चचेरा भाई, जो नाबालिग है। इस मामले में पूर्व राजस्व अधिकारी सांजी राम का नाम मुख्य आरोपी के तौर पर सामने आया। उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी हुआ। पुलिस ने बेटे विशाल को गिरफ्तार कर लिया तो पिता सांजी राम ने भी सरेंडर कर दिया।
क्राइम ब्रांच ने नौ अप्रैल को 15 पन्ने की चार्जशीट दाखिल कर दी। इस चार्जशीट के मुताबिक गैंगरेप और हत्या का मास्टरमाइंड रिटायर्ड राजस्व अफसर सांजी राम है। उसने अपने बेटे विशाल और नाबालिग भतीजे के साथ इस पूरी वारदात को अंजाम दिया। स्पेशल पुलिस अफसर दीपक खजूरिया, सुरेंद्र कुमार, परवेश कुमार, सहायक पुलिस इंस्पेक्टर दत्ता और हेड कांस्टेबल तिलक राज ने पूरे मामले में भूमिका निभाई, सबूत नष्ट करने की कोशिश की।
बकरवालों को गांव से भगाना चाहते थे आरोपी
बदतरीन यह है कि बच्ची को सामुदायिक विद्वेष के खातिर ऐसी हैवानियत का शिकार बनाया गया। बच्ची जिस घूमंतू बकरवाल मुस्लिम समुदाय से थी, वह कठुआ में अल्पसंख्यक हैं। इनका कठुआ में रहने वाले हिंदू परिवारों से अवैध बूचड़खाना चलाने और फसलों को बर्बाद करने को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। हिंदू परिवारों की ओर से कई बार उनके खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज करवाई जा चुकी है। चार्जशीट के मुताबिक सबक सिखाने के लिए मास्टरमाइंड रिटायर राजस्व अधिकारी सांजी राम ने बच्ची के अपहरण, रेप और हत्या की योजना बनाई, ताकि इस घटना के बाद बकरवाल समुदाय दहशत में आ जाए और कठुआ छोड़कर कहीं और चला जाए। इसके पीछे सांजी राम की पुरानी रंजिश भी थी। सांजी राम के नाबालिग भतीजे की बकरवाल समुदाय के लोगों ने कुछ दिन पहले पिटाई कर दी थी। सांजी और उनका भतीजा इसका बदला भी लेना चाहता था। जंगलों में सात-आठ बार उसकी मुलाकात उस बच्ची से हुई थी।
चार्जशीट के मुताबिक सांजी राम ने अपने नाबालिग भतीजे से बात की और प्लान बनाया। इन लोगों ने स्पेशल पुलिस अफसर दीपक खजूरिया को भी अपनी प्लानिंग में शामिल किया। 10 जनवरी की शाम को दीपक खजूरिया अपने दोस्त और स्पेशल पुलिस अफसर विक्रम के साथ बिटू मेडिकल स्टोर गया। वहां से उसने बेहोश करने वाली दवा इपिट्रिल की 10 गोलियां खरीदीं। इसी दौरान सांजी राम के भतीजे को वह बच्ची जंगलों में बाहरी बालिश पेड़ के पास दिख गई। वह अपने जानवरों को खोज रही थी, तो उसने कहा कि उसके जानवर जंगल में अंदर हैं। बच्ची उसके साथ जंगल में चली गई। लड़का उसे अपने पिता के जानवर बांधने वाले शेड में ले गया। उसके पैर बांध दिए। फिर इतनी पिटाई की कि बच्ची बेहोश हो गई। इस दौरान उसका दोस्त मन्नू भी था। बच्ची बेहोश हो गई, तो दोनों ने उसके साथ रेप किया। उसके बाद दोनों उसे उठाकर एक मंदिर में ले आए और देवस्थान में बंद कर दिया। अगले दिन यानी 11 जनवरी को नाबालिग आरोपी ने मेरठ में अपने चचेरे भाई विशाल को फोन किया। विशाल आकांक्षा कॉलेज मीरापुर में बीएससी का छात्र था।
