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ऐसा मंजर पहले नहीं दिखा

राजस्थान की सियासत में बड़ा उलट-फेर ला सकती हैं भारत बंद के बाद पैदा हुई स्थितियां
बढ़ता असंतोष: भारत बंद के दौरान जयपुर में दलित संगठनों का प्रदर्शन

राजस्थान में जाति समुदायों के बीच कटुता पैदा होने के वाकये पहले भी सामने आते रहे हैं। मगर दलित संगठनों के बंद आयोजित करने के बाद समाज में कहीं भीतर बैठा नफरत का भाव छलक कर सतह पर आ गया है। भीलवाड़ा जिले के पाटोली में गत पांच अप्रैल को वाल्मीकि समाज के आठ साल के बालक को एक सैलून से बाल कटवाते बीच में ही उठा दिया गया, क्योंकि सैलून संचालक लक्ष्मण सेन को उसकी जाति पता लग गई। इससे उत्तेजित वाल्मीकि समाज ने मरे पशु उठाने से इनकार कर दिया। नतीजन, पुलिस ने सैलून संचालक को गिरफ्तार कर लिया तो व्यापारी सड़कों पर आ गए।

पूर्वी राजस्थान में करौली जिले के हिंडौन में अनुसूचित जातियों में जाटव समाज निशाने पर है। यही वजह है कि सर्व समाज के नाम पर जुटी भीड़ ने हिंडौन में सत्तारूढ़ भाजपा की विधायक राजकुमारी जाटव और कांग्रेस के पूर्व मंत्री भरोसी लाल जाटव के घरों पर हमला बोल दिया। पूर्व मंत्री जाटव कहते हैं, “जिले के दोनों प्रमुख अधिकारियों की मौजूदगी में मेरे घर को आग लगाई गई। राजनीति में लंबा वक्त गुजारा है। मगर ऐसा मंजर कभी नहीं देखा।” हिंडौन के दिनेश जाटव कहते हैं, “हमारा सामाजिक तौर पर बॉयकॉट किया जा रहा है। कोई दलित घायल होकर अस्पताल पहुंचे तो कोई जख्म पर पट्टी बांधने को तैयार नहीं होता। ऐसे लगता है मानो हिंदू समाज ने हमारे लिए अपने कपाट बंद कर लिए हैं।” 

हिंडौन में दलित समुदाय के लोग मानते हैं कि इस मुश्किल घड़ी में अनुसूचित जनजाति के मीणा समाज के लोग उनके साथ आए हैं। अलवर के खैरथल में भी दलित बहुत डरे हुए हैं। वहां पुलिस की गोली से एक दलित मारा गया था। दलित अधिकार कार्यकर्ता सतीश कुमार बताते हैं कि आरक्षित वर्ग के सरकारी कर्मचारियों को फर्जी  मुकदमों में फंसाया जा रहा है। अगर कोई दलित सरकारी कर्मचारी दो अप्रैल को छुट्टी पर था तो उससे पूछताछ हो रही है।

दलित कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी भी मानते हैं कि सरकारी कार्यालयों में माहौल बदला है। न केवल सरकारी दफ्तरों में बल्कि सियासी पार्टियों में भी दलितों को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। बालोतरा में दलित समुदाय के वकील डूंगर सिंह कहते हैं, “पिछड़े समाज में जाट और दूसरी जातियां दलितों के प्रति दोस्ताने का भाव लेकर सामने आईं।  अल्पसंख्यक समुदाय भी मददगार था। लेकिन सवर्ण जातियां खिलाफ रहीं।” दलित अधिकारों के लिए काम कर रहे तोलाराम बताते है कि जालोर जिले में पिछड़े वर्ग की कुछ असरदार जातियां दलितों पर सितम करने खड़ी हो गईं। ऐसा ही जोधपुर, सिरोही और बाड़मेर जिलों में दिखाई दिया। दलित छात्रों को हॉस्टलों से निकाल कर पीटा गया।

सामाजिक तनाव की इन घटनाओं ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को चिंतित कर दिया है। भाजपा एससी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष ओपी महेंद्रा स्वीकार करते हैं कि हाल की घटनाओं से समरसता बिगड़ी है। यह सब कांग्रेस, बसपा और वामपंथी संगठनों का किया धरा है।

डूंगरपुर के दिनेश मीणा सरकारी शिक्षक हैं। वे कहते हैं कि आदिवासी अंचल में दलित और आदिवासी एक साथ थे। लेकिन बंद के बाद पुलिस जातिगत भावना से काम कर रही है। जयपुर में वकालत करने वाले ताराचंद बताते हैं कि बंद के दौरान दलित वकीलों का समूह जब जयपुर के एक पुलिस थाने हिरासत में लिए लोगों के बारे में पता करने पहुंचा तो पुलिसवाले मारपीट पर आमादा हो गए और जातिसूचक गालियां दीं।

दलित सगठनों के अनुसार, “पुलिस इतनी आवेश में थी कि 17 मार्च, 2007 में चल बसे एक दलित फूलसिंह के विरुद्ध भरतपुर के रूपवास में प्राथमिकी दर्ज कर ली गई। उसे बंद की घटनाओं के लिए जिम्मेदार मानते हुए नोटिस भेज दिया।” ऐसे ही एक साल पहले मौत का शिकार हुए रूपवास तहसील के विजय सिंह के विरुद्ध भी एफआइआर दर्ज कर ली गई। इस तरह के अनेक मामले सामने आए हैं।

राजस्थान में छह माह बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य में अनुसूचित जाति की 34 सीटें हैं जबकि जनजाति के लिए 25 सीटें आरक्षित हैं। इनमें से ज्यादातर सीटें अभी भाजपा के पास हैं। हाल में भाजपा में लौटकर राज्यसभा पहुंचे किरोड़ी लाल मीणा इस पहलू को समझते होंगे। इसीलिए वे दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मिले और बंद के दौरान दर्ज मुकदमों में फंसे निर्दोष लोगों की पैरवी की। कांग्रेस ने भी अपने कुछ नेताओं को प्रभावित लोगों से मिलने भेजा। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी पार्टी के विधायक रहे भरोसी लाल जाटव से मिलने उनके घर पहुंचे। माना जा रहा है कि बंद के दौरान और उसके बाद की घटनाएं राजस्थान की सियासत में बड़ा उलट-फेर लेकर आएंगी।

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