12 जनवरी को विशाल रसाना पहुंच गया। मंदिर में लड़की को नशे की तीन गोलियां दी गईं। लड़की बेहोश हुई तो उस नाबालिग, मन्नू और विशाल ने उसके साथ गैंगरेप किया। यह सिलसिला 15 जनवरी तक चलता रहा। 15 जनवरी को सांजी राम भी मंदिर पहुंचा। उसने कहा कि अब बच्ची की हत्या कर उसे ठिकाने लगाना होगा। दीपक खजूरिया वहां मौजूद था। उसने कहा कि थोड़ा रुक जाओ, मुझे भी रेप करना है। फिर लड़की का गला घोंटा और पत्थर मारकर हत्या कर दी। शव जंगल में फेंक दिया गया। जब बच्ची का शव बरामद हुआ, तो पूरे राज्य में हंगामा हो गया।
पुलिस पर रिश्वत लेने के आरोप
जब तक केस में स्थानीय पुलिस की भूमिका थी, सांजी राम पैसे देकर आरोपियों को बचाता रहा। लेकिन 22 जनवरी को केस क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया। इसके बाद 23 जनवरी के आदेश से क्राइम ब्रांच के एएसपी नवीद पीरजादा के नेतृत्व में इस मामले की जांच शुरू हुई और जब चार्जशीट दाखिल की गई तो पता चला कि इस आठ साल की बच्ची से कितनी हैवानियत की गई। आठ लोगों ने एक खास समुदाय को गांव से बाहर निकालने के लिए इस आठ साल की मासूम बच्ची को निशाना बनाया, बर्बरता की सारी हदें पार कर दी गईं और फिर सारे सबूत मिटाने के लिए पुलिस को पैसे दिए गए।
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती है। हैवानियत की एक कहानी और भी है, जो इस हैवानियत को अंजाम देने वालों को बचाने के कवायद की कहानी है। इसमें राजनैतिक लोग भी हैं और कानून के जानकार भी। सत्तारूढ़ पीडीपी के सहयोगी दल भाजपा के मंत्री लाल सिंह और प्रकाश चंदर गंगा ने पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ आपत्तिजनक बयान दिया। बाद में कथित तौर पर पीडीपी के सख्त रुख और प्रधानमंत्री कार्यालय के संदेश के बाद इन दोनों मंत्रियों ने इस्तीफे सौंप दिए।
वकीलों ने किया चार्जशीट का विरोध
इस मामले में दूसरी बड़ी हैवानियत नौ अप्रैल को देखने को मिली, जब क्राइम ब्रांच चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी कर रहा था। वकीलों के एक बड़े समूह ने इतना हंगामा किया कि नौ अप्रैल को चार्जशीट दाखिल नहीं हो पाई। चार्जशीट 10 अप्रैल को दाखिल हो पाई। वह भी जब जम्मू-कश्मीर के कानून मंत्री ने दखल दिया। पुलिस ने अज्ञात वकीलों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया। वकीलों ने इसके विरोध में 11 अप्रैल और 12 अप्रैल को पूरे जम्मू-कश्मीर का बंद बुलाया और कठुआ जिला जेल के बाहर लगातार प्रदर्शन करते रहे। बताया जाता है कि कठुआ की बार एसोसिएशन भाजपा की राज्य इकाई से जुड़ी हुई है और सभी आरोपियों का बचाव कर रही है, क्योंकि सभी आरोपी हिंदू हैं।
गांव में सन्नाटा
रसाना गांव में 17 जनवरी के बाद दहशत का माहौल है। गांव के बाहर पुलिस का पहरा है। चौपाल पर लोग धरने पर बैठे हैं जिनमें महिलाएं भी हैं। पीड़ित बच्ची का घर थोड़ा ऊपर पहाड़ पर है। बच्ची को उसके मौसा यूसफ ने गोद लिया हुआ था क्योंकि यूसफ के दो बेटों की दुर्घटना में मौत हो गई थी। गांव से दूर जंगल में यूसफ की अपनी जमीन है। यहां उसने मकान बनाया हुआ है। लेकिन अब मकान खाली पड़ा हुआ है। यूसफ अपनी पत्नी और मवेशियों के साथ चला गया है।
बकरवाल मोहम्मद कालू यूसफ के लगातार संर्पक में है। इसी गांव में डेरा लगाकर रहने वाले कालू का कहना है कि करीब चालीस साल से वह इसी गांव में डेरा लेकर आता है। पड़ाासी मुश्ताक का भी ऐसा ही कहना था। उसने बताया कि यूसफ डर कर नहीं गया है, बल्कि हम लोग हर साल गर्मी शुरू होने के बाद कश्मीर में जाते हैं। क्योंकि गर्मी में यहां हमारे मवेशी मर जाते हैं। ऐसे में मवेशी लेकर हमलोग कश्मीर चले जाते हैं। फिर सर्दी शुरू होने पर वापस आते हैं। ऐसा चालीस साल से कर रहे हैं।
बहरहाल, दो वकीलों का जिक्र भी जरूरी है, जिनके साहसिक प्रयासों से यह मामला अब सुर्खियों में है। एक बकरवाल समुदाय के तालिब हुसैन और दूसरी दीपिका सिंह राजावत हैं जिन्हें वकीलों तक की धमकियां मिलीं और सुरक्षा की गुहार लगानी पड़ी। इससे मामले की अदालती कार्रवाई जम्मू से बाहर कराने की मांग सुप्रीम कोर्ट पहुंची। कोर्ट 27 अप्रैल को फैसला देगी।
सूरत की जघन्य दास्तां
गुजरात के सूरत में 11 साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या का मामला सामने आया है। बच्ची का शव छह अप्रैल को झाड़ियों में पड़ा मिला। कुछ राहगीरों ने पुलिस को जानकारी दी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार बच्ची के शरीर पर 80 से भी ज्यादा घाव के निशान मिले हैं और उसके निजी अंगों को भी नुकसान पहुंचाया गया है। पुलिस के मुताबिक निजी अंगों पर निशान मिलने से लगता है कि बच्ची को बंधक बनाकर प्रताड़ित किया गया। दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या कर दी गई।
बाड़मेर में हत्या या...
राजस्थान के बाड़मेर के स्वरूप का ताला गांव में 13 अप्रैल को दो नाबालिग दलित लड़कियों और एक नाबालिग मुस्लिम लड़के के शव पेड़ से लटके मिले। लड़कियों के परिजनों ने बलात्कार और हत्या की आशंका जताई है। भैरू मेघवाल को यकीन है कि उनकी बेटी शांति (13) और भतीजी मधु (12) की बलात्कार के बाद हत्या की गई है। मेघवाल समुदाय के लोग देशाल खान (17) पर शक जता रहे हैं, जिसका शव लड़कियों के साथ मिला था। कुछ गांव वालों का दावा है कि जिस पेड़ पर तीनों नाबालिगों का शव मिला उसके पास चार लोगों के पैरों के निशान थे। हालांकि बाड़मेर के पुलिस अधीक्षक गगनदीप सिंगला के मुताबिक प्राथमिक जांच में मामला आत्महत्या का लगता है। एक अन्य ग्रामीण आलम खान के अनुसार न तो मेघवाल और न तो मुस्लिम पूरा सच बता रहे हैं। आलम खान के मुताबिक इस मामले में अभी बहुत कुछ सामने आना बाकी है। शवों को देखने के बाद ये यकीन नहीं होता कि ऐसा जघन्य मामला आत्महत्या का है।
ग्रेटर नोएडा में नारकीय कांड
ग्रेटर नोएडा में एक सीए के साथ काम करने वाली चौबीस वर्षीय महिला के साथ यमुना एक्सप्रेसवे पर शनिवार की शाम दो युवकों ने गैंगरेप किया। महिला घर लौट रही थी। पीड़िता ने बताया कि अट्ठाइस साल के सलमान मलिक ने महिला को लिफ्ट दिया। वह सलमान को पहले से जानती थी। रास्ते में दूसरा आरोपी छब्बीस वर्षीय साजिद भी कार में सवार हुआ। इसके बाद वे कार एक्सप्रेसवे की ओर ले गए और मथुरा के पास दुष्कर्म किया।